Saturday, May 18, 2024
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₹5,650 करोड़ से चीन पर नज़र: हिंद महासागर में ड्रैगन को घेरने की तैयारी

हिंद महासागर में चीन के बढ़ते प्रभाव को रोकने के लिए भारत ने अंडमान निकोबार द्वीप समूह क्षेत्र में अपने सैन्य बुनियादी ढाँचे के विकास के लिए अगले 10 वर्षों के लिए ₹5,650 करोड़ लागत की योजना को अंतरिम रूप दे दिया है। इसके ज़रिए अब अतिरिक्त युद्धपोत, विमान, ड्रोन, मिसाइल बैट्री और पैदल सैनिकों की तैनाती की राह सुलभ हो जाएगी। बता दें कि हिंद महासागर क्षेत्र में चीन के बढ़ते क़दमों को रोकने के लिए इस योजना को अमल में लाया गया है।

सूत्रों के अनुसार, इस योजना पर रक्षा मंत्रालय में बड़े स्तर पर चर्चा की गई थी। आपको बता दें कि अंडमान और निकोबार कमांड (ANC) हमारे देश की एकमात्र कमांड है, जिसके दायरे में ऑपरेशनल कमांडर के अंतर्गत आर्मी, नौसेना, भारतीय वायु सेना और तटरक्षक बल आते हैं।

जानकारी के मुताबिक़, इस योजना की समीक्षा राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार अजीत डोभाल की अध्यक्षता वाली डिफेंस प्लानिंग कमिटी ने भी की थी, जिसमें तीनों सेनाओं के प्रमुख भी शामिल हुए थे। इसके अलावा 2027 तक भारतीय सेना की शक्ति में इज़ाफ़े के लिए एक व्यापक योजना पर भी काम चल जा रहा है।

सेना की शक्ति में इज़ाफ़े के लिए इस योजना के तहत क़रीब ₹5,370 करोड़ प्रस्तावित किए गए हैं। फ़िलहाल, 108 माउंटेन ब्रिगेड का विकास करने के साथ नई वायु रक्षा प्रणाली, सिग्नल्स, इंजीनियर, आपूर्ति और अन्य ईकाइयों के अलावा वहाँ पहले से मौजूद तीन बटालियन (दो पैदल सेना और एक प्रादेशिक सेना) को जोड़ने के लिए एक नई पैदल बटालियन भी शामिल की जाएगी।

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और रक्षा मंत्री निर्मला सीतारमण के 572-द्वीप समूह के दौरे से संकेत मिलता है कि कुछ योजनाएँ पिछले 30 दिनों के पहले से ही चल रही थीं। उदाहरण के लिए, पोर्ट ब्लेयर और कार निकोबार में दो मौजूदा प्रमुख हवाई अड्डों के अलावा, शिबपुर में नौसेना के हवाई स्टेशनों पर रनवे (गुरुवार को नौसेना प्रमुख एडमिरल सुनील लांबा द्वारा आईएनएस कोहासा के नेतृत्व में) पहले से चालू थे।

उत्तर में कैम्पबेल बे (INS बाज़), दक्षिण में बड़े विमानों द्वारा परिचालन में मदद करने के लिए 10,000 फ़ीट तक बढ़ाया जाएगा। 10 साल के बुनियादी ढाँचे के विकास के तहत कामोर्टा द्वीप पर 10,000 फ़ुट का एक और रनवे भी बनाया जाएगा। बता दें कि भारत ने सुखोई-30MKI जैसे लड़ाकू जेट, लंबी दूरी तक समुद्री गश्त के लिए पोसिडोन-8I विमान और हेरॉन-2 निग़रानी जैसे ड्रोन द्वीपसमूह में पहले से ही तैनात किए हुए हैं।

इसके अलावा डॉर्नियर-228 गश्ती विमान और MI-17V5 हेलीकॉप्टर भी जल्द ही ANC पर तैनात किए जाएँगे। हालाँकि 2001 में इसे स्थापित किए जाने के बाद ANC को लगातार सेना, नौसेना और वायु सेना और आंतरिक राजनीतिक-नौकरशाही की बेरुख़ी के अलावा फंड की कमी और बुनियादी ढाँचे के निर्माण के लिए पर्यावरणीय मंज़ूरी की कमी की वजह से बहुत परेशानियों का सामना करना पड़ा था।

इस प्रकार, एक मज़बूत ANC, जो संपूर्ण सैन्य बल और बुनियादी ढाँचे से लैस हो, प्रभावी रूप से इंडियन ओसियन रिजन (IOR) में चीन की कूटनीतिक चाल का मुक़ाबला करने के लिए एक अहम रोल अदा कर सकता है। भारत की ओर से चीन के क्षेत्र में नौसेना का विस्तार, जिसमें परमाणु पनडुब्बी भी शामिल हैं, को समय के साथ-साथ और भी बढ़ाया जाना है। एक वरिष्ठ अधिकारी ने कहा कि भारत को इस क्षेत्र में नज़र बनाए रखने के लिए और ज़रुरी होने पर हस्तक्षेप करने के लिए ANC में अपनी सैन्य चौकियों को गंभीरता से लेना होगा।

‘नारी शक्ति’: साल 2018 का हिन्दी शब्द, ऑक्सफोर्ड डिक्शनरी में शामिल

26 जनवरी को जब राजपथ पर ‘नारी शक्ति’ का प्रदर्शन हो रहा था, उसी वक़्त जयपुर में भी इस पर चर्चा चल रही थी। चर्चा इसलिए क्योंकि साहित्य महोत्सव में ऑक्सफोर्ड डिक्शनरी को साल 2018 का हिन्दी शब्द चुनना था। और पैनल ने आख़िरकार ‘नारी शक्ति’ शब्द पर मुहर लगा दी।

जयपुर लिटरेचर फेस्टिवल (जेएलएफ़, जयपुर साहित्य उत्सव) में ऑक्सफोर्ड ने अपने बयान में कहा, “मार्च 2018 में अंतरराष्ट्रीय नारी दिवस पर भारत सरकार द्वारा जब नारी शक्ति पुरस्कार के तहत महिलाओं की असाधारण उपलब्धियों को पहचाना और सराहा गया, तब से इस शब्द के प्रयोग में जबरदस्त उछाल आया है।” साथ ही ट्रिपल तलाक, सबरीमाला मंदिर विवाद, MeToo आंदोलन जैसे महिला सशक्तीकरण के मुद्दे भी इस शब्द को चुनने का आधार बने।

ऑक्सफोर्ड डिक्शनरी में ‘हिंदी वर्ड ऑफ दि ईयर’ का दर्जा ऐसे शब्द को दिया जाता है, जो पूरे साल काफी ध्यान आकर्षित करता है। इसके साथ ही लोकाचार, भाव और चिंता को भी प्रतिबिंबित करता हो। ऑक्सफोर्ड के अनुसार ‘नारी शक्ति’ शब्द संस्कृत से लिया गया है और इन दिनों अपने हिसाब से जीवन जी रहीं महिलाओं के लिए इसका इस्तेमाल किया जाता है।

आपकी जानकारी के लिए बता दें कि “आधार” को ऑक्सफोर्ड डिक्शनरी ने साल 2017 का हिन्दी शब्द चुना था।

राष्ट्रीय शक्ति का प्रतीक भारत का न्यूक्लियर ट्रायड

न्यूक्लियर अस्त्र दो प्रकार के होते हैं- स्ट्रेटेजिक न्यूक्लियर वेपन (SNW) और टैक्टिकल न्यूक्लियर वेपन (TNW)। स्ट्रेटेजिक न्यूक्लियर वेपन किसी नगर की बड़ी जनसंख्या पर आक्रमण करने के लिए होते हैं। विश्व इतिहास में SNW का प्रयोग प्रथम और अंतिम बार अमेरिका ने जापान के विरुद्ध 1945 में किया था। जापान पर अमेरिका के परमाणु हमले के बाद से ही अंतर्राष्ट्रीय बिरादरी में निशस्त्रीकरण की बहस चालू हुई। कहा गया कि ग़ैर ज़िम्मेदार (अमेरिकी बुद्धिजीवियों की शब्दावली में गरीब) देश परमाणु अस्त्र बनाने की क्षमता विकसित न करें और बड़ी अर्थव्यवस्था वाले अमीर देश अपने नाभिकीय हथियारों का ज़खीरा नष्ट करें।

चिर प्रतिद्वंद्वी अमेरिका और रूस ने अपने कितने SNW नष्ट किये इसका कोई प्रमाण उपलब्ध नहीं है अलबत्ता इन देशों की आपसी खींचतान ने सामरिक जगत में एक नए प्रकार के अस्त्र को जन्म दिया। इसे टैक्टिकल न्यूक्लियर वेपन (TNW) कहा गया। इन अस्त्रों को विकसित करने के पीछे तर्क यह दिया गया कि चूँकि SNW से होने वाला विनाश बड़ा होता है इसलिए कम तीव्रता वाले छोटे TNW बनाए जाएँ जिनका प्रयोग युद्धकाल में जनता पर नहीं बल्कि शत्रु देश की सेना पर किया जाए। शीत युद्ध के समय इस प्रकार के हथियार अमेरिका और रूस द्वारा बड़ी मात्रा में विकसित किए गए और कहा जाता है कि शीत युद्ध की समाप्ति के पश्चात उन्हें नष्ट भी कर दिया गया।

अमेरिका और रूस ने भले ही अपने TNW नष्ट कर दिए हैं किंतु उनसे प्रेरणा लेते हुए पाकिस्तान ने ढेर सारे TNW विकसित किए गए हैं। किसी देश के द्वारा टैक्टिकल न्यूक्लियर वेपन विकसित करना यह दिखाता है कि वह युद्ध में परमाणु हथियार का प्रयोग पहले करने को आतुर है। भारत की 1998 में घोषित न्यूक्लियर डॉक्ट्रिन में कहा गया कि हम युद्धकाल में न्यूक्लियर वेपन का प्रयोग पहले नहीं करेंगे। जब हम पर न्यूक्लियर हथियार से हमला किया जाएगा तब हम उसका मुँहतोड़ जवाब देंगे। पहले हमला न करने की नीति के चलते ही हमने टैक्टिकल न्यूक्लियर वेपन विकसित नहीं किए।

भारत ने पहले हमला न करने की नीति के साथ ही यह भी घोषणा की कि हम नाभिकीय अस्त्रों के प्रयोग में ‘credible minimum deterrence’ का पालन करेंगे। अर्थात हम पर इस बात के लिए विश्वास किया जा सकता है कि हम परमाणु हथियार का प्रयोग करना नहीं चाहते इसीलिए परमाणु हथियार विकसित करने की अपनी क्षमता में हम कोई कसर नहीं छोड़ेंगे ताकि कोई और देश हम पर परमाणु हमला करने से पहले सौ बार सोचे। इसी नीति पर चलते हुए भारत ने टैक्टिकल न्यूक्लियर वेपन ले जाने लायक डिलीवरी सिस्टम विकसित किए लेकिन TNW नहीं बनाए।

‘डेटरेन्स’ या निवारक का अर्थ यह हुआ कि हमने शत्रु देश को हम पर हमला करने से पूर्व ही अपने परमाणु अस्त्र की शक्ति दिखा कर रोक दिया। इसे सुनिश्चित करने के लिए हमने स्ट्रेटेजिक न्यूक्लियर वेपन और इन्हें ले जाने लायक डिलीवरी सिस्टम विकसित किए। किसी भी देश की सशस्त्र सेना के तीन मुख्य अंग होते हैं: जल, थल और नभ। इन तीन माध्यमों से नाभिकीय अस्त्र प्रक्षेपित करने की क्षमता संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद के हर स्थाई सदस्य देश ने विकसित की है। “जल थल और नभ से परमाणु हथियार दागने की क्षमता को हम न्यूक्लियर ट्रायड विकसित कर लेने की संज्ञा देते हैं।”

भारत ने भी 1983 में प्रारंभ किए गए Integrated Guided Missile Development Program के अंतर्गत 26 दिसंबर 2016 को अग्नि-5 मिसाइल का पाँचवी बार सफलतापूर्वक परीक्षण किया था। अग्नि-5 पाँच हजार किलोमीटर से अधिक दूरी तक न्यूक्लियर वेपन ले जा सकने वाली Intermediate Range Ballistic Missile है। जनवरी 2017 में हमने कम दूरी की IRBM अग्नि-4 का भी परीक्षण किया था। यह धरातल से धरातल पर मार करने वाली मिसाइलें हैं। अग्नि की क्षमता IRBM से आगे बढ़कर एक महाद्वीप से दूसरे महाद्वीप तक मार करने वाली ICBM तक की है।

भारत ने अग्नि के विकास में Multiple Independently targetable Re-entry Vehicle तकनीक तक की महारत हासिल कर ली है। MIRV का अर्थ यह है कि एक बार लॉन्च होने पर मिसाइल कई अलग लक्ष्यों को एक साथ भेद कर समूल नष्ट कर सकती है। पूर्व डीआरडीओ अध्यक्ष वी के सारस्वत के अनुसार अग्नि शृंखला की मिसाइलें भविष्य में एंटी सैटेलाइट हथियार के रूप में भी विकसित की जा रही हैं। अग्नि के अतिरिक्त भारत के पास कम और मध्यम दूरी की पृथ्वी, धनुष और निर्भय सब सोनिक क्रूज़ मिसाइलें भी हैं। धनुष युद्धपोत से धरातल पर 350 किमी तक मार कर सकती है। प्रहार मिसाइल 150 किमी तक की टैक्टिकल रेंज में स्ट्रेटेजिक न्यूक्लियर वेपन ले जा सकने में सक्षम है।

चूँकि भारत ने पहले न्यूक्लियर वेपन प्रयोग न करने की नीति अपनाई है इसलिए हमने अपने मिसाइल लॉन्चर को Launch on Warning अथवा Launch through Attack क्षमता पर नहीं रखा है। एलर्ट का स्तर इंटेलिजेंस से प्राप्त सूचनाओं पर निर्भर होता है। हमें पाकिस्तान या उससे दूर के लक्ष्य (600-2000 किमी तक) को भेदने के लिए 8 से 13 मिनट का समय लगेगा।

वायुसेना की बात करें तो भारतीय वायुसेना के पास न्यूक्लियर वॉरहेड ले जाने में सक्षम जगुआर, मिराज-2000 और सुखोई-30 MKI युद्धक विमान हैं। फ्रांस से हाल ही में खरीदे गए राफेल विमान भी परमाणु बम गिराने में सक्षम हैं।

भारतीय नौसेना ने समुद्र से परमाणु अस्त्र प्रक्षेपित करने वाली सबमरीन का निर्माण भी किया है। नवंबर 5, 2018 को भारत की प्रथम स्वदेशी न्यूक्लियर सबमरीन आईएनएस अरिहंत ने समुद्र में गश्त लगाई थी। इसे Ship Submersible Ballistic Nuclear (SSBN) सबमरीन कहा जाता है। जल के भीतर होने से अरिहंत शत्रु की नज़र से लगभग ओझल ही रहेगी जिसके कारण भारतीय नौसेना को रणनीतिक लाभ होगा। अरिहंत 6000 टन की 367 फिट लंबी पनडुब्बी है जो K-15 बैलिस्टिक मिसाइल से लैस की जा सकती है। इस मिसाइल की रेंज 750 किमी तक मार करने की है। K शृंखला की इन मिसाइलों का नाम K से प्रारंभ होता है जो डॉ अब्दुल कलाम के नाम का द्योतक है। हालाँकि अभी यह रेंज कम है लेकिन डीआरडीओ Submarine Launched Ballistic Missile (SLBM) विकसित करने और इसे अरिहंत पर तैनात करने की ओर अग्रसर है जिसकी रेंज 5000 किमी तक बढ़ाई जा सकती है। भारत अब MTCR का सदस्य भी बन चुका है इसलिए रूस के साथ संयुक्त रूप से विकसित ब्रह्मोस क्रूज़ मिसाइलों की तकनीक दूसरे देश को देने और अत्याधुनिक हथियारों की तकनीक किसी से लेने में भी अब कोई अड़चन नहीं आएगी।

CBI और ED का जालः मेहुल चोकसी को वेस्ट इंडीज से लाने के लिए जहाज तैयार!

पंजाब नैशनल बैंक में करोड़ों का फर्जीवाड़ा करने वाले भगोड़े आर्थिक अपराधी मेहुल चोकसी की देश वापसी के लिए सीबीआई और ईडी के अधिकारी वेस्टइंडीज जा सकते हैं। रिपोर्ट की मानें तो इस मिशन को पूरा करने के लिए एयर इंडिया के एक लॉन्ग-रेंज बोईंग विमान की मदद ली जा रही है। मेहुल चोकसी और जतिन मेहता जैसे भगोड़े आर्थिक अपराधी कैरेबियाई देशों की पेड नागरिकता का फायदा लेकर वहाँ के नागरिक बन गए हैं।

मेहता के पास सेंट किट्स ऐंड नेविस की नागरिकता है, जबकि चोकसी ने हाल ही में एंटीगुआ ऐंड बारबुडा की नागरिकता ली है। बता दें कि ये द्वीप 132 देशों में वीजा फ्री यात्रा की सुविधा प्रदान करते हैं। यहाँ भारत के आर्थिक अपराधियों द्वारा पैसे देकर नागरिकता लेने का चलन काफी पुराना है।

कैरेबियाई देश से उठाया जा सकता है चोकसी को

रिपोर्ट की मानें तो इन दोनों भगोड़े अपराधियों के किसी निश्चित ठिकाने का पता नहीं चल पाया है लेकिन चोकसी को कैरेबियाई देश जबकि नीरव मोदी को यूरोप से उठाया जा सकता है। इन द्वीपों के साथ भारत का प्रत्यर्पण समझौता नहीं है, जिसके चलते ये देश भगोड़े आर्थिक अपराधियों के लिए सुरक्षित पनाहगार बन गया है। बता दें कि चोकसी पीएनबी में 13,700 करोड़ रुपए के घोटाले में आरोपित है।

चोकसी ने अपनी भारतीय कंपनियों – ‘गीतांजलि जेम्स’, ‘गिल इंडिया’ और ‘नक्षत्र’ के बढ़े हुए आयात संबंधी दस्तावेज़ प्रस्तुत करके पीएनबी बैंक को धोखा दिया है। जबकि विनसम डायमंड कंपनी के मालिक जतिन मेहता पर 3,969 करोड़ रुपए के बैंक फ्रॉड करने का आरोप है।

आसानी से मिल जाती है पेड नागरिकता

डोमिनिसिया और सेंट लुसिया में महज 1 लाख डॉलर में ही नागरिकता और पासपोर्ट दे दिया जाता है। जबकि अगर पत्नी की भी नागरिकता चाहिए हो तो इसके लिए 1.65 लाख डॉलर का भुगतान करना होता है। वहीं, ग्रेनाडा इसी तरह का पासपोर्ट दो लाख डॉलर में देता है।

एवरेस्ट पर पहुँचने वाली पहली भारतीय महिला ने कहा मोदी सरकार को थैंक्यू!

गणतंत्र दिवस के मौके पर सम्मानित किए जाने वाले लोगों में एक नाम बछेंद्री पाल का भी है। जिन्हें सरकार द्वारा पद्म भूषण देने की घोषणा की गई।

बछेंद्री पाल का इस सम्मान पर कहना है कि यह पद्म भूषण का मिलना उनके लिए बेहद हैरान करने वाला है। उन्होंने मोदी सरकार का आभार जताया। उन्होंने कहा कि उन्होंने कभी भी किसी अवार्ड के लिए आवेदन नहीं किया था। उन्होंने इस अवार्ड को अपने माता-पिता को सादर समर्पित किया।

बता दें कि सरकार द्वारा जारी की गई पद्म पुरस्कारों की सूची में उन नागरिकों का नाम शामिल है जिन्होंने देश में तमाम क्षेत्रों में अपना अहम योगदान दिया है।

पद्म पुरस्कारों की सूची में भारतीय खिलाड़ियों का नाम भी शामिल है। इसी सूची में दिग्गज पर्वतरोही बछेंद्री पाल का नाम भी है। बछेंद्री पाल पहली भारतीय महिला है जिन्होंने 1984 में माउंट एवरेस्ट की ऊँचाईयों को छुआ वहीं विश्व में उनका नम्बर पाँचवाँ है।

24 मई 1954 को जन्मी बछेंद्री इस समय 64 वर्ष की हैं। वर्तमान में वे टाटा स्टील में कार्यरत हैं। यहाँ वह चुने हुए कर्मचारियों को रोमाँचक अभियानों का प्रशिक्षण देती हैं।

आपको बता दें कि बछेंद्री को अपने जीवन में सर्वप्रथम पर्वतरोहण का मौका 12 साल की उम्र में मिला था। उस समय उन्होंने अपने स्कूल के साथियों के साथ 400 मीटर की चढ़ाई की थी। 1984 में जब भारत का चौथा एवरेस्ट अभियान शुरू हुआ तो बछेंद्री उस टीम का हिस्सा थी।

इस टीम में 7 महिलाओं के साथ 11 पुरूष थे। एक तरफ जहाँ 23 मई 1984 में दोपहर 1:07 मिनट पर 29,028 फुट की ऊँचाई पर इस टीम ने एवरेस्ट पर भारत का झंडा फहराया था, वहीं इस चढ़ाई के साथ एवरेस्ट पर भारतीय महिला के रूप में सागरमाथे पर पहला कदम रखने वाली बछेंद्री पहली भारतीय महिला बन गई थीं।

26 जनवरी स्पेशल: भारतीय शहीदों की याद में हमेशा प्रज्वलित रहे ‘अमर जवान ज्योति’ की लौ

आज देश में जहाँ एक तरफ गणतंत्र मनाए जाने की धूम है, तो वहीं दूसरी तरफ सैनिकों का बलिदान भी यादगार है। भारतीय सैनिकों के बलिदान को देश की मिट्टी भला कैसे भूल सकती है। सेना के जाबाज़ जवानों और उनके जज़्बों के आगे देश का हर नागरिक हमेशा से ही नतमस्तक रहा है। दिन-रात देश की चौकसी में जुटे ये प्रहरी जैसे थकना ही ना जानते हों। नई दिल्ली के इंडिया गेट पर 24 घंटे और सातों दिन लगातार प्रज्वलित लौ ‘अमर जवान ज्योति’ उनके इसी जज़्बे और बलिदान को सलाम करती है।

अमर जवान ज्योति एक भारतीय स्मारक है जिसे 1971 में भारत-पाकिस्तान युद्ध में शहीद हुए भारतीय सैनिकों की याद में प्रज्वलित किया गया। 3 दिसम्बर से 16 दिसम्बर 1971 तक पूर्वी पाकिस्तान अर्थात आज के बंग्लादेश में मुक्ति सेना की मदद करते हुए भारतीय सेना ने पाकिस्तानियों को घुटने टेकने पर मज़बूर कर दिया। बांग्लादेश को पाकिस्तान से आज़ाद कराने के मुहीम में हज़ारों भारतीय सैनिक शहीद हो गए थे।

शहीद हुए भारतीय सैनिकों की याद में 26 जनवरी 1972 को तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गाँधी ने आधिकारिक रूप से अमर जवान ज्योति स्मारक का उद्घाटन किया था। 1972 के बाद से प्रत्येक वर्ष गणतंत्र दिवस के अवसर पर (गणतंत्र दिवस की परेड से पहले) देश के राष्ट्रपति, प्रधानमंत्री, आर्मी चीफ़ के साथ वायु, जल एवं थल सेना प्रमुख़ एवं अन्य मुख्य अतिथि अमर जवान ज्योति पर पुष्पांजलि अर्पित करते हैं।

राजपथ पर स्थित इंडिया गेट स्थित अमर जवान ज्योति वर्ष 1972 से लगातार प्रज्वलित है। इसका आसन संगमरमर का बना हुआ है जिस पर स्वर्ण अक्षरों से ‘अमर जवान’ अंकित है। स्मारक के ऊपर L1A1 आत्म-लोडिंग राइफ़ल भी लगी हुई है, जिसके बैरल पर सैनिक का हेलमेट लटका हुआ है।

अमर जवान ज्योति की प्रज्वलित लौ के पास तटस्थ मुद्रा में खड़े जवान की ज़िम्मेदारी होती है कि वो उस प्रज्वलित लौ का ध्यान रखे और उसे बुझने ना दे। साल 2006 तक अमर जवान ज्योति को जलाने के लिए एलपीजी का इस्तेमाल होता था, लेकिन अब सीएनजी का इस्तेमाल होता है। कस्तूरबा गाँधी मार्ग से इंडिया गेट तक क़रीब 500 मीटर लंबी गैस पाइप लाइन बिछी है। स्थापित चार में से एक मशाल साल भर प्रज्ज्वलित रहती है। स्वतंत्रता दिवस और गणतंत्र दिवस के अवसर पर ही चारों मशालों को प्रज्जवलित किया जाता है।

शहीदों की याद में प्रज्वलित इस लौ को ‘अजर अमर’ भी कहा जाता है। भारतीय सेना के बलिदान की भरपाई तो कभी नहीं की जा सकती। लेकिन हाँ इतना ज़रूर है कि देश का हर नागरिक उनके बलिदान से सदैव वाक़िफ़ रहेगा और नतमस्तक भी।

ऑल्ट न्यूज़ वाला प्रतीक सिन्हा: दोमुँहापन, नंगई और बेहूदगी का पर्याय

एक साइट है ऑल्ट न्यूज़, मसीहाई की हद तक अपने आप को मानवता की धरोहर बताता है। नैतिकता और प्राइवेसी पर ज्ञान इनके साइट पर इतना ज़्यादा है मानो इन्हें देख लें तो दस-पाँच जनम के पाप धुल जाएँ। इसके यीशु मसीह हैं प्रतीक सिन्हा, जिनकी आजकल, और पिछली हरकतों से उन्हें बहुत ज़्यादा सम्मान दिया जाए तो भी एक ही शब्द निकल कर आता है: चिरकुट!

‘चिरकुट’ शब्द इसलिए क्योंकि प्रतीक सिन्हा का यही काम है, चिरकुटई। ज्ञान देने में तो इस लम्पट की साइट, प्राइवेसी पॉलिसी से लेकर, प्राइवेसी पर कवर किए गए तथाकथित ‘एक्सपोज़े’ तक, उस ऊँचे स्तर पर ख़ुद को रख देती है, जहाँ आज की दुनिया में पहुँचना असंभव लगता है। यही कारण है कि हमने इसके दोमुँहेपन पर इसी की साइट पर, किसी ‘फ़ॉल्ट न्यूज़’ वाली रॉकेट साइंस और रीवर्स इमेज मैनिपुलेशन, सॉफ़्टवेयर के इस्तेमाल या क्लासिफाइड स्पेस साइंस का प्रयोग किए बग़ैर ही थोड़ा स्क्रीनशॉट और हाइपरलिंक बेस्ड ‘शोध’ किया। 

इनकी साइट पर जाकर अगर आप अंग्रेज़ी में ‘प्राइवेसी’ (privacy) लिखकर सर्च करेंगे तो कई लिंक आते हैं। इसमें से एक लिंक ‘प्राइवेसी पॉलिसी‘ का है, जो कि आपको प्रतीक सिन्हा की ज्ञानगंगा ऑल्ट न्यूज़ के उस पन्ने पर ले जाता है जहाँ वो बातें लिखी हुई हैं, जिनमें प्रतीक सिन्हा को स्वयं ही कोई विश्वास नहीं।

वहाँ लिखा है कि ‘हमारे लिए हमारे विज़िटर्स की प्राइवेसी अत्यंत महत्वपूर्ण है’। आगे वो टिपिकल बातें लिखी हैं जो रहती हर जगह पर, लेकिन कोई ध्यान नहीं देता। थोड़ी दूर नीचे आपको ये भी लिखा मिलेगा कि वो ऐसी कोई जानकारी इकट्ठी नहीं करते जो किसी की निजी पहचान को बाहर लाता हो। यानी, ऑल्ट न्यूज़ (प्रतीक सिन्हा जिसका संस्थापक है) प्राइवेसी और पर्सनल इन्फ़ॉर्मेशन को लेकर बेहद सजग और गम्भीर है। शायद, ये लम्पट जानता है कि किसी की निजी बातें कहीं और चली जाएँ तो वो घातक हो सकती हैं। 

प्राइवेसी पॉलिसी का स्क्रीनशॉट

प्रतीक सिन्हा इन ख़तरों को जानता तो है, लेकिन मानता नहीं। साइट पर लिखना और ज्ञान देना एक बात है, लेकिन उसकी हाल की हरकतों, या कहें कि घटिया हरकतों से लगता नहीं कि उसे इसका तनिक भी भान है कि प्राइवेसी के मायने क्या हैं, और किसी की निजी जानकारी बाहर ला दी जाए तो वो किस तरह से उसे मानसिक और भावनात्मक यातनाओं से रूबरू कर सकती है। ताज़ा उदाहरण स्क्विंट नियॉन नाम के एक ट्विटर यूज़र का है, जिसकी निजी जानकारी को प्रतीक सिन्हा ने ‘फ़ैक्ट चेक’ के नाम पर सार्वजनिक कर दी। 

फिर आप ग़ौर से पढ़ेंगे तो आप समझ जाएँगे कि प्रतीक सिन्हा के लिए कुछ लोगों के नाम, पता और पर्सनल डीटेल्स सार्वजनिक करने में थोड़ी भी शर्म क्यों नहीं आई: वहाँ लिखा है ‘आवर विज़िटर्स’। ये लोग तो ख़ैर ‘आवर विजिटर्स’ में आते भी नहीं, इनकी प्राइवेसी पर प्रतीक सिन्हा को घंटा फ़र्क़ नहीं पड़ता! 

ये दोगलापन है। और हाँ, दोगलापन गाली नहीं है, दोगलापन एटीट्यूड है, जहाँ आप लिखते कुछ हैं, करते कुछ और। दोगलापन इसलिए क्योंकि जिस ‘प्राइवेसी’ के सर्च में प्राइवेसी पॉलिसी आई, उसी में एक हेडलाइन दिखी जहाँ लिखा था कि ‘क्या पीएम मोदी का ऐप निजी जानकारियों को थर्ड पार्टी के साथ, आपकी सहमति के बिना, शेयर करता है? हाँ’। अंग्रेज़ी में चूँकि बड़े अक्षरों के प्रयोग से आप अपनी बात कहने के लिए ‘यस’ को ‘YES’ लिखते हैं, तो पता चलता है कि आप महज़ हेडलाइन नहीं बना रहे, अपने विचार भी इम्फ़ैटिकली (ज़ोर देकर) रख रहे हैं। मैं भी इस बात से इत्तेफ़ाक़ रखता हूँ कि किसी भी ऐप को मेरी जानकारी, मेरी सहमति के बिना, किसी को भी देना बिलकुल गलत है। 

पर्सनल डेटा को लेकर प्रतीक सिन्हा की चिंतनीय लेख

एक और ख़बर है जो सिन्हा ने ही तैयार की है जिसमें नरेन्द्र मोदी ऐप द्वारा ‘प्राइवेसी पॉलिसी’ पर यू-टर्न मारने की बात कही गई है। वहाँ भी यही तर्क दिया गया है कि इस ऐप के द्वारा किसी थर्ड पार्टी को ऐप उपयोगकर्ताओं की जानकारी भेजी जा रही है। ये सिर्फ़ आर्टिकल नहीं है, ये एक स्टैंड लेने जैसा है, और जो सही है, कि किसी भी ऐप द्वारा किसी की भी निजी बातें, कहीं भी, बिना उसकी सहमति से नहीं भेजी जानी चाहिए। फिर, स्टैंड लेकर प्रतीक सिन्हा ये भूल गए कि ट्विटर पर किसी की सारी निजी बातें बता देना भी ‘सहमति के बिना’ डेटा शेयर करने जैसा ही है। 

नरेन्द्र मोदी ऐप पर प्रतीक सिन्हा द्वारा ‘प्राइवेसी’ को लेकर उठाए गए सवाल

फिर प्रतीक सिन्हा ने क्या सोचकर इन लोगों की निजी जानकारी ट्विटर पर सार्वजनिक कर दी? ‘थर्ड पार्टी’ को ऐप की जानकारी जाने पर पूरा आर्टिकल लिखा, और स्वयं ही उससे भी घातक काम किया कि उस नवयुवक को गालियाँ, जान से मारने की धमकी और उसके परिवार को हिंसक बातें कही जा रही हैं! अबे, थोड़ी कन्सिसटेन्सी तो रख लो अपनी बातों में! ऑनलाइन जिहादियों को किसी की जानकारी दे दी क्योंकि उसके विचार तुमसे नहीं मिलते?

कैसे बेहूदा आदमी हो यार? ‘कन्सेन्ट’ शब्द सुना है कभी, उसका मतलब समझते हो? बिना पूछे किसी की जानकारी सार्वजनिक करना असंवैधानिक है, फ़ैक्ट चेकिंग के यीशु मसीह! ‘राइट टू प्राइवेसी’ और ‘विदाउट कन्सेंट’ जानकारी बाहर करने का परिणाम देखो नीचे। लेकिन क्यों, तुम्हें तो मजा आ रहा होगा क्योंकि कहीं न कहीं तुम्हारी मंशा भी यही थी!

ट्विटर यूज़र @squintneon को मिली धमकियों के स्क्रीनशॉट्स

‘पर्सनल’ और ‘पब्लिक’ शब्द पर ही पत्रकार राहुल कँवल द्वारा राहुल गाँधी की निजी तस्वीरें अपने फ़ेसबुक पेज पर शेयर करने के ऊपर एक पूरा आर्टिकल है जिसमें हेडलाइन से लेकर अंतिम पैराग्राफ़ तक कई ऐसी बातें हैं जो प्रतीक सिन्हा पढ़ ले तो उसे अपने ‘ऑल्ट न्यूज़ स्टाफ़’ पर गर्व होगा, और अपने बारे में ‘डाउनराइट पैथेटिक’ भी फ़ील कर पाएँगे। 

पर्सनल और पब्लिक बातों को ऑल्ट न्यूज़ का स्टाफ़ तो सीरियसली लेता दिखता है, प्रतीक सिन्हा नहीं

इसी आर्टिकल में प्राइवेसी के हनन पर पक्ष लेते हुए लिखने वाले ने पूछा है कि ‘आख़िर राहुल कँवल ने राहुल गाँधी की पर्सनल पिक्चर्स अपने फ़ेसबुक पर क्यों पोस्ट कीं? क्या मोटिव है उनका?’ सही सवाल है। इसी स्टाफ़ को अपने मालिक से यही सवाल पूछना चाहिए कि स्क्विंट नियॉन (@squintneon) की पर्सनल जानकारी अपने ट्विटर पर पोस्ट करने के पीछे क्या मोटिव है?

बिलकुल सही सवाल, आख़िर मोटिव क्या होता है ऐसी बातों को सार्वजनिक करने के पीछे?

इस आर्टिकल को लिखने वाला स्टाफ़ सिर्फ़ एक स्टाफ़ नहीं, जज़्बाती स्टाफ़ लगता है क्योंकि लिखते-लिखते वो अंतिम पैराग्राफ़ में यहाँ तक लिख गया, ‘किसी दूसरे ने किसी का फोटो पोस्ट किया और आपने इसी कारण कर दिया तो ये एक बिलकुल बेकार हरकत है’। उसने ‘डाउनराइट पैथेटिक’ लिखा है, जिसे सुनकर मुझे अब प्रतीक सिन्हा का ही चेहरा याद आता है।

प्रतीक सिन्हा का कुकर्म भी ‘डाउनराइट पैथेटिक’ की ही श्रेणी में आता है

राहुल गाँधी एक पब्लिक फ़िगर हैं, फिर भी मेरी सहमति है कि बिना सहमति के किसी की भी निजी तस्वीरों या जानकारियों को सार्वजनिक करना गलत है। स्क्विंट नियॉन एक कम उम्र का लड़का है, जो न तो पब्लिक फ़िगर है, न ही उसके पास इतनी शक्ति या सामर्थ्य है कि वो अपने ऊपर आने वाले ख़तरे से बचाव कर सके। ऐसे वल्नरेवल इन्सान की प्रोफ़ाइल से जुड़ी गोपनीय बातें सार्वजनिक करने के पीछे प्रतीक सिन्हा का क्या उद्देश्य है?

क्या प्रतीक सिन्हा ने यह मूर्खतापूर्ण कार्य बदले की भावना में आकर नहीं किया? क्या उसकी विचारधारा के ख़िलाफ़ जाने वालों के नाम सार्वजनिक करने के पीछे दुर्भावना नहीं? क्या वो अपने पास के संसाधनों का प्रयोग किसी की तरफ घृणा और हिंसा के पूरे इस्लामी कट्टरपंथियों द्वारा घोषित तरीक़ों को मोड़ने के लिए नहीं कर रहा है? एक नवयुवक की जानकारी पब्लिक किस बात पर? तुम होते कौन हो ये करने वाले? स्वयंभू फ़ैक्ट चेकर जिसके नाम तमाम फ़ेक न्यूज़ फैलाने की बातें हर जगह उपलब्ध हैं?

अच्छी बात है कि ऑल्ट न्यूज़ में ऐसे जज़्बाती स्टाफ़ भी हैं। यूँ तो मालिक ही अपनी हरकतों से एक बेग़ैरत इन्सान मालूम पड़ता है पर क्या पता एक-दो अच्छे स्टाफ़ की संगति में थोड़ा सुधार आ ही जाए। वैसे प्रतीक सिन्हा के कुकर्मों की शृंखला से यह संभावना तो लगती नहीं कि इसमें सुधार की गुंजाइश है, फिर भी उम्मीद पर दुनिया क़ायम है।

How’s The Josh… 18000 फीट की ऊँचाई पर और नक्सलियों के गढ़ में… हर जगह तिरंगा High Sir

आज देश 70वाँ गणतंत्र दिवस मना रहा है। देश के अलग-अलग हिस्से से लहराते हुए तिरंगे की खूबसूरत तस्वीरे हमारे सामने आ रही हैं। लेकिन लद्दाख में ITBP जवानों के द्वारा तिरंगा फरहाने का वीडियो सोशल मीडिया से लेकर विभिन्न मीडिया माध्यमों पर खूब पसंद किया जा रहा है।

हिमवीर के नाम से प्रसिद्ध आईटीबीपी के जवानों ने गणतंत्र दिवस के अवसर पर 18,000 फीट की ऊँचाई पर तिरंगा फहराकर प्रत्येक भारतीय का सीना चौड़ा कर दिया है। बता दें कि 24 अक्टूबर 1962 को आईटीबीपी की स्थापना की गई थी।

युद्ध क्षेत्र में दुनिया का सबसे मुश्किल इलाक़ा माना जाता है लद्दाख

एक तरफ़ देश में कड़ाके की ठंड पड़ रही है, जहाँ लोग अपने घर से बाहर निकलने को भी तैयार नहीं हैं वहीं दूसरी ओर ITBP के जवानों ने उस पर्वत की चोटी पर भारतीय तिरंगा फहराया, जहाँ चारो तरफ़ सिर्फ़ बर्फ की चादर है और तापमान माइनस-30 डिग्री।

इतना कम तापमान में हम बामुश्किल अनुमान कर सकते हैं की किस तरह से भारतीय जवान भारत की दुर्गम सीमाओं पर देश वासियों के रक्षार्थ खड़े हैं। लद्दाख के इस इलाके को युद्ध क्षेत्र के लिहाज से दुनिया के सबसे मुश्किल इलाकों में माना जाता है। यहाँ अक़्सर तापमान शून्य से भी काफी नीचे रहता है।

नक्सलियों के माँद में घुसकर शान से फहराया गया तिरंगा

छत्तीसगढ़ के नक्सल प्रभावित सुकमा जिले के पालमअड़गु इलाके में गणतंत्र दिवस के अवसर पर तिरंगा फहराया गया। यह इलाका नक्सलियों का गढ़ माना जाता है। सुरक्षा बलों ने साहस का परिचय देते हुए उन्हें चुनौती देते हुए यहाँ पहली बार तिरंगा फहराया। यहाँ नक्सली हमेशा से काला झंडा फहराते आए हैं। गणतंत्र दिवस के मौके पर सीआरपीएफ 74 वाहिनी के जवानों के साथ ही जिला बल के जवानों ने यहाँ तिरंगा फहराते हुए मिठाई बाँटी।

57 साल बाद गणतंत्र दिवस पर फहराया गया तिरंगा

बिहार के 62 फीट ऊँचे ऐतिहासिक दरभंगा राज किले पर 57 साल बाद गणतंत्र दिवस के अवसर पर तिरंगा फहराया गया। गौरवशाली दरभंगा और मिथिला स्टूडेंट्स यूनियन संगठन ने तिरंगा फहराते हुए भारत माता की जय के नारे लागाए।

गौरवशाली दरभंगा के सदस्य संतोष कुमार चौधरी ने कहा, “57 साल पहले दरभंगा महाराज कामेश्वर सिंह ने 1962 में आखिरी बार यहाँ तिरंगा फहराया था। पिछले साल 15 अगस्त को स्वतंत्रता दिवस के अवसर पर ये परंपरा शुरू की गई।”

26 जनवरी स्पेशल: मोर के राष्ट्रीय पक्षी बनने की ऐतिहासिक पृष्ठभूमि

मोर, जिसका ख़्याल आते ही एक ऐसा मनमोहक दृश्य उभरकर सामने आता है, जो बेहद सुखद एहसास कराता है। मोर को नाचते हुए देखना भला किसे रोमांचित नहीं करता। अपने एक रंग-बिरंगे पंखों से मंत्रमुग्ध कर देना वाला पक्षी ‘मोर’ का अस्तित्व केवल एक पक्षी होने तक ही नहीं सीमित है बल्कि यह हमारा राष्ट्रीय पक्षी भी है।

आपको बता दें कि भारत सरकार द्वारा मोर को 26 जनवरी,1963 में राष्ट्रीय पक्षी के रूप में घोषित किया गया। ‘फैसियानिडाई’ परिवार के सदस्य मोर का वैज्ञानिक नाम ‘पावो क्रिस्टेटस’ है, इंग्लिश भाषा में इसे ‘ब्ल्यू पीफॉउल’ अथवा ‘पीकॉक’ कहते हैं। संस्कृत भाषा में मोर को ‘मयूर’ कहा जाता है।

मोर को राष्ट्रीय पक्षी घोषित किया गया

जानकारी के मुताबिक़, राष्ट्रीय पक्षी के रूप में मोर का चयन यूँ ही रातों-रात नहीं हुआ था बल्कि इस पर काफ़ी सोच-विचार किया गया था। माधवी कृष्‍णन द्वारा 1961 में लिखे गए उनके एक लेख के अनुसार भारतीय वन्‍य प्राणी बोर्ड की ऊटाकामुंड में बैठक हुई थी। इस बैठक में राष्ट्रीय पक्षी के लिए अन्य पक्षियों भी विचार किया गया था, जिनमें सारस, क्रेन, ब्राह्मिणी काइट, बस्टर्ड और हंस का नाम शामिल थे। दरअसल राष्ट्रीय पक्षी के चयन के लिए जो गाइडलाइन्स थीं उनके मुताबिक़ जिसे भी राष्ट्रीय पक्षी घोषित किया जाए उसकी देश के सभी हिस्सों में मौजूदगी भी होनी चाहिए।

इसके अलावा इस बात पर भी ग़ौर किया गया कि जिस भी पक्षी का चयन किया जाए, उसके रूप से देश का हर नागरिक वाक़िफ़ हो यानी उसकी पहचान सरल हो। इसके अलावा राष्ट्रीय पक्षी को पूरी तरह से भारतीय संस्कृति और परंपरा से ओत-प्रोत होना चाहिए।

बैठक में गहन चर्चा के बाद मोर को इन सभी मानदंडों पर खरा पाया गया जिसके परिणामस्वरूप मोर को भारत का राष्‍ट्रीय पक्षी घोषित कर दिया गया क्‍योंकि यह शिष्टता और सुंदरता का प्रतीक भी है। इसके अलावा आपकी जानकारी के लिए बता दें कि नीला मोर हमारे पड़ोसी देश म्यांमार और श्रीलंका का भी राष्ट्रीय पक्षी है।

राजाओं-महाराजाओं व कवियों की भी पसंद था मोर

हिन्दु मान्यताओं के अनुसार मोर को कार्तिकेय के वाहन ‘मुरुगन’ के रूप से भी जाना जाता है। कई धार्मिक कथाओं में भी मोर का ज़िक्र होता है। भगवान कृष्ण ने तो अपने मुकुट में मोर पंख धारण किया हुआ है, और इसी से मोर के धार्मिक महत्व को समझा जा सकता है। महाकवि कालिदास ने अपने महाकाव्य ‘मेघदूत’ में मोर को राष्ट्रीय पक्षी से भी ऊपर का दर्जा दिया है।

अनेकों राजाओं-महाराजाओं को भी मोर से काफ़ी लगाव था। जिसका प्रमाण उस दौर के राजाओं के शासनकाल के दौरान कुछ तथ्यों से मिलता है। सम्राट चंद्रगुप्त मौर्य के राज्य में जिन सिक्कों का चलन था उनके एक तरफ मोर बना होता था। मुगल बादशाह शाहजहाँ जिस तख़्त पर बैठते थे, उसकी संरचना मोर जैसे आकार की थी। दो मोरों के बीच बादशाह की गद्दी हुआ करती थी और उसके पीछे पंख फैलाए मोर। हीरे-पन्नों जैसे क़ीमती रत्नों से जड़ित इस तख़्त का नाम ‘तख़्त-ए-ताऊस’ था, जिसे अरबी भाषा में ‘ताऊस’ कहा जाता था।

मोर को राष्ट्रीय पक्षी के रूप में घोषित किए जाने के पीछे केवल उसकी सुंदरता ही नहीं बल्कि उसकी लोकप्रियता भी है। एक ऐसी लोकप्रियता जिसका नाता आज से नहीं बल्कि पिछले कई वर्षों से है।

67 सालों से चाय बेचकर जिसने की समाज सेवा, मोदी सरकार ने दिया उन्हें पद्मश्री

गणतंत्र दिवस से ठीक एक दिन पहले यानी 25 जनवरी को देश में उन लोगों के नाम की घोषणा की गई है जिन्हें पद्म पुरस्कारों से सम्मानित किया जाएगा।

इस सूची में 4 हस्तियों को पद्म विभूषण, 14 को पद्म भूषण, और 94 लोगों को पद्मश्री से सम्मानित किया जाएगा। इस सूची में एक व्यक्ति ऐसा भी है जिसके बारे में बहुत ही कम लोग जानते हैं लेकिन अपने लगातार प्रयासों से वह जो काम कर रहे हैं वह किसी मिसाल से कम नहीं है।

डी प्रकाश रॉव नाम के यह शख्स ओडिशा में कटक का रहने वाले हैं। जिनका ज़िक्र प्रधानमंत्री ‘मन की बात’ में भी कर चुके हैं। डी प्रकाश पिछले 67 सालों से चाय बेचने का काम करते हैं। प्रकाश को चाय बेचकर जितना भी पैसा मिलता है वो उन पैसों का एक बड़ा हिस्सा समाज सेवा में लगा देते हैं। उनके इस समाज सेवा की जज़्बे को समाज ने भी मान दिया। ऐसे लोग बेशक़ थोड़े हैं पर प्रेरणा के स्रोत है।

अपनी चाय की दुकान पर प्रकाश रॉव

उनके इसी कार्य से प्रभावित होकर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने उनसे पिछले साल मुलाकात भी की थी। इस मुलाकात के बाद 30 मई 2018 को मन की बात कार्यक्रम के दौरान पीएम मोदी ने प्रकाश के बारे में बताते हुए कहा था कि उन्हें उड़ीसा स्थित कटक के पास एक चाय बेचने वाले डी प्रकाश राव से मुलाकात करने का मौक़ा मिला। पीएम मोदी ने ही प्रकाश के बारे में आगे बताते हुए यह कहा था कि वह पिछले 5 दशक से चाय बेच रहे हैं लेकिन वह जो काम कर रहे हैं उसके बारे में जानकर आप हैरान रह जाएंगे।

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने, प्रकाश रॉव के बारे में बताया कि वह चाय की आमदनी से आर्थिक रूप से कमज़ोर 70 से भी अधिक बच्चों को पढ़ाते हैं।

आर्थिक रूप से कमज़ोर बच्चों को पढ़ाते डी प्रकाश रॉव

आपको बता दें कि प्रकाश पिछले 67 सालों से चाय बेचने का कार्य कर रहे हैं और वह अपनी कमाई का एक बहुत बड़ा हिस्सा गरीब बच्चों को पढ़ाने में लगाते हैं। रॉव अपने दम पर एक स्कूल भी चलाते हैं जहाँ जाकर वह झुग्गी के बच्चों को मुफ़्त में पढ़ाते हैं। यही नहीं रॉव रोज़ अस्पताल जाते हैं, वहाँ भी मरीजों और उनके परिजनों की सेवा करते हैं और उन्हें गर्म पानी पहुँचाते हैं। ये सभी कार्य उनकी दिनचर्या का हिस्सा हैं। ज़रूरत पड़ने पर वह रक्तदान करने से भी पीछे नहीं हटते हैं।

प्रकाश के बारे में सबसे ख़ास बात यह है वह कभी स्कूल न जाने के बाद भी हिंदी और इंग्लिश दोनों भाषा अच्छे से बोल लेते हैं। यही कारण है कि वह स्कूल के बच्चों के पसंदीदा अध्यापक हैं।