Saturday, May 18, 2024
Home Blog Page 5197

विजय माल्या के स्विस बैंक की जानकारी स्विस सरकार ने दी CBI को

स्विस सरकार ने भगौड़े विजय माल्या की स्विस बैंक से संबंधित जानकारियाँ सीबीआई को सौंप दी है। हालाँकि, सरकार के इस कदम को रोकने के लिए विजय माल्या ने स्विट्ज़रलैंड के उच्च न्यायालय का रुख किया और भारत में सीबीआई से जुड़े घोटालों के बारे में बताया।

कुछ समय पहले सीबीआई ने स्विस अधिकारियों से इस बात का अनुरोध किया था कि वो भगौड़े व्यापारी विजय माल्या के चार बैंक अकाउंट में आने वाले फंड को रोक दें।

जिसके बाद जेनेवा के सरकारी वकील ने न केवल सीबीआई द्वारा किए इस अनुरोध का 14 अगस्त 2018 को पालन किया है बल्कि माल्या के अन्य तीन बैंक अकाउंट की जानकारियों को भी साझा किया है। साथ ही उन पाँच कंपनियों की भी जानकारी दी है जिनका संबंध माल्या से है।

इन पाँच कंपनियों में लेडीवॉक इंवेस्टमेंट, रोज़ कैपिटल वेंचर्स, कॉन्टीनेंटल एडमिनिस्ट्रेशन सर्विसज़, फर्स्ट यूरो कमर्शियल इन्वेस्टमेंट्स और मॉडल सेक्योरिटी का नाम शामिल है। जिनकी जानकारी स्विस सरकार ने सीबीआई के साथ साझा की है।

इन कंपनियों ने स्विस कोर्ट की तरफ रुख़ करते हुए कहा है कि उनकी कंपनियों के अकाउंट वो अकाउंट नहीं थे जिसकी जानकारी सीबीआई द्वारा मांगी गई है तो फिर उनकी जानकारियाँ क्यों भेजी गई हैं।

इसके अलावा माल्या ने अपनी स्विस की कानूनी टीम की मदद से वहाँ के न्यायलय में सीबीआई को जानकारी देने के मामले पर सवाल उठाए हैं। माल्या का कोर्ट में कहना रहा कि भारत में पहले ही घोटालों से जुड़े मामलों पर गंभीर तनाव वाली स्थिति बनी हुई। क्योंकि सीबीआई के जिस अफसर को माल्या और राकेश अस्थाना के ख़िलाफ़ जाँच करनी थी वो खुद ही इस समय में भ्रष्टाचार के मामले में आरोपित है।

माल्या ने खुद के बचाव में यूरोपीय अदालत के अनुच्छेद 6 का हवाला देते हुए मानवाधिकारों के बारे में भी स्विस कोर्ट में बात की। माल्या ने अपने अधिकारों के बारे में बात करते हुए कहा कि जब तक वो दोषी नहीं साबित होते तबतक उनके अधिकारों के प्रति निष्पक्ष सुनवाई हो।

लेकिन, आपको बता दें कि संघीय सर्वोच्च न्यायालय द्वारा 26 और 29 नवंबर, 2018 लिए फ़ैसलों ने माल्या की बात को ख़ारिज कर दिया और कंपनियों द्वारा अपील को अस्वीकार कर दिया और प्रत्येक असफल अपीलकर्ता को 2,000 स्विस फ़्रैंक (1.4 लाख रुपए) का भुगतान करने का आदेश दिया।

AltNews के संस्थापक प्रतीक सिन्हा, फ़ैक्ट-चेक की आड़ में कितना गिरोगे?

साइबर अपराध से संबंधित अगर भारतीय कानून की बात की जाए तो इसमें दो राय नहीं कि यह अस्पष्ट है। ख़ासतौर से जब ऑनलाइन उत्पीड़न (Online Harassment) और स्टॉकिंग की बात आती है। ऑनलाइन उत्पीड़न का ऐसा ही एक रूप डॉक्सिंग (Doxxing) है। डॉक्सिंग का अर्थ है, आमतौर पर दुर्भावनापूर्ण इरादे से किसी को नुकसान पहुँचाने के लिए, इंटरनेट पर निजी या व्यक्तिगत पहचान से जुड़ी जानकारी की ख़ोज और उसे पब्लिक करना या पब्लिश करना।

इसके पीछे की सोच पब्लिकली किसी प्रतिष्ठित व्यक्ति की छवि धूमिल करना, उन्हें परेशानी की हद तक शर्मिंदा या उनकी ओर बुरी नियत से लोगों को उकसाना है। उन्हें ट्रोल करना है। अक्सर इसका इस्तेमाल किसी की प्रतिष्ठा को ऑनलाइन बर्बाद करने या यहाँ तक कि शारीरिक नुकसान पहुँचाने के लिए भी किया जाता है। ‘रिवेंज’ का यह रूप ज़्यादा हानिकारक है क्योंकि इसमें तत्काल उसकी कुत्सित मंशा पूरी होती नज़र आती है। अक्सर, इसके परिणाम बड़े भयावह और दूरगामी होते हैं।

25 जनवरी को, ‘AltNews’ के सह-संस्थापक प्रतीक सिन्हा (Pratik Sinha) ने कुछ व्यक्तियों के न सिर्फ़ नाम का खुलासा किया बल्कि उनकी निजी जानकारियाँ भी पब्लिक कर दी। ये सभी लोग इंटरनेट पर गुमनाम रह सकते थे। ऐसा करने के लिए ‘राइट टू प्राइवेसी’ के तहत ये सभी स्वतंत्र हैं।

ऊपर जिन लोगों को उन्होंने दिखाया है वे व्यंग्य और वायरल कंटेंट वेबसाइट (satire and viral content website) ‘hmpnews’ और ‘thefauxy’ चलाते हैं। सभी ने अपनी वेबसाइटों पर पर्याप्त खुलासे किए हैं कि उनकी वेबसाइट पर कंटेंट की प्रकृति सटायर (व्यंग्य) है।

सिन्हा ने फिर एक और हास्य और पैरोडी अकॉउंट स्क्विंटनॉन (humour and parody account, SquintNeon) से जुड़ी निजी जानकारी सार्वजनिक कर दी।

ऊपर उल्लेखित सभी लोगों ने अपनी पहचान गुप्त रखी थी। लेकिन प्रतीक सिन्हा, जो वास्तव में कानून से जुड़ा व्यक्ति (law enforcement personnel) नहीं है और न ही किसी कानून प्रवर्तन एजेंसी (law enforcement agency) द्वारा अधिकृत है कि वो किसी की ऑनलाइन स्टॉकिंग करे और उनकी व्यक्तिगत पहचान का पता लगा कर उन्हें पब्लिक कर दे। फिर भी, सिन्हा ने, न सिर्फ़ उनकी व्यक्तिगत जानकारियाँ पब्लिक की बल्कि उनके ख़िलाफ़ ऑनलाइन भीड़ को भड़काया और उनको लीड भी किया।

द वायर (The Wire) की पत्रकार रोहिणी सिंह (Rohini Singh) भी निजी व्यक्तियों के बारे में जानकारी प्राप्त करने को लेकर बहुत ही एक्साइटेड रहती हैं और चाहती हैं कि काश सिन्हा उस व्यक्ति की तस्वीर भी निकालकर पब्लिक कर देतें।

एक पल के लिए सोंचे कि ऊपर की तरह डॉक्स किए गए लोग महिलाएँ होती तो! फिर भी ऐसे किसी व्यक्ति के ख़िलाफ़ ऑनलाइन ट्रोलर को उकसाना। इतना ही नहीं, ये गोपनीयता के चैंपियन और स्टॉकिंग के क्रूसेडर उनकी तस्वीरों को भी पब्लिक करने की माँग कर रहे हैं। आपको यह देखने के लिए बहुत दूर नहीं जाना होगा कि वह एक महिला थी जिसकी पहचान बताई गई थी।

क्या होता? अगर सिन्हा ने उस व्यक्ति की जानकारी बाहर कर दी होती जिसे जान से मारने और बलात्कार की धमकी दी जा रही है? और क्या यह वास्तव में ठीक है? वो पुरुष हैं जिनकी पहचान उजागर की गई है!

जिस व्यक्ति की पहचान सिन्हा ने पहले बताई थी, उनमें से एक अशांत राज्य से है। सिन्हा के रहस्योद्घाटन ने उन्हें एक ‘मार्क्ड मैन’ (जिसकी व्यक्तिगत पहचान से लोग वाकिफ़ हो चुके हैं) बना दिया। अर्थात एक तरह से उसकी जान जोख़िम में डाल दी।

कौन ज़िम्मेदारी लेगा यदि जिसकी पहचान ऊपर बताई गई है, ऐसे किसी भी व्यक्ति के साथ कुछ अनहोनी हो जाए तो? जानकारी के लिए बता दूँ कि वे किसी सार्वजनिक पद पर नहीं है। इसलिए, उनकी व्यक्तिगत पहचान से किसी को भी कोई वास्ता नहीं होना चाहिए।

इससे भी बुरी बात क्या हो सकती है कि सिन्हा ‘गुमनाम अकाउंट’ को पब्लिक करने के लिए ‘फ़ैक्ट-चेकिंग’ को ढाल की तरह इस्तेमाल कर रहा है। उसने निजी पहचान को इसलिए पब्लिक कर दिया क्योंकि वह ‘वायरल मिसइन्फॉर्मेशन’ की जाँच कर रहा था। जबकि लिखने वाले ने ख़ुद स्वीकार किया था कि यह व्यंग्य था। हुआ ये कि, कुछ लोगों ने व्यंग्य लिखा। यह वायरल हो गया। व्यंग्य शायद इतना वास्तविक लगा कि लोगों ने ग़लती से इसे सच समझ लिया। और शूरवीर, प्रतीक सिन्हा ग़रीबों के एसीपी प्रद्युम्न की भूमिका में कीबोर्ड लेकर ‘जाँच’ में जुट गए। सिन्हा ने फ़ैक्ट-चेक की आड़ में निजी व्यक्तियों की वास्तविक पहचान ढूँढकर पब्लिक कर दिया। व्यंग्य लिखने वालों का गुनाह सिर्फ़ यह है कि उनका व्यंग्य ज़बरदस्त और मारक है जो शायद प्रतीक सिन्हा की समझ से बाहर है।

यह पहली बार नहीं है जब सिन्हा ने किसी व्यक्ति की व्यक्तिगत पहचान को पब्लिक किया है। इससे पहले, एक ट्विटर उपयोगकर्ता ने गोपनीयता भंग करने के लिए सिन्हा के ख़िलाफ़ मुक़दमा भी दर्ज़ कराया था और व्यक्तिगत छवि को नुक़सान पहुँचाने के एवज़ में 5 करोड़ रुपए का दावा ठोका था।

इससे पहले प्रतीक सिन्हा ने अपनी स्टॉकर टेन्डेन्सी का परिचय देते हुए (जिस पर अगर सिन्हा ने लग़ाम नहीं लगाई तो ख़तरनाक आपराधिक जुर्म में भी तब्दील हो सकती है) राहुल रौशन (Rahul Roushan) से जुड़ी निजी जानकारियों को पब्लिक कर दिया था। टॉर्गेटिंग और स्टॉकिंग की सीमा लाँघते हुए प्रतीक सिन्हा ने उनकी पत्नी के साथ ही मात्र दो-माह छोटी बच्ची से जुड़ी निजी जानकारियाँ भी पब्लिक कर दी थी।

सिन्हा एकमात्र ऐसे व्यक्ति नहीं हैं जिन्होंने ऐसी आपराधिक प्रवृत्ति प्रदर्शित की है। ट्रोल स्वाति चतुर्वेदी ने एक पुस्तक लिखी है जिसमें निजी व्यक्तियों की निजी जानकारी को शामिल किया गया है। उन सबको ‘ट्रोल्स’ के रूप में लेबल किया गया है जो प्रधानमंत्री मोदी का समर्थन करते हैं।

स्वाति चतुर्वेदी, OpIndia (English) की सह-संस्थापक को डॉक्स करते हुए, उनकी व्यक्तिगत जीवन के पीछे पड़ गई थी।

बज़फीड (BuzzFeed) के एक अन्य तथाकथित पत्रकार, प्रणव दीक्षित ने भी एक महिला को ऑनलाइन स्टॉक किया। चूँकि वो उनसे असहमत थी, इसलिए प्रणव दीक्षित ने उसका लिंक्डइन प्रोफ़ाइल ढूँढा और एक ईमेल लिखकर उसके नियोक्ताओं से पूछा कि क्या वे जानते हैं कि उनका एक कर्मचारी उनसे असहमत है। फिर भी कमाल की बात ये है कि ये सभी धुरंधर गोपनीयता के चैंपियन हैं।

अभी तक कुछ तथाकथित पत्रकार ही उन लोगों को परेशान करते हैं जो उनसे असहमत थे, इतना ही काफ़ी नहीं था। तृणमूल कॉन्ग्रेस के सांसद डेरेक ओ’ब्रायन (Derek O’Brien) ने अपने संसदीय विशेषाधिकार का फ़ायदा उठाते हुए, उन ट्विटर उपयोगकर्ताओं को ज़लील करने लगे जो उनसे असहमत थे।

साइबर क्राइम की बात होने पर कानून और स्पष्ट कानूनी ढाँचे के अभाव में, ऐसे लोगों का ऑनलाइन स्टॉकिंग और उत्पीड़न जैसे अपराधों में शामिल होने के बाद भी बच निकलना आसान हो जाता है। ख़ासकर, तब जब उन्हें एक निश्चित तबके से संरक्षण प्राप्त होता है। इंटरनेट के इस युग में, जब कोई भी जानकारी महज़ कुछ ही क्लिक में हासिल हो जाने वाली हो तो ऐसे दौर में, डेटा का उपयोग एक हथियार के रूप में करते हुए, ऐसे अपराधी मानसिकता के लोग निजी व्यक्तियों को बहुत अधिक नुक़सान पहुँचा सकते हैं। इन पर नियंत्रण ज़रूरी है।

केंद्र सरकार के ‘खेलो इंडिया प्रोग्राम’ ने बदल दी इन 3 बॉक्सरों की जिंदगी

आज हम आपको तीन ऐसे बॉक्सरों की कहानी बताने जा रहे हैं, जिनकी केंद्र सरकार के ‘खेलो इंडिया यूथ गेम्स’ ने ज़िंदगी बदल दी। कभी पिता को गार्ड की नौकरी करता देख और माता को मजदूरी में हाथ बटाँने वाले छात्र-छात्राओं को अब 8 सालों तक अपने सपने को उड़ान देने के लिए केंद्र सरकार उन्हें 5 लाख प्रति वर्ष तक की मदद उपलब्ध कराएगी।

पुणे के आकाश ने फाइनल में बाज़ी मारकर पिता की आँखे नम कर दी

बड़ा अजीब लगता है अपना देश छोड़कर पराए देश में अपना आशियाना बनाना। 21 साल पहले नेपाल से भारत के पुणे में आए आकाश के पिता गार्ड की नौकरी करते हैं। यहाँ आने के पीछे उनका बस एक ही सपना था कि वो अपने बच्चों के भविष्य को उज्ज्वल कर सकें।

दिन-रात एक करके उन्होंने कोई कोर कसर नहीं छोड़ी और बेटे को आगे बढ़ाते रहे। यही कारण रहा कि आकाश ने भी महाराष्ट्र में ‘खेलो इंडिया यूथ गेम्स’ में अंडर-17 57 किग्रा वर्ग के फाइनल में हरियाणा के अमन दुहान को हराकर उनके सपने को साकार कर दिया।

अपने परिवार और कोच उमेश जगदाले के साथ आकाश गोरखा

विदेश में भी मनवा चुके हैं अपने हुनर का लोहा

2018 सर्बिया में आयोजित जूनियर बॉक्सिंग चैंपियनशिप में आकाश ने रजत पदक अपने नाम किया था। जबकि 2017 में वे दूसरे स्थान पर रहे थे। आकाश के बचपन के कोच उमेश जगदाले कहते हैं, “वह मैदान पर बहुत तेज था, मुझे लगा कि वह एक अच्छा बॉक्सर बना सकता है और उसने मुझे सही साबित किया।”

बता दें कि जगदाले ने आकाश को 2010 से प्रशिक्षित करना शुरू किया था। वहीं आकाश ने कहा कि, “सर जगदाले मेरा मार्गदर्शन करने के लिए हमेशा मौजूद रहते हैं।” आकाश के पिता कहते हैं, “मैं अपने बेटे के खेल संतुष्ट हूँ। अब मैं गौरवान्वित महसूस कर रहा हूँ।”

चौकीदार की बिटिया ने जीता गोल्ड मेडल

‘खेलो इंडिया यूथ गेम्स’ में हिमाचल की बेटी विनाक्षी ने वर्ल्ड चैंपियन को हराकर गोल्ड मेडल जीतते हुए अपने पिता का सिर गर्व से ऊँचा कर दिया। जनजातीय क्षेत्र किन्नौर की विनाक्षी ने महाराष्ट्र में खेले गए फाइनल मुकाबले में हरियाणा की जूनियर बॉक्सिंग वर्ल्ड चैंपियन रह चुकी शशि चोपड़ा को 57 किलोग्राम भार वर्ग में हारकर ये उपलब्धि हासिल की। बता दें कि विनाक्षी के पिता जगन्नाथ चौकीदार की नौकरी करके अपने परिवार का भरण-पोषण करते हैं लेकिन बेटी को आगे बढ़ाने में वो हमेशा उसके सपनों के साथ खड़े रहे हैं।

7वीं क्लास से शुरू किया था बॉक्सिंग खेलना

विनाक्षी ने 7वीं क्लास से बॉक्सिंग की शुरूआत की थी और पाइका खेलों में साल 2016 में सिल्वर मेडल जीता था। उन्होंने साल 2018 में यूथ नेशनल में भी रजत पदक जीत कर अपने प्रदेश का मान बढ़ाया था। यही नहीं 2018 में महाराष्ट्र में हुए अंडर-19 स्कूल नेशनल में भी विनाक्षी गोल्ड जीत चुकी हैं।

तेज बुखार और तपन भी नहीं तोड़ पाया शिवानी का हौसला

बदन में तेज बुखार और पेट दर्द से तड़प रही शिवानी ने हार नहीं मानी और रिंग में उतरने का फैसला लिया। शिवानी ने 54 किग्रा भार वर्ग में रजत पदक अपने नाम किया। 17 साल की शिवानी जब गेम खेलने पुणे पहुँचीं उन्हें काफी तेज बुखार था कोच और साथी खिलाडियों ने सलाह दी कि बॉक्सिंग रिंग में न उतरे।

बावजूद इसके शिवानी ने सभी की बातों को अनसुना करते हुए दो अंतरराष्ट्रीय स्तर की बॉक्सरों को पटखनी देते हुए फाइनल में जगह बना ली। हालाँकि, अंतिम मुकाबले में उनके शरीर ने उन्हें धोखा दे दिया और उन्हें हार का सामना करते हुए रजत पदक से संतोष करना पड़ा।

शिवानी तेज बुखार और पेट दर्द के बाद भी हार नहीं मानीं और रिंग में उतरी

माता-पिता भी कर रहे हैं संघर्ष

शिवानी की माँ पूनम मजदूरी करती हैं, जबकि पिता स्वतंत्र कुमार गार्ड की नौकरी छोड़ बॉक्सरों की मालिश का काम करते हैं। तंगहाली और तमाम परेशानियों के बावजूद, उन्होंने बेटी को आगे बढ़ाने का निर्णय लिया और आज वह निर्णय सही साबित हुआ।

शिवानी कहती हैं, “हरियाणा में सर्दी थी, पुणे में मौसम गर्म था इसलिए वहाँ पहुँचते ही बुखार हो गया और पेट में दर्द भी। इस स्थिति में मेरे लिए खेल पाना कठिन था। लेकिन, मैंने हार नहीं मानी और नेशनल चैंपियन उत्तराखंड के पिथौरागढ़ की सपना और अंतरराष्ट्रीय बॉक्सर दिल्ली की रिया टोकस को हराकर फाइनल में जगह बनाई। फाइनल मुकाबले में पेट दर्द बढ़ गया था, फिर भी मैंने अंतरराष्ट्रीय स्तर की बॉक्सर, मध्यप्रदेश की दिव्या, को कड़ी टक्कर दी, लेकिन हार गई। मुझे स्वर्ण पदक नहीं जीतने का मलाल है।”

AMU: ‘तिरंगा यात्रा’ के आयोजन पर छात्रों को नोटिस दिए जाने पर BJP सांसद ने प्रकाश जावड़ेकर को लिखा पत्र

अलीगढ़ के बीजेपी सांसद सतीश गौतम ने केंद्रीय मानव संसाधन विकास मंत्री प्रकाश जावड़ेकर को पत्र लिखा है कि कैंपस में ‘तिरंगा यात्रा’ के आयोजन के लिए 2 छात्रों को अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय के अधिकारियों द्वारा कारण बताओ नोटिस जारी किया गया है। अपने पत्र में बीजेपी सांसद ने लिखा कि गणतंत्र दिवस के इस शुभ अवसर पर अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय कैम्पस में देशभक्ति से ओत-प्रोत तिरंगा यात्रा का आयोजन किया जाना था। इसके लिए प्रशासन ने इस आयोजन को विरोधी करार देते हुए उन सभी छात्रों को कारण बताओ नोटिस जारी कर दिया।

इस बाबत बीजेपी सांसद सतीश गौतम ने अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय प्रशासन से स्पष्टीकरण माँगे जाने का अनुरोध किया है। साथ ही सवाल उठाते हुए उन्होंने पत्र में में यह भी लिखा कि क्या भारत के किसी भी भूभाग में देशभक्ति का कार्यक्रम आयोजित किया जाना असंवैधानिक है?

इससे पहले भी अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय विवादों में आ चुका है जब छात्रों को तिरंगा यात्रा और वंदे मातरम् के नारे के लिए नोटिस दिया गया था।

अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी (AMU) के प्रॉक्टर ने तिरंगा यात्रा निकालने और वन्दे मातरम् का नारा लगाने पर 6 छात्रों को कारण बताओ नोटिस जारी किया है। जिन छात्रों को नोटिस जारी किया गया है, उनमें छात्र नेता ठाकुर अजय सिंह और सोनवीर शामिल हैं। तिरंगा यात्रा का नेतृत्व करने वाले अजय बरौली के भाजपा विधायक ठाकुर दलवीर सिंह के पौत्र हैं। AMU ने छात्रों पर निम्न गंभीर आरोप लगाए हैं-

  • बिना अनुमति यात्रा निकालना
  • यूनिवर्सिटी कैंपस में शैक्षणिक माहौल को ख़राब करना
  • क्लास में पढ़ रहे छात्रों को बहका कर रैली में ले जाना
  • यात्रा में असामाजिक तत्वों का शामिल होना
  • AMU को बदनाम करना, और
  • छात्रों के बीच भय का माहौल पैदा करना
AMU द्वारा छात्रों को थमाई गई नोटिस की कॉपी।

नोटिस मिलने के बाद छात्रों ने प्रॉक्टर मोहसिन ख़ान की तुलना जालियाँवाला बाग़ सामूहिक हत्याकांड को अंजाम देने वाले अंग्रेज अधिकारी जनरल डायर से की है। छात्रों ने कहा कि देशभक्ति के नारे लगाने और तिरंगा लहराने के लिए आज़ाद भारत में कहीं भी अनुमति लेने की जरूरत नहीं है। उन्होंने AMU में हुई इन घटनाओं का जिक्र कर प्रॉक्टर को घेरा-

  • आतंकी बशीर वानी के भारतीय सुरक्षाबलों के साथ मुठभेड़ में मारे जाने के बाद छात्रों ने उसके समर्थन में आज़ादी वाले नारे लगाए।
  • कैंपस में सामान्य वर्ग को आरक्षण देने सम्बन्धी बिल की कॉपी को जलाया गया।
  • जातिगत संघर्ष को बढ़ावा देने वाले सेमिनार आयोजित किए गए।

सर्वे में जनता ने कहा- अबकी बार, फिर नरेंद्र मोदी सरकार

देश में लोकसभा चुनाव होने में मात्र 2 महीने बाकी हैं। सभी राजनीतिक दल देश में सरकार बनाने की हर कोशिश में लगे हुए हैं। विभिन्न स्रोतों द्वारा 2019 में होने वाले आम चुनाव के सर्वे भी जनता के मिज़ाज का अनुमान लगाने के किए जा रहे हैं। 2019 में आम चुनाव से पहले किए गए ‘फ़र्स्टपोस्ट नेशनल ट्रस्ट सर्वे’ (Firstpost National Trust Survey) के परिणाम बता रहे हैं कि जनता की नज़र में नरेंद्र मोदी आज भी सबसे भरोसेमंद नेता हैं, जबकि राहुल गाँधी उनसे बहुत पीछे चल रहे हैं।

सर्वे के अनुसार, 2019 के लोकसभा चुनाव से ठीक पहले नरेंद्र मोदी और बीजेपी के नेतृत्‍व वाले नेशनल डेमोक्रेटिक एलायंस (एनडीए) को जनता की पहली पसंद माना जा रहा है। इस सर्वे के अनुसार एनडीए, विपक्षी महागठबंधन से बहुत आगे है।

इस सर्वे में 52.8% जनता पीएम नरेंद्र मोदी को सर्वाधिक भरोसेमंद नेता मानती है। वहीं, कॉन्ग्रेस अध्यक्ष राहुल गाँधी पर केवल 26.8% जनता ने ही विश्वास जताया है।

‘फ़र्स्टपोस्ट नेशनल ट्रस्ट सर्वे’ द्वारा जारी परिणामों के लिए देशभर के 23 राज्‍यों के 285 जिलों के अंतर्गत आने वाले लगभग 60% संसदीय क्षेत्रों को शामिल किया गया है। इसमें 57 अलग-अलग सामाजिक-सांस्‍कृतिक इलाकों के 690 गाँवों और 291 शहरी इलाकों के 34,470 लोगों से बात की गई।

इस सर्वे के अनुसार देश में नरेंद्र मोदी सबसे विश्‍वसनीय नेता हैं और उन्‍हें सर्वे में शामिल 52.8% लोगों ने पसंद किया है। ये लोग नरेंद्र मोदी को फिर से प्रधानमंत्री के रूप में देखना चाहते हैं। वहीं कॉन्ग्रेस अध्‍यक्ष राहुल गाँधी को केवल 26.9% लोग प्रधानमंत्री के रूप में देखना चाहते हैं।

हिंदीभाषी राज्‍यों में भाजपा पर लोगों ने सबसे ज्‍यादा भरोसा जताया है। हाल ही में जिन 3 राज्‍यों में भाजपा पार्टी हारी थी, वहाँ पर भी बीजेपी आने वाले लोकसभा चुनावों में विपक्ष पर भारी है। हालाँकि, दक्षिण भारत में भाजपा कमज़ोर है।पश्चिम में भाजपा का प्रदर्शन उम्‍मीद से बहुत कम रहा है।

वहीं सर्वे में शामिल 85% लोगों ने धर्म या जाति की जगह विकास के नाम पर वोट देने पर स‍हमति जताई।

भारत रत्न का ऐलान: प्रणब मुखर्जी, भुपेन हजारिका और नानाजी देशमुख को सर्वोच्च सम्मान

प्रधानमंत्री मोदी ने ट्विटर के ज़रिए इस साल दिए जाने वाले ‘भारत रत्न’ की जानकारी दी। पूर्व राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी के साथ-साथ नानाजी देशमुख और भुपेन हजारिका को इस बार ‘भारत रत्न’ प्रदान किया जाएगा। ‘भारत रत्न’ भारतवर्ष का सर्वोच्च नागरिक सम्मान है।

पूर्व राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी की प्रशंसा करते हुए प्रधानमंत्री ने ट्विटर पर लिखा, “प्रणब दा हमारे समय के बेहतरीन राजनेता हैं। उन्होंने दशकों से इस देश की सेवा निस्वार्थ और अथक भाव से की है जिससे हमारे देश की बेहतरी पर उनकी एक अमिट छाप है। उनकी बुद्धिमत्ता और विद्वता का कोई सानी नहीं। आह्लादित हूँ कि उन्हें ‘भारत रत्न’ दिया जा रहा है।”

भारत के ग्रामीण परिवेश और वहाँ के वंचितों के लिए कई विकास कार्य करने वाले नानाजी देशमुख के योगदान पर बात करते हुए नरेन्द्र मोदी ने लिखा, “नानाजी देशमुख का भारतीय ग्रामीण क्षेत्रों के विकास में दिया गया योगदान अभूतपूर्व है जहाँ उन्होंने गाँव के लोगों को सशक्त बनाने के लिए नई दिशा दी। वो विनम्रता, करुणा और पिछड़ों की सेवा करने वाले व्यक्ति की प्रतिमूर्ति हैं। सही मायनों में वो एक भारत रत्न हैं।”

असमिया धरती और भारत के गौरव भुपेन हजारिका के बारे में मोदी ने ट्वीट किया, “भुपेन हजारिका के गीत और संगीत को हर पीढ़ी के लोग सराहते रहे हैं। उनके गीतों से न्याय, प्रेम और भाईचारे का संदेश प्रस्फुटित होता है। उन्होंने भारतीय संगीत को दुनिया भर में ख्याति दिलवाई। बहुत प्रसन्न हूँ कि भुपेन दा को भारत रत्न दिया गया है।”


अयोध्या राम मंदिर मामले में नई बेंच का गठनः 29 जनवरी को 5 जजों की पीठ करेगी सुनवाई

अयोध्या राम मंदिर और बाबरी-मस्जिद के विवादित मामले पर सुनवाई को लेकर नई बेंच का गठन कर दिया गया है। मुख्य न्यायाधीश रंजन गोगोई ने नई बेंच का गठन किया है। नई बेंच में पाँच जज मामले की सुनवाई करेंगे। इस बेंच में CJI समेत जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़, जस्टिस एसएस बोगडे, जस्टिस अशोक भूषण और एस जस्टिस अब्दुल नजीर शामिल हैं।

29 जनवरी को होगी मामले की सुनवाई

बता दें कि बीते 10 जनवरी को पिछली सुनवाई के दौरान जस्टिस यूयू ललित ने खुद को मामले से अलग कर लिया था। दरअसल, अयोध्या से जुड़े एक मामले में उनके वकील के तौर पर पेश हो चुकने का मुद्दा उठाया गया था, जिसके बाद उन्होंने स्वयं को सुनवाई से अलग किया था। इसके चलते मामले पर सुनवाई 29 जनवरी तक के लिए टाल दी गई थी।

बता दें कि मुस्लिम पक्षकार एम सिद्दीक के वकील राजीव धवन ने जस्टिस ललित के पीठ में शामिल होने का मुद्दे को उठाया था। उन्होंने कहा था कि सन 1997 में अयोध्या मुद्दे से जुड़े अवमानना मामले में जस्टिस ललित वकील के तौर पर कल्याण सिंह की ओर से पेश हुए थे। हालाँकि, उन्होंने कहा था कि उन्हें सुनवाई जारी रखने पर कोई अपत्ति नहीं है।

इलाहाबाद कोर्ट का पुराना फैसला

साल 2010 में 30 सिंतबर को इलाहाबाद के हाइकोर्ट में 3 सदस्यों की बेंच ने 2:1 के बहुमत से फैसला लिया था कि 2.77 एकड़ की ज़मीन को तीनों पक्षों में यानि सुन्नी वक्फ बोर्ड, निर्मोही अखाड़ा और राम लला में बराबर-बराबर बाँट दिया जाए। लेकिन हाई कोर्ट के इस फैसले को किसी भी पक्ष द्वारा स्वीकारा नहीं गया।

इसके बाद सुप्रीम कोर्ट में इस फैसले को लेकर चुनौती भी दी गई, जिसके कारण सुप्रीम कोर्ट ने इन फ़ैसले पर 9 मई, 2011 को रोक लगा दी। इलाहाबाद उच्च न्यायालय से निकलने के बाद ये मामला सर्वोच्च न्यायलय में बीते 8 साल से खिंच रहा है।

वरुण गाँधी के कॉन्ग्रेस में शामिल होने की अटकलें, राहुल गाँधी ने कहा – पता नहीं

लोकसभा चुनाव-2019 के नज़दीक आते ही अटकलों का बाज़ार तेज़ हो गया है। सियासी कॉरिडोर से लेकर आम जन-मानस भी उत्सुकता से हर ख़बर, सनसनी या अटकल पर पूरी तरह चौकन्ना है। इससे पहले प्रियंका की राजनितिक एंट्री भी एक अटकल ही थी, लेकिन कॉन्ग्रेस ने उन्हें उत्तर प्रदेश का महासचिव बना कर, वहाँ के राजनीतिक समीकरण में अपनी तरफ़ से ख़ासा बदलाव के संकेत दे चुकी है।

ताज़ा क़यास वरुण गाँधी के बीजेपी से नाराज़ होने के लगाए जा रहे थे। पिछले कुछ समय से बीजेपी में वरुण गाँधी अलग-थलग चल रहे हैं। ऐसी चर्चा भी है कि वरुण गाँधी को बीजेपी में ख़ास भाव नहीं दिया जा रहा, जिससे वो कुछ उखड़े हुए से हैं।

इसकी बानगी पिछले साल विधानसभा चुनाव के दौरान भी देखने को मिला क्योंकि उन्होंने बीजेपी के लिए न ताबड़तोड़ रैलियाँ की और न ही अपनी तरफ़ से कहीं कोई सक्रियता दिखाई। यहीं से अनुमान लगाने वालों ने कहीं न कहीं, कुछ न कुछ खटपट होने अनुमान लगाया।

हालाँकि, ओडिशा के दौरे पर गए कॉन्ग्रेस अध्‍यक्ष राहुल गाँधी से जब भारतीय जनता पार्टी के सांसद वरुण गाँधी के कॉन्ग्रेस में शामिल होने की अटकलों पर सवाल किया गया। इसके जवाब में राहुल गाँधी ने कहा, “मैंने ये अटकलें नहीं सुनी हैं, मुझे इस बात की फ़िलहाल कोई जानकारी नहीं है।”

वरुण के कॉन्ग्रेस से जुड़ने की अटकलों को प्रियंका गाँधी के दो दिन पहले बुधवार को राजनीति में आने के औपचारिक ऐलान के बाद और बल मिला। ऐसा कहा जाता है कि प्रियंका के साथ वरुण के संबंध बहुत ‘अच्‍छे’ हैं।

बता दें कि वरुण गाँधी, राहुल गाँधी के चचेरे भाई हैं जो भारतीय जनता पार्टी से सांसद हैं। वरुण उत्तर प्रदेश के सुल्तानपुर का लोकसभा में प्रतिनिधित्व करते हैं। वरुण गाँधी की माँ मेनका गाँधी महिला और बाल विकास मंत्री के रूप में केंद्रीय मंत्री हैं।

‘हुनर हाट’ के माध्यम से बदला है अल्पसंख्यकों का जीवन

उत्तर प्रदेश के रामपुर में केंद्रीय अल्पसंख्यक कार्य मंत्री मुख्तार अब्बास नकवी ने पटवाई स्थित दीक्षित कालेज ऑफ हायर एजुकेशन में केंद्रीय अल्पसंख्यक कार्य मंत्रालय द्वारा चलाई जा रही योजनाओं से स्वीकृत छात्रावास एवं कौशल विकास केंद्र एवं अन्य योजनाओं का उद्घाटन किया।

6 लाख लोगों को मिले हैं रोजगार के अवसर

सरकार द्वारा चलाई जा रही कौशल विकास के अंतर्गत तमाम योजनाओं से लगभग 6 लाख युवाओं को कौशल विकास व रोजगार के अवसर मिले हैं। इनमें से लगभग 50% लड़कियाँ हैं, जिन्हे इसका लाभ प्राप्त हुआ है। इस मौके पर केंद्रीय मंत्री मुख्तार अब्बास नकवी ने कहा कि ‘हुनर हाट’ के माध्यम से पिछले 2 सालों में 2 लाख से ज्यादा अल्पसंख्यक समुदाय के दस्तकारों-शिल्पकारों को रोजगार के अवसर उपलब्ध कराने के साथ ही राष्ट्रीय-अंतरराष्ट्रीय मार्केट में भी मौक़े दिए गए हैं।

उन्होंने कहा कि पिछले लगभग साढ़े 4 वर्षों में विभिन्न स्कॉलरशिप योजनाओं से अल्पसंख्यक समाज के लगभग 3 करोड 83 लाख ग़रीब विद्यार्थी लाभान्वित हुए हैं, जिनमे लगभग 60% छात्राएँ हैं।

उत्तेजित मीडिया मोशाय, शांत हो जाइए; प्रियंका कभी अपने ही गढ़ में फेल हो चुकी हैं

प्रियंका गाँधी की राजनीति में एंट्री हो गई है और मीडिया के एक वर्ग की प्रसन्नता का ठिकाना नहीं है। जैसे किसी चिड़िया के दाना लेकर घौंसले में लौटने पर उसके बच्चे आह्वादित होकर नाच उठते हैं, ठीक वैसे ही मीडिया का एक बड़ा समूह चोंच उठाए दाने की प्रतीक्षा में झूम उठा है। उनके आनंदित, उत्तेजित एवं उल्लासित मन और तन-बदन की स्थिति यह हो गई है कि उन्हें न भूत दिख रहा है और न भविष्य। तैमूर अली खान की चड्डी के रंग तक को ‘बड़ी ख़बर’ और ‘डेली डोज़ ऑफ़ क्यूटनेस‘ बता कर लोगों को समक्ष परोसने वाला मीडिया का यह वर्ग उत्साह की उस चरम सीमा पर जा पहुँचा है जहाँ प्रियंका ही प्रियंका हैं… चोपड़ा नहीं, गाँधी। क्षमा कीजिए, गाँधी नहीं, वाड्रा।

रॉबर्ट वाड्रा और प्रियंका गाँधी के बीच अंतर यह है कि एक पूछताछ से बचने के लिए अदालत के सामने अपनी बेटी की सर्जरी का बहाना बनाता है, तो दूसरे का उसके ठीक दो दिन बाद ही राजनीति में धमाकेदार एंट्री होती है। मीडिया के उस वर्ग की ज्ञानेन्द्रियों को सचेतन अवस्था में लाने के लिए उन्हें इतिहास रूपी ऐसे दर्पण के समक्ष ला खड़ा करना होगा, जहाँ उन्हें इस बात की अनुभूति हो कि उनके ‘झूम बराबर झूम’ का अंत ‘खोदा पहाड़ निकली चुहिया‘ पर होने वाला है।

बात शुरू करते हैं 2012 के उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव से। गाँधी परिवार के पुरातन गढ़ अमेठी और रायबरेली के भीतर 10 विधानसभा सीटों के लिए कॉन्ग्रेस पार्टी चतुष्कोणीय चुनावी संग्राम में पूरी शक्ति के साथ उत्तरी थी। केंद्र में पिछले 8 वर्षों से शासन कर रही कॉन्ग्रेस के लिए दोनों संसदीय क्षेत्रों में प्रियंका गाँधी ने स्वयं चुनावी प्रचार अभियान की कमान संभाली हुई थी। मीडिया का कहना है (और कॉन्ग्रेस नेताओं का भी) कि जनता प्रियंका में इंदिरा को देखती है। 2012 में प्रियंका गाँधी अपेक्षाकृत नई थी। उस से पहले वाले विधानसभा चुनाव में उन्होंने अपनी पहली रैली की थी। सक्रियता के मामले में 2012 में उनका कोई सानी न था।

मीडिया के एक वर्ग की नई राजमाता ने 1 महीने भी अधिक अवधि तक अमेठी-रायबरेली में जम कर प्रचार-प्रसार किया। 2007 के विधानसभा चुनाव में कॉन्ग्रेस यहाँ 7 सीटों पर जीत का परचम लहरा चुकी थी। ऐसे में, पार्टी के वफ़ादारों को अनुमान ही नहीं बल्कि विश्वास भी था कि पार्टी का झंडा और बुलंद होगा, और कॉन्ग्रेस यहाँ क्लीन स्वीप करेगी। कॉन्ग्रेस की स्टार प्रचारक ने अमेठी-रायबरेली का कोना-कोना छान मारा। वह जनता से मिलतीं, बूथ स्तर के कार्यकर्ताओं के साथ बैठकें करतीं। एक बार तो उन्होंने लगातार पाँच दिनों तक अमेठी में डेरा डाला।

चुनाव परिणाम ऐसे आए जिसे सुनकर मीडिया का एक वर्ग अचेत हो जाएगा। कॉन्ग्रेस पार्टी के सीटों की संख्या (अमेठी-रायबरेली में) 7 से घट कर 2 पर आ गई। प्रियंका गाँधी का योगदान रहा- माइनस 5। एक महीने के अंतराल में 150 सार्वजनिक बैठकें कर चुकी प्रियंका की कथित करिश्मा का परिणाम जिस रूप में मिला- उसे याद दिला कर मीडिया के ‘झूम बराबर झूम‘ गैंग को चूहे के बिल में छुपने को बाध्य किया जा सकता है।

ये रहा इतिहास। अब आते हैं वर्तमान पर। बीबीसी के अनुसार“रायबरेली और अमेठी में ज़्यादातर लोगों को हर तरह की सरकारी योजना का लाभ मिलता है क्योंकि प्रियंका ये ध्यान रखती हैं कि एक-एक व्यक्ति तक योजना की जानकारी पहुँचे और अगर वो उन योजनाओं के योग्य हैं, तो उसका लाभ मिले।”

अमेठी और रायबरेली के ग़रीब किसानों, झुग्गी-झोपड़ियों, और रुके हुए विकास कार्यों के समाचार हमारे पास पहुँचते रहे हैं। ऐसे में बीबीसी के दावे के अनुसार अगर वहाँ की जनता को प्रियंका सारी की सारी सरकारी योजनओं के लाभ दिलाती है- तो फिर आज तक वहाँ इतनी ग़रीबी क्यों है, शिक्षा की उचित व्यवस्था क्यों नहीं थी, और सारे विकास कार्य क्यों ठप्प थे? एक अंतर्राष्ट्रीय मीडिया पोर्टल का कहना है कि अमेठी के ‘एक-एक’ व्यक्ति तक सरकारी योजनाएँ पहुँची है- यह इतना हास्यास्पद है कि इस पर किसी प्रकार की चर्चा करना भी समय बर्बाद करने के सामान होगा।

रेडिफ्फ (Rediff) की वेबसाइट के अनुसार प्रियंका गाँधी के बारे में एक ‘महत्वपूर्ण’ बात यह है कि वो ‘हमारी-आपकी‘ तरह हैं और ‘सामान्य जीवन’ पसंद करती हैं। ये एक चौंकाने वाला ख़ुलासा है। वह ‘सामान्य जीवन’ जीती नहीं हैं, बल्कि ‘पसंद’ करती हैं। वैसे ख़बरों के अनुसार, अम्बानी और बिरला भी ‘सामान्य जीवन’ पसंद करते हैं (जीते नहीं हैं, पसंद करते हैं)। अर्थात, वो भी ‘हमारी-आपकी‘ तरह ही हैं।

द प्रिंट ने तो कमाल ही कर दिया। उसने प्रियंका गाँधी की प्रशंसा के लिए ऐसे शब्दों का चयन किया, जैसे वो नेता न हो कर कोई क्रिकेटर या अभिनेत्री हों। प्रियंका ‘स्मार्टर’ हैं, ‘क्लासिअर’ हैं। वेबसाइट के अनुसार प्रियंका को स्वयं को एक ‘पीड़ित’ के रूप में पेश करने का अधिकार है, क्योंकि उनके पति और सास- ED के रडार पर हैं। ऐसे में हर अपराधी के परिवार राजनीति में होना चाहिए ताकि वो ख़ुद को ‘पीड़ित’ दिखा सकें और इसे ‘वेंडेटा (बदले की भावना)’ का नाम देकर वोट बटोर सकें। शेखर गुप्ता यहाँ पिघल कर पानी हो चुके हैं।

इंडिया टुडे की एक पत्रकार तो प्रियंका गाँधी की राजनैतिक एंट्री से इतनी उत्साहित हो गई कि उन्होंने कॉन्ग्रेस कार्यकर्ताओं को कैमरा के सामने चिल्लाने के लिए ‘प्रियंका गाँधी ज़िंदाबाद‘ जैसे नारे भी दिए और कब, कैसे, क्या बोलना है- इसका निर्देश भी दिया। कुछ ऐसे फ़िल्म निर्देशक जिनकी फ़िल्में फ्लॉप हो रही हैं, और जिनका धंधा चौपट है- इंडिया टुडे के ‘नए जमाने के पत्रकार’ को देख कर उन्होंने भी इसी क्षेत्र में क़दम रखने का मन बना लिया है।