Thursday, November 7, 2024
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यूनिवर्सल बेसिक इनकम स्कीम: मुख्यमंत्री ने की चुनावी घोषणा, सिक्किम रचेगा इतिहास!

सिक्किम की रूलिंग पार्टी सिक्किम डेमोक्रेटिक फ्रंट (एसडीएफ) ने यूनिवर्सल बेसिक इनकम स्कीम की घोषणा की है। एसडीएफ ने विधानसभा व लोकसभा चुनाव 2019 को ध्यान में रखते हुए 2022 से राज्य में यूबीआई स्कीम को शुरू करने की घोषणा की है। यूबीआई स्कीम को एसडीएफ ने अपने चुनाव घोषणा पत्र का हिस्सा बनाया है। राज्य सरकार ने इस स्कीम को लॉन्च करने की पूरी तैयारी कर ली है।

यदि सिक्किम में सरकार बनने के बाद एसडीएफ इस घोषणा को पूरा करने में सफ़ल हो जाती है, तो सिक्किम इस महत्वपूर्ण योजना को शुरू करने वाला देश का पहला राज्य बन जाएगा।

सिक्किम दूसरे राज्यों के लिए रह चुका है रोल मॉडल

यूबीआई की घोषणा से पहले भी सिक्किम सरकार ने कई महत्वपूर्ण योजनाओं की शुरुआत की है। इन सभी योजनाओं की सफ़लता के ज़रिए सिक्किम सरकार देश के दूसरे राज्यों के लिए रोल मॉडल रह चुकी है। सिक्किम में सरकार बनाने के बाद एसडीएफ ने राज्य की शिक्षा व्यवस्था में कई अहम बदलाव किए थे।

सरकार के इस प्रयास के बाद सिक्किम में साक्षरता दर 68.8 प्रतिशत (साल 2001 में) से बढ़कर 82.2 प्रतिशत पर पहुँच गई है। यही नहीं, 2004-05 की तुलना में वर्तमान समय में राज्य की जीडीपी लगभग दोगुनी हो गई है। इसके अलावा 2004-05 में सिक्किम में रहने वाले लगभग 1.7 लाख लोग गरीबी रेखा से नीचे थे, जबकि 2011-12 में यह आँकड़ा घटकर महज 51,000 रह गया था। सिक्किम ने 2018 में पूर्ण जैविक राज्य बनने का रिकॉर्ड भी अपने नाम किया। सिक्किम को यह अवॉर्ड संयुक्त राष्ट्र के द्वारा दिया गया था।

क्या है यूनिवर्सल बेसिक इनकम?

यूनिवर्सल बेसिक इनकम एक तरह से बेरोजगारी बीमा है। इस योजना के अंतर्गत किसी क्षेत्र में रहने वाले लोगों को उस क्षेत्र की सरकार के ज़रिए भत्ता के रूप में कुछ निश्चित रकम दिए जाते हैं। अपने देश में 2016-17 की आर्थिक सर्वेक्षण रिपोर्ट में यूबीआई की चर्चा की गई थी। जिसके बाद इस बात का अंदेशा लगाया जाने लगा कि केंन्द्र सरकार यूबीआई स्कीम लागू कर सकती है। लेकिन बाद में सरकार ने साफ़ किया कि केंन्द्र सरकार इस स्कीम को लागू करने में अभी सक्षम नहीं है।

शिवराज सरकार यूबीआई तर्ज पर ला चुकी है एक योजना

2011-13 के दौरान मध्य प्रदेश में भाजपा सरकार ने यूबीआई की तर्ज पर एक योजना की शुरुआत की थी। इस योजना का नाम मध्य प्रदेश अनकंडिशनल कैश ट्रांसफ़र प्रोजेक्ट दिया गया था। इस योजना के तहत राज्य के हर युवाओं को 300 रुपए जबकि बच्चों को 150 रुपए प्रति माह के दर से दिया जाने लगा था। इस योजना से राज्य के युवाओं और बच्चों के जीवन स्तर में बेहतरीन सुधार देखने को मिला था।

शिवसेना का BJP पर हमला, ‘दफ़ना’ देने की दी धमकी

शिवसेना के वरिष्ठ नेता रामदास कदम ने गठबंधन के विषय पर कड़ा रुख़ अख़्तियार करते हुए बीजेपी को ‘दफ़ना’ देने की धमकी दी है। बता दें कि शिवसेना की यह प्रतिक्रिया बीजेपी अध्यक्ष अमित शाह के उस बयान के बाद आई है जिसमें उनके द्वारा कथित तौर पर यह कहा गया था कि अगर लोकसभा चुनाव से पहले गठबंधन ना हुआ, तो उनकी पार्टी अपने पूर्व सहयोगियों को क़रारी शिक़स्त देगी।

“मंगलवार (जनवरी 8) की शाम को रामदास कदम ने संवाददाताओं से बातचीत के दौरान कहा, “वे पाँच राज्यों में पहले ही चुनाव हार चुके हैं, न तो वे महाराष्ट्र में आएँ और न ही हमें धमकाएँ वरना हम आपको दफ़ना देंगे। मत भूलिए कि मोदी लहर के बावजूद हमने कुल 288 सीटों में से 63 सीटें जीतीं थी।””

इससे पहले का वाक़्या यह था कि बीते रविवार को बीजेपी अध्यक्ष अमित शाह ने शिवसेना को कड़े शब्दों में कहा था कि अगर गठबंधन हुआ तो पार्टी अपने सहयोगियों की जीत सुननिश्चित करेगी, और ऐसा न होने पर पार्टी आगामी लोकसभा चुनाव में उन्हें शिक़स्त देगी।

थोड़ा और पहले की बात करें तो इससे पहले भी शिवसेना के तल्ख़ तेवर सामने आ चुके हैं। शिवसेना अध्यक्ष उद्धव ठाकरे ने तो ‘चौकीदार चोर है’ तक कह डाला था, जिस पर मुख्यमंत्री देवेंद्र फणनवीस ने प्रतिक्रिया दी थी कि समय आने पर इसका जवाब दिया जाएगा।

संवाददाताओं से बातचीत के दौरान, एक प्रश्न का उत्तर देते हुए कदम ने कहा कि अभी बीजेपी के साथ उनका कोई गठबंधन नहीं हुआ है, लेकिन दोस्ती लगभग टूटने की कग़ार पर है। इसके लिए उन्होंने बीजेपी से अपने प्रेम और अपनत्व के ख़त्म हो जाने को मुख्य वजह बताया। साथ ही उन्होंने कहा कि जब शिवसेना अपने दम पर अकेले चुनाव लड़ने में सक्षम है तो बीजेपी गठबंधन के लिए क्यों दबाव की स्थिति पैदा कर रही है।

ख़बरों के अनुसार, यह भी पता चला है कि बीजेपी नेता चन्द्रकांत पाटील ने कदम द्वारा इस्तेमाल की गई अभद्र भाषा पर कड़ी आपत्ति दर्ज की, कहा कि हम उनके जैसी भाषा का इस्तेमाल नहीं कर सकते और शिवसेना की इस तीखी आलोचना का जवाब देते हुए यह भी स्पष्ट किया कि गठबंधन को लेकर बीजेपी की कोई मजबूरी नहीं है बल्कि यह पार्टी की सहनशीलता है।

बीजेपी और शिवसेना की विचारधारा एक है इसलिए इस तरह की कोशिशें की जा रही हैं कि दोनों साथ मिलकर आगे आएँ और आगामी लोकसभा चुनाव लड़ें। अगर किन्हीं कारणों से शिवसेना और बीजेपी के बीच सीटों के बँटवारे को लेकर गठबंधन नहीं हो पाया, तो ऐसी सूरत में दोनों पार्टियाँ अलग-अलग ही चुनाव लड़ेंगी, जिसके लिए बीजेपी पूरी तरह से सक्षम है।

ट्रिपल तलाक़ बिल राज्यसभा में अटका, अब अपराध नहीं तीन तलाक़

संसद का शीतकालीन सत्र बुद्धवार (जनवरी 09, 2019) को समाप्त हो गया जिसकी वजह से ट्रिपल तलाक़ (तीन तलाक़) बिल पर राज्यसभा की मुहर नहीं लग सकी, और ट्रिपल तलाक़ संबंधी अध्यादेश एक क़ानून बनने से वंचित रह गया। ऐसा होने से यह अध्यादेश स्वत: निरस्त हो गया।

अध्यादेश के निरस्त हो जाने से ट्रिपल तलाक़ अपराध के दायरे से बाहर निकल आया है, साथ ही तलाक़शुदा महिलाओं के संरंक्षण की बात का भी अस्तित्व मिट गया है। यह बिल लोकसभा में पास हो गया था, लेकिन राज्यसभा में विपक्ष के कड़े विरोध और अल्पमत के चलते पास होने से रह गया।

क़ानूनी भाषा में इसे समझें तो यह नियम होता है कि किसी भी अध्यादेश को लाने के बाद उसे पहले ही संसदीय सत्र में पेश करना होता है। उसके बाद ही उसे क़ानून का रूप दिया जाता है।

मुस्लिम समाज की महिलाओं को बराबरी के स्तर पर लाने और उन्हें डर के साये से दूर रखने के लिए मोदी सरकार द्वारा इस अध्यादेश को सितंबर 2018 में जारी किया गया था। अब, सरकार इस अध्यादेश को 31 जनवरी से शुरू होने वाले बजट सत्र में फिर से लाएगी ताकि 2019 के चुनाव के दौरान इसे पूर्ण रूप से प्रभावी बनाया जा सके।

क़ानून मंत्री रविशंकर प्रसाद ने कहा कि पड़ोसी देश पाकिस्तान और बांग्लादेश सहित लगभग 22 देशों ने इस प्रथा पर प्रतिबंध लगा दिया है। वहीं, कॉन्ग्रेस ने अपराधियों के लिए तीन साल की सज़ा का पुरज़ोर विरोध किया और इस मुद्दे पर आम सहमति बनाने पर चर्चा करने की माँग की।

ट्रिपल तलाक़ संबंधी इस बिल का उद्देश्य मुस्लिम महिलाओं को तीन बार तलाक़ बोलकर पारिवारिक संबंधों से जबरन निकाल फेंकने की कुप्रथा से मुक्त करना था। सदियों से चली आ रही तीन तलाक़ से जुड़ी इस बेतुकी प्रथा की वजह से मुस्लिम महिलाएँ हमेशा से ही डर के साये में जीवन जीने को मजबूर रही हैं। ऐसे में इस विधेयक का क़ानून बनते-बनते रह जाना मुस्लिम महिलाओं के लिए काफ़ी निराशा भरा साबित होगा।

कन्हैया, उमर समेत टुकड़े-टुकड़े गैंग पर जल्द होगा आरोप पत्र दायर

जेएनयू के पूर्व छात्रसंघ नेता और ‘टुकड़े-टुकड़े गैंग’ के सरगना कन्हैया कुमार, उमर ख़ालिद पर और अनिर्बान भट्टाचार्य समेत कई लोगों के ख़िलाफ़ देशद्रोह के मामले में दिल्ली पुलिस जल्द ही आरोप पत्र दायर करने वाली है। इस बात की जानकारी खुद दिल्ली पुलिस आयुक्त अमूल्य पटनायक ने दी है।

कुछ समय पहले पूरे देश भर में जेएनयू पर बहस करना, उसपर चर्चा करना एक बहुत बड़ा मुद्दा बन गया था। इस दौरान जगह-जगह सिर्फ दो लोगों की भीड़ थी, एक तो वो जो जेएनयू के समर्थन में थी और एक वो जो जेएनयू के विरोध में थी। दरअसल, उस समय ख़बरें थी कि जेएनयू में राष्ट्रविरोधी नारे लगाए गए हैं। जिसके बाद सामाजिक और राजनैतिक माहौल बहुत गर्मा गया था।

इन्हीं सबके बीच से कुछ ऐसे नाम निकलकर आए जो अब भी आए दिन ख़बरों का हिस्सा बन जाते हैं। इसमें कुछ को राजनीति का भावी चेहरा बताया गया तो कुछ को ISIS का। इनमें कन्हैया कुमार और उमर ख़ालिद दो बड़े नाम हैं। बता दें कि कन्हैया कुमार जेएनयू के पूर्व छात्र अध्यक्ष थे। संसद पर हमला करने वाले अफज़ल गुरू को फाँसी देने जाने के फैसले के विरोध में इन लोगों ने 2016 में कार्यक्रम किया था, जिसके बाद इन्हें देशद्रोह के मामले में गिरफ़्तार भी किया गया था।

इनकी गिरफ़्तारी के बाद कुछ लोगों द्वारा खूब हंगामा किया गया था। विपक्ष ने इस मामले पर पुलिस पर आरोप लगाया था कि भाजपा की शह पर ये सब काम कर रही है। लोगों की सबसे बड़ी असहमति इस बात पर थी कि किसी भी भारतीय विश्वविद्यालय के कैंपस पर “भारत तेरे टुकड़े होंगे” जैसे नारे कैसे लगाए जा सकते हैं?

हालाँकि, छद्म-लिबरलों और वामपंथी मीडिया गिरोह ने इसे ‘डिस्सेंट’, यानि ‘असहमति की अभिव्यक्ति’ बताते हुए सरकार को घेर लिया कि ‘फ़्रीडम ऑफ़ एक्सप्रेशन’ या ‘अभिव्यक्ति के मौलिक अधिकार का हनन किया जा रहा है। जबकि, इस तरह की अभिव्यक्ति किसी भी राष्ट्र में देशद्रोह ही कहा जाएगा क्योंकि जिस देश में आप रह रहे हैं, जहाँ से आपको शिक्षा मिल रही है, संसाधनों का प्रयोग कर रहे हैं, वहाँ देश को तोड़ने के नारे लगाना सर्वथा अनुचित और निंदनीय है।

दिल्ली पुलिस द्वारा कन्हैया कुमार, उमर ख़ालिद और अनिबार्न भट्टाचार्य समेत कई लोगों  के ख़िलाफ़ दाखिल किए जाने वाला आरोप पत्र इन्हीं घटनाओं पर आधारित है। अमूल्य पटनायक का कहना है कि पुलिस के लिए ये मामला बहुत पेचीदा था, लेकिन अब ये अपने आख़िरी चरण पर है, इस मामले की जांच करने के दौरान पुलिस को अन्य राज्यों के दौरे करने पड़े, लेकिन अब आरोप पत्र जल्दी दायर किया जाएगा

आपको बता दें कि इस मामले में ‘सामाजिक कार्यकर्ता’ व वकील प्रशांत भूषण ने सरकार पर यह देश में डर का माहौल बनाने का आरोप लगाया था। उनका कहना था कि देश में सरकार के खिलाफ बोलने वालों को निशाना बनाया जा रहा है। साथ ही उन्होंने उमर ख़ालिद और कन्हैया का साथ देते हुए कहा था इन्हें सरकार के ख़िलाफ़ बोलने के कारण नक्सली और देशद्रोही करार दिया जा रहा है।

लोकसभा के बाद राज्यसभा में भी पारित हुआ आरक्षण विधेयक, क्या रही पक्ष और विपक्ष के नेताओं की राय

मोदी सरकार द्वारा लाए गए आर्थिक रूप से कमज़ोर वर्ग (सामान्य श्रेणी) को शिक्षा एवं रोजगार में 10% आरक्षण देने के 124वें संविधान संशोधन विधेयक को बुधवार (जनवरी 9, 2019) को राज्यसभा में भी मंजूरी मिल गई। राज्यसभा में बिल के पक्ष में 165 और विपक्ष में 7 वोट पड़े। बिल को लेकर चर्चा करने के लिए 8 घंटे का समय तय था लेकिन उसे बढ़ाना पड़ा। करीब 10 घंटे की चर्चा के बाद यह विधेयक पास हुआ।

लोकसभा की तरह ही यह बिल राज्यसभा में भी सर्वसम्मति और आसानी से पारित हो गया। इस बिल पर लगभग 10 घंटे तक पक्ष और विपक्ष के सदस्यों ने चर्चा की। राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद के हस्ताक्षर करने के बाद यह प्रावधान एक कानून बन जाएगा। विधेयक की ख़ास बात यह है कि तमाम विरोध के बावज़ूद, सरकार इस विधेयक को संसद में उसी रूप में पारित करने में सफ़ल रही, जिस रूप में यह पेश किया गया था। इस बिल में संशोधन के तमाम प्रस्ताव सदन में गिर गए।

लोकसभा के बाद राज्यसभा में भी विधेयक पारित हो जाने के बाद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने संविधान निर्माताओं और स्वतंत्रता सेनानियों को याद करते हुए लगातार तीन ट्वीट किए। पहले ट्वीट में नरेंद्र मोदी ने लिखा, “ख़ुशी है कि राज्यसभा ने संविधान (124वाँ संशोधन) विधेयक, 2019 पास कर दिया। इस विधेयक का व्यापक समर्थन देखकर वह ख़ुश हैं। सदन ने एक जीवंत बहस को देखा, जहाँ कई सदस्यों ने अपनी राय प्रकट की।”

अपने दूसरे ट्वीट में प्रधानमंत्री ने लिखा कि यह सामाजिक न्याय की जीत है। यह युवाओं के लिए एक व्यापक कैनवास सुनिश्चित करेगा, जिससे वे अपने कौशल का प्रदर्शन कर सकेंगे और भारत के परिवर्तन में योगदान कर सकेंगे।

अपने तीसरे ट्वीट में पीएम मोदी ने कहा, “संविधान (124वाँ संशोधन) विधेयक, 2019 को पारित करके, हम अपने संविधान के निर्माताओं और महान स्वतंत्रता सेनानियों को श्रद्धांजलि अर्पित करते हैं, जिन्होंने एक ऐसे भारत की कल्पना की, जो मजबूत और समावेशी हो।”

सामाजिक न्याय एवं अधिकारिता मंत्री थावरचंद गहलोत ने 124वाँ संविधान संशोधन विधेयक लोकसभा में पटल पर रखा था। विधेयक के उद्देश्य एवं कारणों में लिखा गया है कि अभी सामान्य श्रेणी के आर्थिक रूप से कमज़ोर लोग बड़े पैमाने पर उच्च शिक्षण संस्थानों में प्रवेश तथा सरकारी नौकरियों से वंचित हैं, क्योंकि वे आर्थिक रूप से मजबूत वर्ग के साथ प्रतिस्पर्धा नहीं कर पाते। इस विधेयक में लिखा है, “यह सुनिश्चित करने के लिए कि आर्थिक रूप से कमजोर लोगों को उच्च शिक्षा तथा सरकारी नौकरियों में उचित अवसर मिले, संविधान में संशोधन का फैसला किया गया है।”

विधेयक पेश करने के बाद इस बिल पर लोकसभा में लगभग 5 घंटे लम्बी चर्चा चली। सदन में उपस्थित अधिकांश पार्टी ने इस बिल का खुलकर विरोध नहीं किया। कॉन्ग्रेस ने बिल का विरोध नहीं किया, लेकिन पार्टी ने मांग की थी कि बिल पहले संयुक्त संसदीय समिति (जेपीसी) के पास भेजा जाए। राज्यसभा में विपक्ष ने कहा कि वो बिल के खिलाफ नहीं हैं, लेकिन सरकार के बिल को पेश करने के तरीके के ख़िलाफ़ हैं।

लोकसभा में इस बिल के बारे में बताते हुए केन्द्रीय मंत्री गहलोत ने कहा कि इसके पूर्व 21 बार प्राइवेट मेम्बर बिल लाकर अनारक्षित वर्ग के लिए आरक्षण संबंधी सुविधाएँ प्रदान करने की माँग हुईं। मंडल आयोग ने भी इसकी अनुशंसा की थी और पी.वी. नरसिंह राव सरकार ने 1992 में एक प्रावधान किया था लेकिन संविधान संशोधन नहीं होने के कारण सुप्रीम कोर्ट ने इसे निरस्त कर दिया था।

सिन्नो कमीशन (कमीशन टू एग्ज़ामिन सब-कैटेगोराइज़ेशन ऑफ़ ओबीसी) ने 2004 से 2010 तक इस बारे में काम किया और 2010 में तत्कालीन सरकार को प्रतिवेदन दिया। गहलोत ने बताया कि पहले सरकारों द्वारा किए गए इस तरह के प्रयास सुप्रीम कोर्ट में इसलिए निरस्त हुए हैं, क्योंकि उन सरकारों ने संविधान में संशोधन किए बिना वो फ़ैसले लिए थे। मोदी सरकार ने इसी कमिशन की सिफ़ारिश के आधार पर संविधान संशोधन बिल तैयार किया है। केन्द्रीय मंत्री ने बताया कि प्रस्तावित आरक्षण का कोटा वर्तमान कोटे से अलग होगा। अभी देश में कुल 49.5% आरक्षण है। अन्य पिछड़ा वर्ग को 27%, अनुसूचित जातियों को 15% और अनुसूचित जनजाति को 7.5% आरक्षण की व्यवस्था है। बिल पर चर्चा के दौरान केन्द्रीय मंत्री थावरचंद गहलोत ने सदन को बताया कि अगर उनके फैसले के ख़िलाफ़ कोई सुप्रीम कोर्ट में भी जाता है तो यह निर्णय निरस्त नहीं हो पाएगा और सामान्य वर्ग के गरीब भी आरक्षण का लाभ ले पाएंगे। उन्होंने कहा, “हमारी सरकार ने सोच-समझकर यह निर्णय लिया है और संविधान के अनुच्छेद 15 और 16 में संशोधन किए हैं।”

कॉन्ग्रेस नेता कपिल सिब्बल ने इस बहस के दौरान कहा कि अगर 8 लाख रुपए कमाने वाला गरीब है, तो सरकार को 8 लाख तक की कमाई पर इनकम टैक्स भी माफ़ कर देना चाहिए। इस पर केंद्रीय मंत्री रविशंकर प्रसाद ने कहा कि राज्य चाहें तो 8 लाख रुपए की सीमा को घटा-बढ़ा सकते हैं। उन्होंने कहा, “आप विधेयक में 8 लाख की आय सीमा पर सवाल उठा रहे हैं, लेकिन बिल में प्रावधान है कि राज्य अपनी मर्ज़ी से सामान्य वर्ग के आर्थिक रूप से
कमज़ोर लोगों का पैमाना तय कर सकेंगे। उदाहरण के लिए, किसी राज्य को लगता है कि आमदनी का पैमाना 8 लाख रुपए नहीं 5 लाख रुपए होना चाहिए, तो वह ऐसा कर सकेगा। संवैधानिक संशोधन के ज़रिए राज्यों को यह निर्णय करने का अधिकार रहेगा।”

सिब्बल ने कहा, “सरकार को जल्दी क्यों है, ये वही जानते हैं, मंडल कमीशन के बिल को पास करने में दस साल लगे थे, अभी सरकार संविधान में संशोधन एक दिन में करने जा रही है”

केंद्रीय सूचना प्रसारण मंत्री राज्यवर्धन सिंह राठौर ने कहा कि इस बिल के बारे में दशकों से बात हो रही थी, लेकिन किसी ने ऐसी हिम्मत अभी तक नहीं दिखाई। जबकि हमारा संविधान स्वयं कहता है कि सभी वर्गों को और नागरिकों को बराबर अवसर दिया जाना चाहिए। इस तरह से आर्थिक रूप से पिछड़े वर्ग हमेशा पीछे रह गए थे।

आम आदमी पार्टी नेता भगवंत मान ने कहा कि ये भाजपा का नया जुमला है। उन्होंने कहा कि अब से दस दिन बाद मोदी किसी रैली में इसका श्रेय लेते नज़र आएंगे।

अक्सर साम्प्रदायिक बयान देने के कारण चर्चाओं में रहने वाले एआईएएम नेता असदउद्दीन ओवैसी ने ट्वीट कर प्रतिक्रिया देते हुए कहा, “दलितों के साथ ऐतिहासिक अन्याय को सही करना आरक्षण का मतलब है। गरीबी उन्मूलन के लिए कोई भी विभिन्न योजनाएँ चला सकता है लेकिन आरक्षण न्याय के लिए है। संविधान आर्थिक आधार पर आरक्षण की अनुमति नहीं देता है।” इस बिल पर चर्चा करते हुए एआईएमआईएम के अध्‍यक्ष असदुद्दीन ओवैसी ने इसे धोखा बताया और कहा “मैं इस बिल का विरोध करता हूँ, क्‍योंकि ये बिल एक धोखा है। उन्होंने कहा कि इस बिल के माध्‍यम से बाबा साहब अंबेडकर का अपमान किया गया है और इस बात का कोई तथ्य या आँकड़ा नहीं है कि सवर्ण भी पिछड़े हुए हैं।

बिल का विरोध करते वक्त ओवैसी यह भूल गए कि 124वाँ संविधान संशोधन विधेयक सिर्फ सवर्णों के लिए नहीं है बल्कि आर्थिक रूप से पिछड़े सामान्य श्रेणी के सभी लोगों के लिए है। इसका मतलब इस विधेयक का सम्बन्ध जाति आधारित न होकर आर्थिक है। मतलब ओवैसी जिस मुस्लिम वोट बैंक की राजनीति करते हैं, उनके भी आर्थिक तौर पर पिछड़े लोग इस विधेयक से लाभान्वित होंगे।

2030 में भारत बन जाएगा दूसरी सबसे मजबूत अर्थव्यवस्था, पीछे छोड़ देगा अमेरिका को: स्टैंडर्ड चार्टर्ड

यूरोपीय बैंक स्टैंडर्ड चार्टड ने बीते 8 जनवरी को एक रिपोर्ट जारी किया। इस रिपोर्ट के मुताबिक 2030 तक भारत दुनिया में दूसरी सबसे मजबूत अर्थव्यवस्था वाला देश बन जाएगा। जबकि 2030 तक 64.2 ट्रिलियन डॉलर जीडीपी के साथ चीन दुनिया में सबसे मजबूत अर्थव्यवस्था वाला देश होगा। इस रिपोर्ट में इस बात का भी ज़िक्र है कि अगले एक दशक में भारतीय अर्थव्यवस्था अमेरिका से काफ़ी आगे निकल जाएगी।

रिपोर्ट के मुताबिक 2020 तक चीन की जीडीपी और वहाँ रहने वाले लोगों की क्रय शक्ति अमेरिका से आगे निकल जाएगी। यदि भारत में भी इसी तरह से विकास का माहौल बना रहा तो 2030 में भारत की जीडीपी 46.3 ट्रिलियन डॉलर के करीब पहुँच जाएगी।

स्टैंडर्ड चार्टड ने अपने रिपोर्ट में यह बताया कि 2013 के बाद भारत सरकार ने देश की अर्थव्यवस्था को मज़बूत करने के लिए कई अच्छे कदम उठाए हैं। सरकार ने गुड्स एंड सर्विस टैक्स (जीएसटी) लागू करके व देश के बाहर जाने वाले कालेधन को रोकने के लिए कठोर कानून बनाकर देश की इकॉनमी को सही दिशा में आगे बढ़ाया है।

भारत के युवा ही देश को मजबूत बनाएँगे

स्टैंडर्ड चार्टड ने अपने रिपोर्ट में इस बात का उल्लेख किया है कि भारत की आधी अबादी युवाओं की है। ऐसे में देश की अर्थव्यवस्था को मजबूत बनाने में युवा महत्वपूर्ण भूमिका निभाने वाले हैं। युवाओं की संख्या अधिक होने की वजह से देश में मैन पावर की कोई कमी नहीं है। ऐसे में 2030 तक युवाओं के लिए 100 मिलियन जॉब पैदा होने की संभावना है। देश-विदेश की कंपनी में काम करने वाले इन युवाओं के जीवनस्तर में सुधार होने की संभावना है। इतनी संख्या में नए जॉब पैदा होने की वजह से आम लोगों की आय में वृदधि होगी। प्रतिव्यक्ति आय बढ़ते ही लोगों की क्रय शक्ति बढ़ेगी। इस तरह भारत 2030 तक दुनिया का दूसरा सबसे मजबूत अर्थव्यवस्था वाला देश बन जाएगा।  

नोटबंदी-जीएसटी से देश की अर्थव्यवस्था को मिला फ़ायदा

स्टैंडर्ड चार्टर्ड बैंक की रिपोर्ट से पहले वर्ल्ड बैंक ने एक रिपोर्ट ज़ारी किया था। वर्ल्ड बैंक के इस रिपोर्ट में नोटबंदी और जीएसटी का भी ज़िक्र किया गया है। रिपोर्ट के अनुसार नोटबंदी और जीएसटी के कारण अस्थाई मंदी के बाद देश की अर्थव्यस्था में आश्चर्यजनक वृद्धि हो रही है। वर्ल्ड बैंक के इस रिपोर्ट ने नोटबंदी पर विपक्षी दलों द्वारा लगाए जाने वाले आरोपों को गलत साबित किया है। यही नहीं, अर्थव्यवस्था को सुधारने के लिए मोदी सरकार द्वारा जो साहसी कदम उठाया गया, उस सराहनीय प्रयास के परिणाम की एक झलक वर्ल्ड बैंक के इस रिपोर्ट में देखने को मिली।

कृषि व विनिर्माण क्षेत्र में भी सुधार

स्टैंडर्ड चार्टर्ड और वर्ल्ड बैंक के रिपोर्ट से पहले केंन्द्रीय सांख्यिकी कार्यालय (सीएसओ) ने एक रिपोर्ट जारी करके वित्तीय वर्ष 2018-19 में देश की जीडीपी 7.2% रहने की संभावना ज़ाहिर की है। जीडीपी में वृद्धि के लिए सीएसओ ने कृषि व विनिर्माण क्षेत्र को सराहा है। इस रिपोर्ट के मुताबिक कृषि व विनिर्माण सेक्टर में अच्छे प्रदर्शन की वजह से 2017-18 की तुलना में 2018-19 में जीडीपी में वृद्धि हुई है।

ममता बनर्जी को बड़ा झटका: TMC के कई सांसदों के BJP में शामिल होने की संभावना

पश्चिम बंगाल में भारतीय जनता पार्टी को रथयात्रा से चुनावी अभियान शुरू करनी थी लेकिन राज्य सरकार द्वारा अनुमति न देने के कारण ये संभव न हो सका। अगर ताजा घटनाक्रमों की बात करें तो तृणमूल कॉन्ग्रेस के कई सांसद पार्टी से नाराज़ चल रहे हैं और उनके पार्टी को छोड़ कर भाजपा का हाथ थामने की सम्भावना है। कल ही (9 जनवरी) तृणमुल कॉन्ग्रेस के 38 वर्षीय सांसद सौमित्र ख़ान अपने समर्थकों सहित भाजपा में शामिल हो गए थे, जिसे राज्य के राजनीतिक समीकरण में बड़े उलटफेर की सम्भावना के रूप में देखा गया। भाजपा नेता मुकुल रॉय ने इस अवसर पर कहा कि तृणमूल के छह सांसद उनके संपर्क में हैं, जो आम चुनावों से पहले भाजपा में शामिल होना चाहते हैं।

बोलपुर से सांसद अनुपम हाज़रा के भी भाजपा में शामिल होने की ख़बरों के बीच तृणमूल कॉन्ग्रेस ने उन्हें पार्टी से निकाल दिया है। ख़बरों के अनुसार वो भी जल्द ही भाजपा में शामिल होंगे।

बता दें कि मुकुल रॉय भी पूर्व में TMC के नेता रहे हैं, जो नवंबर 2017 में भाजपा में शामिल हुए थे। केंद्र सरकार में रेल मंत्री रह चुके रॉय और केंद्रीय पेट्रोलियम मंत्री धर्मेंद्र प्रधान ने सौमित्र ख़ान का भाजपा में स्वागत किया। इस अवसर पर ख़ान ने कहा कि वो प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के साथ काम करना चाहते हैं। उन्होंने कहा कि पश्चिम बंगाल में सिंडिकेट राज और पुलिस राज साथ-साथ चल रहे हैं। वहीं प्रधान ने कहा कि 2019 के आम चुनावों में पूर्वी भारत प्रधानमंत्री मोदी का सबसे बड़ा किला होगा और ये उसी दिशा में लिए गया एक स्टेप है।

भाजपा में शामिल होने से पहले विष्णुपुर से सांसद ख़ान ने पार्टी अध्यक्ष अमित शाह से भी मुलाक़ात की थी। उनके पार्टी में आने के बाद भाजपा को पश्चिम बंगाल के बांकुड़ा जिले में बड़ी बढ़त मिलने की उम्मीद है, जहाँ पहले ही 234 ग्राम पंचायत जीत कर पार्टी के हौसले बुलंद हैं। सूत्रों का ये भी कहना है कि अभी भी TMC में मुकुल रॉय के बहुत से वफ़ादार नेता हैं, जो जल्द ही भाजपा ज्वॉइन कर सकते हैं।

बंगाल के राजनीतिक गलियारों में ये चर्चा भी काफी जोरों पर है कि भाजपा ज्वॉइन करने वाले तृणमूल नेताओं में अगला नंबर अर्पिता घोष और शताब्दी रॉय का हो सकता है। अर्पिता घोष बलुर से सांसद हैं और बंगाली फिल्मों की प्रसिद्ध अभिनेत्री रही शताब्दी रॉय वीरभूमि से सांसद हैं।

बंगाल में पल-पल बदल रहे राजनीतिक घटनाक्रम और तृणमूल कांग्रेस के खिलाफ भाजपा द्वारा चलाए जा रहे आक्रामक अभियान ने मुख्यमंत्री ममता बनर्जी को सकते में डाल दिया है। 19 जनवरी को भाजपा के खिलाफ़ शक्ति प्रदर्शन की तयारी कर रही तृणमूल कांग्रेस की राष्ट्रीय अध्यक्षा ममता बनर्जी की रैली को वामदलों ने भी नकार दिया है, जिससे उनके विपक्षी एकता दिखाने के मंसूबों पर पानी फिर सकता है। भाजपा के खिलाफ एक ‘संघीय ढाँचे’ को खड़ा करने की कोशिश में लगी ममता के लिए यह एक बड़ा झटका माना जा रहा है। अब राजनीतिक पंडितों की निगाहें इस रैली की तरफ टिकी हैं, जिस से बंगाल की राजनीति में आगे का रुख़ तय होगा।

आरक्षण बिल पर अमित शाह ने रामगोपाल यादव को संसद में दिया करारा जवाब- याद दिलाया मुस्लिम आरक्षण

नए आरक्षण बिल के आ जाने के बाद विरोधियों में हड़कंप मचा हुआ है। ऐसी स्थिति में संसद सभा में गरीब सामान्य वर्ग के लोगों को आरक्षण देने के ऊपर बहुत देर तक बहस हुई। गरमाई हुई इस चर्चा के दौरान सपा के नेता रामगोपाल यादव और भारतीय जनता पार्टी के अध्यक्ष अमित शाह के बीच काफ़ी बड़ी बहस देखने को मिली।

इस बहस ने उस समय और भी ज्यादा तीखा रूप ले लिया जब सपा के नेता रामगोपाल यादव ने बीजेपी सरकार द्वारा लाए आरक्षण बिल को बेमतलब का बताया और कहा कि इस बिल का कोई भी फ़ायदा नहीं है। जिसके बाद अपनी पार्टी के इस ऐतिहासिक कदम के समर्थन में अमित शाह ने रामगोपाल को मुस्लिम आरक्षण की याद दिला दी।

दरअसल, संसद में सामान्य वर्ग को मिलने मिलने वाले 10 प्रतिशत आरक्षण पर चर्चा करते हुए रामगोपाल यादव ने कहा कि सरकार बिल ला रही है उससे कोई लाभ नहीं होने वाला है, उनका कहना है कि सरकार जिन गरीबों को आरक्षण देने की बात कहकर बिल लाई है, उन्हें लाभ नहीं मिलेगा।

अपनी इस बात पर रामगोपाल ने अपना आगे मत रखते हुए कहा, “उन लड़को की जब मेरिट आएगी तो वो को काफी ऊपर रहेगी। इसका मतलब है कि आप लोगों ने जो मेरिट का आँकड़ा था वो आपने छोटा कर दिया, आपने मेरिट को शॉर्ट कट कर दिया और संख्या को बढ़ा दिया। एक साल बाद आपको असर दिखने लगेगा।”

रामगोपाल यादव की इसी बात पर उन्हें बीच में रोककर भारतीय जनता पार्टी के अध्यक्ष अमित शाह ने कहा, “आप मेरिट की बात कर रहे हैं लेकिन जब आप मुस्लिम आरक्षण लाए, तब क्या मेरिट की संख्या कम नहीं हुई? आप तो मुस्लिम आरक्षण ले आए, तो मेरिट के बच्चों का क्या होगा, आप अपना 2012 का मेनिफेस्टो देख लीजिए।”

इस गर्मा-गर्मी के दौरान रामगोपाल ने कहा कि उनकी पार्टी इस बिल का समर्थन करती है। साथ ही उन्होंने यह भी कहा कि सरकार यह बिल कभी भी ला सकती थी, लेकिन भाजपा सरकार का लक्ष्य आर्थिक रूप से गरीब सवर्ण की स्थिति सुधारना नहीं बल्कि 2019 का चुनाव है। उनका कहना है कि अगर बीजेपी के दिल में ईमानदारी होती तो 3 या 4 साल पहले यह बिल आ चुका होता।

TMC सांसद सौमित्र ख़ान ने भी थामा BJP का दामन – ममता की मुश्किलें बढ़ीं

तृणमूल कॉन्ग्रेस के सांसद सौमित्र ख़ान ने आख़िरकार बड़ा क़दम उठाते हुए भारतीय जनता पार्टी का दामन थाम ही लिया। इस तरह तृणमूल कॉन्ग्रेस को अपने कई साथियों को गँवाना पड़ा।

TMC के वरिष्ठ नेता का भाजपा में शामिल होने का क़दम ममता बनर्जी को इस साल के अंत में होने वाले लोकसभा चुनाव से पहले झटका देगा। भाजपा की नज़र बंगाल पर है और ऐसे में नेताओं द्वारा तृणमूल का साथ छोड़ना ममता के लिए एक बड़ा घाटा साबित हो सकता है।

जानकारी के अनुसार, भाजपा नेता और पूर्व TMC नेता मुकुल रॉय ने दावा किया है, कि कम से कम 5 और सांसद उनके संपर्क में थे और आम चुनाव से पहले भाजपा में शामिल होना चाहते थे। ऐसा होने से ममता के लिए यह विषय निश्चित तौर पर चिंता का विषय है।

TMC कैडरों के भगवा पार्टी में भारी सँख्या में शामिल होने से संबंधित ख़बरें पहले भी सामने आईं थी। इसके अलावा भाजपा अध्यक्ष अमित शाह ने भी भविष्यवाणी की थी कि पार्टी बंगाल में 22 लोकसभा सीटें जीतेगी।

यह कहना ग़लत नहीं होगा कि इन परिस्थितियों में ममता बनर्जी निश्चित रूप से राजनीतिक दबाव महसूस कर रही हैं और कहीं न कहीं भाजपा के खेल को खेलने के लिए मजबूर भी होंगी।

2018 में, पार्टी द्वारा राम नवमी के जश्न के दौरान भाजपा पर साम्प्रदायिक विभाजन का आरोप लगाने के एक साल बाद, TMC ने भी घोषणा की कि वह त्योहार मनाएगी। RSS ने इसे नैतिक जीत के रूप में स्वीकार किया।

मुख्य तौर पर राज्य में भाजपा के उदय ने पंचायत चुनावों के दौरान राज्य में राजनीतिक बदलाव को बढ़ावा मिला। हालाँकि, इस सबके बावजूद, ऐसा प्रतीत होता है कि भाजपा निरंतर साम्यवादी राज्य में वृद्धि-दर-वृद्धि कर रही है।

निष्कर्ष के तौर पर यह कहा जा सकता है कि राजनीति के बदलते परिवेश में भाजपा का क़द न सिर्फ़ बढ़ रहा है, बल्कि अन्य पार्टी के नेताओं के इस साकारात्मक रुख़ से आगामी चुनाव में अपना बेहतर प्रदर्शन करने और जीत का परचम लहराने की दिशा की ओर अग्रसर है।

31 जनवरी को पेश करेगी मोदी सरकार इस लोकसभा का अंतिम बजट

सरकारी सूत्रों के अनुसार संसद का बजट सत्र 31 जनवरी से 13 फ़रवरी के बीच आयोजित किया जाएगा और 1 फ़रवरी को अंतरिम बजट पेश किया जाएगा। संसदीय मामलों की कैबिनेट कमेटी (CCPA) में यह फैसला लिया गया है। यह बजट सत्र इस कारण भी महत्वपूर्ण होगा क्योंकि अप्रैल-मई में आम चुनाव होने के कारण यह वर्तमान लोकसभा के लिए आखिरी बजट सत्र है और सरकार कुछ ज़रूरी घोषणाएँ भी कर सकती है।

क्योंकि यह बजट सत्र लोकसभा चुनावों से ठीक पहले होगा, इसलिए आम आदमी की निगाह सरकार की ओर रहने वाली है। मौजूदा शीतकालीन सत्र में सरकार कुछ ऐसे विधेयक पास कराने में सफल रही है, जो जनता के लिए बेहद चौंकाने वाले थे। इसमें, सरकार सामान्य श्रेणी के गरीबों के लिए 10% आरक्षण का 124वाँ  संविधान संशोधन विधेयक ला चुकी है, जिसे लोकसभा में पारित किए जाने के बाद राज्यसभा में पारित किया जाना बाकी है। इसके अलावा, नागरिक संशोधन विधेयक को पास किया जाना भी एक बहुत बड़ी चुनौती साबित हुई है, हालाँकि सरकार ने इसे सदन में पारित कर दिया है।

पिछले सत्र की तरह ही विपक्ष इस बजट सत्र में भी व्यवधान डालकर सत्र का समय ख़राब करने की पूरी कोशिश कर सकता है। आख़िरी वर्ष के बजट सत्र में आंध्र प्रदेश को विशेष राज्य का दर्जा देने की मांग को लेकर विपक्ष पहले भी समय बर्बाद कर चुका है। सरकार अन्य लंबित मामलों को इस सत्र में लाने का प्रयास करेगी, इसलिए यह देखना होगा कि विपक्ष सरकार के क्रियाकलापों में बाधा डालने की फिर से कोशिश करता है या नहीं?

जिस वर्ष लोकसभा चुनाव होते हैं उसमें मौजूदा सरकार ही अंतरिम बजट पेश करती है, बाद में नई सरकार पूरा बजट पेश करती है। फरवरी 2014 में पूर्व वित्त मंत्री पी. चिदंबरम ने अंतरिम बजट पेश किया था, इसके बाद जुलाई में वित्त मंत्री अरुण जेटली ने संसद में पूरा बजट लाए थे।