Sunday, November 24, 2024

राजनैतिक मुद्दे

मोदी सरकार ने खेती-किसानी को दिया खूब खाद-पानी, फिर ‘किसानों’ के नाम पर तमाशा क्यों? जानिए 10 साल में कैसे बदली कृषि क्षेत्र की...

कृषि क्षेत्र में मोदी सरकार के कार्यों पर गौर करें तो इस तथ्य को बल मिलता है कि इस किसानो के नाम पर चल रहे तमाशे का मकसद राजनीतिक है।

69.15 रुपए में 1 किलो गेहूँ… राहुल गाँधी की गारंटी: अमीर हो या गरीब, मार्केट में इसी रेट से खरीदना होगा – समझिए MSP...

किसान आंदोलन की आड़ में राजनीतिक खेल खेला जा रहा है। राहुल गाँधी उस आयोग की सिफारिशों को लागू करने की गारंटी दे रहे हैं, जिसे सरकार में रहते हुए कॉन्ग्रेस नकार चुकी है।

चोला किसानों का पर नारे खालिस्तान के, तस्वीर भिंडरावाले की और धमकी PM कोः खेत-खलिहान का भला नहीं, राजनीति का नया मोर्चा है ‘दिल्ली...

एक तरफ जहाँ कथित किसानों ने प्रदर्शन को लेकर पूरी तैयार की हुई है तो वहीं दूसरी ओर पॉलिटिकल पार्टियाँ इस मौके का लाभ उठाने से पीछे नहीं हट रही।

मी लॉर्ड! ये अच्छा है कि आप देख लेंगे, पर समय से देख लेने से आम आदमी को मिल सकती है राहत

सुप्रीम कोर्ट बार एसोसिएशन के अध्यक्ष ने मुख्य न्यायाधीश को पत्र लिखकर आम लोगों को हो रही समस्याओं से निजात दिलाने की अपील की है।

नीतीश ‘सबके क्यों हैं?’ – ‘पलटूराम’ की वर्तमान छवि में नहीं, इतिहास में है ‘सुशासन बाबू’ को लेकर इस सवाल का जवाब, जो दूध...

नीतीश सबके क्यों हैं? किसी को उनसे या उनको किसी से परहेज क्यों नहीं? इसका जवाब उनकी वर्तमान छवि में नहीं, बल्कि इतिहास में ढूँढ़ा जा सकता है।

निर्धन-वंचित वर्ग का आर्थिक समावेशन, स्वास्थ्य सेवाओं की सुलभता, महिला सशक्तिकरण… रामराज्य का समसामयिक संस्करण है PM मोदी का ‘नव-कल्याणवाद’

PM मोदी का शासन-सूत्र रामराज्य का समसामयिक संस्करण है। उनके शासन का ध्येय-मंत्र 'सबका साथ, सबका विकास, सबका विश्वास, और सबका प्रयास' है।

जो थे ‘जननायक’ उसे लालू कहते थे ‘कपटी ठाकुर’, भारत रत्न मिलते ही बना लिया ‘गुरु’: जो आज बनते हैं सामाजिक न्याय के ‘मसीहा’...

कर्पूरी ठाकुर को 'कपटी' कहने वाले लालू यादव आज किस मुँह से उन्हें अपना गुरु बता रहे हैं? श्रेय लूटने की होड़ में भूल गए कि उन्होंने बीमार नेता के साथ क्या किया था।

अभी तो अनुष्ठान शुरू हुआ है आरफा और तुम लगी छटपटाने

आरफा खानम शेरवानी जैसों को यह सनद रहे कि अभी उन सैकड़ों देवभूमि की मुक्ति शेष है, जहाँ इस्लामी बर्बरता के निशान आज भी मौजूद हैं।

रावण ने ठुकराया हश्र हम जानते हैं, कॉन्ग्रेस ने ठुकराया हश्र हम देखेंगे

नेहरू से लेकर सोनिया तक कॉन्ग्रेस हिंदू घृणा में सनी रही। फिर भी राम की मर्यादा का पालन कर उसके नेताओं को न्योता दिया गया। पर उसने वही चुना जो उसकी नियति है।

न एजेंडा-न चेहरा, इसलिए विपक्ष विहीन है भारत का प्रजातंत्र: भरोसे की कमी और नेतृत्व के अभाव से गहराता ही जा रहा है संकट

इतिहास सफल और असफल दोनों लोकतांत्रिक आंदोलनों के उदाहरणों से भरा पड़ा है। कमजोर देश और आज्ञाकारी सरकारें पूँजी के विस्तार के लिए उपयोगी हैं।

ताज़ा ख़बरें

प्रचलित ख़बरें