अजीत: भेज रहा हूँ नेह निमंत्रण प्रियवर तुम्हें बुलाने को, हे बीहट के वामपंथी शूकर तुम भूल न जाना आने को… शरद ऋतु के आश्विन मास की चतुर्दशी की इस पावन बेला में हम आज आप लोगों का साक्षात्कार कन्हैबा से करवाने जा रहे हैं। इनको इज्जत बस वामपंथी कामभक्त माओवंशी लमप्ट समुदाय और गिरोह विशेष के पत्रकार और R&Dtv जैसे संस्थान ही देते हैं। वरना लड़कियों के सामने लिंगलहरी बन कर मूत्र विसर्जन का कार्य हो, या फिर भारत के टुकड़े-टुकड़े करने की अतितीव्र इच्छा, इनकी करतूतें ऐसी हैं कि कन्हैया कुमार कहना कुछ वैसा ही है जैसे कुत्ते को घी पिलाना। पचेगा ही नहीं। इसलिए हम इन्हें कन्हैबा कहेंगे।
कन्हैबा: आप ही लोग का टाइम है, संघी लोग का समय है तो सूगर कह लो, कुत्ता कह लो… लेकिन जनता जवाब देगी इसका भी। संघियों से बढ़िया बात का उम्मीद भी कैसे करें। यही सब गाली-गलौज करोगे, यही सिखाया जाता है साखा में।
अजीत: अरे, शूकर तो विष्णु के अवतार हैं भाय! आप को तो वामपंथी होने के बाद भी सूअर कह कर मैंने कितनी इज्जत दी है। जेएनयू में ये सब नहीं पढ़ाया क्या? खाली यही पढ़ाया कि बाप मरे तो माथा मत मुड़ाओ? जनेऊ तोड़ तो, ब्राह्मणवाद के खिलाफ हो जाओ?
कन्हैबा: जेएनयू एक वर्ल्ड क्लास
अजीत: चार चवन्नी घोड़े पर, वर्ल्ड क्लास…
कन्हैबा: फिर देखो अश्लील बातें… यही सब तो पढ़ाते हैं साखा में।
अजीत: एगो भीतर का बात बताएँ? हम आज तक संघ की किसी शाखा में नहीं गए। हम वहाँ गए हैं जहाँ तुम्हारे जैसे बकचोन्हर पूरा जीवन किताब पढ़ कर मर जाएँगे, सलेक्शन नहीं होगा। और, अगर बचपन में थोड़ा पढ़ लेते मेरी तरह के स्कूल में, तो बनराते नहीं। अफ्रीका के समाज पर पीएचडी कर के बिहार के गाँव में ज्ञान नहीं दे रहे होते कि सामाजिक न्याय नहीं हो रहा है। और वैसे भी, कभी शाखा हो आओ, क्या पता लबरागिरी छोड़ कर कुछ सेन्स माथा में ढुक जाए!
कन्हैबा: अरे महराज, सबाल पूछिए, टाइम नहीं है ओतना! सुबह-सुबह दारू ले के बैठ गए हैं…
अजीत: दारू नहीं है, शैम्पेन है। मेहनत की कमाई का है। तुम बाप जनम में अफोर्ड नहीं कर पाओगे। किसी बड़े वामपंथी के पास जाओगे तो हो सकता है सूँघने या देखने दे दे, तुम्हारी औकात उतनी ही है। पूरा जीवन साला ‘ऐ कामरेड, दो रूपया दीजिए न, एक बीयर हो जाएगा’ कह के जेएनयू में भीख माँगने में बीता, और बात करते हैं शैम्पेन की… और ये ‘टाइम’ का क्या करोगे तुम? हाथरस जाना है क्या तुमको भी? तुम्हारे भाई-बंधु तो आग लगाने की तैयारी में हैं, जाओ तुम भी… अच्छा, पहला सवाल दोगलेपन पर है। याद है तुम ललुआ का पैर में गिर गए थे दाँत बिदोर के? कि भूल गए? और वही राजद वाला तुम्हारे खिलाफ चुनाव में कैंडिडेट उतार दिया था? नहीं तो तुम्हारी हार इतने बुरे तरीके से नहीं होती। एक और बात याद है, चंद्रशेखर वाली? कॉमरेड चंद्रशेखर? पता है मेरे ही स्कूल के थे, उनको लालू पार्टी के ही काल में पार्टी के ही नेता ने सरेआम गोली से छलनी कर दिया था। फिर ये बताओ कन्हैबा, लाज नहीं लगा था ललुआ के पैर पर गिरने में? वो भी छोड़ो, इस बार तो गठबंधन में आ गए हैं वामपंथ वाले। तुम लोगों का सही में कुछ ईमान-जमीर जैसा कुछ है कि सब बेच कर बीड़ी पी गए? लाज नहीं लगता है आईना देखते हो तो?
कन्हैबा: देखिए राजनीति में कोई परमानेंट दोस्त या दुश्मन नहीं होता… कॉमरेड चन्द्रशेखर वाली बात तो पुरानी हो गई। कब तक वही बात ले कर हम लोग अलग-अलग बिखरे रहेंगे। समय है कि सेकुलर ताकतों को एक साथ…
अजीत: ऐऽऽऽ इधर देखो… ऐसा लप्पड़ मारेंगे न कि कनपट्टी लाल हो जाएगा! सेकुलर ताकतें? पूरा जीवन साला हिन्दू-मुस्लिम, यादव-मुस्लिम, दलितों की बात कर के आंदोलन के नाम पर उन्हीं गरीबों की हत्या करवाने में लगे रहे, और बात कर रहे हैं सेकुलर ताकतों का। दोबारा मत बोलना नहीं तो स्क्रीन से बाहर निकल कर चमेटा मारेंगे।
कन्हैबा: अरे! राजनीति में और क्या कहें? कह दें कि हम लोग बिक गए हैं, विचारधारा के नाम पर हमें कोई पूछता नहीं, न ही हम विचारधारा जैसी कोई बात मानते हैं? ऐसे थोड़े होता है। सब कुछ देखना पड़ता है भाई, वरना हम लोगों को, जब तक कहीं सैनिकों को न मार दें, सरकारी कर्मियों को माइन से न उड़ा दें, कहीं केरल माँगे आजादी न कहें, कहीं दिल्ली में दंगा न करवाएँ, तब तक हमको पूछता ही कौन है? हम लोगों से ज्यादा पॉपुलर और वामपंथी तो साले कॉमेडियन हो गए हैं! …ये वाला पार्ट कटवा दीजिएगा भाय, आप तो समझते ही हैं।
अजीत: अरे, एकदम… बिलकुल कटवा देंगे भाई। टेंशन न लो। वैसे विचारधारा से याद आया कि उमर खालिद पर पूरे साल कुछ बयान नहीं? अरेस्ट हो गया, एक केस से छूटा, दूसरे में अरेस्ट हुआ। तुमने न तो फासीवाद कहा, न लोकतंत्र की हत्या… मतलब, भाई था यार तुम्हारा। कितने फोटो में एकदम जानेमन टाइप चिपक कर खड़ा है तुम्हारे साथ…
कन्हैबा: देखिए, उसको राजनीति करना है, हमको भी करना है। उसको ताहिर हुसैन, खालिद सैफी, सफूरा जरगर के साथ मीटिंग कर के जिल्ली दंगों वाली राजनीति करनी है, हमको बिहार का राजनीति करना है। वो अपने राह चला, हम अपने। हम अभी कुछ बोलेंगे तो बेगूसराय वाला सब मारेगा कम, दौड़ाएगा ज्यादा। लोकसभा चुनाव में तो देखे ही आप कि कैसे जिस गाँव में जाते थे, वहीं पूछता था कि भारत के टुकड़े काहे करना चाहते हो? बोला ऊ, फँस गए हम। हमको भोट भी उसी कारण लोग नहीं दिया। नया मूँछ वाला मजहबी छोड़ कर हमको वोट कोई देबे नहीं किया नहीं तो गिरिराज को तो हराइए देते।
अजीत: मतलब, अपनी छवि सुधारना चाह रहे हो कि तुम देशद्रोही नहीं हो?
कन्हैबा: और क्या! हम काहे के देशद्रोही? ‘जो भरा नहीं है भावों से, बहती जिसमें रस धार नहीं, वह हृदय नहीं है पत्थर है, जिसमें स्वदेश का प्यार नहीं’! हमको सब याद है ये सब। हम देशप्रेमी आदमी हैं। हमको तो फँसाया गया है मोदी के द्वारा, डरता है हमसे…
अजीत: फिर देखो! मोदी तुमसे काहे डरेगा? कभी सोचे हो बैठ कर?
कन्हैबा: देस के युवाओं से डरता है मोदी, हम भी युवा हैं…
अजीत: अच्छा! तुम युवा हो और मोदी तुमसे डरता है? सुनो, ऐसा है कि तुम हो बुजुर्ग आदमी जो ‘छात्र’ होने के नाम पर बहुत दिन पब्लिक के पैसे पर ऐश काटा। यहीं बीहट के चाँदनी चौक पर मोबाइल रिचार्ज का दुकान खोल लो, फिर आशिकबाजी करते रहना… बात करते हैं! बिहार चुनाव में तो घंटा टिकट नहीं मिला तुमको…
कन्हैबा: हम कौन सा टिकट माँग रहे थे। हम तो लड़ने का सोचे भी नहीं थे।
अजीत: अच्छा! दस महीने में बिहार पर जो ज्ञान देते रहे, गाँव-घर घूमते रहे, वो क्या जनेर के घास का दाम पता कर रहे थे? इतना झूठ काहे बोलते हो? इंटरनेट के युग में ये सब छुपता है? सीधे क्यों नहीं बोलते कि तुम्हारी पार्टी ने अपना भविष्य देखते हुए, राजद ने अपने लौंडों का भविष्य देखते हुए, तुम्हें लात मार कर बाहर कर दिया। राजद वाला अपने तेजू-तेजा को ‘युवा नेता’ बनाएगा कि तुमको आगे बढ़ने देगा?
कन्हैबा: अरे, हम तो एक सप्ताह पहलहिए बोल दिए थे कि हम चुनाव लड़ने की इच्छा नहीं रखते, ऐसा कोई विचार ही नहीं था।
अजीत: वामपंथी का बात, घोड़ा का पाद… चुनाव लड़ने की इच्छा नहीं रखते! सीधे बोलो कि पार्टी ने नौता दे के पत्तल खींच लिया। निर्दलीय लड़ जाओ, कौन रोक रहा है?
कन्हैबा: जिला परिसद का देखेंगे, पंचायत चुनाव का टार्गेट अब ले कर चलेंगे। हारना नहीं है, हम लड़ेंगे साथी। वो भी नहीं होगा तो जेएनयू में तो इतना है ही कि एक और पीएचडी के लिए एडमीसन मिल जाए। स्टूडेंट हैं, आदमी जीबन भर सीखता रहता है। हमारी उमर ही अभी क्या है!
अजीत: उमर का तो खैर रहने दो बौआ! ये बताओ कि लाज नहीं लगता तनिको? एक रत्ती? तनियो-मनियो? आदमी आज कल बीस-बाइस साल से कमाने लगता है, या कम से कम कमाने के लिए उपाय करता है। तुम अभी भी निर्लज्ज टाइप ‘एक और पीएचडी कर लेंगे’ की बात कर रहे हो। पुरानी पीएचडी से भारत के किस क्षेत्र का भला हो गया? बोलने-बैठने का सहूर नहीं है तुमको, तुमसे बढ़िया भाषण छठी क्लास का बच्चा देता है… तुमको नहीं लगता कि परिस्थितिवश तुम नेता बन गए, वरना तुमको आता तो घंटा कुछ नहीं है!
कन्हैबा: अरे आप संघी आदमी हैं, आपको पीएचडी कहाँ से समझ में आएगा। आप लोग तो शिक्षा के विरोध में हमेशा रहे हैं। समाज को बाँटना आप लोगों का काम रहा है। गाँधी जी भी अफ्रीका में ही काम किए थे। आप तो काले लोगों के विरोध में हमेशा रहे हैं। आप क्या जानेंगे कि अफ्रीका का क्या महत्व है।
अजीत: बेटा, संघ का कितना स्कूल चलता है पता है? संघ के किसी आदमी से मिले भी हो कि ऊपर से जो व्हाट्सएप्प ग्रुप में आता है, वही बोकर देते हो? समाज को बाँटने वालों ने कोरोना के समय में कितने करोड़ लोगों को लगातार भोजन पहुँचाया है पता करो। जब तुम्हारे वामपंथी सब घरों मों दुबक कर प्राइम टाइम कर रहे हैं, उसी समय में सेवा भारती बिना जात-मजहब देखे, लगातार सेवा में लगी हुई है। संघी होते तो आदमी होते, वामपंथी हो तो कीचड़ में मजा लेने वाले सूअर से ज्यादा कुछ भी नहीं।
कन्हैबा: फिर से सूअर बोल रहे हैं आप…
अजीत: बैल बोलेंगे तो कहोगे कि संघी है, गाली देता है। सूअर ही सूट करता है तुमको। इज्जत ही दे रहे हैं वैसे। अच्छा ये बताओ कि दिल्ली दंगे पर एकदम ही शांत हो गए…
कन्हैबा: (आईपैड में देखते हुए) दिल्ली दंगे पर क्या बोलना है। दोषियों को सजा होनी चाहिए और क्या…
अजीत: एक मिनट, एक मिनट… ये आईपैड कहाँ से आया तुम्हारे पास? कट्टा दिखा के ओवरब्रिज पर छीनमछोरी करने लगे क्या? कट्टा और वामपंथियों का तो पुराना नाता है…
कन्हैबा: अरे! अपना है। वामपंथी हैं तो कुछ भी बोलिएगा क्या?
अजीत: वाह! बाप मरे अन्हार में, बेटा पावरहाउस! कैपिटलिज्म का प्रोडक्ट यूज करते हुए उँगली गली नहीं तुम्हारी? दिन-रात तो गरियाते रहते हो कॉरपोरेट को, अमेरिका को लेकिन सामान जो है सो चकाचक वही वाला यूज करना है। तब फिर लोग गरियाता है तुमको कि ‘साले वामपंथी, वुडलैंड का जूता पहनते हैं, रिक्शा पर सर्वहारा से खिंचवाते हैं खुद को, कम पैसे देते हैं उसको, और फिर कमरे पर जा कर रिक्शावाले की व्यथा पर कविता करते हैं’ तब तुम्हारा लहर जाता है भक्क से…
कन्हैबा: तो क्या रिक्शा वाले का जीवन नहीं है! संघी लोग तो शुरु से ही गरीब विरोधी रहा है। रिक्शे पर बैठ कर चार रूपया ही तो देते हैं उसको…
अजीत: ‘चार ही रुपया देते हो’ ये बोलो। बीस रूपया का चढ़ते हो और गरिया कर दस रूपया दे कर चल देते हो सहेली के साथ…
कन्हैबा: आपको सेक्स नहीं मिलता तो उसके लिए वामपंथी जिम्मेदार कैसे हो गया?
अजीत: दुखती रग पर हाथ मत रखो, मार हो जाएगा… सेक्स-वैक्स पर बात नहीं होगा यहाँ पर। मेरा शो है, हम जो बोलेंगे उसी पर बात होगा… (रुक कर) यार तुम सेक्स का बात गलत कर दिए… पर्सनल नहीं होना चाहिए। क्या बताएँ यार तुमको… दस रुपया के नोट पर ‘आइ सभ यू एक्स’ लिख कर भेजे, वहीं नीचे लिखे कि इसी नोट पर लिख कर जवाब दे देना… नोट भी गया… लौंडा एक बताया कि उसी पैसे का गोलगप्पा खा गई और मैसेज पढ़ा ही नहीं… बहुत दुख है भाय जीवन में!
कन्हैबा: अरे ठीक हो जाएगा महाराज, रोइए नहीं। बताइए तो हम करवाते हैं इंतजाम… फोन करेंगे और हो जाएगा काम। हम लोगों को तो सबका एक्सेस है। ये बात तो विचारधारा से हट कर है इसलिए आपकी मदद कर देंगे।
अजीत: वीड पीते हो? वूमन आती थी जेएनयू में! वूमन आती थी? सीडी के बहाने? अनमोल रतन टाइप?
कन्हैबा: सब… सबकुछ… वामपंथ की तो पहली कक्षा में हम लोग नए लोगों को, खास कर लड़कियों को शारीरिक स्वतंत्रता के नाम पर यही सब तो कहते हैं कि ‘देह कम्यून की प्रॉपर्टी है’, ‘यह क्रांति की आग जलाए रखने में मददगार है।’ हम लोग समझाते हैं कि शरीर को इज्जत से नहीं जोड़ना चाहिए और उन्मुक्त जीवन जीना चाहिए। उनको ज्ञान इतना दे देते हैं कि पूरे समय सामाजिक व्यवस्था में दब-दब कर, डर-डर कर रहने वाली लड़कियों में अचानक से विद्रोह की आग घुस जाती है और हमारा काम बन जाता है।
अजीत: वाह! मोदी जी वाह! यही उगलवाने के लिए तो मैंने अपनी दुख भरी कहानी सुनाई थी तुम्हें। तुमको क्या लगता है कि हम दस रुपया के नोट पर सोनम गुप्ता बेवफा लिखने का काम करते हैं? ये बताओ, सिलिंडर कितने दिन चलता है?
कन्हैबा: यही तीन-चार दिन… मोदी यही सब तो करता है। पहले यहाँ के लोग गोबर के गोइठा से, लकड़ी के जलावन से काम करते थे। लोग जमीन से जुड़े हुए थे, ये मोदी आ कर सिलिंडर दे रहा है। आप ही बताइए कि सिलिंडर देने से भरवाएगा कितना आदमी?
अजीत: सौ में से 86 लोग भरवा रहे हैं सिलिंडर। तीन-चार लोगों के परिवार में 40-45 दिन चलता है सिलिंडर। और हाँ, जलावन का दाम जोड़ोगे तो कम ही आता है। कभी बैठ कर हिसाब करना, मोदी को गरियाना तो चलता रहेगा।
कन्हैबा: आपको कुछ पता नहीं है, दिल्ली में बैठे रहने से गाँव का पता कहाँ से चलेगा…
अजीत: तुमसे ज्यादा गाँव में रहे हैं बकलोल आदमी। तुमको अपने गाँव में भी आदमी तब पहचाना जब तुम कुख्यात होने लगे थे अपने कुकर्मों के कारण। इसलिए, ये बकैती रक्खो स्थान विशेष में…
कन्हैबा: स्थान विशेष क्या होता है? फिर कुछ अश्लील बात बोला संघी आदमी!
अजीत: स्थान विशेष का शरीर में वही महत्व है जो समुदाय विशेष का समाज में। बाकी, जोड़-घटाव कर लो। हग्गनपॉट को दिए एक इंटरव्यू में तुमने कहा कि ‘आज जो भी सिस्टम की कमियों पर सवाल उठाता है, उसे वामपंथी मान लिया जाता है, ये भी गलत है’। तो क्या तुम खुद को वामपंथी नहीं मानते? मतलब, टिकट नहीं दिया तो अब ये सब कहोगे कि ‘मैं किसी विचारधारा का चेहरा नहीं हूँ, मुद्दे की राजनीति करता हूँ?’ पूरा करियर तुम्हारा नजीब अहमद, रोहित वेमुला, अखलाक जैसों के नाम पर साम्प्रदायिकता फैलाने, दलितों के मन में जहर डालने में गया, वामपंथी पार्टी के सदस्य हो, उसके टिकट पर चुनाव लड़े और अचानक से टिकट लिस्ट में नाम न होने पर ‘मैं किसी विचारधारा का चेहरा नहीं हूँ’ पर आ गए? शास्त्रों में इसे ही…
कन्हैबा: ‘…दोगलापन कहा गया है’, यही कहोगे ना? मानते हैं इस बात को। लेकिन पार्टी ने क्या किया मेरे लिए? लाठी, जूता, चप्पल, ईंटा-पत्थल, गाली सब हम खाए, लोग हम पर पम्पीसेट का डहलका मोबिल फेंका है… किसके लिए वो सब सहे? और आज तेजस्वी जैसे लोगों से हाथ मिला लिया? क्यों? ताकि मेरे जैसा एक युवा नेता ऊपर न उठ सके?
अजीत: अरे रे रे रे… दुखती नब्ज पर हाथ रख दिया क्या?
कन्हैबा: भरे बैठे हैं, मुँह मत खुलवाइए!
अजीत: …वैसे, फिर कब दोगे… इंटरव्यू? ले तो तुम्हारी पार्टी ने ही रक्खी है!
कन्हैबा: (कुर्सी छोड़ कर उठते हुए) हमको नहीं करना है इंटरव्यू। बुला के बेइज्जत करता है। रिपब्लिक पर आया पाकिस्तानी गेस्ट बना कर रख दिया है। नै करना है ये सब। जो मन में आए लिखो।
नोट: व्यंग्य की आंचलिकता बचाए रखने के लिए कई शब्दों का उच्चारण जानबूझकर गलत ही छोड़ा गया है।