स्वामी विवेकानंद के जन्मदिवस के शुभ दिन पर ऑपइंडिया (हिन्दी) आम जनता तक खबरों का दूसरा (और लगभग गौण) पक्ष रखने के उद्देश्य से अस्तित्व में आया। लक्ष्य पूरी तरह से स्पष्ट था कि हमें इस गौण पक्ष की खाई को पाटना है, और ऐसे पाटना है कि लोगों में यह संदेश जाए कि चाटुकारिता और लैपडान्स वाली एकतरफा पत्रकारिता के मायाजाल को तोड़ने की मुहिम शुरू हो चुकी है।
इस एक साल में हमने 10,000 से ज़्यादा लेख लिखे, जिसे दो करोड़ से ज़्यादा बार पढ़ा गया। इसी बीच हमने सारे वामपंथी प्रोपेगेंडा पोर्टलों को नाकों चने चबवा दिए। जब हमने न सिर्फ विश्लेषण से, बल्कि ट्रैफिक के मामले में भी लगभग सारे हिन्दी पोर्टलों को पीछे छोड़ दिया, जो सिर्फ पोर्टल ही हैं, उनका टीवी चैनल या अखबार आदि नहीं है। यूट्यूब पर हमारे विडियो को काफी सराहा गया और पिछले नौ महीने में, जब से हम वहाँ सक्रिय हुए, एक करोड़ से ज्यादा बार हमारे विडियो को देखा गया, और लगभग छः करोड़ मिनट लोगों ने हमारे चैनल पर बिताए। फेसबुक पर हमारे कई विडियो एक मिलियन से ज़्यादा बार देखे गए हैं, और दिनों-दिन उनका औसत व्यू बढ़ता ही जा रहा है।
ये सारे आँकड़े बताते हैं कि आप सब हमारे पीछे कितनी मजबूती से खड़े हैं। बिना आपके सहयोग के, न तो ये पोर्टल चलता, न इसके लेख पढ़े जाते, न आप इसके लिंक प्रपंचियों के कमेंट में चिपकाते, न ही हर वामपंथी हमें गाली दे कर खारिज करने की कोशिश करता रहता। जब इस तरह के आक्रमण होने लगते हैं, इसका मतलब है कि किसी को दर्द हो रहा है। हमारी कोशिश है कि इस दर्द की तीव्रता बढ़ाते रहें।
हमारा लक्ष्य वामपंथी प्रोपेगेंडा को ध्वस्त करना है जो कि कैंसर बन कर इस समाज और राष्ट्र को खोखला करता रहा है। अब वो गर्त में जा रहे हैं, लेकिन हमें अपने उपचार की इंटेंसिटी कम नहीं करनी। इस जहरीले वामपंथ को कीमोथैरेपी दे कर हमें इतना कमज़ोर बनाना है कि अपने उड़ते बाल, गिरते नाखून और सूखती काया के साथ यह अपने अंत के दिन गिने।
हमने पत्रकारिता के बने-बनाए मानदंडों में से ‘पोलिटिकली करेक्ट’ होने और अपराधियों के ‘समुदाय विशेष’ के नाम पर छुपाने के प्रपंच को अलविदा कहा। ऐसा करना अत्यावश्यक था क्योंकि हमें चुनाव नहीं जीतने कि हम अपराधियों का बचाव करें। वो नेताओं का काम है, हमारा काम जो हो रहा है, जो कर रहा है, बिना मसाला लगाए, आप तक उसे उसकी विद्रूपता में पहुँचाना है। आतंकी समुदाय विशेष से है तो हम उसे ‘आतंक का मजहब नहीं होता’ के नाम पर डिफेंड नहीं करेंगे।
इस तरह की पत्रकारिता ने हमें अपनी चर्चाओं में कमज़ोर बनाया है। हमें एक तय तरीके से सोचने को विवश किया है। इसी को तोड़ना हमारी प्राथमिकता है। हम वामपंथियों की प्रायोजित भाषा की पत्रकारिता नहीं करते। हम चाशनी में शब्दों को नहीं लपेटते, जो है, कहते हैं। इसकी ज़रूरत इसलिए पड़ी क्योंकि इस मकड़जाल ने सूचनाओं और विश्लेषण को एक ही लीक पर चलने को मजबूर कर दिया था।
हमने लीक छोड़ी भी है, तोड़ी भी है। ऑपइंडिया इसी तरह की सशक्त पत्रकारिता करता रहेगा, और इस नैरेटिव को तोड़ता रहेगा जहाँ एक मजहब हमेशा पीड़ित की तरह दिखाया जाता है और दूसरा शोषक की तरह। जबकि इसके उलट इस मजहब के कई लोगों ने जो अपने विक्टिम कार्ड को भुना-भुना कर जो आतंक मचाया है, वो खुले में दिख रहा है।
हम उनके नाम लेंगे, उनके बाप का नाम लेंगे, वो कहाँ से मजहबी तालीम पाते हैं, ये भी बताएँगे। हम वामपंथियों के हर नैरेटिव पर प्रहार करेंगे, और बहुत ज़ोर से करेंगे। आप में से कई कहते हैं कि हमें इन्हें इग्नोर करना चाहिए। लेकिन हमारा मानना है कि समूल नाश ही बेहतर विकल्प है। इनके नैरेटिव के हर अक्षर, हर शब्द, हर वाक्य, हर अनुच्छेद, हर लेख, हर अध्याय और अंततः इनकी पूरी किताब को अम्लवृष्टि से जला देंगे।
पूरे साल अपना स्नेह हम तक पहुँचाने के लिए पूरी ऑपइंडिया टीम की तरफ से हम हर सदस्य की तरफ से आपको दसगुणा प्रेम लौटाते हैं। आप हमारे संबल हैं, हमारी पत्रकारिता का इंधन हैं, आप हमें चलायमान रखते हैं। उम्मीद है कि यह यात्रा चलती रहेगी, नए लीक बनाएगी, पुराने लीक तोड़ेगी।
धन्यवाद!