प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के एक बयान से मीडिया गिरोह और टुटपुँजिया चुटकुलेबाजों को लगा कि उन्हें खाद-पानी मिल गया है। हलचल तेज हो गई जैसे ही उन्होंने कहा कि बादल छाए रहने के बावजूद तय तिथि पर ही बालाकोट एयर स्ट्राइक के लिए उन्होंने आगे बढ़ने का सुझाव दिया, क्योंकि ‘बादलों के होने से हमारे विमानों को रडार से बचने में मदद मिलती।’
रडार मामलों के नवजात विशेषज्ञों ने इस विषय पर कुछ वेब पृष्ठों पर आधा-अधूरा पढ़ा और पूरा ज्ञान उड़ेल दिया कि पीएम कैसे गलत हैं। और तो और, इस विषय पर मरियम अख्तर मीर जैसे महान बुद्धिजीवी तक ने कमेंट कर के समाज को नई जानकारियाँ प्रदान कीं।
Thank God for the clear sky and no clouds so that my pet Romeo’s ears can get the clear RADAR signals ? pic.twitter.com/lbgtmIo59L
— Urmila Matondkar (@OfficialUrmila) May 13, 2019
इसी कड़ी में एक ने अमेरिका के DARPA (Defense Advanced Research Projects Agency) नामक वेबसाइट को ‘एक्जॉटिक’ यानी अजीब कह कर ज्ञान दिया।
What too much Pidiness can do to the human brain.
— Abhishek (@AbhishBanerj) May 13, 2019
This Pidi here calls DARPA an “exotic site”.
Did you notice that .mil domain name? Only the United States military uses it.
Dude… find out what DARPA is. It will blow your mind when you find out what DARPA does. Then talk. https://t.co/T3r4DwAooR
कॉन्ग्रेस पार्टी के अध्यक्ष राहुल गाँधी ने भी प्रधानमंत्री पर जमकर निशाना साधा। उन्होंने पूछा, “मोदी जी, जब भी भारत में बारिश होती है, क्या सभी एयरक्राफ्ट रडार से गायब हो जाते हैं?”
ED के सवालों से घिरे रॉबर्ट वाड्रा की पत्नी नौसिखिया प्रियंका गाँधी वाड्रा ने भी अपने भाई का साथ बखूबी दिया। उन्होंने कहा, “मोदी को लगता है कि बादलों के कारण वो भी लोगों के रडार पर नहीं आएँगे!”
इसके साथ ही, कॉन्ग्रेस पार्टी के सदस्य के साथ मीडिया संस्थान भी इस झुंड में शामिल हो गए और इस मुद्दे पर टिप्पणी करने के लिए विशेषज्ञों से राय लेने की जहमत नहीं उठाई। उन्होंने केवल चुटकुलों से ही काम चलाना उचित समझा क्योंकि यह उनके एक एकसूत्री मोदी-विरोधी राजनीतिक एजेंडे के अनुकूल था।
यह समझना कोई मुश्किल बात नहीं है कि प्रधानमंत्री के बयान पर अधिकांश कमेंट और आलोचना राजनीतिक प्रतिद्वंद्विता या घृणा से उपजी है न कि इस विषय पर जानकारी या तथ्य जुटाने से कि रडार कैसे काम करते हैं। सबने बस यह कह कर मजाक उड़ाया है कि ‘देखो मोदी कहता है कि बादलों के होने से रडार की पकड़ में जेट नहीं आएँगे।’ किसी ने यह नहीं बताया कि मोदी कैसे गलत है। बस कह दिया गया कि वो गलत है जो कि उसी एलीट मानसिकता का परिचायक है जहाँ अपनी विचारधारा को महान और दूसरों के विचारों को झुठला दिया जाता है।
अक्सर यह कहा जाता है कि भौतिक विज्ञान हमें जो सिखाता है, उसके विपरीत, ब्रह्मांड के मूल भाग इलेक्ट्रॉन, प्रोटॉन, न्यूट्रॉन और मोरोन (बेवकूफ) हैं। इसी कारण से, रडार कैसे काम करते हैं, इस बारे में विस्तार से बात करना बहुत ज़रूरी है क्योंकि पिछले कई दिनों से लगातार कुछ बेवक़ूफ़ अपनी मूर्खता को ज्ञान समझ कर नाच रहे हैं।
बालाकोट एयर स्ट्राइक एक बड़ा सैन्य अभियान था और इस तरह के आतंकवादी शिविरों पर होने वाले हमलों में कई तरह के रडार शामिल होते हैं।
हमारे लड़ाकू विमानों पर रडार
दुश्मन इलाकों में उड़ान भरने वाले किसी भी लड़ाकू विमान में यह समझने की क्षमता होनी चाहिए कि क्या यह दुश्मनों द्वारा ट्रैक कर लिया गया है और क्या इस पर कोई मिसाइल दागी गई है। चूँकि, विमान बादलों के ऊपर उड़ रहा होगा, इसलिए इसका अपना रडार जमीनी स्तर पर बादल होने पर भी काफी अच्छा काम करेगा। बालाकोट एयर स्ट्राइक के मामले में, ऐसा प्रतीत होता है कि पाकिस्तानी वायु सेना को हमारे एयरक्राफ्ट का पता भी नहीं चला (नीचे इस पर विस्तार में बात होगी)।
एक और महत्वपूर्ण बिंदु यह है कि हमारे विमान को लेजर बीम के माध्यम से लक्ष्य को ‘इलुमिनेट’ करना होगा ताकि विमान द्वारा गिराए गए बम सही लक्ष्य पर गिर सकें। वैसे ‘इलुमिनेट’ शब्द का प्रयोग थोड़ा अजीब है क्योंकि लेज़र ‘विजिबल स्पेक्ट्रम’ (जिसे हमारी आँखें देख सकें) में काम नहीं करेगा। कहने का मतलब यह है कि लेजर से चिह्नित टार्गेट बम पर लगे यंत्रों को दिखेगा, पर हमारी आँखों को नहीं।
अगर आकाश में बादल हों, तो इस स्थिति में, एयरक्राफ्ट को बादलों के बीच में कहीं थोड़ी जगह बनने का इंतजार करना पड़ेगा ताकि वो लक्ष्य को लेजर से इलुमिनेट कर सकें। इसके अलावा, यदि बादल ज़्यादा हैं, और लेजर द्वारा अभेद्य हैं, तो लक्ष्य के अक्षांश और देशांतर निर्देशांकों का उपयोग करके बमों को लक्ष्य भेदने के लिए प्रोग्राम किया जा सकता है। हाँ, ये बात भी है कि बादलों के होने से उनकी सटीकता प्रभावित होती है।
बमों पर मार्गदर्शन प्रणाली
यूँ तो बालाकोट जैसे मामलों में बमों को किसी भी रडार की आवश्यकता नहीं है, क्योंकि उनके लक्ष्य एक ही जगह पर होते हैं, हिलते नहीं, लेकिन उन्हें अंतिम बिंदु तक जाने के लिए मार्गदर्शन क्षमता की आवश्यकता होती है ताकि वे सटीक निशाना लगा सकें। एक बार जब वे बादलों से नीचे हो जाते हैं (मान लेते हैं कि बादल हैं), तब पहले से ही लेजर द्वारा इलुमिनेट किए हुए लक्ष्य, और जीपीएस (ग्लोबल पोजिशनिंग सिस्टम), या और तरीक़ों की मदद से निशाना भेदने में सफल होते हैं।
पाकिस्तानी वायु रक्षा प्रणाली के लिए रडार
हमारे लड़ाकू विमानों के विपरीत, जो ठीक से जानते हैं कि वे कहाँ हैं, और उन्हें कहाँ पहुँचना है, पाकिस्तानी वायु सेना के रडार को लगातार आकाश को स्कैन करना होगा और अनजान चीज़ों की तलाश करनी होगी। भारत सहित सभी लड़ाकू विमानों पर रडार-एब्जॉर्बर सामग्री का लेप किया जाता है। इसलिए एक लड़ाकू विमान का रडार क्रॉस-सेक्शन काफी छोटा होता है। नतीजतन, यदि आकाश में बहुत सारे बादल हैं, तो ये रडार बीम के बहुत सारे प्रतिबिंबों को जन्म देंगे और घुसपैठिए का पता लगाना अधिक कठिन बना देंगे। अतिरिक्त सूचना, जैसे उड़ान का समय, निम्न-स्तरीय क्लाउड पैच और उच्च-ऊँचाई वाले विमान के बीच अंतर करने के लिए उपयोगी होंगे। लेकिन फिर भी, बहुत ज्यादा बादलों की उपस्थिति निश्चित रूप से दुश्मन के लिए हमारे विमानों का पता लगाना कठिन बना देंगे और उनकी सुरक्षित रूप से वापसी आसान हो जाएगी।
तो संक्षेप में, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने जो कहा वह सही है, भले ही उनके आलोचकों के लिए यह पचाना थोड़ा मुश्किल हो। मीडिया गिरोह या अधिकांश विरोधियों की टिप्पणी ऐसे छद्म विशेषज्ञों की बेवकूफी का प्रमाण है। बादल विभिन्न तरीकों से रडार प्रणाली के कई पहलुओं को प्रभावित करते हैं और एक कुत्ते के साथ एक तस्वीर को ट्वीट करने से तथ्य बदलने वाला नहीं है।
यह आलेख अंग्रेज़ी के इस मूल लेख के एक हिस्से का अनुवाद है।