देश का असंवेदनशील मीडिया तंत्र किस तरह से ख़बरों को विवादास्पद बनाकर पाठकों को गुमराह करता है, इसका एक और उदाहरण सामने आया है। कई दिनों से सोशल मीडिया पर बहस चल रही थी, जिसमें कहा जा रहा था कि सरकार आठवीं कक्षा तक हिंदी भाषा को अनिवार्य करने जा रही है।
आज सुबह (जनवरी 10, 2019) प्रसिद्ध अख़बार ‘द इंडियन एक्सप्रेस’ ने अपने सभी प्रिंट और e-संस्करणों में इस ख़बर को पहले पन्ने पर प्राथमिकता के साथ छाप दिया है, जिसमें उन्होंने मानव संसाधन विकास मंत्री जावड़ेकर से ‘बातचीत’ के बाद उनके बयान छापे हैं, जिसे लेकर ट्वीटर पर इसी एक हेडलाइन के साथ लोगों ने उग्र प्रतिक्रियाएँ दी हैं।
इस ख़बर का इतना प्रचार किया गया कि मानव संसाधन विकास मंत्री प्रकाश जावड़ेकर ने आज
सुबह (जनवरी 10, 2019) ही ट्वीट कर स्पष्टीकरण देते हुए कहा है कि नवीन शिक्षा नीति को लेकर गठित कमेटी ने अपने मसौदे (ड्राफ्ट) में किसी भी भाषा को अनिवार्य करने को लेकर कोई सिफ़ारिश शामिल नहीं की हैं उन्होंने कहा कि मीडिया के एक वर्ग द्वारा फैलाई जा रही भ्रामक ख़बरों की वजह से इस स्पष्टीकरण की जरूरत पड़ी है।
The Committee on New Education Policy in its draft report has not recommended making any language compulsory. This clarification is necessitated in the wake of mischievous and misleading report in a section of the media.@narendramodi @PMOIndia
— Prakash Javadekar (@PrakashJavdekar) January 10, 2019
इस भ्रामक खबर को समाचार पत्र की कटिंग के साथ ट्वीट कर ‘बीजद’ पार्टी सांसद तथागत सत्पथी ने भी ट्वीट कर के अपनी आक्रामक प्रतिक्रिया व्यक्त की है। उन्होंने अपने ट्वीट में लिखा है, “मैं किसी भी गलत भाषा का प्रयोग नहीं करना चाहता हूँ, लेकिन मैं अपना इरादा एकदम स्पष्ट कर दूँ। जिन लोगों ने भी इस हास्यास्पद ‘नीति’ का मसौदा तैयार किया है, मैं इस नीति को उनके “बैकसाइड” में डाल देना चाहता हूँ। ये लोग सच्चे राष्ट्रद्रोही हैं। ये भारत देश को तोड़ना चाहते हैं। सभी भाषाओं के साथ एक समान व्यवहार कीजिए।”
Don’t wish to use bad language but let my intent be extremely clear. Want to shove this policy up their backsides, scumbags whosoever drafted this ridiculous ‘policy’! These are true anti nationals. They want to destroy India. Treat all languages equally. pic.twitter.com/N2ovOSO1Aa
— Office of T Satpathy (@SatpathyLive) January 10, 2019
DMK पार्टी प्रवक्ता ए सरवनन ने ‘द इंडियन एक्सप्रेस’ के वेब पेज की कटिंग को इस ख़बर के साथ ट्वीट कर के अपनी तीखी प्रतिक्रिया में सरकार को फ़ासीवादी बताया है। उन्होंने लिखा है, “यदि यह फ़ासीवादी भाजपा शासन 2019 में जारी रहा, तो वे भारत की विविधता को बर्बाद कर देंगे। हर बार जब भी सरकार इसे लागू करने की कोशिश करती है, हम इसका विरोध कर रहे हैं।” हालाँकि, केन्द्रीय मंत्री जावड़ेकर के स्पष्टीकरण को भी बाद में ए सरवनन ने रीट्वीट किया है।
मानव संसाधन एवं विकास मंत्री प्रकाश जावड़ेकर के ट्वीट करने के बाद भी ‘द इंडियन एक्सप्रेस’ ने अपनी ख़बर को ‘Update’ कर हाईलाईट कर के ट्वीट को तो जोड़ लिया, लेकिन फिर भी भ्रामक हेडलाइन को बदलने की ज़रूरत शायद नहीं समझी गई।
‘द इंडियन एक्सप्रेस’ ने ही अपनी ख़बर में दिया है कि इस नई शिक्षा नीति (NEP) पर मसौदा (ड्राफ्ट) रिपोर्ट में कुछ प्रमुख सिफ़ारिशें हैं, जिनका उद्देश्य स्कूलों में शिक्षा की ‘भारत-केंद्रित’ और ‘वैज्ञानिक’ प्रणाली को लागू करना है। समिति ने 31 दिसंबर, 2018 को अपना कार्यकाल समाप्त होने से पहले पिछले महीने अपनी रिपोर्ट मानव संसाधन विकास मंत्रालय को सौंप दी थी। सरकार को नीति के लिए अगला कदम तय करना अभी बाकी है, जिसमें इसे आगे के सुझावों और प्रतिक्रिया के लिए सार्वजनिक डोमेन में रखना भी शामिल है।
ये पहली बार नहीं है जब किसी समाचार पत्र ने गलत हेडलाइन के ज़रिए लोगों को गुमराह कर सरकार के ख़िलाफ़ उग्र होने पर मजबूर किया है। कुछ बड़े मीडिया ग्रुप्स ऐसे भी हैं जिन्होंने अक्सर अपने राजनितिक पूर्वग्रहों के कारण सरकार के ख़िलाफ़ पहले पन्ने पर बड़े अक्षरों में भड़काऊ और गलत ख़बरें छापी हैं। लेकिन पकड़े जाने पर अखबार के आख़िरी पन्नों में, बहुत ही छोटी सी जगह पर स्पष्टीकरण देकर मामले को भुला देना बेहतर समझा है। सवाल यह है कि जनता जिन बड़े नामों पर आँख मूँदकर अपनी सूचनाओं के लिए यकीन करती है, असल में वो अपने साक्ष्यों को लेकर कितने सजग, संवेदनशील और जवाबदेह हैं?
‘Journalism of courage’ ( साहस की पत्रकारिता) जैसे ध्येयवाक्य रखने वाले मीडिया समूह का इस प्रकार से भ्रामक और गुमराह करने वाली ख़बरों को पहले पन्ने पर छापना वाकई में एक साहसिक कदम माना जाना चाहिए। भाषागत विविधता भारत जैसे विशाल सांस्कृतिक संपन्नता वाले देश का एक बेहद संवेदनशील मुद्दा रहा है, और समय-समय पर उत्तर भारत और दक्षिण भारत के लोगों में हिंदी भाषा को लेकर विवाद सामने आते रहे हैं। शायद इसी बात को भुनाने और घृणा की आग को हवा देने के लिए अखबार ने इस ख़बर को प्राथमिकता भी दी होगी।