अंग्रेजी में प्रकाशित होने वाले दैनिक समाचार पत्र ‘द टेलीग्राफ’ ने हाल ही में ‘नो कन्क्लूसिव प्रूफ ऑफ राम सेतु: गवर्नमेंट इन पार्लियामेंट’ टाइटल के साथ एक रिपोर्ट प्रकाशित की। टेलीग्राफ के इस टाइटल को देखने के बाद ऐसा लगता है कि केंद्र ने भगवान श्री राम की सेना द्वारा भारत को श्रीलंका से जोड़ने वाले ऐतिहासिक पुल राम सेतु के अस्तित्व को नकार दिया है।
दरअसल, भाजपा सांसद कार्तिकेय शर्मा ने राम सेतु को लेकर संसद में मौखिक रूप से एक सवाल पूछा था। उन्होंने कहा था, वह जानना चाहते हैं कि सरकार भारत के इतिहास का वैज्ञानिक मूल्यांकन करने के लिए कोई प्रयास कर रही है। उनके इस सवाल को लेकर केंद्रीय मंत्री जितेंद्र सिंह ने जवाब दिया था।
केंद्रीय मंत्री डॉ. जितेंद्र सिंह के इसी जवाब को कोट करते हुए टेलीग्राफ ने अपनी रिपोर्ट में दावा किया है कि केंद्र सरकार ने भारत और श्रीलंका के बीच बने राम सेतु के अस्तित्व से इनकार किया है।
क्या डॉ. जितेंद्र सिंह ने राम सेतु के अस्तित्व को नकारा?
द टेलीग्राफ की हेडलाइन ने पूरी तरह से यह बताने की कोशिश की है कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में चल रही केंद्र सरकार ने राम सेतु के आस्तित्व को खारिज कर दिया है। हालाँकि, डॉ. जितेंद्र सिंह के जवाब में ऐसी कोई बात थी ही नहीं।
भाजपा सांसद कार्तिकेय शर्मा के सवाल का जवाब देते हुए डॉ. जितेंद्र सिंह ने कहा था, “मुझे यह बताते हुए खुशी हो रही है कि वास्तव में अंतरिक्ष विभाग इसमें लगा हुआ है। राम सेतु के संबंध में उनके द्वारा यहाँ पूछे गए सवाल की बात करें तो इसकी खोज को लेकर हमारी कुछ सीमाएँ हैं। इसका बड़ा कारण यह है कि इस पुल का इतिहास 18,000 साल से अधिक पुराना है और यदि आप इतिहास को देखें, तो वह पुल लगभग 56 किमी लंबा था।”
उन्होंने यह भी कहा है, “इस बारे में जो चीजें मैं संक्षेप में कहने की कोशिश कर रहा हूँ वह यह है कि वहाँ मौजूद सटीक संरचना को दर्शाना बेहद मुश्किल है। लेकिन प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से ऐसी बातें सामने आईं हैं कि वे संरचनाएँ मौजूद हैं।”
केंद्रीय मंत्री डॉ. सिंह ने आगे कहा कि उपग्रह द्वारा ली गई फोटो से यह कहा जा सकता है, “स्थान में निरंतरता की एक निश्चित मात्रा का पता चला है जिसके माध्यम से कुछ अनुमान लगाया जा सकता है।”
उन्होंने राज्यसभा में यह भी कहा है, “हाँ कुछ हद तक, अंतरिक्ष प्रौद्योगिकी (स्पेस टेक्नोलॉजी) के माध्यम से हम सेतु के टुकड़ों, द्वीपों और कुछ प्रकार के चूना पत्थर के ढेरों की खोज करने में सक्षम हुए हैं, जिन्हें निश्चित रूप से अवशेष या पुल के हिस्से नहीं कहा जा सकता।”
कुल मिलाकर देखें तो डॉ सिंह ने यह कहा है कि राम सेतु वहाँ पर मौजूद था। लेकिन, यह 18,000 वर्ष से अधिक पुराना है, इसलिए इस पुल के निर्णायक प्रमाण खोजने के लिए उपयोग किए गए साधन अब तक उपयुक्त परिणाम नहीं दे पाए हैं। डॉ जितेंद्र सिंह ने राम सेतु को खोजने में अपनी सीमाओं के बारे में बात कर रहे थे। हालाँकि, उन्होंने राम सेतु के अस्तित्व से इनकार नहीं किया है। उन्होंने यह भी कहा है कि राम सेतु 56 किमी लंबा था और यह स्थान पर संरचनाओं की निरंतरता से पूरी तरह स्पष्ट है।
एएसआई ने राम सेतु के पानी के भीतर खोज से जुड़ी परियोजना को मंजूरी दी
भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण (एएसआई) ने पिछले साल राम सेतु से जुड़े एक शोध प्रस्ताव को मंजूरी दी थी। इस परियोजना में पानी के नीचे की खोज शामिल थी, जिसमें सेतु (पुल) की उम्र और इसके निर्माण से जुड़ी जानकारी हासिल करने की कोशिश की जा रही है।
इस परियोजना को भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण के अंतर्गत काम करने वाले केंद्रीय पुरातत्व सलाहकार बोर्ड द्वारा अप्रूव किया गया था। इस परियोजना को सीएसआईआर-राष्ट्रीय समुद्र विज्ञान संस्थान, गोवा द्वारा प्रस्तुत किया गया था।
राम सेतु भारत के तमिलनाडु में पंबन द्वीप (जिसे रामेश्वरम द्वीप भी कहा जाता है) और श्रीलंका में मन्नार द्वीप के बीच शैलों की एक श्रृंखला है। भूवैज्ञानिक साक्ष्य के अनुसार, यह सेतु भारत और श्रीलंका के बीच एक प्राचीन संरचना है।