सोशल मीडिया पर बीते कुछ दिनों से ऐसे वीडियो वायरल हो रहे हैं, जिनमें देखा जा सकता है कि पंजाब के मोगा जिले में अपनी फसल बेचने के लिए अडानी समूह (Adani Group) के गोदामों के सामने किसान (Farmer) लाइन लगाए खड़े हैं। इसको लेकर कई मीडिया हाउसों ने दावा किया कि लोग सरकारी मंडियों के बजाय अडानी को अपनी फसल बेच रहे हैं, क्योंकि वहाँ फिक्स एमएसपी (MSP) पर गेहूँ की खरीद की जा रही है।
एबीपी सांझा, द खालसा टीवी, द पंजाब टीवी समेत कई अन्य मीडिया आउटलेट्स ने अडानी को फसल बेचने का दावा किया। वहीं, इंडियन एक्सप्रेस और प्रो पंजाब टीवी जैसे दूसरे मीडिया घरानों ने अपनी रिपोर्ट के लिए क्लिकबेट शीर्षक का इस्तेमाल किया। अपनी रिपोर्ट में एबीपी सांझा ने कहा कि किसान आंदोलन के दौरान किसानों ने अडानी समूह का विरोध किया था, लेकिन अब वो खुद अपना गेहूँ अडानी को ही बेच रहे हैं। एबीपी सांझा से बात करते हुए हरप्रीत सिंह नाम के एक किसान ने कहा कि अडानी के पास अपनी उपज बेचकर उन्होंने न सिर्फ समय बचाया, बल्कि 5,000 रुपए का अतिरिक्त फायदा भी हुआ।
वहीं, खालसा टीवी ने अपनी रिपोर्ट में दावा किया कि कई किसानों ने उसे बताया है कि पंजाब के मोगा और हरियाणा के कैथल में सरकारी मंडियाँ बंद हैं। इसलिए अडानी को उपज बेचने के अलावा उनके पास कोई दूसरा विकल्प नहीं है। खालसा टीवी का आरोप है कि सरकार ने ऐसी व्यवस्था की है, जिससे लोगों को मजबूरी में अडानी के पास ही जाना पड़ता है।
प्रो पंजाब टीवी ने अपनी क्लिकबेट रिपोर्ट में कहा कि किसान अडानी साइलोस को इसलिए चुन रहे हैं, क्योंकि वहाँ पर अच्छी सुविधाएँ हैं। रिपोर्ट में इस बात को भी स्पष्ट किया गया है कि ये गेहूँ अडानी नहीं खरीद रहा है, बल्कि वो केवल भारतीय खाद्य निगम की तरफ से इसका भंडारण कर रहा है। खरीद की प्रक्रिया सरकार कर रही है और इसमें अडानी समूह का कोई नियंत्रण नहीं है।
इस मामले में खास बात ये है कि प्रो पंजाब टीवी ने इस बात का उल्लेख नहीं किया कि किसान एफसीआई को अपनी उपज बेच रहे थे। हालाँकि, उस किसान ने इस बात को कबूल किया कि वह किसान विरोध में शामिल था और एक साल तक दिल्ली सीमा पर रहा। उसका आरोप लगाया है कि किसानों ने राजनीति में आकर धोखा दिया है। इसलिए उसने अपने ट्रैक्टर से किसान विरोध का झंडा हटा दिया और उपज बेचने अडानी के पास आया। उसके ट्रैक्टर पर पंजाबी में लिखा हुआ था ‘मैं किसान हूँ, आतंकवादी नहीं’। उसने रिपोर्टर को बताया कि अडानी साइलोस में बिक्री की प्रक्रिया केवल चार घंटे में ही पूरी हो गई, लेकिन दूसरे जिले की एक सरकारी मंडी में उसके जानकार को गेहूँ बेचने में 5 दिन लगे।
वहीं, पंजाब टीवी ने संयुक्त किसान मोर्चा के एक नेता की 6 मिनट का बयान चलाया, जिसमें उसने कहा कि अडानी समूह के बजाए एफसीआई को गेहूँ बेचे जाने के दावे फर्जी हैं। उसने केंद्र पर किसानों को गुमराह करने का आरोप लगाया। चैनल ने झूठ फैलाया कि केंद्र सरकार सरकारी मंडियों को बंद कर उसे निजी हाथों में देने की योजना पर काम कर रही है। उसने कहा कि किसानों को अडानी के पास अपनी उपज नहीं बेचनी चाहिए।
क्या है सच्चाई
अडानी समूह द्वारा गेहूँ की खरीद किए जाने का दावा गलत है, क्योंकि किसानों से गेहूँ की खरीद एफसीआई के द्वारा की जा रही है और उसका भंडारण अडानी के गोदामों में हो रहा है। अडानी साइलोज को भंडारण के लिए किराए पर लिया गया है और यहीं पर सभी किसान पहले की तरह ही अपनी उपज बेच रहे हैं। द इंडियन एक्सप्रेस की एक रिपोर्ट के अनुसार (जिसमें किसान अडानी समूह को गेहूँ बेच रहे हैं, यह दिखाने के लिए क्लिकबैट शीर्षक का इस्तेमाल किया गया था), ये साइलो 2007 से ही काम कर रहा है।
अडानी एग्री लॉजिस्टिक के साइलो की क्षमता 2 लाख टन है। हर बार गेहूँ के मौसम में इसे लगभग 90,000 टन गेहूँ मिलता है। इंडियन एक्सप्रेस ने मोगा में अडानी एग्री लॉजिस्टिक के क्लस्टर मैनेजर अमनदीप सिंह सोनी के हवाले से कहा, “हम एफसीआई को स्टोरेज प्लेस मुहैया करा रहे हैं और इसके बदले में सरकार अडानी ग्रुप को रेंट और हैंडलिंग चार्ज देती है। फसल की खरीद एफसीआई द्वारा ही की जाती है।”
पंजाब के मोगा स्थित एफसीआई के डिविजनल मैनेजर पंकज कुमार सिंघारिया ने ऑपइंडिया से बात करते हुए इन दावों का खंडन किया कि अडानी ग्रुप को गेहूँ बेचा जा रहा था। उन्होंने कहा, “अडानी साइलोज सिर्फ एक भंडारण प्वाइंट है और अडानी समूह की उपज के भंडारण की सुविधा प्रदान करने के अलावा खरीद में कोई भूमिका नहीं है। साइलोज गाँवों के करीब स्थित हैं, जिससे किसानों के लिए उपज बेचना आसान और किफायती हो जाता है। अडानी समूह द्वारा गेहूँ खरीदने का दावा झूठा है। एफसीआई और राज्य एजेंसियाँ अपनी जरूरत के मुताबिक खरीद कर रही हैं।”
टाइम्स ऑफ इंडिया की एक रिपोर्ट के अनुसार, अडानी साइलोस में एक बार में ही किसान अपनी फसलों को साफ कर उन्हें उतार सकते हैं। ये उनके लिए आसान होता है। क्योंकि हैंडलिंग भी अडानी साइलोस के द्वारा दिया जा रहा है, इसलिए किसानों को यह सुविधा बेहतर लग रही है। केंद्र सरकार के सुझाव के अनुसार किसानों को एमएसपी मिल रही है और 48 घंटें में इसका पैसा भी अकाउंट में आ जा रहा है।
किसान कुलविंदर सिंह के हवाले से टीओआई ने कहा, “हम स्टॉक को 2,015 रुपए प्रति क्विंटल के एमएसपी पर बेच रहे हैं। ये भ्रामक सूचनाएँ फैलाई जा रही हैं कि किसान अडानी को एमएसपी से अधिक दर पर गेहूँ बेच रहे हैं, जो कि पूरी तरह से झूठ है।” किसानों पर अडानी समूह को फसल बेचने का आरोप लगाने वालों का कहना है कि वो लोग ‘प्रदर्शन के दौरान मारे गए 700+ किसानों के बलिदान’ को भूल गए हैं।
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