एक ओर भारतीय सेना भारत-चीन सीमा पर निरंतर ही चीनी घुसपैठ का जवाब दे रही है तो वहीं भारत में मौजूद कुछ कॉन्ग्रेसी नेता और कॉन्ग्रेस समर्थक हर हाल में भारत-विरोध के नाम पर फर्जी खबरों के सहारे चीन के साथ खड़े नजर आना चाहते हैं। कॉन्ग्रेस की और से ताजा भ्रम पैंगोंग त्सो के स्वामित्व को लेकर फैलाया जा रहा है।
हालाँकि, ये कॉन्ग्रेसी नेता शायद ही यह बात जानते होंगे कि पैंगोंग त्सो झील और इसके स्वामित्व पर भारत का मजाक बनाने के चक्कर में वो अपने ही अल्प विकसित दिमाग का परिचय दे बैठे हैं। ट्विटर पर ‘बेफिटिंग फैक्ट्स’ नाम के ट्विटर अकाउंट ने कुछ ऐसे कॉन्ग्रेसी नेताओं के ट्वीट्स के स्क्रीनशॉट शेयर किए हैं, जिनमें वो यह ‘साबित’ करने का प्रयास कर रहे हैं कि पैंगोंग त्सो झील भारत नहीं बल्कि चीनी के अधिकार क्षेत्र में है।
इस ट्विटर अकाउंट ने लिखा है, “यहाँ कुछ कॉन्ग्रेसी चीन के साथ समझौते का पालन कर रहे हैं। उन्हें लगता है कि पैंगोंग त्सो भारत तक ही सीमित है, लेकिन वास्तव में पैंगोंग झील का लगभग 60% हिस्सा चीनी कब्जे वाले तिब्बत में है। हर भारतीय को यह जानना चाहिए कि कैसे इन ‘पिद्दियों’ ने झूठे प्रचार से चीन की मदद की है।”
Here are some Congressi following the MoU with China.
— Shash (@BefittingFacts) September 8, 2020
They think Pangong lake is limited to India but in reality almost 60% of Pangong Lake is in Chinese occupied Tibet. Make sure every Indian know how these Pidis helping china in propaganding falsehood.@SaralPatel @ashoswai pic.twitter.com/UfeWAuwgrX
इन स्क्रीनशॉट्स में जो कॉन्ग्रेसी नेता पैंगोंग झील पर भारत के स्वामित्व का मजाक बनाने हैं उनमें कुछ प्रमुख नाम अशोक स्वाइन, गौरव पांधी, और सरल पटेल शामिल हैं।
पैंगोंग त्सो
वास्तव में, कॉन्ग्रेस के ये नेता शायद यह तथ्य नहीं जानते हैं कि पैंगोंग झील का 45 किलोमीटर लंबा पश्चिमी भाग भारतीय नियंत्रण में है, जबकि शेष चीन के नियंत्रण में है। दोनों सेनाओं के बीच अधिकांश झड़पें झील के विवादित हिस्से में ही होती हैं। हालाँकि, इसके अलावा इस झील का कोई विशेष सामरिक महत्त्व नहीं है।
लेकिन यह झील चुशूल घाटी के मार्ग में आती है। भारत के इस पर स्वामित्व का अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि चुशूल केंद्रशासित प्रदेश लद्दाख के लेह ज़िले में समुद्र तल से 4,300 मीटर या 15,000 फीट की ऊँचाई पर स्थित एक गाँव है, जो कि चुशूल घाटी में बसा हुआ है।
13,000 फुट की ऊँचाई पर स्थित चुशूल घाटी LAC, वास्तविक नियंत्रण रेखा के पास अपनी लोकेशन और बनावट के कारण सामान जमा करने और तैनाती के लिए बेहद अहम है। वर्ष 1962 के युद्ध के दौरान यही वह स्थान था जहाँ से चीन ने अपना मुख्य आक्रमण शुरू किया था।
गत 29-30 अगस्त की रात पैंगोंग त्सो के ब्लैक टॉप पर भी चीन ने कब्ज़ा जमाने की कोशिश की थी, लेकिन भारतीय सैनिकों ने चीन के दुस्साहस को नाकाम कर दिया था और ब्लैक टॉप पर तिरंगा लहरा दिया था। सूत्रों के हवाले से बताया जा रहा है कि भारतीय सेना ने चुशूल के इलाकों में अपनी स्थिति और मजबूत कर ली है।
हालिया झड़पों में पैंगोंग त्सो के दक्षिणी किनारे पर चीनी सैनिकों की गतिविधि का भारतीय सेना ने विरोध किया। मीडिया रिपोर्ट्स के अनुसार, सेना ने चीन को आगे बढ़ने नहीं दिया और अब भारत ने इस इलाके में तैनाती और बढ़ा दी है।
इस झड़प के बावजूद, चुशूल में ब्रिगेड कमांडर लेवल की फ्लैग मीटिंग चल रही है। 15 जून की रात को गलवान घाटी में हुई हिंसक झड़प के बाद चीन बॉर्डर पर हुई यह दूसरी सबसे बड़ी घटना है।
वहीं, 7 सितंबर की रात चीनी सैनिकों ने पहले भारतीय चौकी के पास आकर फायरिंग की। इसके बाद चीनी मीडिया ने इस घटना के लिए भारत को जिम्मेदार ठहराया है। चीनी मुखपत्र ग्लोबल टाइम्स ने चीनी सेना के वेस्टर्न थियेटर कमांड के प्रवक्ता के हवाले से दावा किया है कि भारतीय सेना ने पैंगोंग त्सो के दक्षिण किनारे के पास शेनपाओं की पहाड़ी पर एलएसी पार की।