CBI बनाम CBI के झगड़े को सुप्रीम कोर्ट ने निपटा दिया है। जिस सुप्रीम कोर्ट ने पहले राकेश अस्थाना पर मुहर लगाई थी, उन्होंने ही आज आलोक वर्मा को डायरेक्टर नियुक्त किया – हालाँकि कई नियम व शर्तों के साथ। संक्षेप में सुप्रीम कोर्ट ने आलोक वर्मा को छुट्टी पर भेजे जाने के तरीके को भी गलत बताया। आलोक वर्मा को डायरेक्टर बहाल करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने निर्देश दिया कि वह तब तक किसी भी तरह के नीतिगत निर्णय नहीं ले सकते, जब तक चीफ़ जस्टिस गोगोई, प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी और नेता विपक्ष वाली उच्चाधिकार समिति द्वारा उनके संबंध में कोई निर्णय नहीं ले लिया जाए।
मोदी सरकार को बड़ा झटका – सुप्रीम कोर्ट के इस फैसले को लेकर कई पत्रकारों की त्वरित टिप्पणी यही थी।
Yet again judiciary put government in its place. SC overturns govt’s order to divest #AlokVerma of his powers and reinstates him as #CBI chief. But says Verma cannot take any policy decisions till high power committee meet #CBIvsCBI
— Tanushree Pandey (@TanushreePande) January 8, 2019
Midnight order revoked. Alok Verma Reinstated As CBI Chief By Top Court In Setback To Government https://t.co/dio7wAZvd5
— Harinder Baweja (@shammybaweja) January 8, 2019
Huge embarrassment to Modi as Supreme Court reinstates CBI Director Alok Verma https://t.co/IMVK7SUmvh
— Rifat Jawaid (@RifatJawaid) January 8, 2019
Wait for my piece in @nc24x7 https://t.co/ykOIVYkDUv
— Swati Chaturvedi (@bainjal) January 8, 2019
मीडिया जब रीढ़विहीन है, तो वह बारीकियों को नजरअंदाज़ करेगी ही। जबकि वास्तविकता में, सुप्रीम कोर्ट का फैसला कुछ भी हो लेकिन मोदी सरकार के लिए कम से कम ‘झटका’ तो नहीं है।
नीतिगत निर्णयों से विहीन कर सुप्रीम कोर्ट ने आलोक वर्मा को केवल सीबीआई डायरेक्टर के तौर पर बहाल किया है। आलोक वर्मा के नीतिगत निर्णय लेने के संबंध में चीफ़ जस्टिस गोगोई, प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी और नेता विपक्ष वाली उच्चाधिकार समिति को सुप्रीम कोर्ट ने एक सप्ताह का समय दिया है। सुप्रीम कोर्ट ने तकनीकी आधार पर आलोक वर्मा को बहाल किया है। कोर्ट ने कहा कि आलोक वर्मा को हटाए जाने के संबंध में केंद्र सरकार को चीफ़ जस्टिस, प्रधान मंत्री और नेता विपक्ष युक्त संबद्ध समिति को बताना चाहिए था।
उच्चाधिकार प्राप्त समिति आलोक वर्मा को हटाती है या रखती है – यह देखना अभी बाकी है। इसलिए अभी से यह कहना कि सुप्रीम कोर्ट का यह निर्णय सरकार के लिए झटका है, बिल्कुल गलत है। यदि वास्तव में, सरकार चाहती थी कि वर्मा कोई नीतिगत निर्णय न ले पाएं, जैसा कि कई पत्रकारों ने दावा किया है, तब तो सुप्रीम कोर्ट के फैसले ने सरकार को उसकी मुँह-माँगी इच्छा दे दी है।
हमें यह भी याद रखना चाहिए कि आलोक वर्मा 31 जनवरी 2019 को रिटायर होने वाले हैं। केवल कुछ ही हफ्तों के लिए, इस औपचारिक बहाली को ‘सरकार के लिए झटका’ बताना हद से ज्यादा हास्यास्पद है।
CBI बनाम CBI के झगड़े का दूसरा पहलू भी दिलचस्प है। जो मीडिया वर्मा पर इस तकनीकी फैसले को सरकार के लिए ‘झटका’ बता रही है, वही अस्थाना की नियुक्ति पर चुप रह जाती है। उसी मीडिया के अनुसार, मोदी सरकार ने अस्थाना को वर्मा से ज्यादा प्राथमिकता दी थी। दिसंबर 2018 में सुप्रीम कोर्ट ने CBI स्पेशल डायरेक्टर के पद पर राकेश अस्थाना की नियुक्ति को चुनौती देने वाली एक क्यूरेटिव याचिका को खारिज़ कर दिया था। अदालत ने यह फैसला प्रशांत भूषण द्वारा गैर-सरकारी संगठन कॉमन कॉज़ के लिए दायर याचिका पर दिया था। सीबीआई में आईपीएस अधिकारी की नियुक्ति पर सुप्रीम कोर्ट के नवंबर 2017 के फैसले पर पुनर्विचार करने के लिए भूषण ने यह पुनर्विचार याचिका दायर की थी। मज़ेदार यह कि उनके द्वारा इस मामले में दायर यह तीसरी याचिका थी।
सुप्रीम कोर्ट फैसले से ठीक पहले राहुल गांधी ने राकेश अस्थाना के खिलाफ आग उगल दिया था।
The PM’s blue-eyed boy, Gujarat cadre officer, of Godra SIT fame, infiltrated as No. 2 into the CBI, has now been caught taking bribes. Under this PM, the CBI is a weapon of political vendetta. An institution in terminal decline that’s at war with itself. https://t.co/Z8kx41kVxX
— Rahul Gandhi (@RahulGandhi) October 22, 2018
राकेश अस्थाना, जिसे विपक्ष पीएम मोदी की ‘आँखों का तारा’ मानता है। उनकी नियुक्ति को सुप्रीम कोर्ट द्वारा बरकरार रखना आलोक वर्मा की तुलना में ज्यादा तार्किक और व्यापक है क्योंकि वर्मा साहब की किस्मत अभी भी अधर में लटकी हुई है।
Finance Minister Arun Jaitley: The government had taken this action of sending two senior officers of the CBI on leave on the recommendation of the CVC. (File pic) pic.twitter.com/Nsqdvn9dnK
— ANI (@ANI) January 8, 2019
अस्थाना और वर्मा दोनों को छुट्टी पर भेजने में मोदी सरकार का उद्देश्य सीबीआई की सुचिता को सुनिश्चित करना था, जो दोनों के झगड़ों से तार-तार हो रहा था। साथ ही इन दोनों अधिकारियों के आरोपों की निष्पक्ष जांच सुनिश्चित करना भी सरकार का उद्देश्य था। सीवीसी ने आरोप लगाया था कि वर्मा अपने खिलाफ जांच में सहयोग नहीं कर रहे थे। वास्तविकता में, सीवीसी ने ही दोनों अधिकारियों को छुट्टी पर भेजने की सिफारिश की थी, ताकि उनके खिलाफ जाँच सुचारू रूप से संचालित हो सके। चूँकि सीवीसी ने पहले ही वर्मा के खिलाफ जाँच पूरी कर ली थी, ऐसे में उनको छुट्टी पर भेजने का उद्देश्य पूरा हो चुका था।