Tuesday, March 19, 2024
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कोरोना वैक्सीन पर प्रशांत भूषण की नई कारस्तानी: भ्रामक रिपोर्ट शेयर की, दावा- टीका लेने वालों की मृत्यु दर ज्यादा

यूके के हेल्थ डेटा का हवाला देते हुए, रिपोर्ट में दावा किया गया है कि वैक्सीन नहीं लगाने वाले लोगों की तुलना में वैक्सीन लगा चुके लोगों की डेल्टा वैरिएंट से मृत्यु दर छह गुना अधिक है।

इस्लामपरस्त वामपंथी प्रशांत भूषण एक बार फिर ट्वीट्स के जरिए कोरोना वैक्सीन पर लोगों को गुमराह कर डराने की कोशिश करते नजर आए हैं। एक्टिविस्ट वकील सोशल मीडिया पर वही चुनिंदा लेख पोस्ट करते हैं, जो कोविड-19 वैक्सीन के खिलाफ लिखे होते हैं। भले ही वे सीधे तौर पर वैक्सीन के खिलाफ कुछ नहीं कहते हैं, लेकिन इस तरह की रिपोर्ट्स को वो पोस्ट करते रहते हैं। इसमें कोई संदेह नहीं है कि वे इन पोस्ट के माध्यम से क्या कहना चाहते हैं।

वैक्सीन विरोधी दुष्प्रचार को जारी रखते हुए उन्होंने बुधवार (23 जून, 2021) को lifesitenews.com वेबसाइट की एक रिपोर्ट ट्वीट की। इसमें लिखा गया था कि जो लोग कोरोना वायरस के डेल्टा वैरिएंट से संक्रमित मिले थे, उनमें टीका नहीं लगाने वालों की तुलना में टीका लगा चुके लोगों की मृत्यु दर अधिक थी। यूके के हेल्थ डेटा का हवाला देते हुए, रिपोर्ट में दावा किया गया है कि वैक्सीन नहीं लगाने वाले लोगों की तुलना में वैक्सीन लगा चुके लोगों की डेल्टा वैरिएंट से मृत्यु दर छह गुना अधिक है।

रिपोर्ट में कहा गया है कि जिन 4,087 लोगों में डेल्टा प्लस वैरिएंट की पुष्टि हुई है, उन्होंने 14 दिन या उससे पहले कोरोना का टीका लगाया था, उनमें से 26 की मौत हो गई थी, यानी मृत्यु दर 0.00636 प्रतिशत थी। वहीं, कोरोना वायरस के डेल्टा वैरिएंट से संक्रमित पाए गए 35,521 लोगों में से किसी ने भी टीके की एक भी खुराक नहीं ली थी। उनमें से 34 की मौत हो गई थी, जिसका अर्थ है कि मृत्यु दर 0.000957% है। इससे पता चला कि टीका लगाने वाले लोगों की मृत्यु दर, टीका नहीं लगाने वाले लोगों की मृत्यु दर से 6 गुना अधिक थी। हालाँकि, रिपोर्ट पर गौर करें तो मृत्यु दर बेहद कम है, यानी 1% से भी कम।

रिपोर्ट में भ्रामक शीर्षक का इस्तेमाल

रिपोर्ट में वास्तविक डेटा का लिंक भी शामिल था, जिससे पता चलता है कि रिपोर्ट में एक भ्रामक शीर्षक का इस्तेमाल किया गया है। क्योंकि इस तरह का निष्कर्ष निकालना संभव नहीं है कि डेल्टा वैरिएंट से संक्रमित वैक्सीन लगाने वालों की अधिक मौतें हो रही हैं। दरअसल, स्वास्थ्य डेटा केवल वैक्सीन लगवाने वाले और वैक्सीन नहीं लगवाने वाले लोगों की मृत्यु का आँकड़ा देता है। इसमें आयु समूह, सह-रुग्णता (co-morbidities) आदि जैसे अन्य कारक शामिल नहीं हैं।

रिपोर्ट में दो कैटेगरी को शामिल ही नहीं किया गया

डेटा में तीन कैटेगरी में टीकाकरण करने वाले लोगों का विवरण भी था, लेकिन रिपोर्ट ने उनमें से केवल एक का इस्तेमाल किया। वहीं, दो कैटेगरी को मनमाने ढंग से छोड़ दिया गया, क्योंकि उनमें मृत्यु दर सबसे कम है। रिपोर्ट में उन लोगों की संख्या भी शामिल थी, जिन्होंने 14 दिन या उससे अधिक समय पहले वैक्सीन की दूसरी डोज ली थी। स्वास्थ्य डेटा में उन लोगों का आँकड़ा भी दिया गया है, जिन्होंने वैक्सीन की पहली खुराक 21 दिन पहले या उससे अधिक समय पहले ली थी।

जिन 4,094 लोगों ने 21 दिन से भी कम समय पहले कोरोना की पहली खुराक ली थी, उनमें से केवल 1 व्यक्ति की मौत डेल्टा वैरिएंट से हुई थी। वहीं, 9,461 लोगों में से जिन्हें 21 दिन से अधिक समय पहले पहली खुराक मिली थी, उनमें से 10 लोगों की मौत हो गई थी। इसका मतलब यह है कि जिन लोगों ने टीके की पहली खुराक ली थी, उनकी संयुक्त मृत्यु दर 0.000812% थी, जो टीका नहीं लेने वाले लोगों की दर से कम थी। जिन लोगों को कम से कम 21 दिन पहले खुराक मिली थी, उनकी मृत्यु दर 0.000244% बहुत कम है।

दो खुराक लेने के बाद यह सबसे अच्छा काम करता है

यदि हम इस डेटा की व्याख्या करें तो यह दिखाता है कि टीका लगने के 21 दिनों के भीतर लोग सबसे अधिक सुरक्षित हैं। वहीं, 21 दिनों के बाद मृत्यु दर बढ़ जाती है और दूसरी खुराक लेने के बाद यह और बढ़ जाती है। लेकिन ऐसा नहीं है कि वैक्सीन इस प्रकार से काम करती है। दरअसल, कोरोना का टीका कई दिनों के बाद काम करना शुरू कर देता है। कोविड-19 टीके की दोनों खुराक लेने के बाद यह सबसे अच्छा काम करता है। यह कई देशों में टीकों पर किए गए कई ट्रायल में साबित हुआ है।

इसलिए, यूके के स्वास्थ्य डेटा पर टीकाकरण और बिना टीकाकरण वाले लोगों के बीच कोरोना के डेल्टा वैरिएंट से हुई मौतों के तुलनात्मक अध्ययन पर भरोसा नहीं किया जा सकता है। कोविड-19 में मृत्यु कई कारकों पर निर्भर करती है और सार्थक निष्कर्ष पर आने के लिए उन सभी का विश्लेषण किया जाना चाहिए।

इससे पहले भी लोगों को कर चुके हैं गुमराह

गौरतलब है कि इससे पहले भी प्रशांत भूषण कोरोना वैक्सीन को लेकर लोगों को गुमराह कर उन्हें डराने की कोशिश कर चुके हैं। इसके लिए उन्होंने ‘इंडियन एक्सप्रेस’ की एक खबर का सहारा लिया था, जिसकी हेडिंग में लिखा था कि उत्तराखंड पुलिस के 2,000 से भी अधिक जवान कोरोना से संक्रमित हुए, जिनमें से 93% ने वैक्सीन की दोनों डोज ले रखी थी। प्रशांत ने लेख में से आँकड़ा निकाल कर अपने ट्वीट में डालते हुए लिखा था कि अप्रैल-मई में 2,382 उत्तराखंड पुलिस के जवान कोरोना संक्रमित हुए। इस दौरान ये भी ड्यूटी पर थे। साथ ही उन्होंने ये भी कॉपी पेस्ट किया कि इनमें से 2,204 पूरी तरह रिकवर हो चुके हैं, लेकिन 5 की मौत हो गई। इसके बाद उन्होंने ‘Hmm’ भी लिखा था।

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ऑपइंडिया स्टाफ़
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कार्यालय संवाददाता, ऑपइंडिया

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