Tuesday, November 5, 2024
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बकलोल गालीबाज ट्रोल स्वाति का मोदी-शाह प्रेम और ‘द वायर’ की नई कलाकारी

बकलोल ट्रोल और 'द लायर' ने सफ़ेद पिक्सलों को गंदा करते हुए कहा है कि आखिर मोदी अपनी नोटबंदी की सफलताओं और गुड गवर्नेन्स की बातों पर क्यों नहीं चुनाव लड़ रहा। फिर वही बात कि आपको मोदी की स्पीच सुन कर हृदयाघात पहुँचता है, तो उसका क़तई मतलब नहीं कि मोदी विकास की बातें नही कर रहा रैलियों में।

स्वाति चतुर्वेदी यूँ तो स्वयं को पत्रकार बताती हैं लेकिन इंटरनेट पर गाली देने, ट्रोलिंग और फेक न्यूज फैलाने में वो अपनी पीढ़ी और विचारधारा में अग्रगण्य मानी जाती हैं। इनकी विचारधारा का अंदाज़ा इस बात से लगाया जा सकता है कि इनके लेख ‘द वायर’ जैसे प्रोपेगेंडा पोर्टल पर लगातार छपते हैं।

ख़ैर, कुछ लोग वैसे होते हैं जिन्हें अचानक से दो शब्द याद आते हैं और वो सोचते हैं कि अब इन पर एक लेख लिख दिया जाए। जैसे कि सप्ताह भर पहले ‘बैंजल’ नाम के हैंडल से ट्विटर पर कुख्यात तथाकथित पत्रकार को ‘डॉग व्हिसल’ और ‘वल्चर पोलिटिक्स’ जैसे वाक्यांशों का कहीं इस्तेमाल करने की इच्छा जगी होगी तो उन्होंने दिन रात एलईडी लाइट में ईश्वरचन्द्र विद्यासागर टाइप मेहनत करके कुछ लेख जैसा लिखा, जिसे यूँ तो एक शब्द में वाहियात कहा जा सकता है, लेकिन इन छद्म-लिबरलों की क्षीण मेधा को सबके सामने लाना भी मानवता के लिए आवश्यक है, इसलिए मैं पूरा लेख लिखूँगा।

बकलोल ट्रोल दीदी ने पहले ही पैराग्राफ़ में यह साबित कर दिया कि हेडलाइन में भी वो शब्द होने चाहिए, शुरुआती पैराग्राफ़ में भी और जब लोगों को लगने लगे कि ये क्या चल रहा है लेख में, तो अंत में भी वही चार शब्द घुसा दिए जाएँ।

न तो इस ट्रोल को लोकतंत्र के कॉनसेप्ट से कोई लेना-देना है, न ही ‘द वायर’ को, क्योंकि इनके फ़ंडामेंटल्स हिले हुए हैं। लोकतंत्र में बहुमत से जब कोई चुन कर आता है, तो इसका सीधा मतलब है कि उसे ज़्यादा लोग चाहते हैं। इसलिए उसकी राजनीति पर कमेंट करना आपका हक़ है, लेकिन उसे इस तरह से दिखाना कि बाकी दुनिया ही पागल है, ये आपका अहंकार है।

बैंजल नामक ट्रोल ने प्रोपेगेंडा पोर्टल की सफ़ेद पिक्सलों को काला करते हुए लिखा है कि मोदी ने अपने पहले कार्यकाल में नेहरू को भला-बुरा कहने से शुरू किया और दूसरे कार्यकाल के लिए राजीव गाँधी को, जिनकी हत्या 21 साल पहले हो गई, ‘भ्रष्टाचारी नंबर एक’ कहा है।

इसमें मोदी ने गलत क्या कहा, यह कहने की ज़रूरत ‘द वायर’ या उसके ट्रोल ने नहीं उठाई। इन्हें लगता है कि ये जो लिखते हैं वो ब्रह्मवाक्य है। पीएम मोदी ने नेहरू को भला बुरा नहीं कहा बल्कि उसकी गलत नीतियों से देश को हुए नुकसान से अवगत कराया जिसे इरफ़ान हबीब से लेकर गुहा और रोमिला थापर जैसे कहानीकारों, यानी फ़िक्शन रायटर्स, ने इतिहास के नाम पर महिमामंडन करके हीरो की तरह दिखाया। नेहरू को ऐसे पढ़ाया गया जैसे उसके लम्बे कार्यकाल में कोई गलती थी ही नहीं।

वैसे ही, राजीव गाँधी की मृत्यु उन्हें बाकी के अपराधों से मुक्ति नहीं दे देती। इस ट्रोल ने, या इस प्रोपेगेंडा पोर्टल ने यह तो कभी नहीं लिखा ‘चौकीदार चोर है’ का नारा कैट व्हिसल पोलिटिक्स है या फिर नकली गाँधी परिवार के संस्कारों की अभिव्यक्ति। जिस व्यक्ति पर कोई आरोप तक कोर्ट ने मानने से इनकार कर दिया हो, उसे हर रैली में राफेल से लेकर जीएसटी और नोटबंदी जैसी बातों पर हत्यारा, लुटेरा और पता नहीं क्या-क्या कहा गया। तब तो मर्यादा और तथ्यों की बात इस ट्रोल और ‘द वायर’ पर नहीं दिखी!

राहुल गाँधी के जवाब को ग्रेसफुल कहने वाली ट्रोल भूल गई कि ‘चौकीदार चोर है’ में जो ग्रेस है, वो दिन में तीस बार सबको सुनाई देता है। लेकिन फिर याद आता है कि चाटुकारिता भी तो एक गुण है जो सबके पास स्वाति चतुर्वेदी वाली सहजता से नहीं आता।

इस बकलोल ने आगे लिखा है कि मोदी ने राहुल के ग्रेसफुल रिप्लाय के बाद अपना ज़हर और तेज कर दिया और राजीव गाँधी से जुड़ी बातों को लगातार उठाया। अरे ट्रोल पत्रकार मैडम, ये तो बताओ कि मोदी ने जो आरोप लगाए वो सही हैं कि गलत? ये तो बताओ कि उस पर कोर्ट का फ़ैसला और जन सामान्य में किस तरह की चर्चा है या फिर उसे बैलेंस करती रहोगी?

बैलेंस करने में भी फिर वही घमंड कि हमने जो लिख दिया वही तथ्य है। मोदी कार्यकाल के पाँच सालों को ट्रोल ने लिखा है कि वो ‘एबिसमल’ थे। उसके बाद लिखा है कि मोदी ने अपनी असफलताओं को नेहरू के नाम कर दिया। लेकिन मोदी की असफलताएँ क्या हैं, इस पर पूरे लेख में कुछ नहीं है।

मोदी की सफलताएँ इसलिए ज्यादा उभर कर सामने आती हैं क्योंकि सच में पिछली सरकारों ने सामान्य जनजीवन को खेल समझ रखा था और ग़रीबों को सिर्फ वोट के लिए इस्तेमाल किया। सड़कें और ढाँचे तो खराब होते और बनते रहते हैं, लेकिन पिछली सरकारों ने बिजली, पानी, आवास, शौचालय, जैसे मुद्दों पर क्या किया था कि आज करोड़ों लोगों के लिए मोदी को इनकी व्यवस्था में लगना पड़ा?

आखिर किस तरह की नीतियाँ रही थीं पिछली सरकारों की कि असम और बंगाल में बंग्लादेशी भरे पड़े हैं? आखिर क्या मजबूरियाँ थी पिछली सरकारों की कि जन धन के माध्यम से फायनेंशियल इन्क्लूजन के लिए खाते खोलने की ज़िम्मेदारी मोदी ने उठाई। क्योंकि खाते में पैसे जाने से चोरों को फायदा नहीं मिलता। इनकी पार्टियों के फ़ंड सूख जाते। इसलिए, इन्होंने बेशक योजनाएँ बनाईं लेकिन उन्हें वृहद् स्तर पर लागू नहीं किया।

इसलिए, ये चम्पक लेफ़्ट-लिबरल ईकोसिस्टम जितना चिल्ला ले कि मोदी ने तो कॉन्ग्रेस की योजनाओं का नाम बदल दिया, लेकिन सत्य यही है कि योजना का सिर्फ नाम ही नहीं बदला, उस पर काम भी किया, और करोड़ों ज़िंदगियों को उन छोटी सुविधाओं से छुआ, बेहतरी दी, जो साउथ और नॉर्थ ब्लॉक में बैठे लोगों के लिए नगण्य या इन्सिग्निफिकेंट थीं। आपके और हमारे लिए बिजली, पानी, छत, शौचालय सुविधा की तरह नहीं दिखती, लेकिन जिनके पास एक्सेस नहीं है, उनके लिए ये फ़र्क़ ज़मीन-आसमान का है। इसलिए मोदी तो नेहरू को भी कोसेगा, मनमोहन को भी और सोनिया को भी।

आगे बकलोल ट्रोल और ‘द लायर’ ने सफ़ेद पिक्सलों को गंदा करते हुए कहा है कि आखिर मोदी अपनी नोटबंदी की सफलताओं और गुड गवर्नेन्स की बातों पर क्यों नहीं चुनाव लड़ रहा। फिर वही बात कि आपको मोदी की स्पीच सुन कर हृदयाघात पहुँचता है, तो उसका क़तई मतलब नहीं कि मोदी विकास की बातें नही कर रहा रैलियों में। हर रैली में मोदी अपनी योजनाओं, उनसे होने वाले फ़ायदों, नोटबंदी, जीएसटी, वन रैंक वन पेंशन राष्ट्रीय सुरक्षा पर सरकार के रुख़ की ही बातें करता है। यही कारण है कि लोगों को यह सब दिखता है, लायर जैसे प्रोपेगेंडाबाजों को नहीं।

जब मोदी की बात हो तो ऐसे ट्रोल पत्रकार 2002 की बातें कैसे नहीं करेंगे! वो तो आएगा ही। वर्तमान की बातें नहीं होंगी। बॉगी में बैठे कारसेवकों को बेरहमी से जला देने वाली भीड़ का नाम नहीं लिखा जाएगा, पुलवामा के बलिदानियों को लिए ‘मारे गए’ जैसे शब्दों का इस्तेमाल होगा। बताया जाएगा कि उनकी लाशों की राजनीति हुई है। अरे बकलोल, पहले खुद तो वीरगति को प्राप्त हुए जवानों के लिए थोड़ी संवेदना तो दिखा दो। मैं जानता हूँ कि ये लोग ऐसे शब्द जानबूझकर लिखते हैं, क्योंकि आदत से मजबूर हैं। जितना राजनीतिकरण इन लोगों ने पुलवामा का यह कह कर किया है कि वो हमला हुआ ही कैसे, उतनी बार तो मोदी ने इस पर रैलियों में बात भी नहीं की होगी।

इन लिबरलों की कितनी सुलगी हुई है मोदी और योगी से उसका उदाहरण आगे बैंजल ने दिया है कि योगी जैसे एक्सट्रेमिस्ट साधु को मुख्यमंत्री बना दिया। हालाँकि, सिवाय अफ़वाहों के योगी पर एक भी केस साबित नहीं हुआ, लेकिन इस ट्रोल ने ऐसा लिखा है, और वायर ने पिक्सल आवंटित कर रखे हैं गंदे करने को लिए, तो लिखा जा रहा है, पढ़ा जा रहा है।

आगे प्रज्ञा ठाकुर को खींच लाई, जो कि एक नेचुरल प्रोग्रेशन है- मोदी से योगी, योगी से प्रज्ञा। बकलोल ट्रोल दुःखी हो गई कि ये कितनी गलत बात है कि आतंक के आरोपित को इन्होंने उम्मीदवार बनाया है। हालाँकि आरोपितों की बात करते हुए वीआईपी क्षेत्रों के ज़मानती सांसदों और ख़ानदानी घोटालेबाज़ों के नाम लेना स्वाति जी भूल गईं। ऐसे समयों पर वामपंथी पत्रकारों से स्मृतिदोष हो ही जाता है। ये मानसिक डिफॉर्मिटी है, जो छद्म लिबरलों में नेचुरली दिखता है।

योगी आदित्यनाथ द्वारा मोदी की सेना पर बयान जारी करने के बाद भी उसे ऐसे दिखाना कि भारतीय सेना मोदी की बपौती सेना थी, योगी ने वही बोला था, दिखाता है कि जब पहले से ही मन बना लिया हो कि क्या साबित करना है, फिर QED पन्ने के नीचे में लिख कर, नीचे से ऊपर की ओर बढ़ा जाता है।

और अंत में, जब इतनी बातें हो गईं तो स्वाति जी के गुप्त सूत्रों ने उन्हें एक ग़ज़ब की जानकारी दे दी, जो शायद मोदी और शाह को भी न पता हो। स्वाति जी लिखती हैं कि मोदी और शाह ने RSS को कह दिया है कि जब भाजपा सत्ता में वापसी करेगी तो संविधान में बदलाव किए जाएँगे ताकि भारतीय बहुसंख्यक आबादी के भावों को प्रधानता मिले और ‘सेकुलरिज्म’ पर टैक्स लगाया जाएगा।

कुछ दिनों पहले ऐसे ही इनके ईकोसिस्टम ने यह बात फैलाई थी कि मोदी चुनाव ही बंद करवा देगा। वो फर्जीवाड़ा चल नहीं पाया। हर दिन आपातकाल लाने वाले इस गिरोह और पत्रकारिता ताकि समुदाय विशेष, पाक अकुपाइड पत्रकारों का नया प्रपंच है कि संविधान को ही बदल दिया जाएगा। ये इनका पुराना हथियार है कि लोगों में डर फैलाओ यह कह कर कि मोदी डर फैला रहा है। वस्तुतः, लोगों को हर रात डराने का काम इनका गैंग करता रहा है।

लोग हैं कि राज्यों में भाजपा की सरकार को चुनते जा रहे हैं। फिर, आने वाले दिनों में आप इस तरह की हेडलाइन पढ़ेंगे जिसमें भारतीय जनता को ही ये लोग गरियाते मिलेंगे कि ये लोग कितने मूर्ख हैं जिन्होंने मोदी को दोबारा सत्ता दे दी।

जो बकलोल है, जो ट्रोल है, उसकी बातों को तो गंभीरता से नहीं लेना चाहिए, लेकिन ‘द वायर’ के प्रोपेगेंडा पर लगाम ज़रूरी है। मुझे अच्छा लगा कि इस गालीबाज ट्रोल बैंजल को कहीं न कहीं यह आशा तो है कि मोदी वापस आएगा, और अगर इसे राजनीति का थोड़ा भी ज्ञान है तो यह भी पता होगा कि संविधान में बदलाव के लिए कितनी संख्या चाहिए। इस कारण से फ़िलहाल तो इनके मुँह में घी-शक्कर।

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अजीत भारती
अजीत भारती
पूर्व सम्पादक (फ़रवरी 2021 तक), ऑपइंडिया हिन्दी

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