बहुत समय पहले की बात है। तब सिर्फ पत्थर ही पत्थर हुआ करता था। लोग पत्थर खाते थे, पत्थर ही पहनते थे। पूरी मानव जाति तब पत्थरों के इस अहसानी बोझ के तले दबे हुई थी। ऐसे में एक युग पुरुष का जन्म हुआ। वो देखने में ही ‘कुछ अलग’ लगता था। उसकी माँ बड़ी खुश हुई। गोद में उठाया। लेकिन यह क्या! बच्चे ने माँ का आंचल पकड़ने के बजाय अपना पंजा दिखाया। और जोर से बोला – कॉन्ग्रेस।
जी हाँ। कॉन्ग्रेस बोला। एक दिन के सामान्य बच्चे को जहाँ माँ के दूध के अलावा कुछ दिखता नहीं, वहीं उसने हाथ उठाकर पंजा भी लहराया और कॉन्ग्रेस भी बोला। वो बच्चा ‘अलग’ था। पूरी धरती पर किसी ने कॉन्ग्रेस शब्द नहीं सुना था। लेकिन उसने कहा… क्योंकि वो अलग था। जैसे-जैसे वो बड़ा होता गया, उसने पत्थरों का नामो-निशां मिटा दिया। उसके जादू से सबके पास थाली भर खाना और थान भर कपड़े हो गए। लोग उसके दीवाने हो गए। फिर एक दिन ऐसा आया कि उसने सबसे कॉन्ग्रेस का जयकारा लगवा दिया।
वो ‘कुछ अलग’ था। इसलिए उसकी पीढ़ियाँ भी दिखने में अलग लगने लगीं। इकलौती बेटी तो खैर इतनी अलग दिखीं कि लोग उनके ऑरिजनल नाम इंदिरा को कम जबकि दुर्गा से ज्यादा जानने लगे। और यह शायद कइयों को (खासकर ‘भक्तों’ को) बुरा लग सकता है लेकिन जहानाबाद स्थित राष्ट्रीय युद्ध म्यूजियम (शाही दवाखाना के पीछे) में इस बात के पुख्ता सबूत हैं कि साल 71 की लड़ाई में बुरी तरह हारती भारतीय सेना का साथ देने अगर खुद ‘इंदिरा द दुर्गा’ भाला-कटार-तलवार लेकर नहीं जातीं तो आज बांग्लादेश नहीं होता। यही कारण है कि मुस्लिम राष्ट्र बांग्लादेश में 1008 मीटर की सबसे ऊँची मूर्ति ‘इंदिरा द दुर्गा’ की ही है। हर साल वहाँ जगराता होता है और कॉन्ग्रेस के लोग 1008 बार दण्ड देते हुए वहाँ जयकारा लगाते हैं।
वक्त गुजरा। ‘इंदिरा द दुर्गा’ को दो बेटे हुए – बेटे क्या, समझो साक्षात् PM के दर्शन। एक भले ही PM न बन पाया लेकिन उसके आगे ‘बड़े-से-बड़ा’ भी दुम दबाए खड़ा रहता था। दूसरा जो किसी विमान कंपनी में ड्राइवर (अंग्रेजी में पता नहीं लोग उसको पायलट काहे बोलते हैं) थे, वो चूँकि दिखते ही PM जैसे थे, इसलिए PM बने भी। उन्होंने देश को कम्प्यूटर दिया – खुद लाकर। कभी बैलगाड़ी से तो कभी कंधे पर रख कर। कम्प्यूटर के लिए बहुत पसीना बहाया उन्होंने। गूगल वाले भी उनके यहाँ इंटर्न थे, तब जाकर आज इतनी बड़ी कंपनी खड़ी कर पाए।
अब जमाना आया महिला सशक्तीकरण का। बरबाद होती कॉन्ग्रेस को सोनिया मैडम ने अपनी ‘धारदार हिन्दी’ से सींचा। दिखने में ये भी PM जैसी ही थी लेकिन बनीं नहीं। ‘शरद ऋतु’ ने इस महान कार्य में पंगा कर दिया था। खैर। प्रतिभा रोके से रुकती है भला! PM भले ही कोई और थे, काम सारा 10 जनपथ से ही होता था। और क्या काम हुआ साब! एयरपोर्ट से लेकर सड़क और हॉस्टल तक सब जगह इन्होंने अपने ‘नाम का डंका’ बजवा दिया।
फिर आई एक ‘काली-अंधेरी रात’… ऐसी रात जिसकी अलगे 5-10 साल तक कोई सुबह नहीं। लेकिन इन्होंने हिम्मत नहीं छोड़ी। लगे रहे। दुर्गा से दुर्गावतार का दौर चला दिया। राम हों या कृष्ण, सबकी शरण में गए।
फिलहाल भी जा रहे हैं – लेकिन अब विदेशी देवताओं के साथ। राफेल नाम के एक देवता हैं – फ्रांस में। हर दिन, हर पल उनको याद करते हैं। रा(हुल)-रा(फेल) के योग से रा(हु) का दोष कटता है, ऐसा ऋगवेद में कहा गया है। राफेल देव अभी फल देने ही वाले थे कि एक हादसा हो गया।
तकनीक की कम समझ के कारण कॉन्ग्रेस के एक ‘छुटभैये नेता’ सलमान (खान नहीं खुर्शीद) ने एक ट्वीट कर दिया। भक्त लोग उसके पीछे पड़ गए। अब सलमान भाई की बात भक्त लोग मानें भला! जबकि बात उन्होंने सही कही है, एकदम 16 आने सही। लेकिन भक्त कैसे समझें कि देश के हर एक जेट फ़ाइटर को पानी के पाइप से राहुल खुद धोते थे और प्रियंका उनमें तेल भरा करती थीं। तब कहीं जाकर उस फाइटर प्लेन से F16 को मार गिराने में सफलता मिली। वरना ऐसा करना असंभव है, असंभव। समझने और कॉन्ग्रेस के आगे सिर झुकाने के बजाय उल्टे लोगबाग सलमान भाई अंड-बंड बोलने लगे।
Many kudos for Wing Commander abhi Varthaman the face of India’s resistance to enemy aggression. Great poise and confidence in face of adversity. We are proud that he received his wings in 2004 and matured as fighter pilot during UPA
— Salman Khurshid (@salman7khurshid) March 2, 2019
याद रखिए, इस देश में जो भी हुआ वो कॉन्ग्रेस ने ही किया है। वरना आज भी सिर्फ पत्थर ही पत्थर होता। हम पत्थर खाते और पत्थर ही बाहर भी आता!
अभिनंदन पैदा इंदिरा जी के कार्यकाल में हुए थे। इसका भी क्रेडिट लेना छूट गया। https://t.co/lQGtM3F0in
— Prabhash Jha/प्रभाष झा (@PrabhashJha_NBT) March 2, 2019