केंद्र की मोदी सरकार ने बड़ा कदम उठाते हुए 250 वर्षों से चली आ रही अंग्रेजों के समय की रक्षा भूमि नीति में बदलाव करते हुए नये नियमों को मंजूरी दी है। नया नियम सार्वजनिक परियोजनाओं व अन्य गैर-सैन्य गतिविधियों के लिए सशस्त्र बलों से खरीदी गई भूमि के बदले में उनके लिए समान मूल्य के बुनियादी ढाँचे के विकास (ईवीआई) की अनुमति प्रदान की जाएगी। इस नियम के लागू होने के बाद अब रक्षा मंत्रालय की भूमि के बदले दूसरे विभाग उन्हें भवन या अन्य बुनियादी सुविधाएँ भी तैयार करके दे सकेंगे।
रक्षा मंत्रालय (MoD) के अधिकारियों ने नाम न छापने की शर्त पर कहा कि नए नियमों के तहत प्रमुख सार्वजनिक परियोजनाओं जैसे मेट्रो, सड़क, रेलवे और फ्लाईओवर के निर्माण आदि के लिए आवश्यकता के अनुसार रक्षा भूमि दी जाएगी। इसके बदले में उतनी ही कीमत की जमीन ली जाएगी या उसके बाजार मूल्य के अनुसार कीमत ली जाएगी। ऐसे आठ ईवीआई परियोजनाओं की पहचान की गई है, जिसके भूमि का आदान-प्रदान किया जा सकता है।
नए नियमों के अनुसार, छावनी क्षेत्रों में आने वाली जमीनों का मूल्य स्थानीय सैन्य प्राधिकरण की अध्यक्षता वाली एक समिति द्वारा निर्धारित किया जाएगा। वहीं, अगर जमीन छावनी के बाहर है तो उसके मूल्य का निर्धारण जिलाधिकारी द्वारा किया जाएगा।
दरअसल, पहले भूमि के बदले भूमि देने का नियम था। इसकी वजह से भूमि हस्तांतरण में काफी समय लग जाता था। हालाँकि, अब केंद्र सरकार ने रक्षा भूमि हस्तांतरण के नए नियमों को मंजूरी दे दी है, जिससे रक्षा मंत्रालय भूमि हस्तांतरण नियम से अपने संसाधनों में बढ़ोत्तरी कर सकेंगे।
रिपोर्ट्स के मुताबिक, इससे पहले ब्रिटिश शासन काल में भारत में सेना के अलावा किसी भी उद्देश्य के लिए रक्षा भूमि का इस्तेमाल करने की अनुमति नहीं थी। अंग्रेजों ने 1765 में बंगाल के बैरकपुर में पहली छावनी स्थापित की थी, तब से यह नियम लागू था।
इसके बाद अप्रैल 1801 में ईस्ट इंडिया कंपनी के गवर्नर जनरल-इन-काउंसिल ने आदेश दिया था, “किसी भी छावनी क्षेत्र के बंगले और क्वार्टर को किसी ऐसे व्यक्ति को बेचने या रहने देने की अनुमति नहीं दी जाएगी, जो सेना से संबंधित नहीं है।”
हालाँकि, इस नीति में 2021 में बदलाव किया गया, क्योंकि सरकार रक्षा भूमि सुधारों पर विचार कर रही है। वह छावनी विधेयक 2020 को अंतिम रूप देने की दिशा में भी काम कर रही है, जिसका उद्देश्य छावनी क्षेत्रों में विकास करना है।
नए नियम से रक्षा महकमे को अपने बुनियादी ढाँचों को मजबूत बनाने के लिए संसाधन मिल सकेंगे। इससे रक्षा मंत्रालय के खर्च में भी बचत होगी। साथ ही साथ भूमि हस्तांतरण का कार्य भी जल्दी हो जाएगा और विकास योजनाओं को भी गति मिलेगी।