पूर्व केंद्रीय वित्त मंत्री पी चिदंबरम से जब एक इंटरव्यू के दौरान एयरसेल-मैक्सिस घोटाले के बारे में पूछा गया तो वह बिदक गए। एडिटर्स गिल्ड के अध्यक्ष शेखर गुप्ता की वेबसाइट ‘द प्रिंट’ को दिए एक इंटरव्यू में पी चिदंबरम से जब उनके और उनके पुत्र कार्ति चिदंबरम पर चल रहे घोटालों की जाँच के सम्बन्ध में सवाल किया गया, तो उन्होंने धमकी भरे अंदाज़ में कहा:
“यह साक्षात्कार के लिए पूरी तरह अप्रासंगिक है। आप मेरे और अपने विश्वास का उल्लंघन कर रहीं हैं, भरोसे को तोड़ रहीं हैं। इसलिए मेरा सुझाव है कि साक्षात्कार को ख़त्म कर दें। अगर आपको लगता है कि आप मुझे इस सवाल से डराएँगी तो आप गलत हैं। मैं मीडिया ट्रायल चलाने की अनुमति नहीं देता। यह आपकी नियम पुस्तिका में हो सकता है कि मीडिया में ट्रायल किया जाना चाहिए।”
मीडिया की चुप्पी पर सवाल
पी चिदंबरम की इस धमकी पर मीडिया में कोई आउटरेज नहीं हुआ। बात-बात में बयान जारी कर पत्रकारों के ख़िलाफ़ किसी भी कार्रवाई की निंदा करने वाले एडिटर्स गिल्ड ने भी कोई बयान जारी नहीं की। ज्योति मल्होत्रा को धमकी भरे अंदाज़ में घुड़की देते हुए जिस तरह का व्यवहार पी चिदंबरम ने किया, ऐसा अगर किसी भाजपा के मंत्री ने किया होता तो शायद स्थिति कुछ और होती! शायद नहीं, ‘लोकतंत्र खतरे में’ और ‘मीडिया पर अंकुश’ या ‘सुपर-इमर्जेंसी’ जैसा कुछ भयंकर ट्रेंड कर गया होता ट्विटर पर।
HAHHAHAAHHA Lol. Must watch. pic.twitter.com/UGWDtXqWxJ
— Satya Paul Sabharwal (@satyasabharwal) February 12, 2019
अगर ऐसा भाजपा के किसी बड़े नेता ने किया होता, तो अब तक एडिटर्स गिल्ड ट्विटर पर बयान जारी कर चुका होता। देश में ‘मीडिया को दबाने’ की कोशिशों के ख़िलाफ़ नेतागण एकजुट हो कर बयान दे रहे होते, मीडिया की स्वतन्त्रता पर मंडरा रहे ख़तरे को लेकर अदालत में याचिका दाख़िल हो गई होती, और पत्रकारों का एक गिरोह मार्च निकाल रहा होता। ऐसा ‘सेलेक्टिव आउटरेज’ कई बार हो चुका है।
आपको याद होगा कि नरेंद्र मोदी के एक इंटरव्यू की काफ़ी चर्चा हुई थी। करण थापर को दिए इस इंटरव्यू में मोदी से बार-बार ऐसे सवाल पूछे जा रहे थे, जैसे इंटरव्यूअर उनके मुँह में उंगली डाल कर कुछ निकलवाना चाह रहा हो। बार-बार जवाब देने के बावजूद जब मोदी से इसी तरह का व्यवहार होता रहा, तो उन्होंने इंटरव्यू को विराम दे दिया। उन्हें पत्रकार की नीयत का पता चल गया, जिसका एकमात्र लक्ष्य था- मोदी से विवादित सवाल करते रहना ताकि उनके मुँह से कुछ ऐसा निकले, जिस से टीआरपी के खेल में वो अव्वल आ सकें। इतना के बाद भी मोदी ने सिर्फ इंटरव्यू ख़त्म किया था, धमकी नहीं दी थी।
नहीं जागेगा एडिटर्स गिल्ड
पी चिदंबरम वाला मामला अलग है। ‘द प्रिंट’ की राष्ट्रीय एवं सामरिक मामलों की सम्पादक ज्योति मल्होत्रा को दिए साक्षात्कार में उन्होंने घोटालों को लेकर सवाल आते ही इंटरव्यू ख़त्म करने की धमकी दी। इतना ही नहीं, उन्होंने पत्रकार पर विश्वास के उल्लंघन का आरोप भी मढ़ा। यह ऐसे नेताओं के चरित्र को दिखाता है, जिनका पूरा परिवार घोटालों में आरोपित है। चिदंबरम, उनकी पत्नी और उनके पुत्र- सभी किसी न किसी घोटाले या स्कैम में आरोपित हैं। ऐसे में, उनसे इस तरह के सवाल पूछना अप्रासंगिक कैसे हो सकता है?
एडिटर्स गिल्ड का दोहरा रवैया हम तभी देख चुके हैं जब ‘मी टू’ के दौरान उसने सिर्फ़ उन्ही पत्रकारों के ख़िलाफ़ बयान जारी किया, जो उनके गिरोह के नहीं थे। एमजे अकबर को लेकर तो बहुत कुछ कहा गया, लेकिन विनोद दुआ पर ‘पिन ड्रॉप साइलेंस’ का दामन थाम लिया गया। आपको वो समय भी याद होगा जब राजदीप सरदेसाई सहित कई पत्रकारों ने दिल्ली में मार्च निकाल कर मोदी सरकार के ख़िलाफ़ प्रदर्शन किया था। यह कैसा चौथा स्तम्भ है? यह कैसी पत्रकारिता है? यह कैसी निष्पक्षता है जहाँ आप खुले तौर पर किसी व्यक्ति या पार्टी विशेष के ख़िलाफ़ सड़कों पर उतर आते हैं?
बेइज्जती? ‘वो’ करें तो चलता है
हमें उम्मीद थी कि पी चिदंबरम का इंटरव्यू ले रहीं ज्योति मल्होत्रा तो ज़रूर आवाज उठाएँगी क्योंकि चिदंबरम ने विश्वास के उल्लंघन का आरोप भी उन्हीं पर लगाया। लेकिन अफ़सोस, ज्योति मल्होत्रा अपने ट्विटर प्रोफाइल पर चिदंबरम वाले इंटरव्यू का ही प्रचार-प्रसार करती दिखीं लेकिन इंटरव्यू के दौरान चिदंबरम के धमकी भरे लहजे में दिए गए बयानों की उनके प्रोफाइल पर कोई चर्चा तक नहीं थी। क्या पत्रकारों के उस गिरोह ने मान लिया है कि वो जिनकी पैरवी करते हैं, उनकी बेइज्जती भी बर्दाश्त करेंगे?
Says Jyoti, who said sorry multiple times and agreed to drop questions on corruption to P Chidambaram, because those questions were not agreed upon in advance https://t.co/jtTJG4vvPG
— Eminent Intellectual (@padhalikha) February 13, 2019
‘द प्रिंट’ जैसे कई न्यूज़ पोर्टल लगातार सरकारी योजनाओं से लेकर मोदी सरकार के हर एक क़दम में त्रुटियाँ निकालने में लगे रहते हैं। भाजपा के एक वार्ड पार्षद का कोई बयान भी बड़ी बहस का मुद्दा बनता है, जबकि कॉन्ग्रेस के पूर्व केंद्रीय मंत्री के विवादित बयान भी छिपा दिए जाते हैं। इसके पीछे क्या नीयत है? इसके पीछे लक्ष्य क्या है? जनता अब इनके रवैये को समझ चुकी है। इनके जीवन का एकमात्र सार यही है- ‘उनकी पैरवी करते रहो, वो बेइज्जती भी करें तो चलता है।’