कोर्ट के आदेश पर उत्तराखंड के हल्द्वानी में अतिक्रमण हटाने का काम शुरू हुआ था। इसके बाद इस्लामी कट्टरपंथियों ने पुलिस बल और निगम कर्मियों पर हमला कर दिया था। इस हमले में 300 से अधिक अधिकारी घायल हुए हैं। कट्टरपंथियों ने ना सिर्फ पुलिस पर पथराव किया, बल्कि उन पर पेट्रोल बम भी फेंके और वाहनों में आग लगा दी। इस घटना के बाद पुलिस आरोपितों की पहचान कर उनकी गिरफ्तारी में जुट गई है।
इस बीच वामपंथी, इस्लामी और लिबरल्स का रोना पीटना शुरू हो गया है। वामपंथी सिद्धार्थ वरदराजन द्वारा चलाए जा रहे प्रोपेंगेडा वेबसाइट ‘द वॉयर’ पर इस हिंसा को लेकर प्रोपेगेंडा फैलाने का काम शुरू हो गया है। इस्लामी के हमेशा पाक-साफ बताने में जुटी रहने वाली आरफा खानम शेरवानी ने हल्द्वानी हिंसा पर एक पैनल डिस्कशन का आयोजन किया गया था।
इस पैनल डिस्कशन में सरकारी जमीन पर अतिक्रमण करने वाले और फिर उसे छुड़ाने गई पुलिस पर हमला करने वाले कट्टरपंथी मुस्लिमों को निर्दोष बताने के लिए तमाम तर्क पेश किए गए। इस पैनल डिस्कशन में आरफा खानम शेरवानी के अलावा, पत्रकार त्रिलोचन भट्ट, पत्रकार उमाकांत लखेरा और वायर के ही एक और संपादक याकूत अली शामिल थे।
आरफा अपनी तरह की एक अन्य प्रोपेगेंडा वेबसाइट स्क्रॉल की खबर का हवाला देते हुए कहती हैं कि कोर्ट के ऑर्डर के बिना पुलिस-प्रशासन मस्जिद और मदरसे को तोड़ने के लिए पहुँचा था। वो कहती हैं कि इसी सांप्रदायिक आधार पर स्टेट अपनी राजनीति करना चाहता है। सांप्रदायिक उन्माद फैलाने की नापाक कोशिश की जा रही है।
वायर के ही कर्मचारी याकूत अली हल्द्वानी के स्थानीय लोगों का हवाला देते हुए कहते हैं कि लोगों का कहना था पुलिस प्रशासन चाहते तो वह स्थानीय मुस्लिमों से बात करके मामले को सुलझा सकते थे, लेकिन सीधा बुलडोजर लेकर आ जाना और कार्रवाई की शुरुआत बेहद खराब तरीके से किया गया। वहाँ महिलाओं के ऊपर लाठी चार्ज की गईं। इन सारे संवाद को वीडियो के शुरुआती 10 मिनट में सुना जा सकता है।
हालाँकि, याकूत अली और आरफा ने ये नहीं बताया कि पुलिस ने भीड़ पर लाठी चार्ज कब किया। वे एकतरफा नैरेटिव बनाने की कोशिश कर रही हैं। दरअसल, पुलिस प्रशासन जब एक अवैध मस्जिद और मदरसे को गिराने के लिए पहुँची तो वहाँ महिलाओं और नाबालिग लड़के सामने आकर पुलिस का विरोध करने लगे। इस दौरान पुलिस पर पथराव भी किया गया। इस वजह से भीड़ को तितर-बितर करने के लिए पुलिस को लाठी चार्ज करनी पड़ी।
वहीं, पत्थरबाजों के पक्ष में बैटिंग करते हुए पैनलिस्ट त्रिलोचन भट्ट कहते हैं, रासुका के तहत इन पर (मुस्लिमों पर) मुकदमा दर्ज करने की तैयारी की जा रही है। सबसे बड़ी बात ये है। चलो माना कि उन्होंने पत्थरबाजी की, लेकिन एक धार्मिक स्थल को बचाने के लिए धार्मिक भावनाओं के तहत (पथराव) कर दिया होगा। तो उन पर रासुका लगाओगे? वो आतंकवादी थोड़े ही हैं। उन्हें सीधे टारगेट किया जा रहा है।” इस बयान को वीडियो में 13वें मिनट से 13:22 तक सुना जा सकता है।
पत्रकार लखेरा का कहना है कि उकसावे की कार्रवाई राज्य सरकार और प्रशासन की ओर से की गई है और उनके बिना ये हो नहीं सकती। उन्होंने स्थानीय पुलिस प्रशासन को सस्पेंड करने की माँग तक कर डाली। लखेरा कहते हैं कि नगर निगम के उन अधिकारियों को जिन्होंने अतिक्रमण हटाने की कार्रवाई शुरू की उन्हें तत्काल सस्पेंड करना चाहिए। उनका कहना है कि सरकार अल्पसंख्यकों को निशाना बनाने के लिए माहौल बना रही है।
लखेरा अपने बयान में खुद ही साबित करते हैं कि जहाँ मुस्लिम अधिक संख्या में होते हैं, वह कानून-व्यवस्था की दृष्टि से संवेदनशील हो जाता है। वे कहते हैं, “वहाँ कोई हाइवे बन रहा था? वो तो एक संकरी सी गली है। उसमें बुलडोजर लेकर जाना और लोगों को भड़काने और माहौल को खराब करने के लिए एक ऐसे एरिया को चुना जो, पहले से ही संवेदनशील है। वहाँ माइनॉरिटीज के लोग रहते हैं।” (इसे 19वें मिनट से 19.27 तक सुना जा सकता है।
मुस्लिमों को निर्दोष साबित करते हुए इसके बाद आरफा कहती हैं, “सबसे बड़ी तो इसमें यही है कि जिनके पास आप अपील कर रहे हैं, अगर वो ही एक पार्टी हों तो उन्हीं के जरिए पूरा षडयंत्र रचा जा रहा हो तो आखिर एक आम नागरिक, एक निर्दोष मुस्लिम जाए तो जाए कहाँ?” आरफा ने धर्मांतरण विरोध कानून पर भी अपनी हताशा जाहिर की।
भट्ट आगे कहते हैं कि पहाड़ी क्षेत्रों में मुस्लिमों की आबादी बेहद कम है, इसलिए उनकी छोटी-छोटी मजारें सड़कों के किनारे मिल जाएगी। वो कहते हैं, वो मजारें भी हिंदू ही बना रहे हैं और क्यों बना रहे है, उसकी वजह ये है कि पहाड़ों में स्वास्थ्य सुविधाएँ होती नहीं हैं। वहाँ के लोग ऊपर की शक्ति में विश्वास करते हैं। कोई बीमारी हो तो कहते हैं कि तुम्हें सैयद लग गया। सैयद लग गया तो छोटी-छोटी मजार बना दी जाती हैं।” (24:50 मिनट से 25:50 मिनट तक)
इस पूरे पैनल डिस्कशन में एंकर से लेकर पैनल में शामिल होने वाले लोगों ने वहाँ के मुस्लिमों को मासूम बता दिया। इसके साथ इस हमले का सारा दोष प्रशासन और राज्य सरकार पर मढ़ दिया। चर्चा के दौरान लोगों का कहना है कि चुनाव को देखकर मुस्लिमों को उकसाया गया।