भारत की कूटनीतिक पहल से पाकिस्तान, चीन और सऊदी अरब तीनों की बेचैनी बढ़ने लगी है। बढ़ना लाज़मी भी है, आख़िर कब तक आतंक पर दोहरी नीति अपनाई जाती रहेगी? पुलवामा आत्मघाती हमले की जिम्मेदारी पाकिस्तान स्थित आतंकी संगठन जैश-ए-मोहम्मद के लेने के बावजूद भी उसका प्रमुख मौलाना मसूद अज़हर खुलेआम पाकिस्तान में वहाँ के सुरक्षा बलों के साये में घूम रहा है। पुलवामा आतंकी हमले के बाद से ही भारत ने अंतरराष्ट्रीय स्तर पर कूटनीतिक दबाव बनाने की शुरुआत कर दी थी और अब भारत को अपेक्षित सफलता मिलती नज़र आ रही है।
अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर भारत को बड़ी कूटनीतिक सफलता मिली है। संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद (UNSC) ने आतंकी संगठन जैश-ए-मोहम्मद का नाम लेते हुए पुलवामा आतंकी हमले की कड़ी निंदा की है। सुरक्षा परिषद ने अपने बयान में इसे एक जघन्य और कायराना हरकत करार दिया है। साथ ही, सुरक्षा परिषद ने कहा कि इस निंदनीय हमले के जो भी दोषी हैं, उन्हें दंड मिलना चाहिए। इसे पाकिस्तान के लिए तगड़ा झटका माना जा रहा है। सुरक्षा परिषद ने अपने बयान में कहा:
“इस घटना के अपराधियों, षडयंत्रकर्ताओं और उन्हें धन मुहैया कराने वालों को इस निंदनीय कृत्य के लिए जिम्मेदार ठहराया जाना चाहिए और उन्हें दंड मिलना चाहिए । सुरक्षा परिषद के सदस्य 14 फरवरी 2019 को जम्मू-कश्मीर में जघन्य और कायराना तरीके से हुए आत्मघाती हमले की कड़ी निंदा करते हैं जिसमें भारत के अर्धसैनिक बल के 40 जवान शहीद हो गए थे और इस हमले की जिम्मेदारी जैश-ए-मोहम्मद ने ली थी।”
ख़ास बात ये है कि संयुक्त राष्ट्र की सुरक्षा परिषद (UNSC) ने इस हमले की निंदा की है जिसका अनुमोदन करने वालों में चीन भी शामिल है। चीन लंबे समय से मसूद अज़हर को वैश्विक आतंकवादी घोषित करने की भारत के प्रस्ताव का विरोध करता आ रहा था। लेकिन इस बार चीन ने संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद में इस हमले की निंदा का विरोध नहीं करते हुए इस प्रस्ताव पर सहमति जताई। सुरक्षा परिषद द्वारा पाकिस्तानी आतंकी संगठन जैश का नाम लेना भी भारत के लिए बड़ी सफलता है क्योंकि जैश के सरगना मसूद अज़हर को सुरक्षा परिषद द्वारा प्रतिबंधित कराने की भारत की कोशिशें अब तक विफल रही हैं।
इस पूरे घटना क्रम में 1267 के प्रस्ताव की काफी चर्चा रही है जिसको लेकर इन दिनों पाकिस्तान, चीन, सऊदी अरब तीनों देश असहज हैं। क्यों? क्या है चीन के इस प्रस्ताव में शामिल होने का मतलब? आइए, इस प्रस्ताव के कौन से दूरगामी परिणाम हैं, क्यों हैं असहज़ आतंक पर दोहरी नीति अपनाने वाले देश? इन सभी विन्दुओं को विस्तार से देखते हैं।
संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद के पाँच स्थायी सदस्य हैं जो किसी भी संयुक्त राष्ट्र प्रस्ताव को वीटो कर ख़ारिज कर सकते हैं। इनमें चीन, अमेरिका, फ्रांस, ब्रिटेन और रूस शामिल हैं। पुलवामा हमले के निंदा प्रस्ताव को चीन वीटो कर सकता था लेकिन इससे यह पुनः संदेश जाता कि वह आतंकवाद के ख़िलाफ़ नहीं है। वह पाकिस्तानी आतंक को बढ़ावा दे रहा है। इसीलिए मजबूरन उसे इस प्रस्ताव को सहमित देनी पड़ी। पाकिस्तान भी इस बात से वाकिफ़ है कि चीन इस बार निंदा प्रस्ताव में वीटो नहीं कर पाएगा।
पाकिस्तान को यह भी पता है कि इस समय कोई भी देश उसका खुलकर साथ नहीं दे पाएगा। खुद को अलग-थलग पड़ता हुआ देख, सुरक्षा परिषद की बैठक से पहले ही पाकिस्तान ने 2008 मुंबई हमले के मास्टरमाइंड हाफिज सईद के संगठन जमात-उद-दावा और उसकी सिस्टर संस्था फलाह-ए-इंसानियत फाउंडेशन पर एक बार फिर प्रतिबंध लगा दिया था। हैरत की बात ये है कि खुलेआम जिम्मेदारी लेने के बावजूद पाकिस्तान ने जैश-ए -मुहम्मद के सरग़ना मौलाना मसूद अज़हर पर कोई कार्रवाई नहीं की। वहीं चीन जो अब तक सुरक्षा परिषद के आतंक से सम्बंधित लगभग हर प्रस्ताव का विरोध करता रहा है जिसमें सुरक्षा परिषद की 1267 प्रतिबंध सूची में मसूद अज़हर को वैश्विक आतंकवादी घोषित करना भी शामिल है। इस बार बैकफुट पर है।
संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद का 1267 संकल्प, 15 अक्टूबर 1999 को परिषद ने आम सहमति से अपनाया था। उस समय उस लिस्ट में तालिबान, अलकायदा और दुनिया भर में फैले आतंकवादियों और आतंकी संगठनों को प्रतिबंधित करने के लिए उन्हें सूचीबद्ध किया गया था।
इस प्रस्ताव के तहत सुरक्षा परिषद किसी आतंकवादी या आतंकी संगठन को अंतरराष्ट्रीय आतंकवादी या आतंकवादी संगठन घोषित कर सकती है और उस पर व्यापक प्रतिबंध लगा सकती है। इस सूची में नाम शामिल होते ही संयुक्त राष्ट्र के सभी देश उसे आतंकवादी या आतंकी संगठन के रूप में सत्यापित मानकर कठोर रवैया अपनाते हैं। भले ही ऐसे आतंकी या आतंकवादी संगठन दुनिया में कहीं भी स्थित क्यों न हों।
1267 के तहत संयुक्त राष्ट्र का कोई भी देश किसी आंतकवादी को वैश्विक आतंकवादी की सूची में शामिल करने का निवेदन कर सकता है, जिस पर सुरक्षा परिषद के स्थाई समिति का अनुमोदन करना जरूरी है। अगर सुरक्षा परिषद का कोई एक भी स्थाई सदस्य देश इस प्रस्ताव का वीटो करता है तो वह निवेदन पारित नहीं होगा। इससे पहले चीन भारत के इस प्रस्ताव को 2016 में वीटो कर चुका है।
भारत 1267 के तहत कई आतंकियों को वैश्विक आतंकवादी घोषित करने में सफलता प्राप्त कर चुका है। जिसका पाकिस्तान विरोध भी कर चुका है। क्योंकि ज़्यादातर आतंकियों की शरण स्थली पाकिस्तान है, इससे पाकिस्तान की वैश्विक छवि आतंक को प्रश्रय देने वाले देश के रूप में और मजबूत होती जा रही है। मुंबई हमलों में भी हाफ़िज़ सईद के शामिल होने के बावजूद वह भी पाकिस्तान में खुलेआम घूमता रहा।
वहीं चीन की नीति दिखावे के लिए भारत के साथ होने के बावजूद, पाकिस्तान समर्थक की है। चीन, भारत और पाकिस्तान के बीच होने वाले लगभग हर विवाद में पाकिस्तान का साथ देता है। ऐसें में कई बार चीन ने 1267 प्रस्तावों में पाकिस्तान का साथ दिया है। चीन और पाकिस्तान का 1267 को लेकर सहज नहीं दिखाई देना उनकी नीति में साफ नज़र आता है। चीन के लिए 1267 का विरोध अब तक भारत को अंतरराष्ट्रीय स्तर पर रोकने का एक जरिया है।
यहाँ तक की चीन खुलकर भारत की स्थायी सदस्यता का विरोध करता रहा है। इसके अलावा वह भारत के NSG (राष्ट्रीय सुरक्षा समूह) में शामिल होने पर भी खुल कर आपत्ति जताता रहा है, जबकि इस मामले में भारत को दुनिया के ज्यादातर देशों का समर्थन हासिल है।
हाल ही में पुलवामा हमले के बाद सऊदी अरब के युवराज मोहम्मद बिन सलमान ने पाकिस्तान की यात्रा की और वहाँ 20 बिलियन डॉलर का निवेश भी करने की घोषणा की। इसके अलावा दोनों देशों ने अपने संयुक्त बयान में यह कहा कि ‘संयुक्त राष्ट्र में किसी को आतंकवादी घोषित करने की प्रक्रिया का राजनीतिकरण से बचने की जरूरत है।’ इस बयान की सफाई में यह भी कहा जा रहा है कि सउदी अरब ने पाकिस्तान को खुश करने के लिए बयान दिया है। क्योंकि सऊदी अरब यमन के ख़िलाफ़ अपनी लड़ाई में पाकिस्तान का समर्थन चाहता है। हालाँकि, सऊदी अरब ने इस संयुक्त बयान में बड़ी सावधानी बरती है। उसने इस बयान में यह ध्यान रखा है कि ऐसा न लगे कि वह किसी आतंकवादी घटना के ख़िलाफ़ नहीं है।
भारत अगर इस प्रस्ताव को पारित करवाने में क़ामयाब होता है तो इससे पाकिस्तान को वैश्विक स्तर पर अलग-थलग कर, पाकिस्तान और उसकी आतंक की फैक्ट्री पर रोकथाम लगाने के लिए उठाए गए कठोर कदमों को वैश्विक समर्थन हासिल होगा।