बिहार विधानसभा चुनाव के शुरुआती रुझान सामने आ चुके हैं। लेकिन फ़िलहाल कुछ भी कहना सही नहीं होगा। समाचार चैनलों पर बहस जारी है कि कौन जीत रहा है या कौन जीत सकता है। इसी दौड़ में एक और चैनल पूरी ऊर्जा के साथ हाँफ रहा है।
चैनल का नाम है एनडीटीवी और उसकी अगुवाई कर रहे हैं देश के तथाकथित पत्रकार रबिश कुमार (कुछ लोग उन्हें भूलवश रवीश भी कहते पाए जाते हैं)। शुरुआती रुझानों में एनडीए की सीटें कम थीं तो रबिश कुमार खिलखिला रहे थे, महागठबंधन को मिली बढ़त से रबिश कुमार पूरी तरह चार्ज थे।
माहौल बदला, नतीजों में भी परिवर्तन नज़र आया तो रबिश कुमार के चेहरे की रंगत भी बदली। पहली निगाह में कोई भी दर्शक महसूस कर लेता कि पत्रकार महोदय के मुखमंडल पर उत्साह में कितनी कमी आई है।
शुरुआत में एक पड़ाव ऐसा आया, जब रुझानों में एनडीए को 73 सीटें मिली थीं और महागठबंधन को 89… ऐसे में रबिश कुमार ने इतना क्यूट डायलॉग बोला कि उनके चाहने वालों की बाँछें खिल गईं। उन्होंने कहा, “शुरुआती रुझान जो शहरों से आ रहे हैं, उनकी मानें तो नीतीश-मोदी की जोड़ी को शहर के लोगों ने रिजेक्ट कर दिया है। इससे दिखता है कि लोगों में कितना ग़ुस्सा है।”
फिर आया रुझानों का दूसरा पड़ाव… जिसके बाद ऐसा लग रहा था जैसे रबिश कुमार बिना कुछ खाए ख़बर पढ़ रहे थे। इस समय तक रुझानों में एनडीए को 112 सीटों पर बढ़त मिली थी और महागठबंधन को 113 सीटों पर। इस पर रबिश कुमार अपने मूल स्वभाव के विपरीत निष्पक्ष होकर बात करने लगे।
रबिश की खिलखिलाहट रुझानों के गड्ढे में चली गई। उन्होंने कहा, “देखिए, बिहार चुनाव में गाँवों की बहुत बड़ी भूमिका होती है, अभी वहाँ के EVM नहीं खुले हैं, जब वो खुलेंगे तो मामला साफ़ होगा।” वाकई पत्रकारिता के सारे सिद्धांतों ने ठीक यहीं पर तथाकथित निष्पक्ष पत्रकार के समक्ष दंडवत प्रणाम किया होगा!
यह तो सिर्फ एक छोटा सा उदाहरण था। इसके अलावा बिहार विधानसभा चुनावों की पूरी परिचर्चा के दौरान रबिश कुमार की गिरगिटनुमा पत्रकारिता ने कई बार रंग बदला।
चर्चा के दौरान रबिश कुमार ने बेहद व्यंग्यात्मक शैली में (जो कि उनसे होता नहीं) हें हें हें… करते हुए कहा था, “हर चुनाव भाजपा ही जीतती है।” बताइए रबिश कुमार कितने लकी हैं भारतीय जनता पार्टी के लिए!
शुरुआत में रबिश कुमार तमाम कारण गिनते नज़र आ रहे थे कि एनडीए क्यों चुनाव हार सकता है? नीतीश कुमार को जनता ने क्यों नकारा? लेकिन रुझान के बाद यही रबिश कुमार दबे मन से उन कारणों को खोजने लगे जिनके ज़रिए एनडीए और विशेष रूप से भाजपा को फायदा हुआ।
रुझान अभी तक सामने आ रहे हैं, इसलिए कयास अपनी जगह और परिणाम अपनी जगह। लेकिन इस तरह की तमाम लोकतांत्रिक प्रक्रियाओं के बीच तथाकथित पत्रकार रबिश कुमार जैसे अति योग्य लोगों के विलाप की करतल ध्वनि का आनंद कुछ और ही है।
इनके लिए विरोध धर्म, यथार्थ से कहीं ऊपर है लेकिन कुतर्क, निजी कुंठा और निरर्थक आधारों पर किए गए विरोध की उम्र कितनी ही होगी! तथाकथित पत्रकार के चेहरे की कल्पना करके तब देखिए, जब नतीजे उनकी गिरगिटनुमा समझ के दायरे से बाहर होते हैं… हें हें हें