किसान गजेंद्र की मौत पर TV शो के दौरान फूट-फूट कर रोने वाले और कपड़ों की तरह पेशा बदलने वाले बेचैनी से भरपूर पत्रकार आशुतोष जी, जो कभी केजरीवाल ‘सरजी’ एवं कंपनी में नेता हुआ करते थे, आजकल एकदम अलग किस्म की आग उगल रहे हैं। यानी अपनी वेबसाइट और ट्विटर पर एजेंडा-परस्त गिरोह के बीच सस्ती लोकप्रियता के लिए पूरे होशोहवास में ऐसा ट्वीट करते हैं, जिससे समाज में बंटवारे की खाई बढ़ती ही है लेकिन कम नहीं होती। इन्हें लगता है कि यह दलितों के आका हैं और इनकी वजह से ही गरीबों को रोटी मिल रही है।
तभी आशुतोष जी अचानक नींद से जागते हैं और फ़ौरन सीबीआई के नए निदेशक ऋषि कुमार शुक्ला को लेकर ट्वीट फेंकते हुए लिखते हैं, ”शुक्ला जी तो हो गए सीबीआई निदेशक, कभी कोई दलित होगा सीबीआई निदेशक?” पत्रकार आशुतोष जी इस बात को लेकर यह कहना चाह रहे हैं कि शुक्ला जी को सवर्ण होने के कारण ही CBI का निदेशक बनाया गया है।
मगर आशुतोष जी शायद यह भूल गए हैं कि 1983 बैच के जिस आईपीएस अधिकारी ऋषि कुमार शुक्ला को सीबीआई का नया निदेशक बनाया गया है, उनके नाम पर जिस सेलेक्शन कमेटी ने मुहर लगाई है, उसमें मुख्य न्यायाधीश रंजन गोगोई, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और नेता विपक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे भी शामिल थे। इसके बाद भी आशुतोष का किसी दलित को सीबीआई निदेशक बनाए जाने को लेकर किया गया यह ट्वीट उनकी संकीर्ण सोच को ही दर्शाता है।
शुक्ला जी तो हो गये सीबीआई निदेशक । कभी कोई दलित होगा सीबीआई निदेशक ?
— ashutosh (@ashutosh83B) February 3, 2019
सवाल उठता है कि क्या आशुतोष को नहीं लगता है कि देश के प्रथम नागरिक, यानी
राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद, जो आज तीनों सेनाओं के कमांडर हैं, भी दलित हैं? क्या यह देश में अवसरों की समानता को नहीं दर्शाता है? इसके अलावा आशुतोष जी आपको याद दिला दें कि इससे पहले भारत के 10वें राष्ट्रपति के आर नारायणन भी दलित थे।
आशुतोष जी, यह दुर्भाग्यपूर्ण है कि जिस कॉन्ग्रेस ने 60 सालों तक देश को तमाम घाव दिए हैं, आज आप उनकी हिमाकत करते हुए ऊल-जुलूल ट्वीट कर रहे हैं, जो वाकई शर्म की बात है। पत्रकार महोदय, आपको याद होना चाहिए कि कभी जिस पार्टी के ‘वॉलंटियर’ आप हुआ करते थे, उसके मुखिया जनता की सिम्पैथी और वोट बटोरने के लिए खुद को बनिया घोषित कर चुके हैं। दरअसल आप जैसे पत्रकार ही चाहते हैं कि समाज में जात-पात और भेदभाव का दायरा बढ़े, ताकि आपकी दुकान चलती रहे। यदि इस क्रांतिजीव पत्रकार की मानें तो इस देश के तमाम पदों पर किसी व्यक्ति के निर्वाचन का मापदंड उसकी योग्यता नहीं बल्कि उसकी जाति होनी चाहिए।
टुकड़े-टुकड़े दलों में आपकी चाह होना स्वाभाविक है, लेकिन मात्र चर्चा में बने रहने के लिए हर दूसरे किस्से में जाति और धर्म का बीज ढूंढकर बो देना अतार्किक है और ये आपकी कम अक्ल का परिचय है। जिस लोकतंत्र का प्रथम नागिरक दलित है, उसमें इस तरह के प्रश्न आपकी सस्ती लोकप्रियता का हथकंडा मात्र है। वैसे आपकी वेबसाइट फ़ेक न्यूज़ भी फैलाती है, ऐसा साबित हो चुका है।
पहले पीत पत्रकारिता होती थी। उसमें पत्रकार गिरते थे। लेकिन गिरने की सीमा से भी ज्यादा गिरने को पतित कहते हैं और आप कर रहे हैं पतित पत्रकारिता!