देश भर में भाजपा और कॉन्ग्रेस के समर्थक नरेंद्र मोदी और राहुल गाँधी के लिए प्रचार-प्रसार में ख्वामखा मेहनत कर रहे हैं। क्योंकि भविष्यवाणी हो चुकी है कि देश की पीएम की कुर्सी पर इस बार न तो नरेंद्र मोदी बैठेंगें और न ही आएँगे राहुल गाँधी…। ‘कामदार’ और ‘नामदार’ की कथित लड़ाई में एक ‘ईमानदार’ ने अपनी भाँजी मारते हुए इस भविष्यवाणी की घोषणा की है ।
इस अंतरिम घोषणा के बाद कई श्रद्धालुओं की आँख में उम्मीद के तारे चमकते नज़र आए है। इन श्रद्धालुओं की कतार में यूपी से बंगाल के बाद महाराष्ट्र से मध्यप्रदेश के भी कई नामी चेहरे खड़े नज़र आ सकते हैं। हालाँकि ‘ईमानदार बाबा’ केजरीवाल ने फ़िलहाल पीएम के पद के लिए अपने किसी भी श्रद्धालु का नाम नहीं लिया है। क्योंकि चुनाव के लिए अपनी पृष्ठभूमि भी तो बनानी है। लेकिन, फिर भी देश की विचलित जनता अपनी बेचैनी को मिटाने के लिए उनसे सवाल पर सवाल दागे जा रही है। साथ ही भारतीय मीडिया भी उनकी इस भविष्यवाणी को ‘बयान’ कहकर लज्जित कर रहा है।
ऐसे में मुझसे बिलकुल नहीं देखा जा रहा है कि लोग दशक की सबसे बड़ी भविष्यवाणी पर इतने सवाल खड़े कर रहे हैं। इसलिए मैं आपको उन श्रद्धालुओं के नाम बता देती हूँ जिनको राहत देने के लिए बाबा ने अपनी इंद्रिय शक्तियों का पूर्ण इस्तेमाल करते हुए भविष्यवाणी को परिणाम बताया है। लेकिन उससे पहले ये बताऊँगी कि किन पाप कर्मों की वजह से बाबा ने इन दो नास्तिकों पर अपनी कृपा नहीं बरसाई।
देखिए, मोदी का तो आप समझ सकते हैं कि, इस समय देश में कामदार व्यक्ति के नाम से पहचाने जाने वाले से हमारे ईमानदार बाबा बहुत ग़ुस्से में हैं। मोदी का लगातार देश के लिए और देश के नागरिकों के लिए काम करना, किसी को पिछले साढ़े 4 साल में हज़म हुआ है जो हमारे बाबा को हो जाएगा…पेट सफा तक की नौबत आ चुकी है साहिब..और तो क्या बोलें…।
कामदार व्यक्ति का लगातार काम करना देश की तस्वीर बदल सकता है, नौजवानों को रोज़गार दिला सकता, घर-घर को रौशन कर सकता है, महिलाओं को सशक्त बना सकता है ऐसे में फिर बाबाओं की भविष्यवाणियों को कौन पूछेगा। बाबाओं का ही धंधा ख़तरे में आ जाएगा। तो इसलिए मोदी का पत्ता उन्होंने पहले ही साफ़ कर दिया है। न दोबारा आएँगे न देश बाबाओं की भविष्यवाणी से ऊपर उठ पाएगा।
अब बात राहुल गाँधी की, मोदी ने तो चलिए देशहित में काम किया तो केजरीवाल बाबा की नाराज़गी ठीक है। लेकिन राहुल गाँधी पर बहुत- बहुत-बहुत सोचने के बाद मुझे ऐसा लगा कि हमारे बाबा को आने वाले समय में कॉम्पीटिशन की वजह से ख़तरा हो सकता है। क्योंकि देश को सोने की चिड़िया दोबारा बनाने के लिए केजरीवाल बाबा सिर्फ़ बात करते हैं जबकि राहुल बाबा पर तो आलू से सोना निकालने की मशीन है।
ऐसे में ज़ाहिर है अपने प्रतिद्वंदी से ख़तरा तो महसूस होता ही है। इसलिए बहुत सोच विचार के बाद, बाबा की घोषणा है- न मोदी होंगे पीएम और ही राहुल…तो कौम होगा पीएम…ममता या मायावती, अखिलेश या फिर तेजस्वी, चंद्रबाबू नायडू या शरद पवार… या हो सकता है ईमानदार बाबा ख़ुद ही अपनी दैवीय शक्तियों के बलबूते पर इस पद पर आसित हो जाएँ…
वैसे ‘बाबा’ के सब श्रद्धालुओं पर पीएम पद तक पहुँचने के लिए अपना-अपना एजेंडा है… इसलिए उन्होंने इसकी ज़मीन भी पहले से तैयार कर ही रखी है।
बाबा के श्रद्धालुओं में सबसे पहले ममता बनर्जी का नाम आता है। हाल ही में बंगाल में इनकी रैली का समर्थन भी बाबा द्वारा किया गया था। देश के पीएम के लिए उम्मीदवारों में सबसे सशक्त नाम इन्हीं का है। ममता की ख़ासियत तो पिछले दिनों देख ही ली गई। अपने ही घोटालों का सच छुपाने के लिए सीबीआई से लड़ाई कर बैठीं हैं। लोकतांत्रिक देश की सेकुलर सीएम अपने अधिकारों का भी इतना इस्तेमाल करना जानती हैं कि वो योगी आदित्यनाथ के प्लेन को अपने राज्य में नहीं उतरने देतीं। सोचिए! वैश्विक स्तर पर ममता देश का नाम कितना रौशन करेंगी।
इसके बाद दूसरा नाम मायावती का आता है। दलितों के लिए देवी बनकर भारतीय राजनीति में उभरे इस नाम ने यूपी की तस्वीर इस तरह बदली है कि अब सुप्रीम कोर्ट की फ़ाइलें सब हालातों को बयान कर रही हैं। अपने कार्यकाल में करीब 615 करोड़ रूपए मायावती ने सिर्फ़ ‘हाथी’ की मूर्तियों को बनावाने में ख़र्च किए थे। ये हाथी ही उनकी पार्टी का चुनाव चिह्न भी था। अगर एक बार मायावती पीएम के पद पर बैठती है तो सोच लीजिएगा, देश के हर कोने में शान बढ़ाने के लिए हाथी ही हाथी बनवाए जाएँगे। फिर चाहे देश के बजट में रोटी-पानी के लिए पैसा बचे या न बचे।
अब बात अखिलेश यादव की…अखिलेश यादव भी देश के पीएम पद के लिए बाबा के तमाम श्रद्धालुओं की कतार में सटीक उम्मीदवार हैं। जैसे उनके सीएम पद से हटने के बाद सरकारी आवास की खस्ता हालात के बारे में पता चला …वैसे ही पीएम पद के बाद वो देश को खस्ता करने में अपनी तरफ से पूरी कोशिश करेंगे। वैसे भी पहले जीतने के लिए वो राहुल बाबा का हाथ थाम चुके थे और अब बुआ की शरण में आ गए हैं। आगे देखिए, पीएम पद तक पहुँचने के बाद ज़िंदगी उन्हें और कितने ईमानदार लोगों का साथ दिलाएगी।
इसके बाद सबसे पढ़े लिखे नेताओं में शुमार तेजस्वी यादव, जीता-जागता उदाहरण हैं कि देश की स्थिति जिस तरह से राजनेता बनाए रखने की कोशिश कर रहे हैं, उस कोशिश को वहीं परिणाम तक पहुँचा सकते हैं। ऐसे में ज़रूरी है पीएम के पद के लिए तेजस्वी यादव का नाम जाए। क्योंकि देश में पढ़ाई से ज्यादा तवज्जो तो इंसान के बैकग्राउंड को दी जाती है। और जिनके पिताजी ख़ुद लालू प्रसाद हों…उन्हें फिर काहे बात की दिक्कत, बिना किसी क़ाबिलियत भी वो देश को गड्ढे में ले जा सकते हैं। इसलिए श्रद्धालुओं की कतार में पीएम पद के लिए एक नाम तेजस्वी का भी लिया जा सकता है।
इनके अलावा हो सकता है आने वाले समय में चंद्रबाबू नायडू, शरद पवार, फ़ारूख़ अब्दुल्लाह, आज़म ख़ान जैसे बड़े नेता भी पीएम की कुर्सी के लिए बाबा की शरण में खड़े दिखाई दें। क्योंंकि विवादित बयानों का तो दौर चला है और फिर इतनी काबिलियत वाले लोग देश के पीएम की कुर्सी को संभालना क्यों नहीं चाहेंगे। उम्र चाहे 28 की हो या फिर 78 की, जोश आज भी सबमें उतना ही हैं। और, हमारे ईमानदार बाबा को इन सबकी क़द्र है।
सबसे आख़िर में देश के सबसे बड़े समाजसेवी और अपने ईमानदार बाबा भी इस सूची के लिए सबसे सटीक नाम अपना ख़ुद का बता सकते हैं। हालाँकि उन्होंने अभी लोगों का इस दिशा में मार्गदर्शन नहीं किया है कि वो किस तरह से देश को सोने की चिड़िया बनाएँगे लेकिन वो लगातार अपनी भविष्यवाणियों से आपको इन बातों से अवगत कराते रहेंगे। आने वाले समय में भी आप उनसे जुड़े रहे ताकि चुनाव के परिणामों की घोषणा से पहले ही आपको सब जानकारी मिलती रहे। श्रद्धालुओं के नाम में आगे और भी घोषणाएँ हो सकती हैं।
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