दिल्ली विधानसभा चुनाव आखिरकार संपन्न हो चुके हैं और अरविन्द केजरीवाल एक बार फिर से मुख्यमंत्री पद की शपथ लेने जा रहे हैं। चुनाव से पहले और चुनाव के बाद ‘मुफ्त-मुफ्त’ की रेहड़ी की चर्चा में गोदी मीडिया इतनी मशगूल थी कि इस बीच एक बड़ी खबर बड़ी शालीनता से दबी रह गई। वो खबर थी, कॉन्ग्रेस प्रत्याशियों द्वारा देश की अर्थव्यवस्था में किए गए योगदान की! हालाँकि, जो हालत कॉन्ग्रेस की दिल्ली चुनाव के दौरान रही, उससे यह योगदान कम और बलिदान ज्यादा नजर आ रहा है। लेकिन फिर भी, इस बात से इंकार नहीं किया जा सकता है कि यह एक बड़ी पहल थी।
अगर देश की जनता को मनोज तिवारी और केजरीवाल पर चुटुकले बनाने से पहली फुरसत मिल गई हो, तो बता दें कि दिल्ली विधानसभा चुनाव में कॉन्ग्रेस के 66 उम्मीदवारों में से 63 की जमानत तक जब्त हो गई। इन सीटों पर कॉन्ग्रेस प्रत्याशियों को कुल वोटों के पाँच प्रतिशत से भी कम वोट मिले। दिल्ली में कॉन्ग्रेस ने 70 में से मात्र 66 सीटों पर अपने प्रत्याशी उतारे थे।
66 में से कॉन्ग्रेस के बस तीन ही ऐसे नेता हैं, जो चुनाव में अपनी जमानत जब्त ना करवा पाने में नाकामयाब रहे और इस कारण पार्टी ने उन्हें कारण बताओ नोटिस भी जारी कर दिया है। इनमें गाँधी नगर से अरविंदर सिंह लवली, बादली से देवेंद्र यादव और कस्तूरबा नगर से अभिषेक दत्त अपनी जमानत जब्त ना करवाने में विफल रहे।
सॉल्ट न्यूज़ द्वारा सत्यापित एक गुप्त सूत्र ने ऑपइंडिया तीखी मिर्ची सेल को बताया है कि कॉन्ग्रेस ने चुनाव से पहले ही एक उच्चस्तरीय ख़ुफ़िया बैठक बुलाकर अपनी-अपनी जमानत जब्त करवाने के आदेश समस्त प्रत्याशियों को दे दिए थे। दरअसल, कॉन्ग्रेस ने यह ‘नेहरुवी फैसला’ देश की अर्थव्यवस्था में अपना योगदान करने के लिए लिया था।
देश में चल रही राहुल गाँधी की लहर को देखते हुए कॉन्ग्रेस की राजमाता गाँधारी-द्वितीय ने अपनी दिव्य दृष्टि से यह पहले ही भाँप लिया था कि दिल्ली में कॉन्ग्रेस की सरकार कम से कम इस बार तो नहीं बन सकती। इसलिए देशहित में यह निर्णय लिया गया कि जमानत जब्त करवाने से जो धन चुनाव आयोग के पास इकठ्ठा होगा, वह देश की अर्थव्यवस्स्था में योगदान देने के काम आएगा।
असल में चुनाव लड़ते वक्त उम्मीदवारों को 10 हजार रुपया डिपॉजिट करना पड़ता है। जो उम्मीदवार वैध मतों का छठवॉं हिस्सा नहीं ला पाते उनकी यह रकम जब्त कर ली जाती है। कॉन्ग्रेस के 63 उम्मीदवारों ने अपनी जमानत जब्त करवाई है। इस हिसाब से यह रकम छह लाख 30 हजार रुपए होती है।
हालाँकि, कुछ वामपंथी साथियों ने यह इच्छा भी प्रकट की थी कि उन्हें इस धन से बची सर्दियों का जुगाड़ कर चिलम-चखना खरीदना चाहिए। लेकिन आखिर में यही फैसला हुआ कि सस्ते नशे की कमी में किसी भी प्रकार की यदि कोई आपात स्थिति पैदा होती है, तो ऐसे में युवा एवं तेजस्वी नेता राहुल गाँधी का ही कोई भाषण कार्यकर्ताओं को सुना दिया जाएगा।
फिलहाल पार्टी के वो तीन नेता पार्टी में अपनी स्थिति को लेकर संशय में हैं, जो अपनी जमानत जब्त करवाने में नाकाम रहे। 14 फरवरी तक उन्हें पार्टी हाईकमान को कारण बताओ नोटिस (Show Cause Notice) का जवाब देना है। बताया जा रहा है कि अगर वो जवाब देने में विफल रहते हैं, तो उन्हें राहुल गाँधी की अगली चार जनसभाओं में उनके भाषण सुनने के लिए बिठाया जा सकता है।