संसद में किसानों के हितों को लेकर किसानों का सर्वकालिक हितैषी वर्ग एकबार फिर सत्ता पक्ष का विरोध कर रहा है। आज का यह विपक्ष, जो कि एक लम्बे समय तक भारत की सत्ता, किसान, युवा का भाग्यविधाता बना रहा, आज फिरसे किसानों के साथ खड़ा नजर आ रहा है। इसका कहना है कि यह कानून किसान विरोधी हैं। लेकिन यदि यह कानून किसान विरोधी हैं तो फिर विपक्ष परेशान क्यों है?
वास्तव में, यदि सत्ता पक्ष कोई भी गलत फैसला लेता है तो इसका प्रत्यक्ष प्रभाव जनता पर ही पड़ता है। लेकिन विपक्ष हर बार केंद्र सरकार की छवि की खातिर मतदाताओं और सत्ता के बीच सत्ता का शुभचिंतक बनकर वकील की भूमिका निभाने के लिए तत्पर नजर आता है।
विपक्ष ने यह ‘कूटनीति’ साल 2015 में भूमि अधिग्रहण संशोधन विधेयक से शुरू कर दी थी। विपक्ष को तो चाहिए कि वह जितना हो सके केंद्र सरकार की छवि खराब होने दे। विपक्ष को तो सरकार की हर खराब नीति का इन्तजार करते हुए उसे सहमति देनी चाहिए ताकि सरकार की छवि चुपके से खराब होती रहे।
विपक्ष जमकर हो जाने दे लोकतंत्र की हत्या, फासिज़्म का आतंक, पितृसत्ता का नंगा नाच, मनुवाद का उत्कर्ष, इन्टोलेरेंस चली जाए चरम पर.. इस इन्तजार में कि एक दिन जब वो सत्ता में आएँगे तो किसानों के खेतों में सुनहरे टायल्स लगवाएँगे, ताकि किसानों और उनके हितों के बीच मिट्टी न आ सके। और तब तक मारीच की तरह भेष बदलकर जनता को सत्ता के खिलाफ बरगलाता रहे, जब तक जनता इस मारीच रूपी विपक्ष को धोखे से असली तीर मारकर चित नहीं कर देती।
विपक्ष को चाहिए कि सत्ता ऐसे दर्जनों विधेयक रोज लेकर आए, जो कभी किसान विरोधी हो तो कभी युवा विरोधी हों, चाहे वह फैसला फासिस्ट हो, चाहे एनार्किस्ट हो। और जब सरकार के इन फैसलों के परिणाम (दुष्परिणाम) विपक्ष के मन मुताबिक़ आने शुरू हों तो जनता में सरकार के प्रति खूब आक्रोश पैदा हो। जनता सरकार के इन कानूनों से जमकर कुपित हो और अगले चुनाव में जनता हँसी – ख़ुशी विपक्ष को सत्ता सौंप दे।
यह विपक्ष का बड़प्पन ही है कि केंद्र सरकार की इमेज के लिए सदन में खुद लड़ रहा है, दंगा कर रहा है, माइक तोड़ रहा है…संसद में विशेषाधिकारों के बीच गुंडागर्दी और बाहर गाँधीगर्दी कर रहा है और सरकार के बजाए लोगों के बीच अपनी ही इमेज खराब कर रहा है। ऊपरवाला ऐसा विपक्ष डोनाल्ड ट्रम्प से लेकर ने ‘इलेवन चिनपिंग’ तक को दे।
लेकिन मानो इस विपक्ष की बुद्धि नेहरू के नमक में ऑक्सीकृत होकर घुल चुकी है। यह है कि सत्ता पक्ष की छवि खराब होने ही नहीं देता और फिर कयामत के दिन EVM का रवीश रोना रोता है।