Sunday, November 17, 2024
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व्यंग्य: नक्सली भाभीजी घर पर नहीं हैं तो गई कहाँ? पप्पू-पिंकी के लिए चमत्कार करने आई थी या…

"जब पप्पू-पिंकी जैसे नामी ठगों के इलाके की तरफ बढ़ने की इनपुट दिल्ली से आ गई थी, तो तुमने ढिलाई क्यों बरती?" दारोगा हप्पू सिंह बोले, "मुझे तो मामला जात का भी लगता है सर! किसी बड़े पत्रकार ने भी ‘कौन जात हो?’ पूछना शुरू किया है!"

खड़कसिंह के खड़कने से खड़कती थीं खिड़कियाँ, लेकिन यहाँ तो कोई खड़कसिंह की ही कुण्डी खड़का गया था। मामला संगीन था, और एसपी खड़कसिंह का ख़याल था कि चूक दारोगा हप्पू सिंह से ही हुई होगी। वैसे भी हप्पू सिंह की रिश्वत लिए बिना काम ना करने और रिश्वत लेकर काम करने की शिकायतें उनके पास पहले से आती रही थीं।

इस बार मामला किसी बड़ी चूक का था। राज्य मुख्यालय से कमिश्नर साहब को और कमिश्नर साहब के पास से उनके पास फोन आ चुका था। खड़कसिंह ने स्थानीय ठेकेदार के सूमो से बैटरी निकलवा कर पुलिस जीप में लगवा ली थी। खुद गश्त पर निकलना था सो पेट्रोल आज बेचा नहीं गया।

दारोगा हप्पू सिंह अपने इलाके के बाहर ही मिल गए। खड़कसिंह कड़के, “जब पप्पू-पिंकी जैसे नामी ठगों के इलाके की तरफ बढ़ने की इनपुट दिल्ली से आ गई थी, तो तुमने ढिलाई क्यों बरती?” सलामी ठोकते ही दरोगा हप्पू सिंह अगर-मगर करते शुरू हो गए। इतने में गली के पहले ही मकान से जोरदार आवाज आई। ऐसा लगा किसी ने किसी को जोरदार कंटाप धर दिया है। “आई एम लोविंग इट” की आवाज आई! “कोई दुर्घटना तो हो ही गई है”, खड़कसिंह बोले। हप्पू सिंह की तोंद उनसे पहले कमरे में घुसी।

भड़भूती और मौनमोहन किसी मासूम पर जुटे पड़े थे। पुलिस को देखकर उन्होंने हाथ समेटे। पिटते हुए व्यक्ति ने फिर जनता की तरह आवाज लगाई! “आई एम लोविंग इट!” खड़कसिंह ने हप्पू सिंह को देखा, “तुम्हारा क्षेत्र है, क्या ऐसे ही चलती है व्यवस्था?” हप्पू गड़बड़ाए, “हजूर बिलकुल नया मामला है। भाभी जी के होते इस चिरखुट के साथ ऐसी मारपीट नहीं होती थी।

खड़कसिंह को उनका झूठ पहचानते देर ना लगी। “आखिर ये भाभीजी का मामला क्या है?” वो बोले। खिड़कियों से ली गई आपत्तिजनक तस्वीरें निकालते दारोगा हप्पू सिंह बोले, “मुझे तो मामला जात का भी लगता है सर! किसी बड़े पत्रकार ने भी ‘कौन जात हो?’ पूछना शुरू किया है!

खड़कसिंह खड़खड़ाए, “तो क्या अब हम पर भी जातिवाद का आरोप लगेगा?” सामाजिक न्याय के दौर में ही उनकी बिरादरी को सत्ता की स्थिति से बर्खास्त किया जा चुका था। जमींदारी तो उनकी नेहरू युग में ही चली गई थी, मगर कॉमरेडों ने अब तक उन्हें गालियाँ देना बंद नहीं किया था।

पीटने वाले का नाम अनोखेलाल था। पूरा इलाका उसकी अजीब हरकतों को जानता था। कोई अजीब बात नहीं थी कि मौनमोहन, उर्फ़ काम के मामलों पर चुप्पी साध जाने वाले मनमोहन के खिलाफ गवाही देने कोई नहीं आया।

अनोखेलाल को पीट रहा दूसरा व्यक्ति भड़भूती तो शक्ल से ही शरीफ दिख रहा था। खड़कसिंह कड़के, “मामला क्या है? आखिर पीट क्यों रहे थे इसे?” “हुजूर”, भड़भूती बोले, “ये अश्लील आदमी भाभी जी को ढूँढ रहा था। गली में दो ही लोगों की पत्नियाँ भाभी कहलाने योग्य युवा है। एक मेरी और दूसरी इस मौनमोहन की! चुनांचे हमने इसे धो दिया।” मामला पेंचीदा हो गया था। अगर भाभी जी सचमुच घर पर थी, तो आखिर ये अनोखेलाल उसे ढूँढ क्यों रहा था? आसानी से घर के बाहर आकर मिल आता!

पप्पू-पिंकी गले लगा के गए!” इतने में अनोखेलाल ने रोना शुरू किया। “अरे हम तो मोहल्ले वाले हैं” आगे अनोखेलाल बोला, मगर इतने में ही मौनमोहन ने उसे लात जड़ दी। “मतलब भाभीजी घर में नहीं हैं?” दारोगा हप्पू सिंह बोले। उनका इरादा वैसे भी भड़भूती के घर की तलाशी लेने का था। उसकी प्रिय भौजाई की पसंद की मगज़ीन “मेरी चंट सहेली” वैसे भी उसे दरवाजे पर पड़ी दिख गई थी। समस्या ये थी कि इलाके भर में करते के लिए मशहूर वाली भाभी जी के घर ऐसे ही घुस जाने की उसकी हिम्मत नहीं थी। उसने खड़कसिंह के साथ मौजूद पुलिस दस्ते को देखा और अपना सीना छप्पन इंच किया। देश में ये करना भी आजकल साम्प्रदायिकता की निशानी थी।

कल तक हर केमरे के सामने आने वाली नई भाभी जी आखिर लापता कहाँ हुई, ये एक बड़ा सवाल था। संसद से लेकर विधानसभा तक इस मुद्दे पर हिल चुकी थी। “साहेब मेरी नौकरी…” आखिर दारोगा हप्पू सिंह बोला। “मामला निपटा सको तो बच भी सकती है”, खड़कसिंह खड़के। और अंत में दारोगा हप्पू सिंह ने भड़भूती के मकान के सामने जाकर आवाज लगा दी!

“भाभीजी घर पर हैं?”

थोड़ी देर सन्नाटा रहा। अंत में दरवाजा खुला और एक रेशमी परिधान में लिपटी गोरी ऊँगली ने इशारा किया। कान लगा कर हप्पू सिंह बात सुन आए। खड़कसिंह से वो बोले, “साहेब, भौजाई टेम्प्रोरी थी। आपका हुक्म हो तो एमपी से वापस मँगा लें?” खड़कसिंह सोच में पड़ गए। भाभीजी का घर से अचानक गायब होना एक बड़ी समस्या थी। अगर भड़भूती जी वाली और मौनमोहन जी वाली दोनों घर में थी तो जो नई थी, और पप्पू-पिंकी का प्रचार कर गई थी, वो कौन थी? मामला लापता नई वाली भाभीजी का था। इतने में शोर सुनकर अंगूरी भाभी चली आईं।

अरे ये क्या तुमने तो भड़भूती जी का चमत्कार ही कर डाला!’ वो बोली। दारोगा हप्पू सिंह समझाने लगे, “चमत्कार नहीं भाभी बला..”कि इतने में खड़कसिंह ने उन्हें चकोटी काट ली। “हें हे हें”, खड़कसिंह ने मुस्कुराते, हाथ जोड़ते कहा, “भाभी जी वो नई वाली भाभी?” “एमपी ही तो गई है, एमपी हुई थोड़ी है जो पूरा महकमा हिलाए हुए हो?” अंगूरी भाभी ने पुछा। इतने में भड़भूती जी की वाइफ भी खिड़की से झाँक कर चिल्ला पड़ीं, “पिंकी गले लगा के गई तो थी”। अफ़सोस करते खड़कसिंह बोले, “चलो वापस एमपी वाली ना सही, लेकिन भाभीजी घर पर हैं”।

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Anand Kumar
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