पुरानी आदत के मारों ने अब्दुल चिचा की पिटाई के साथ जय श्रीराम जोड़ दिया। पिंचर जोड़ने के अलावा बस यही एक जोड़न है जो इन्हें प्यारा लगता है। ये हर पिटाई से जय श्रीराम जोड़ने में माहिर हैं। जोड़कर वीडियो करवा दिया। नहीं सोचा था कि FIR हो जाएगी, पर हो गई।
ज़ुबैर बोला; मुझे लगता है FIR का एक फैक्ट चेक कर लेना चाहिए।
सुन कर सबा भड़क गई। बोली; अब बस करो तुम। ये फैक्ट चेक की नौटंकी दुनिया के साथ-साथ हमपर भी आजमाओगे? अब तो ये बताओ कि करें क्या?
राना बोली; बोलो मत, इसके चक्कर में फँस गए। मुझे पहले से पता था कि इसने फैक्ट चेक किया है तो इंसिडेंट फेक ही होगा। तुम लोग तो देसी हो। मेरा तो NYT का काम है। पुलिस ने कुछ कर दिया तो?
ज़ुबैर ने राना की बात सुनी और बोला; ये NYT क्या हुआ?
सबा को गुस्सा आ गया। बोली; अरे न्यूयोर्क टाइम्स बेवकूफ। ये वहाँ छपती है न।
वो बोला; ओह, NYT का मतलब ये होता है?
राना बोली; तो तुझे क्या लगा था NYT का मतलब क्या होता है? ये बताओ कि करें क्या?
ज़ुबैर बोलै; तुम बोलो तो एकबार पार्टनर से पूछ लूँ। हो सकता है कि उसके पास कोई आइडिया हो। उसको बोलता हूँ कि राना बहुत वरीड है।
राना और गुस्सा हो गई। बोली; तुझे पता है न कि वो मेरी हालत देख कर हँसेगा इसलिए उसको इन्वॉल्व करना चाहता है तू? वैसे भी आजकल ये डर लगा रहता है कि किसी दिन डोनेशन का फैक्ट चेक करके कुछ लिख न दे। पुरानी दुश्मनी भूला नहीं है वो।
ज़ुबैर बोलै; अरे वो तो मेरे दिमाग में ही नहीं आया कि तुम दोनों की पुरानी दुश्मनी है।
राना बोली; तुम्हारे पास दिमाग है? वो सब छोड़ कर ये बताओ कि क्या करें?
अचानक सबा बोली; एक काम करते हैं। रवीश के पास चलते हैं। उसको एक्सपीरियंस है। वही बताएगा कि क्या करना चाहिए।
सब पांड़े जी के पास पहुँच गए। वे अरफ़ा के साथ बैठे पुराने दिन याद कर रहे थे जब डर का माहौल नहीं नहीं था। इनलोगों को देखते ही बोले; ऍफ़आईआर का अँधेरा ही आज की सच्चाई है। इसी विषय पर नोआम चोम्स्की ने सितम्बर 2001 में कहा था कि; साम्राज्यवाद वो चूना होता है जो कुछ भी काट सकता है। डर का माहौल है।
राना बोली; अरे ये डर का माहौल, डर का माहौल जो दुनिया को बताते रहते हैं वही हमारे सामने भी कहेंगे? माने आपके पास आए हैं यही सुनने के लिए?
रवीश बोले; ट्वीट डिलीट कर दो।
राना बोली; आपको लगता है कि लोगों के पास स्क्रीनशॉट नहीं होगा? ट्वीट डिलीट करके कोई फायदा नहीं।
रवीश बोले; इसलिए मैं ट्विटर पर नहीं हूँ। मुझे देखो, मैं फेसबुक पर लम्बे-लम्बे पोस्ट लिखता हूँ और जब जी में आता है उसे एडिट आकर देता हूँ। ट्वीट तो एडिट भी नहीं कर सकते।
सुनकर अरफ़ा बोली; मुझे लगता है कि फोटोशॉप ट्राई करना चाहिए। मेरा तो मानना है कि फोटोशॉप से बहुत कुछ किया जा सकता है।
सुनकर सबा भड़क गई। बोली; अरे तुम हर चीज में फोटोशॉप का इस्तेमाल नहीं कर सकती। हमने ट्विटर पर लिखा है। ट्वीट में एडिट का ऑप्शन भी नहीं होता। माफ़ी माँगेंगे तो ये संघी स्क्रीनशॉट लेकर रख लेंगे और रोज चिढ़ाएँगे। आगे फेक न्यूज़ फैलाना मुश्किल हो जाएगा।
रवीश ने आँखें बंद की और बोले; माइकल मूर ने अपने 2004 के एक लेक्चर में बताया था कि प्रोपेगेंडा में कहीं फँस जाओ तो कुछ ऐसा बोलो जिसका मतलब समझ में ही न आए। प्रोपेगेंडा के लिए जो लिखो वह तो बिलकुल स्पष्ट हो पर पकड़े जाने पर कुछ ऐसा उलझा सा लिखो कि किसी को समझ न आए कि तुम कहना क्या चाहते हो। पी साईनाथ की कसम यह बड़ी कारगर टेक्निक है। तुम तीनों ऐसा ट्वीट करो जिसका भावार्थ निकालना वकीलों के भी बस में न हो और कोई वकील निकाल भी ले तो जस्टिस काटजू की तरह सीधा मना कर दो, यह कहते हुए कि भावार्थ गलत है।
ज़ुबैर बोला; ये सही है। जब पता ही नहीं चलेगा कि क्या लिखा है तो कोई उसका फैक्ट चेक भी नहीं कर पाएगा।
ये सुनना था कि राना के दिमाग में गैंग्स ऑफ़ वासेपुर का वही सीन चलने लगा जिसमें सुलतान हाथ में जूता लिए कुरैशी को दौड़ा रहा था और कुरैशी आगे-आगे भागा जा रहा था।
अचानक उसने अपना माथा झटका और ट्वीट लिखने के लिए फोन हाथ में ले लिया। ऐसा ट्वीट जो न ही क्लैरिफिकेशन लगे और न ही माफीनामा।
रवीश के लिए उसके मन में इज़्ज़त थी। साथ ही सोच रही थी कि इस क्राइसिस में फोटोशॉप कैसे काम आता?