महाराष्ट्र के कथित एक्टिविस्ट साकेत गोखले ने गृह मंत्रालय में एक आरटीआई दाखिल किया, जिसमें उन्होंने पूछा कि ‘टुकड़े-टुकड़े गैंग’ का क्या अस्तित्व है? सबसे पहले तो सवाल पूछने वाले के पास कितना खाली समय रहा होगा, ये सोचने वाली बात है। अब किसी के घर में बिल्ली आकर छींका फोड़ दे, तो इसका जवाब देने के लिए अमित शाह से थोड़े न पर्ची लिखवाया जाएगा? ख़ैर, गोखले के बारे में बताना आवश्यक है कि वो आदमी एक नंबर का गालीबाज है और तार्किक बहस के दौरान माँ-बाप तक पहुँच जाना उसकी ख़ासियत है। ‘टुकड़े-टुकड़े गैंग’ को लेकर गृह मंत्रालय का अपेक्षित जवाब आया।
ध्यान में रखने वाली बात है कि अमित शाह लम्बे समय तक भाजपा अध्यक्ष भी रहे हैं और देश के गृह मंत्री तो हैं ही। बस दिक्कत इस बात की है कि मूर्ख एक्टिविस्ट ये नहीं सोच पाते कि कौन सी बात वो एक भाजपा नेता की हैसियत से बोल रहे हैं और कौन सा बयान गृह मंत्रालय की तरफ़ से आधिकारिक रूप से दे रहे हैं। पीएम मोदी अपने हर भाषण में ‘सबका साथ, सबका विकास’ की बात करते हैं। तो क्या मुझे पीएमओ में आरटीआई दायर करनी चाहिए कि क्या ये भारत सरकार का आधिकारिक नारा है?
साकेत गोखले से जैसे ही ‘ज़ी न्यूज़’ के पत्रकार सुधीर चौधरी ने कहा कि वो ‘टुकड़े-टुकड़े गैंग’ के बारे में सभी जानकारी देने को तैयार हैं, वो बौखला गया। यही कारण है कि गोखले ने जैसे ही असभ्य भाषा का प्रयोग किया, सुधीर चौधरी ने उसे लताड़ते हुए पूछा कि वो किस पार्टी का कार्यकर्ता है और उसे प्रति आरटीआई कितने रुपए मिलते हैं? वैसे एक बात यहाँ हम भी जोड़ना चाहेंगे, किसी राजनीतिक पार्टी से रुपए लेकर आरटीआई दाखिल करने वाले को ‘दलाल’ की संज्ञा दी जा सकती है लेकिन अगर वो मुफ़्त में ये सब कर रहा है तो फिर उसकी बुद्धि पर तरस खाना चाहिए।
ख़ैर, उपर्युक्त बयान का साकेत गोखले से कुछ लेना-देना नहीं था। गोखले ने एक ही लताड़ के बाद अपनी परवरिश दिखा दी और ‘बाप’ तक पहुँच गए। सुधीर चौधरी को ‘भाजपा के टुकड़ों पर पलने वाला’ करार दिया। साकेत गोखले कहता है कि ऑपइंडिया उससे डरता है और इसीलिए उसका नाम नहीं लेता। ये ऐसी ही बात हो गई, जैसे एनडीटीवी के रवीश कुमार कहते हैं कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी उन्हें बधाई क्यों नहीं देते। गोखले को ये समझना चाहिए कि उसका नाम ऑपइंडिया अँग्रेजी की रिपोर्ट में इसीलिए नहीं लिया गया क्योंकि वो हमारे लिए महत्व नहीं रखता। वो इस लायक ही नहीं है।
जहाँ तक आरटीआई की बात है कि गृह मंत्रालय ये भी कह चुका है कि महात्मा गाँधी को आधिकारिक रूप से कभी भी राष्ट्रपिता घोषित नहीं किया गया। खेल मंत्रालय कह चुका है कि उसने कभी हॉकी को भारत का राष्ट्रीय खेल घोषित नहीं किया। चूँकि, उसके पास काफ़ी खाली समय है, गोखले को चाहिए कि वो ऑपइंडिया के पास भी एक निवेदन भेज कर ‘टुकड़े-टुकड़े गैंग’ के बारे में जवाब माँगे। अगर हमारा मन हुआ तो उसे पूरी सूची विवरण के साथ दी जाएगी। और हाँ, मानहानि भी उस व्यक्ति का होता है, जिसका कोई मान होता है। इस पंक्ति का गोखले से कुछ लेना-देना नहीं है।
काफ़ी दिनों के बाद वरिष्ठ पत्रकार को फ़ोन किया- सर, टुकड़े टुकड़े गैंग के बारे में तो गृह मंत्रालय मना कर रही है, सरकार तो फंस गई? ज़ोर से हंसे, बोले कि गृह मंत्रालय 2012 में कह चुका है कि गांधी के राष्ट्रपिता होने की जानकारी नहीं है, कोई उपाधि नहीं दी गई। अब बोलो क्या कहना है?
— अनंत विजय/ Anant Vijay (@anantvijay) January 21, 2020
यहाँ हम बात कर रहे हैं उस ‘Lesser Known Individual’ की, जो मानहानि की धमकी अपने फटे हुए जेब में लेकर फिरता रहता है। जब एक बार उसके घर के बाहर कुत्ते ने टट्टी कर दी थी, तब उसने न सिर्फ़ गृह मंत्रालय को आरटीआई भेज कर जवाब माँगा बल्कि उस कुत्ते के ख़िलाफ़ ‘रवीश की अदालत’ में एक केस भी दायर कर दिया। इसमें हँसने वाली बात नहीं है क्योंकि आजकल हर बिल को क़ानून बनने के लिए संसद और राष्ट्रपति के अलावा एनडीटीवी की स्टूडियो से भी पास कराना पड़ता है।
कथित एक्टिविस्ट ने ये याचिका क्यों नहीं दायर की कि राहुल गाँधी को आधिकारिक रूप से सरकार ‘पप्पू’ मानती है या नहीं? अरविन्द केजरीवाल का दूसरा नाम ‘एके- 49’ है या नहीं? क्या राहुल गाँधी सच में अपने मुँह में ‘चाँदी की चम्मच’ लेकर पैदा हुए थे? क्या प्रधानमंत्री का सीना सचमुच ’56 इंच’ का है? क्या जीतने वाला पहलवान सचमुच हारने वाले को उसकी जीभ से ‘धूल चटा’ देता है? ऐसे ही लोग शायद इस बात का जवाब ढूँढ़ते फिरते होंगे कि आख़िर ऊँट को जीरा किसने और क्यों खिलाया था? मानहानि की धमकी नामक हथियार लेकर लोगों को सच बोलने से डराने वाले साकेत गोखले को ये भी पता होना चाहिए कि ‘कह कर लेना’ में ‘कहा’ क्या जाता है और ‘लिया’ क्या जाता है?
गोखले के इस डेयरडेविल के बाद एक्टिविस्ट्स की एक नई खेप तैयार हो सकती है, जो आरटीआई की बाढ़ लाकर निम्नलिखित सवाल पूछ सकते हैं:
- आखिर वो कौन सा आदमी था, जिसने अपने पाँव में पहली बार कुल्हाड़ी मारी थी? उसके इलाज में ‘आयुष्मान भारत योजना’ के तहत मदद मिली थी या नहीं?
- वो कौन सा व्यक्ति ठगा, जिसने पहली बार किसी की आँखों में धूल झोंकी थी? वो धूल मिट्टी की थी या फिर बालू की?
- ओबामा की पलकों की लम्बाई और चौड़ाई कितनी थी, जिसे उन्होंने मोदी के स्वागत में बिछा दी थी? क्या मीडिया ने झूठ कहा कि मोदी के स्वागत में अमेरिका ने पलकें बिछा दी थीं?
- क्या नरेंद्र मोदी ने सचमुच विपक्ष की ईंट से ईंट बजा दी है? किसके ईंट का वजन कितना था? मोदी की ईंट किस मिट्टी की बनी हुई थी?
- क्या सोनिया ने सोनिया गाँधी ने सचमुच मनमोहन सिंह को 10 साल अपनी ऊँगली पर नचाया? सोनिया ने दसों में से कौन सी ऊँगली का इस्तेमाल किया?
मुझे गर्व है कि देश को ये नाम @ZeeNews ने दिया है। टुकड़े-टुकड़े गैंग और अफ़ज़ल प्रेमी गैंग के सदस्यों से मिलना है तो हमारे यहाँ RTI डाल सकते हैं।उनके घर तक छोड़ कर आएँगे…और हाँ..काग़ज़ों के साथ ! https://t.co/hc6RakeVJf
— Sudhir Chaudhary (@sudhirchaudhary) January 21, 2020
जब ‘टुकड़े-टुकड़े गैंग’ को लेकर आरटीआई दायर की जा सकती है तो उपर्युक्त सभी आरटीआई भी उसी बौद्धिक स्तर की है। अपनी एक फटी हुई जेब में मानहानि की धमकी, दूसरे जेब में आरटीआई का परचा, अपने गंदे मुँह में गालियाँ और घुटने में दिमाग रख कर चलने वाले ‘Lesser Known Individual’ को ये पता होना चाहिए कि जिस क़ानून को जनहित के लिए बनाया गया है, उसका मज़ाक नहीं बनाया जाना चाहिए। जनता से जुड़े मुद्दे उठाने चाहिए, जनता का मखौल बनाने वाली बातें नहीं करनी चाहिए। जाते-जाते बता दूँ कि ये एक ‘व्यंग्य’ है, जिसे अँग्रेजी में ‘Satire’ कहते हैं। गोखले चाहें तो ‘फाल्ट न्यूज़’ के पास इसे फैक्ट चेक के लिए भेज सकते हैं।