सेना के राजनीतिकरण की बहस थमी नहीं थी कि गोदी मीडिया के बीच सेना के ससुरालीकरण जैसे मुद्दों पर चर्चा होने लगी है। एक बात बेहद चौंकाने वाली है कि कि अपने कन्धों पर ढोकर इस देश में कम्प्यूटर लाने के बाद देश में सेना के ससुरालीकरण जैसे कारनामे भी राजीव गाँधी ही लेकर आए थे, वो भी आजादी के बाद पहली बार, लेकिन गोदी मीडिया ने यह तथ्य किस वजह से छुपाकर रखा? जिस तरह से महात्मा गाँधी की दांडी यात्रा ऐतिहासिक थी, उसी तरह से कॉन्ग्रेस के इन तीन बड़े नामों द्वारा पीढ़ी दर पीढ़ी किए गए कारनामे भी किसी यात्रा से कम नहीं हैं।
वर्ष 2019 की शुरुआत में ही फरवरी माह में पुलवामा में हुए आतंकवादी हमले के बाद से देश की दिशा और दशा में अचानक से एक बड़ा बदलाव देखने को मिला। मीडिया से लेकर राजनेताओं की स्वर और तथ्य, सुबह होने से लेकर शाम होने के बीच 10 बार बदलते देखे जाने लगे। गोदी मीडिया के कुछ नेहरूवादी सिपाहियों ने जब आतंकवाद के कारण पर बात करने से बेहतर बलिदानी शहीदों को दिए जाने वाले ‘दर्जे’ की चर्चा छेड़ डाली थी। मोदी सरकार पर प्राइम टाइम के दौरान ‘कहाँ गया 56 इंच?’ जैसे शब्दों से उकसाने वाले सवाल पूछे जाते रहे, लेकिन जब पाकिस्तान के बालाकोट में एयर स्ट्राइक की बात सामने आई, तब यही गोदी मीडिया ‘आपको ऐसा करना शोभा नहीं देता है’ वाले मोड में आ गई। इसके रातोंरात एक जुमला गोदी मीडिया के शब्दकार ने रचा, वो था ‘सेना का राजनीतिकरण।’
जो नेहरूवादी सभ्यता के विचारक आज तक जवाहरलाल नेहरू के नाम लिए बिना अन्न तक ग्रहण नहीं करते, वो भी प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से सवाल करते देखे जाने लगे हैं कि एयर स्ट्राइक का श्रेय नरेंद्र मोदी को नहीं लेना चाहिए या उन्हें इसका जिक्र तक नहीं करना चाहिए। ये वही विचारक हैं, जो नोटबंदी के दौरान बैंक कर्मचारियों द्वारा की गई अव्यवस्था, नीतियों के गलत इस्तेमाल से लेकर गाँव के शौचालयों में पानी ना होने जैसी अव्यवस्था तक के लिए नरेंद्र मोदी को जिम्मेदार ठहराते हैं।
लेकिन सेना के राजनीतिकरण को लेकर जब नरेंद्र मोदी ने इन नेहरूवादी विचारकों को चिंतित देखा, तो उन्होंने उनकी चिंता को जायज ठहराते हुए उनके रिसर्च कार्य के लिए और भी ‘कच्चा माल’ उपलब्ध करवाया, जिससे कि ये विचारक अपनी रिसर्च और थीसिस को आगे बढ़ाकर गौरवान्वित महसूस कर सकें। अचानक नरेंद्र मोदी ने राजीव गाँधी द्वारा ससुराल के साथ सैर की घटना याद दिलाकर बाजारों से ‘बरनोल’ की सप्लाई को तेज कर दिया।
मोदी तो बस रास्ते से जा रहे थे, भेलपूरी खा रहे थे
नरेंद्र मोदी तो बस रस्ते से जा रहे थे, भेलपूरी खा रहे थे। लेकिन, जब उन्हें निष्पक्ष मीडिया ने सेना और संसाधनों के राजनीतिकरण की याद दिलाई, तो उन्होंने सेना के ससुरालीकरण का जिक्र छेड़कर हाल ही के कुछ वर्षों में निष्पक्ष बनी गोदी मीडिया को याद दिलाया कि साल 1987-88 में वो लोग इतने निष्पक्ष नहीं थे, ना ही यह जिम्मेदार मीडिया ‘राजनीतिकरण’ जैसे शब्दों से अवगत थी।
मिस्ट्रेसीकरण, ससुरालीकरण और राजनीतिकरण: महज 3 शब्दों में गाँधी परिवार सिमट चुका है
1- मिस्ट्रेसीकरण
कुछ दिन पहले ही सुब्रह्मण्यम स्वामी ने बताया कि किस तरह से उनके ससुर, जेडी कपाड़िया, जो कि 1950 के दशक में रक्षा सचिव थे, का तबादला सिर्फ इस वजह से करवा दिया गया क्योंकि उन्होंने देश के बाँधों (Dam) को ही तीर्थ बताने वाले जवाहरलाल नेहरू के ‘यूरोपीय महिला मित्र’ (European mistress) को एयरफोर्स के विमान का उपयोग करने की अनुमति देने से इनकार कर दिया था। स्वामी ने कहा कि इस घटना के बाद उनके ससुर का तबादला कर दिया गया था और अगले रक्षा सचिव ने ऐसा करने की अनुमति दे दी थी।
एक दूसरे प्रसंग में, प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू ने सबसे पहले ऐसी शाही परंपरा की शुरुआत करते हुए INS देल्ही (INS Delhi) का इस्तेमाल अपने परिवार के साथ छुट्टियाँ मनाने के लिए किया था। उसकी अब जो तस्वीरें सामने आई हैं, उनसे भी यह बात साफ पता चलती है कि नेहरू ने उस आईएनएस देल्ही का इस्तेमाल किया था, जो 1933 में नौसेना के लिए बनाया गया एक हल्का क्रूजर था। इसे ब्रिटिश राज में एचएमएस अकिलिस के नाम से जाना जाता था। 1950 में अपने परिवार के साथ छुट्टी मनाने के लिए इसी वॉरशिप का इस्तेमाल नेहरू ने किया था।
उसके बाद, जब 59 वर्ष की आयु में एडविना की मृत्यु 1960 में हुई तो नेहरू ने भारतीय नौसेना के फ्रिगेट आईएनएस त्रिशूल को एस्कॉर्ट के रूप में और साथ ही उनकी याद में पुष्पांजलि देने के लिए भेजा। लेडी माउंटबेटन की बेटी लेडी पामेला हिक्स का कहना है, “1960 में उनकी मृत्यु पर, एडविना को उनकी इच्छा के अनुसार समुद्र में दफनाया गया था। जब उनका शोक संतप्त परिवार घटनास्थल पर माल्यार्पण के बाद हट गया, तो भारतीय फ्रिगेट आईएनएस त्रिशूल उस जगह पर आया और पंडितजी के निर्देशों के अनुसार मैरीगोल्ड के फूलों से उस पूरे एरिया को आच्छादित कर गया।”
2 – ससुरालीकरण
नेहरूवादी सभ्यता को जीवित रखते हुए लक्षद्वीप पर हॉलिडे मनाने के लिए इंदिरा गाँधी के बेटे और जवाहरलाल नेहरू के नाती यानी, मनी लॉन्ड्रिंग मामलों में रोजाना ED ऑफिस के चक्कर काट रहे रॉबर्ट वाड्रा के ससुर, राजीव गाँधी के साथ इटली से उनके ससुराल वाले भी आए थे। इनके अलावा, मेहमानों की सूची में राजीव गाँधी के साथ, सोनिया गाँधी, राहुल गाँधी, प्रियंका और उनके चार दोस्त, सोनिया गाँधी की माँ, उनके भाई और एक मामा शामिल थे। साथ ही तब के सांसद अमिताभ बच्चन, उनकी पत्नी जया बच्चन और उनके बच्चे, अमिताभ के भाई अजिताभ की बेटी और पूर्व मंत्री अरुण सिंह के भाई बिजेंद्र सिंह की पत्नी और बेटी भी मौजूद थे। छुट्टी का स्थान बंगारम था, जो लक्षद्वीप द्वीपसमूह में एक छोटा निर्जन द्वीप है।
‘द इंडियन एक्सप्रेस’ ने 24 जनवरी 1988 को एक रिपोर्ट पब्लिश की, जिसमें बताया गया कि जब राजीव गाँधी अपने परिजन, दोस्त और विदेशी मेहमानों के साथ जब छुट्टियाँ बीता रहे थे, उस दौरान आईएनएस विराट में उनके निजी सचिव और तत्कालीन सरकार में प्रभावी शख्सियत वी जॉर्ज भी मौजूद थे। वी जॉर्ज के अलावा मणिशंकर अय्यर, सरला ग्रेवाल, एम जैकब और अन्य लोग शामिल थे।
लेकिन उस समय ‘1 सवाल पूछने के शौक़ीन’ नेहरुवियन सभ्यता वाले निष्पक्ष पत्रकारों को क्या मालूम था कि उन्हें भविष्य में इन सभी बातों के लिए लज्जित होना पड़ेगा। इस तरह, यह सेना और देश के संसाधनों के ससुरालीकरण की दूसरी ‘शाही’ घटना थी। यह भी जानना आवश्यक है कि ससुराल के साथ यह शाही हॉलिडे जिस ‘कार’ द्वारा आयोजित किया गया, वह आईएनएस विराट उस समय भारतीय नौसेना का एकमात्र वाहक युद्धपोत हुआ करता था। इसे राहुल गाँधी के पिता राजीव गाँधी द्वारा सारा लाव-लश्कर सिर्फ ससुरालीकरण के लिए इस्तेमाल किया गया क्योंकि यह आईएनएस विराट तो कई नेहरूवादियों के अनुसार, देश के पहले परिवार द्वारा इस्तेमाल किया गया था। कायदे से जवाहरलाल नेहरू ने इस चलन की शुरुआत की थी। राजीव ने तो इस ‘पुश्तैनी’ परंपरा को बस आगे बढ़ाने का काम किया था।
3 – राजनीतिकरण
मिस्ट्रेसीकरण, ससुरालीकरण के बाद राजनीतिकरण इस तीसरी पीढ़ी का विशेषण है। शाही परिवार में पैदा होने के बावजूद भी नौसेना के संसाधनों का प्रयोग ना कर पाने का मलाल कहीं न कहीं राहुल गाँधी को जरूर होगा। राहुल गाँधी इस मामले में सबसे दुर्भाग्यशाली साबित हुए हैं। पहला तो इस वजह से कि वो सेना का ससुरालीकरण चाह कर भी फिलहाल नहीं कर सकते, दूसरा ये कि अब मीडिया ‘निष्पक्ष’ हो चुका है। यह मीडिया इतना निष्पक्ष होता जा रहा है कि जिन पत्रकारों ने अपनी पत्रकारिता की जमीन ही प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का सम्बन्ध ‘2002’ से जोड़-जोड़कर बनाई थी, वही आजकल ये कहते सुने जा रहे हैं कि नरेंद्र मोदी का इसमें कोई योगदान नहीं था। कुछ निष्पक्ष पत्रकार बस ‘1 सवाल’ पूछने के चक्कर में इतने बदहवास हालात में यहाँ-वहाँ दौड़ रहे हैं कि वो आज महागठबंधन के फोटोग्राफर बनकर निर्वाण प्राप्त कर चुके हैं।
हालाँकि, ‘चौकीदार चोर है’ जैसे जुमलों को चुनावी गर्मी में गलती से निकले शब्द बताकर हर दिन माफ़ी माँगने वाले कॉन्ग्रेस पार्टी अध्यक्ष राहुल गाँधी फिलहाल नौसेना और सेना के संसाधनों का तो इस्तेमाल अपने पूर्वजों की तरह नहीं कर पा रहा है। लेकिन, इसके पास राजनीतिकरण जैसा शब्द अभी भी मौजूद था। सेना के राजनीतिकरण जैसे जुमलों को भुनाने के चक्कर में कॉन्ग्रेस के इस पारम्परिक अध्यक्ष राहुल गाँधी ने नेहरू से लेकर राजीव गाँधी तक की फजीहत करवा डाली है। जो मीडिया और क्रांतिजीव 5 साल तक मोदी की विदेश यात्राओं का लेखा-जोखा करते रहे, उन्हें नेहरू से लेकर राजीव गाँधी के भ्रमणों से रूबरू होना चाहिए, ताकि वो उसकी समीक्षा कर के बता सकें कि मिस्ट्रेसीकरण और ससुरालीकरण उनकी किसी विदेश नीति का हिस्सा थे?
कॉन्ग्रेस की प्रत्येक इच्छा को नरेंद्र मोदी स्वयं साकार करने पर तुले हुए हैं। कॉन्ग्रेस हर सम्भव प्रयास करती रही कि ‘भूतों’ के नाम पर 2019 का लोकसभा चुनाव जीत सके। इसके लिए कभी किसी की नाक बीच में लाइ गई, कभी साड़ी का इस्तेमाल किया गया, तो कभी किसी की नीतियों का हवाला दिया जाता रहा। मोदी ने इन सभी घटनाओं को एक ही बार में लपेटकर एक नई कहावत रच ली है, ‘सौ नामदार की, एक चौकीदार की’।