Wednesday, November 13, 2024
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मजबूत लोकतंत्र के लिए मजबूत गाँधी मूर्ति आवश्यक… ‘फाइल-फेंक’ विरोध देख स्वर्ग में होते होंगे इम्प्रेस!

एक बार देश में घटती नैतिकता और बढ़ते भ्रष्टाचार के विरोध में राजघाट में गाँधी जी की मूर्ति के नीचे अनशन पर बैठ गए थे 2 नेता। गाँधी जी कितना इम्प्रेस हुए, अभी तक हालाँकि उसका कोई डेटा नहीं मिल पाया है।

लोकतंत्र के एक्सपर्ट और विद्वान आए दिन हमें समझाते रहते हैं कि मजबूत लोकतंत्र के लिए मजबूत विपक्ष का होना आवश्यक है। इन विद्वानों की लगातार समझाइश का ही असर है कि देश में आपातकाल लगाने और उस दौरान विपक्षी नेताओं को देश भर के जेलों में ठूँस देने वाली कॉन्ग्रेस पार्टी भी अब हमें समझाने लगी है कि; मजबूत लोकतंत्र के लिए मजबूत विपक्ष का होना आवश्यक है।

मजबूत लोकतंत्र के लिए उपजी इसी कॉन्ग्रेसी चेतना का असर है कि ममता बनर्जी भी बताती हैं कि; मोजबूत बीपोक्ख का बजह से ही लोकतंत्र का रोक्खा होता है। अब तो हाल यह है कि विरोधी दलों को अपने-अपने राज्यों में खोजकर रगड़ने वाली पार्टियाँ भी कहती हैं कि; जब तक विपक्ष मजबूत नहीं होगा, लोकतंत्र कमजोर ही रहेगा।

लोकतंत्र की इस कमजोरी को दूर करने के लिए ही आजकल विपक्षी दल के नेता केवल ब्रेकफास्ट और डिनर वगैरह ही खा पा रहे हैं। साथ ही खाने की अपनी राजनीतिक और सामाजिक संस्कृति को आगे बढ़ाते हुए संसद में हंगामा भी कर रहे हैं। शायद उनका यह मानना है कि खाने से मिली ताक़त लोकतंत्र की मजबूती के लिए काफी नहीं है। इसलिए जरूरी है कि संसद को चलने से रोक कर भी लोकतंत्र को मजबूती प्रदान की जाए।

संसद में विपक्ष के असंसदीय आचरण के पीछे भी शायद यही सोच है। विपक्ष बड़ी ईमानदारी से ऐसा मानता है कि इधर आचरण जैसे-जैसे असंसदीय होता जाएगा, उधर लोकतंत्र मजबूत होता जाएगा और ऐसा करना विपक्ष, आचरण और लोकतंत्र, तीनों के लिए शुभ है।

जो विपक्ष के लिए शुभ है, वह सरकार के लिए अशुभ है। ऐसे में लाजिमी है कि विपक्ष के इस असंसदीय आचरण को रोकने का सरकारी प्रयास लोकतंत्र को कमजोर करेगा। एक्सपर्ट और विद्वान लोग मजबूत विपक्ष की आवश्यकता पर इतना बल क्यों देते हैं, यह तो नहीं पता पर कभी-कभी लगता है कि इन विद्वानों का पक्के तौर पर ऐसा मानना है कि लोकतंत्र को मज़बूती प्रदान करने के लिए विपक्षी सांसदों को असंसदीय आचरण की न केवल खुली छूट होनी चाहिए बल्कि उस आचरण को रोकने की किसी भी संसदीय कोशिश के नतीजे में भारतीय लोकतंत्र की रेटिंग गिरा देनी चाहिए। ऐसे ही विद्वानों की वजह से दुनिया भर में लोकतंत्र मजबूत हो रहा है।

खैर, विद्वान चाहे जो सोचें, विपक्ष के असंसदीय आचरण की रोकथाम के लिए की गई सरकारी कोशिश की वजह से लोकतंत्र जब कमजोर पड़ने लगता है, तब विपक्षी सांसद अपने असंसदीय आचरण का स्तर ऊँचा करके देश को बताते हैं कि लोकतंत्र पर आए खतरे को फिलहाल टाल दिया गया है और उसमें आई कमजोरी को ग्लूकोन डी का घोल दे दिया गया है। उत्तर में सरकार भी उसी लोकतंत्र की रक्षा में उतर आती है और असंसदीय आचरण को संसद से अलग करने का प्रयास करती है। सरकार के इसी प्रयास को विपक्ष सरकारी अत्याचार की संज्ञा देता है। साथ ही इस अत्याचार के विरुद्ध अपनी लड़ाई में अनशन जैसा गाँधीवादी हथियार निकाल कर फायर कर देता है।

ऐसा ही एक फायर विपक्ष ने यह कहते हुए किया कि; विपक्ष की महिला सांसदों पर संसद में जो अत्याचार हुआ है, उसके विरोध में विपक्षी नेता गाँधी जी की मूर्ति के आगे विरोध प्रदर्शन करेंगे। ‘फाइल-फेंक’ विरोध तो राज्यसभा में भी हुआ, विरोध प्रदर्शन या अनशन तो कहीं भी किया जा सकता है पर गाँधी जी की मूर्ति के सामने या उसके नीचे बैठकर ऐसा करने का मज़ा ही कुछ और है। ऐसा करने से शायद गांँधी जी स्वर्ग में कहीं इम्प्रेस हो जाते होंगे।

सोचिए कि शरद पवार और डेरेक ओ’ ब्रायन लोकतंत्र की रक्षा के लिए गाँधी जी की मूर्ति के नीचे अनशन करेंगे तो महात्मा इम्प्रेस कैसे न होंगे? मुझे याद है कि एक बार बलराम जाखड़ और सुखराम देश में घटती नैतिकता और बढ़ते भ्रष्टाचार के विरोध में राजघाट में गाँधी जी की मूर्ति के नीचे अनशन पर बैठ गए थे। यह बात अलग है कि गाँधी जी कितना इम्प्रेस हुए थे, उसका कोई डेटा नहीं मिलता।

इस तरह के विरोध और अनशन की घोषणा होती है तब समझ में आता है कि गाँधी जी की मूर्तियाँ हमारे लिए जरूरी क्यों हैं? महात्मा की इन मूर्तियों के सहारे तर्कहीन राजनीतिक विरोधों को भी मान्यता दिलाने का एक पूरा इतिहास रहा है। ये मूर्तियाँ न होती तो विपक्ष अनशन और विरोध न कर पाता। विपक्ष अनशन और विरोध न कर पाता तो लोकतंत्र की कमजोरी दूर न हो पाती। ऐसे में आवश्यक है कि गाँधी जी की और मूर्तियों की स्थापना हो ताकि शरद पवार, ममता बनर्जी और डेरेक ओ’ ब्रायन जैसे लोकतंत्र के लिए चिंतित नेता उनके नीचे बैठकर अनशन करके न केवल देश को विरोध का महत्व समझा सकें बल्कि लोकतंत्र को मजबूत भी कर सकें।

मेरा तो मानना है कि भविष्य में जो दल देश में गाँधी जी की अधिक मूर्तियों की स्थापना करने की बात अपने चुनावी घोषणापत्र में करेगा, उसे लोकतंत्र का सबसे हितैषी दल माना जाएगा। इधर गाँधी जी की मूर्तियाँ स्थापित होती जाएँगी और उधर अमेरिका में बैठा कोई एनजीओ भारत के लोकतंत्र की रेटिंग बढ़ाता जाएगा और फिर एक दिन लोकतंत्र के एक्सपर्ट और विद्वान हमें समझाते हुए कहेंगे; मजबूत लोकतंत्र के लिए मजबूत गाँधी मूर्ति का होना आवश्यक है।

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