Sunday, November 17, 2024
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पंजाब को दिल्ली बना दूँगा… वादा ही वादा, होर्डिंग ही होर्डिंग, चेहरा ही चेहरा

कॉन्ट्रैक्ट ही कॉन्ट्रैक्ट। विज्ञापन ही विज्ञापन। हर तरफ मेरा ही चेहरा। दिल्ली तो केवल एक शहर है। यहाँ शहर ही शहर हैं। ज्यादा शहर तो ज्यादा सड़क। ज्यादा सड़क तो ज्यादा स्पीड ब्रेकर। ज्यादा स्पीड ब्रेकर तो ज्यादा उद्घाटन। ज्यादा उद्घाटन तो ज्यादा होर्डिंग।

भारतीय लोकतंत्र के नए अलिखित सिद्धांत के अनुसार किसी राज्य में चुनावी वातावरण मापने के दो बैरोमीटर हैं। पहला, जब राज्य का मुख्यमंत्री प्रशांत किशोर को अपना राजनीतिक सलाहकार नियुक्त कर दे। दूसरा, अरविन्द केजरीवाल दिल्ली छोड़कर उस राज्य में पहुँच जाएँ। राजनीतिक सलाहकार के रूप में प्रशांत किशोर की नियुक्ति बताती है कि चुनाव आठ-दस महीने रह गए हैं और केजरीवाल के दिल्ली चलकर उस राज्य में पहुँचने का अर्थ होता है कि चुनाव अब बस चार-पाँच महीने दूर हैं। कह सकते हैं कि प्रशांत किशोर और केजरीवाल इस सदी में चुनावी दबाव नापने के सबसे सटीक बैरोमीटर हैं।

इस सिद्धांत के अनुसार देखें तो पंजाब में चुनाव आने वाले हैं।

एक समय था जब चुनावी दबाव के सबसे निपुण बैरोमीटर स्वर्गीय रामविलास पासवान हुआ करते थे। कुछ लोग तो उन्हें बैरोमीटर से भी आगे का मानते थे और उन्हें ‘मौसम वैज्ञानिक’ कहते थे। पासवान भी अपने लिए मौसम वैज्ञानिक जैसे विशेषण सुनकर प्रसन्न भी होते थे। चुनावी दबाव मापने की उनकी इसी क्षमता का प्रताप था कि वे अधिकतर समय सत्ता में ही रहे। यह शोध का विषय हो सकता है कि मौसम वैज्ञानिक बड़ा होता है या बैरोमीटर, पर इस बात से इनकार नहीं किया जा सकता कि आनेवाली संभावित राजनीतिक आँधी, तूफ़ान या बर्फबारी वगैरह की आहट सबसे पहले पासवान तक ही पहुँचती थी और वे आवश्यकतानुसार छाता, कम्बल वगैरह से लैस हो लेते थे।

कुछ इतिहासकारों का मानना है कि पासवान का राजनीतिक काल चुनावी मौसम के पूर्वानुमान की दृष्टि से भारतीय राजनीति का स्वर्णकाल था।

बैरोमीटर के रूप में केजरीवाल और प्रशांत किशोर की इस क्षेत्र में एंट्री फिलहाल नई है। इस क्षेत्र में इन महान बैरोमीटरों के पदार्पण के साथ ही पिछले सात-आठ वर्षों से चुनावी मौसम की जानकारी अब केवल चुनाव आयोग के कंट्रोल में नहीं रहती। अब चुनावी सरगर्मियों की खबर के लिए लोगों का विश्वास चुनाव आयोग के नियमों से अधिक केजरीवाल के ट्रेवल प्लान पर है। केजरीवाल आज पंजाब में। केजरीवाल कल गोवा में। केजरीवाल परसों गुजरात में। मतलब यह कि इन राज्यों में चुनाव दूर नहीं हैं।

वे जहाँ जाते हैं, बिजली प्रधान भाषण देते हैं। उनकी बात सुनकर लगता है कि ये आदमी राजनेता है या बिजली मिस्त्री? कभी-कभी तो लगता है कि पिछले आठ वर्षों से इस आदमी का सलाहकार कोई ज्योतिषी है जो ज्योतिषी बनने से पहले बिजली मिस्त्री का काम करता था और उसी की सलाह के अनुसार ही इनका भाषण लिखा जाता है। जैसे ज्योतिषी ने सलाह दी हो; पुत्र, जहाँ जाना बिजली की बात करना। पंजाब गए तो कहना; आज देश में सबसे महँगी बिजली पंजाब में है। गुजरात गए तो कहना; आज देश में सबसे महँगी बिजली गुजरात में है। उत्तर प्रदेश गए तो कहना; आज देश में सबसे महँगी बिजली उत्तर प्रदेश में है। अभी हाल में उन्हें पंजाब के किसी शहर में चलते देखा। देखकर लगा अभी पीछे से कोई वहीं गाना न शुरू कर दे; बाबूजी जरा धीरे चलो, बिजली खड़ी यहाँ बिजली खड़ी।

आज पूरे भारत में सबसे महँगी बिजली इसी प्रदेश में है का अगला कदम होता; हम आपको मुफ्त में बिजली देंगे। इकोनॉमिस्ट सुनकर सोचता है; ओ भाई, महँगी बिजली का विलोम सस्ती बिजली होता है या मुफ्त की बिजली? मुझे तो लगता है कि कोई पूछ लेगा तो पास खड़े राघव चढ्ढा या आतिशी मार्लेना फट से कहेंगे; महँगी बिजली का विलोम मुफ्त बिजली होता है, यह हमने स्कूल में पढ़ा था। आपको कुछ नहीं पता है, हमारे एजुकेशन मिनिस्टर सिसोदिया जी यही कहते हैं।

मुझे तो कभी-कभी लगता है कि सुप्रीम कोर्ट ने ऑक्सीजन ऑडिट करवा कर इनका प्लान चौपट कर दिया नहीं तो दिल्ली में आवश्यकता का चार गुना ऑक्सीजन माँगने के पीछे शायद इनका प्लान था कि पंजाब के चुनाव को केवल बिजली प्रधान न रखकर इस बार ऑक्सीजन प्रधान भी रखेंगे। ये ऑडिट न हुई होती तो शायद ये बताने में नहीं हिचकते कि देखिए, पूरे भारत में राज्य सरकारों ने कोरोना के मरीजों के लिए जितना ऑक्सीजन उपलब्ध कराया, हमने दिल्ली में उसका चार गुना उपलब्ध करवाया। ये आम आदमी पार्टी है, ये कुछ भी कह सकती है।

वैसे पंजाब को देखकर केजरीवाल की बाँछें खिल जाती होंगी। वे यह सोचकर मन ही मन खुद होते होंगे कि; इत्ते बड़े-बड़े शहर। इनमें विज्ञापन की कितनी होर्डिंग लगेंगी। हर होर्डिंग पर मैं खड़ा रहूँगा। लोगों से पूछते हुए; वैक्सीन लिया क्या? या फिर ये बताते हुए कि; हमारे पंजाब की मोहल्ला क्लिनिक की नक़ल कनाड्डे की सरकार भी करना चाहती है। या फिर; पंजाब सरकार को काम करने दीजिए प्रधानमंत्री सर। पंजाब सरकार सही काम कर रही है। कितने होर्डिंग होंगे। ओय होय होय।

सपनों में खो जाते होंगे; यहाँ तो गुरुमुखी में भी अखबार छपते हैं। कितने विज्ञापन छपेंगे। हर अखबार के फ्रंट पेज पर मैं। कहीं हाथ हिलाते हुए तो कहीं हाथ जोड़ते हुए। बस दिखने का तो मज़ा ही आ जाएगा। यहाँ यूनिवर्सिटी भी ढेरों हैं। यहाँ के पत्रकारों को यूनिवर्सिटी की एडमिशन कमेटी में रखने का मज़ा ही आ जाएगा। राज्य बड़ा तो बजट बड़ा। यहाँ लेफ्टिनेंट गवर्नर भी नहीं है। यहाँ गवर्नर है। वो हमें परेशान नहीं करेगा, बल्कि हम उसे परेशान करेंगे।

दिल्ली में तो एक ही जल बोर्ड है। यहाँ तो कई शहर हैं तो कई जल बोर्ड होंगे। सब जगह मुफ्त पानी दूँगा। पानी मुफ्त हुआ तो टैंकर का बिजनेस गज़ब होगा। एक दिल्ली में इतने टैंकर होते हैं तो यहाँ तो शहर ही शहर। टैंकर का टेंडर करवा दिया जाएगा। कॉन्ट्रैक्ट ही कॉन्ट्रैक्ट। विज्ञापन ही विज्ञापन। हर तरफ मेरा ही चेहरा। दिल्ली तो केवल एक शहर है। यहाँ शहर ही शहर हैं। ज्यादा शहर तो ज्यादा सड़क। ज्यादा सड़क तो ज्यादा स्पीड ब्रेकर। ज्यादा स्पीड ब्रेकर तो ज्यादा उद्घाटन। ज्यादा उद्घाटन तो ज्यादा होर्डिंग।  

दिल्ली में तो एक ही नदी है तो केवल उसको साफ़ करने का वादा कर पाता हूँ। यहाँ तो नदियाँ ही नदियाँ। हर बरस सबको साफ़ करने का वादा करूँगा। दिल्ली अकेला शहर है तो केवल उसे लन्दन बनाने का वादा कर पाता हूँ। यहाँ तो शहर ही शहर। किसी को न्यूयॉर्क बनाने का वादा करूँगा तो किसी को लास वेगास बनाने का। बस वादा ही वादा, होर्डिंग ही होर्डिंग, चेहरा ही चेहरा। पंजाब को दिल्ली बना दूँगा।

पंजाब को दिल्ली बना दूँगा!!!

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