नमस्कार, मैं बकैत कुमार
नौ बजे, एक आदमी आता है, कहता है फलाने दिन नौ बजे बत्ती जलाओ, टॉर्च जलाओ, फ्लैश लाइट जलाओ, प्रकाश करो… ठीक है, जिसने चुना है वो जलाएँ, उससे दिक्कत नहीं है। जिसने वोट दिया अपना टॉर्च जलाए, माँग कर जलाए लेकिन हमारे लिबरल और सेकुलर लोगों का क्या? हमारी तो अभी से ही सुलगने लगी है, और पाँच तारीख तक तो हवा का बहाव सही रहा तो आग भी जल जाएगी।
क्या ये हमारे जैसे लोगों पर हमला नहीं है? हमारा जब मन नहीं है तो भी हमें दूसरे तरीके से मजबूर क्यों किया जा रहा है? दूसरी बात, हम तो टॉर्च नहीं जलाएँगे, हमारा तो शरीर का स्थान विशेष जल जाएगा, उसके लिए बरनॉल कहाँ से लाएँगे? ये सही है कि दो दिन पहले ही बता दिया ताकि हम लिबरलों और कामपंथियों, सॉरी वामपंथियों की सुलगनी शुरु हो जाए और नियत समय पर भक्क से आग लग जाए!
बाकी समय ये प्रधानमंत्री विज्ञान का प्रयोग नहीं करेगा, लेकिन विरोधियों की सुलगाने की पूरी प्लानिंग की जा रही है। यहाँ पूरा अग्निविज्ञान की सहायता ली गई है और लॉकडाउन में बरनॉल तो छोड़िए कच्चे आलू पीस कर लगाने के लिए भी घर में बीवी कूच देगी, ये आखिर हो क्या रहा है? क्या विरोधियों को ऐसे घाव देना चाहती है मोदी सरकार? आम आदमी को चुनना पड़ रहा है कि आलू को सब्जी में डाले या जली हुई जगह पर लगा कर राहत पाए।
दूसरी बात यह भी है कि क्या यह अल्पसंख्यकों का उपहास नहीं है? पिछली बार गरीब की थाली बजवा कर पिचका दी थी और कलावती अब टेढ़ी थाली में खाना खाती है, ग्लास फूट गया है, सेलो टेप मार कर पानी पीती है… इस बार कलावती से मन नहीं भरा तो नाजरा बानो पर निशाना साधा गया है कि बेचारी अनभिज्ञता में दिया जला लेगी और शौहर पूछेगा कि जबरन दीवाली क्यों मनाई जा रही है!
हमने ज़ोया से इस संदर्भ में बात की तो उन्होंने कहा, “कितना तेल बर्बाद होगा ये भी तो सोचिए। इतने तेल में तो बकरीद पर लाखों बकरे पक जाते। यही है मोदी जी का सबका साथ सबका विकास? मनमोहन सिंह जी आज होते तो कहते तेल पर पहला हक अल्पसंख्यकों का है। सऊदी वाला क्रूड ऑयल नहीं, उस पर तो है ही पहला हक काफिरों।”
क्या जवाब देगी ज़ोया बेगम? सलमा क्या कहेगी पति से? क्या अब इस निजाम में समुदाय विशेष जबरन हिन्दुओं के पर्व मनाएगा? और अगर नहीं मनाएगा तो बगल का हिन्दू उसे देशद्रोही घोषित कर देगा! आप सोचिए कि समाज को कहाँ ले जाया जा रहा है! एकजुट होनी की यह मुहिम भले ही मोदी और उनके आईटी सेल वाले, अजीत भारती टाइप के भक्त जीत लें, लेकिन एक समाज के तौर पर हम हार रहे हैं।
हमने बेजान मुस्तफा से इस बारे में बात की तो उन्होंने कहा कि उनकी समस्या ये है कि रात में गलती से भी टॉर्च का फोकस पड़ोसन पर गया तो घर में तीसरी बार महाभारत चालू हो जानी है। आप चाहें तो हँस सकते हैं इस बात पर, लेकिन दिल में पूछिए कि पत्नी बगल में हो, और हड़बड़ी में टॉर्च की रोशनी पड़ोसन पर पड़े और उसी वक्त वो मुस्कुरा दे…
चिंटुआ के पापा की ऐसी धुलाई होगी कि मोदी जी के अगले सामूहिक कार्यक्रम के लिए वो खड़े नहीं हो पाएँगे। खैर, मैं तो लदीदा और लंकेश जैसे बच्चों के बारे में सोच रहा हूँ कि इसी कार्यक्रम के दौरान वो अपनी प्रेमिकाओं और इश्कबाज लौंडों पर बार-बार लाइट मार कर मात-पिता को एक इशारा तो कर ही दें कि देखो पापा, मेला बाबू थोली देल में उधल वाले मतान में थाना थाएगा… अरे हम भी प्रेम किए थे भाई… हें हें हें…
साथ ही, संभव हो तो लड़की से ‘कौन जात हो’ पूछ कर टॉर्च जलाएँ, एक विजातीय प्रेम क्रांति है। ऐसे समय में अगर जलानी ही है तो क्रांति की लौ जलाएँ। घर में क्रांति कर दीजिए। घरवालों का भी टाइम पास हो जाएगा। पिटाई भी हो सकती है, लेकिन क्रांतिकारी तो गोली भी खाते हैं। चलिए इसी बहाने दो-चार प्रेम की बातें भी निकल आएँगी, वरना आपातकाल में क्या प्रेम कर पाएँगे हम!
दिया जला लीजिए, उसी से सब सुधर जाएगा। भक्त और आईटी सेल वाले फैलाएँगे कि दिया जलाने से हवा में वायरस मर जाते हैं। वो व्हाट्सएप्प पर फैला रहे हैं कि चंद्रमा रोहिणी नक्षत्र में जा रहा है, और उस दिन अंधेरा कर देने से शरीर पर और घरों में चाँद की रोशनी जाएगी जिससे शरीर में कोरोना के लिए एंटीबॉडी बनने लगेंगे। जबकि किसी को ये पता नहीं है कि ये मैसेज मैंने साढ़े नौ बजे लिखा और रजदिप्पा को फॉरवर्ड कर दिया।
रजदिप्पा भेजलस सगरिकिया के, सगरिकिया क फोन से ई चलल आ घुस गइल कौनो भक्तन के फोन में, ओकर बाद से जे होइल, से त सबके पता होइए गईल बा… आईटी सेल वालों को उल्लू बनाना इतना आसान है। ऐसा मैंने कई बार किया है, और जब वो वायरल हो जाता है तो शाम में प्राइम टाइम में बताता हूँ कि ये आईटी सेल वालों की करतूत है।
तीसरी बात, जिस पर सघन चर्चा आवश्यक है वो यह है कि नौ बजे, नौ मिनट ही क्यों? इस पर शशि थरूर ने भी लिखा है कि सब कुछ नौ-नौ हो रहा है। क्या हमने वाकई सब-कुछ राम भरोसे छोड़ दिया है? नहीं, आप सोचिए कि शशि थरूर पढ़े-लिखे आदमी हैं, पुलिस आज तक पकड़ नहीं पाई है उन्हें। काफी किताबें उन्होंने पढ़ी हैं। उन्होंने लिखा है कि नौ की संख्या पर सब छोड़ दिया गया है। लेकिन एक चीज जो मोदी जी नौ पर नहीं ला पा रहे वो है भारत का ग्रोथ रेट। जीडीपी का पता कर लीजिए।
क्या मोदी जी अल्पसंख्यकों को विश्वास में लेने के लिए नौ मिनट तक नौ आयतें पढ़ने नहीं बोल सकते थे? इससे अच्छी बात क्या होती कि हिन्दू लोग कुछ जान जाते शांतिप्रिय मजहब इस्लाम के बारे में। क्यों नहीं बोला उन्होंने कि देश के हर मस्जिद से एक साथ अजान दी जाए? ठीक है कि देश के सारे मस्जिद वैसे भी दिन में पाँच बार एक साथ ही अजान देते हैं, लेकिन तबलीगी जमात के कारण अल्पसंख्यकों को जिस तरह से निशाना बनाया जा रहा है, उस समय उनका ये कह देना काफी असर कर सकता था।
लेकिन हिन्दी, हिन्दू, हिन्दुस्तान का नायक भला अल्पसंख्यकों का क्यों सोचेगा। वो तो सुप्रीम कोर्ट पर ही हमला कर देगा। आपको क्या लगता है कि थाली बजवाना और अब प्रकाश की बात करना, दिया-मोमबत्ती जलाना, ऐसे ही है? जी नहीं, ये बदला है सुप्रीम कोर्ट द्वारा दीवाली पर रोक लगवाने के कारण। दीवाली में रोशनी होती है, और आवाज होती है पटाखों से। यही दो काम मोदी दीवाली के दिन नहीं, किसी और दिन करवा रहे हैं।
आपको ये सब नहीं दिखेगा लेकिन एक सूअर को टट्टी खोजने में मशक्कत नहीं करनी होती। मुझे आसानी से दिख जाती है। हें हें हें…
आप कहेंगे देश को एकता के सूत्र में पिरोने का काम है, वो मैं जानता हूँ लेकिन मैं एक पत्रकार हूँ। मेरे लिए पत्रकार की परिभाषा है कि हमेशा सत्ता के विरोध में रहना। खास कर तब जब सत्ता मेरे वोट वाले की नहीं है तो उसकी हर अच्छाई को शब्दों के प्रयोग से राष्ट्र के लिए विनाशकारी बता देना।
सिलिंडर दे, तो बोलो कि उससे विस्फोट हो सकता है और तीन-चार खबरें ले आओ… बिजली दे तो बोलो कि करंट लग सकता है, हर साल बिजली के झटके से इतने लोग मरते हैं… सड़क बनवाए तो बोलो कि आदमी जल्दी पहुँच कर बचे समय में शैतानी योजनाएँ बनाएगा दिमाग में… पुल बनवाए तो बोलो कि नाव चलाने वालों का रोजगार चला गया… स्कूल खोले तो बोलो कि सबको संघ की बातें सिखाने की योजना है…
असली पत्रकार का कार्य यही है। हम क्यों सरकार की बड़ाई करें? वो तो सरकार कर ही रही है। हमें तो समाज में नकारात्मकता भरनी है कि पाँच साल में लोग उब जाएँ। लेकिन उसमें बात यह आड़े आ रही है कि मेरा चैनल कुछ लोग बंद करवाते हैं, लोगों के घर तक पहुँच नहीं रहा और मोदी दोबारा जीत गया। लेकिन मैंने क्या बकैती करनी छोड़ी? जी नहीं, अब तो भोजपुरी में भी कर रहा हूँ।
नोट: न्यूजलौंडी के अभिनंदन को यह बताया जाता है कि ऑपइंडिया ने इस स्क्रिप्ट को ले कर किसी भी बकैत कुमार से बातचीत नहीं की है।