जैसा कि हमारी अंग्रेजी वेबसाइट ने बताया था, प्रियंका गाँधी भारतीय मीडिया के लिए तैमूर अली ख़ान की जगह ले चुकी हैं। जैसे तैमूर के सुबह उठ कर बाथरूम जाने से लेकर रात को सूसू कर के सोने तक मीडिया पल-पल की जानकारी प्रकाशित करता रहता है, ठीक वैसे ही, दफ़्तर में बैठी प्रियंका गाँधी के दुपट्टे के रंग से लेकर उनके गाड़ी में बैठने के पोज़ तक- मीडिया को सबकुछ नया-नया लग रहा है। कुछ लोग एक्सक्लूसिव के नाम पर प्रियंका के कमरे के बाहर लगे नेमप्लेट को दिखाकर पत्रकारिता के स्वर्णिम काल के चरम तक जाते दिखे।
यहाँ हम द क्विंट के उस आर्टिकल की बात करने जा रहे हैं, जिसमें प्रियंका गाँधी को एक ‘आदर्श पत्नी’ बताया गया है।
शुमा राहा द्वारा लिखे गए इस लेख में प्रियंका को एक ‘कर्तव्यनिष्ठ पत्नी’ बताया गया है। क्विंट के अनुसार, एक कर्तव्यनिष्ठ पत्नी की परिभाषा निम्नलिखित है:
- वह अपने आरोपित पति को एक महँगी गाड़ी से सरकारी एजेंसी के दफ़्तर तक छोड़ने जाती है।
- वह हमेशा अपने पति के साथ खड़ी रहती है।
- वह अपने परिवार का समर्थन करती है।
इस लेख से एक और नई बात यह पता चली है कि पितृसत्ता ने अब ब्राह्मण जाति, मणिकर्णिका फ़िल्म से होकर पूरे भारत तक का सफर पूरा कर लिया है। लेख में कहा गया है कि भारत जैसे रूढ़िवादी और पितृसत्तात्मक देश में लोग प्रियंका जैसी ‘आदर्श पत्नी’ को नेता के रूप में सहर्ष स्वीकार करेंगे।
राबड़ी देवी तो प्रियंका गाँधी से भी अच्छी पत्नी हैं
द क्विंट के इस लेख के बाद बिहार की पूर्व मुख्यमंत्री राबड़ी देवी को नाराज़ कर दिया है। 20 वर्षों से भी अधिक समय से भ्रष्टाचार के आरोप झेल रहे राजद सुप्रीमो लालू यादव कुछ मामलों में दोषी करार दिए जा चुके हैं और अभी जेल की हवा खा रहे हैं। फिर भी, राबड़ी देवी उनके साथ खड़ी हैं और उनका समर्थन करतीं हैं। अगर उनके सामने कोई लालू के ख़िलाफ़ एक शब्द भी बोले तो राबड़ी उसका मुँह नोच लें। अगर प्रियंका अपने पति को प्रवर्तन निदेशालय (ED) के दफ़्तर छोड़ मोदी को टक्कर दे सकती है, तो राबड़ी ने तो लालू को जेल तक छोड़ा है।
इस हिसाब से राबड़ी देवी को तो अब तक पूरे भारत का सर्वमान्य नेता होना चाहिए? अरे, भारत पितृसत्तात्मक और रूढ़िवादी है न? लेख में दावा किया गया है कि यहाँ लोग महिला नेताओं से जल्दी जुड़ जाते हैं और उन्हें दीदी (ममता बनर्जी), बहन जी (मायावती) और अम्मा (जयललिता) बुलाने लगते हैं।
अरे आप कहना क्या चाहती हो? भारत में महिलाओं को तुरंत नेता भी मान लिया जाता है, भारत पितृसत्तात्मक भी है। भारत में महिला नेताओं को सम्मानपूर्वक कुछ नाम देकर भी पुकारा जाता है, भारत रूढ़िवादी भी है। तभी हमारे लेख में एक बार कहा गया था- “येक पे रहना, या घोड़ा बोलो या चतुर बोलो“। वैसे तो ये पंक्ति कपिल सिब्बल के देशद्रोह क़ानून पर दिए बयान के परिपेक्ष्य में पिरोई गई थी, लेकिन इस मामले में क्विंट की लेखिका शुमा राहा पर फिट बैठती है।
महागठबंधन के नेता भी रॉबर्ट वाड्रा से करना चाह रहे शादी
वैसे, द क्विंट के इस लेख का कुछ पॉजिटिव असर भी हुआ है। महागठबंधन के नेताओं ने पूरे भारत के सर्वमान्य नेता बनने रॉबर्ट वाड्रा से शादी करने का प्रण किया है। वैसे भी, धारा 377 को ख़त्म किया जा चुका है। उन्हें पता चल गया है कि जो भी रॉबर्ट वाड्रा की पतिव्रता पत्नी का धर्म निभाएगा, उसे भारत की जनता सहर्ष ही स्वीकार करेगी। और, इस वक़्त जनता द्वारा स्वीकारे जाने के अलावा बचा ही क्या है!
कुछ नेताओं ने तो यहाँ तक दावा किया है कि वो रॉबर्ट वाड्रा को ED और CBI क्या, ज़रूरत पड़ी तो उन्हें तिहाड़ तक भी छोड़ आएँगे और, द क्विंट की नई परिभाषा के अनुसार, एक कर्तव्यनिष्ठ पत्नी बन कर मोदी को टक्कर देंगे। वैसे भी प्रियंका आदर्श पत्नी हों न हों, रॉबर्ट जैसे आदर्श किसान को अपने आदर्श पति के रूप में बहुत नेता देखते हैं क्योंकि, पत्नी तो कान में ही आपको निर्दोष कह सकती है, लेकिन मीडिया तो माइक लेकर वित्तीय धाँधली के मामले में हो रही पूछताछ में भी सकारात्मक ख़बर निकाल लाती है। इतना पावरफुल व्यक्ति किसे नहीं भाता?
वैसे यह लेख लिखते समय क्विंट एक बात भूल गया कि जिन महिला नेताओं का उसने उदाहरण दिया है उनके पतिव्रता होने या न होने पर कोई बहस हो ही नहीं सकती क्योंकि अम्मा, बहन जी और दीदी ने तो शादी ही नहीं की।
द क्विंट को झटका, दूसरे दिन नहीं आईं प्रियंका
ताज़ा ख़बरों के अनुसार, प्रियंका गाँधी ने दूसरे दिन अपने पति रॉबर्ट वाड्रा को ED दफ़्तर तक नहीं छोड़ा। द क्विंट की परिभाषा में प्रियंका दूसरे दिन ‘पतिव्रता’ महिला की परीक्षा में क्वॉलीफ़ाई नहीं कर पाई।
वैसे अब देखना यह है कि दूसरे दिन घटनाक्रम में बदलाव के बाद ‘कर्तव्यपरायण महिला’ की नई परिभाषा क्या इज़ाद की जाती है। हमें इंतज़ार रहेगा।