भारतीय वायुसेना द्वारा बालाकोट में आतंकी ठिकानों पर किए गए हमलों के बाद बालाकोट के नाम से हर व्यक्ति परिचित हो गया है। इस घटना से पहले शायद ही किसी आम व्यक्ति ने बालाकोट के बारे में जानने में दिलचस्पी जताई होगी। लेकिन क्या आप जानते हैं कि यह पहली बार नहीं है जब बालाकोट पर आतंकियो को मारने के लिए इस प्रकार का हमला किया गया। लगभग 188 साल पहले भी महाराजा रणजीत सिंह की सेना ने बालाकोट की जमीन से 300 मुजाहिदीनों का सफाया किया था।
बालाकोट आज से नहीं बल्कि क़रीब 200 सालों से आतंकवाद का केंद्र रहा है। यहीं से जिहादियों की शुरूआत हुई थी जिसकी नींव सैयद अहमद शाह बरेलवी द्वारा रखी गई थी। स्वयं को इमाम घोषित कर बरेलवी ने जिहादियों की ऐसी फौज़ तैयार की थी, जो भारतीय उपमहाद्वीप में इस्लामी हुकूमत कायम करना चाहते थे।
पाकिस्तानी लेखिका आयशा जलाल ने सैयद का जिक्र अपनी किताब पार्टिशंस ऑफ अल्लाह में भी किया है। सैयद बरेलवी का लक्ष्य भारतीय उपमहाद्वीप में इस्लामी हुकूमत को स्थापित करना था। इसलिए उसने महाराजा रणजीत सिंह की सेना के ख़िलाफ़ जिहादियों को बड़ी तादाद में एकत्रित किया। बरेलवी ने अपनी जिहादी नीतियों से महाराजा को तंग कर रखा था जिसके कारण ही महाराजा रणजीत सिंह ने अपने पुत्र के नेतृत्व में पेशावर पर कब्जा करके उसे अपने राज्य से जोड़ा था।
Pakistani historian Ayesha Jalal says Balakot has became a great site of veneration not only for jihadis but also for Pak nationalists.
— True Indology (@TrueIndology) February 26, 2019
Barelvi went all the way from Raebareli (in UP,India) to Balakot through Balochistan and Afghanistan.He urged Pashtuns to fight Sikh Kafir rule pic.twitter.com/xFns48vZAj
पाकिस्तानी लेखक अजीज अहमद के अनुसार वर्तमान रायबरेली (यूपी) के रहने वाले सैयद अहमद शाह (1786-1831) ने ही बालाकोट को जिहाद का जन्मस्थली बनाया। जिहाद की शुरूआत के लिए बालाकोट का चुनाव बरेलवी द्वारा इसलिए भी किया गया था क्योंकि उसका मानना था कि यह जगह पहाड़ों से घिरी हुई है और दूसरा इसके एक ओर नदी है जिसके कारण किसी को भी यहाँ पर पहुँचना बेहद मुश्किल होगा।
सैयद बरेलवी जानता था कि देश में अग्रेज़ों की हुकूमत से लड़ पाना उसके लिए तत्कालीन परिस्थितियों में मुश्किल था, इसलिए उसने उनके ख़िलाफ़ किसी प्रकार के जिहाद की घोषणा नहीं की। साथ ही अंग्रेज भी सैयद की इन खतरनाक गतिविधियों को जानने के बाद चुप थे क्योंकि उनका मानना था कि सैयद और उसके द्वारा तैयार किए जा रहे जिहादी लड़ाके सिख राज्य को कमजोर कर देंगे, जिससे की अंग्रेज़ों को ही फायदा पहुँचेगा। नतीजतन 1824 से 1831 तक जिहादी बालाकोट में सक्रिय रहे।
दरअसल, सैयद अहमद शाह ने राजा रणजीत सिंह द्वारा अज़ान और गौतस्करी पर प्रतिबंध लगाने की बात सुनकर जिहाद की घोषणा कर दी थी। जिस समय पर बरेलवी बालाकोट पहुँचा उस समय उसके साथ 600 जिहादी थे और पेशावर के हज़ारों पठानों द्वारा भी उसे समर्थन दिया जा रहा था।
Barelvi and his armed followers did not declare a Jihad against British.
— True Indology (@TrueIndology) February 26, 2019
1)British had not directly interfered in Muslim affairs
2) They were too powerful
He heard reports of Ranjit Singh banning Azan and cow slaughter and declared a Jihad. Curiously, he was hosted by Scindias pic.twitter.com/0UZyhr5D8p
स्वभाव से कट्टर विचारधारा वाले सैयद के बारे में एलेक्सेंडर गार्डनर ने बताया था कि उसने मात्र 30-40 रुपए के लिए अपने साथी को मौत के घाट उतार दिया था ।
Alexander Gardner, who was then in Balakot reveals that Barelvi killed his comrade for 30 rupees. He then declared Jihad against all unbelievers. pic.twitter.com/llGf9JFNw0
— True Indology (@TrueIndology) February 26, 2019
सैयद से तंग आकर महाराजा रणजीत सिंह की सेना ने बालाकोट की एक पहाड़ी के पास डेरा डाल लिया। जिसके बाद सैयद ने वहाँ धान के खेतों में पानी अधिक मात्रा में डलवा दिया ताकि जब वह हमला करने आएँ तो उनकी गति धीमी पड़ जाए।
दोनों पक्ष एक दूसरे पर हमला करने के लिए कई दिनों तक इंतज़ार करते रहे और एक दिन एक अज़ीबो गरीब घटना हुई जिसने सिख सेना को मुजाहिदीनों को मार गिराने का मौक़ा दे दिया। दरअसल, 6 मई 1831 के दिन एक जिहादी अपना दिमागी संतुलन खो बैठा और उसे अपने सामने हूरें दिखाई देने लगीं। वो एकदम से चिल्लाते हुए भागा कि उसे हूर बुला रही है और जाकर उन्हीं धान के खेतों में फँस गया जिसे सिख सेना के लिए जाल की तरह बिछाया गया था। मौक़े को परखते हुए सिखों की सेना ने उसे अपनी बंदूक का निशाना बनाकर मार गिराया। उन मुजाहिदीनों में हूरों के पास पहुँचने वाला चिराग अली पहला नाम था।
इसके बाद सिख सेना ने सभी मुजाहिदीनों को ढेर करना शुरू कर दिया। उस दौरान भी इस युद्ध में क़रीब 300 से ज्यादा जिहादियों को सिखों की सेना ने हूरों के क़रीब पहुँचाया था जिनकी कब्रें आज भी वहां पर मौजूद हैं। आज 188 साल बाद उसी जगह भारतीय वायुसेना ने वही घटना दोहराई है। बस सैयद के जिहादियों की जगह पर जैश ए मुहम्मद के 300 आतंकियों का एक साथ सफाया हुआ है और सिख सेना की जगह IAF ने विजय की पताका हवा में फहराई है।
Barelvi died without achieving his objective, but his “martyrdom” inspired thousands of Jihadi songs urging momins to engage in Jihad. Anything short of Jihad was considered “kufr”
— True Indology (@TrueIndology) February 26, 2019
He also inspired the 1897 Jihad in Peshwar against British (of which Saragarhi was an episode) pic.twitter.com/J76LcYsgyX
जरा सोचिए! जिहाद की शुरूआत करने वाले सैयद को भले ही महाराजा रणजीत सिंह की सेना ने मार गिराया हो। लेकिन आज के समय में आतंकवाद का लगातार बढ़ना कहीं न कहीं उसके द्वारा तैयार किए जिहादियों के प्रचार-प्रसार का ही नतीजा है। आए दिन न जाने कितने आतंकियों को मार गिराए जाने की खबरें हमें पढ़ने-सुनने को मिलती हैं लेकिन बावजूद इसके आतंक खत्म होने का नाम नहीं ले रहा है।
बालाकोट की ऐतिहासिक पृष्ठभूमि को देखते हुए ही शायद आतंकी संगठन जैश ने अपने आतंकियों के लिए यहाँ पर प्रशिक्षण केंद्र खोला था। ये केंद्र आम जनता की पहुंच से दूर पहाड़ों पर था। जिसे 26 फरवरी को वायु सेना के जवानों द्वारा तहस-नहस किया गया।