दिवंगत अटल बिहारी वाजपेयी ने अपनी एक कविता में वीर सावरकर के व्यक्तित्व पर कहा था, “सावरकर माने तेज, त्याग, तप, तत्व, तर्क, तारुण्य, तीर, तलवार..”। आप जब इस पुस्तक को पढ़ेंगे तो वीर सावरकर के इन सभी विशेष गुणों को आसानी से समझ जाएँगे।
डॉ मनीष श्रीवास्तव द्वारा लिखित क्रांतिदूत शृंखला का यह भाग-3 ‘मित्रमेला’ मुख्यतः वीर सावरकर पर ही केंद्रित है। इसमें वीर सावरकर के शुरुआती जीवन से लेकर उनके विदेश में जाकर शिक्षा प्राप्त करना दर्शाया गया है। उनके द्वारा लिखी गई कालजयी पुस्तक “1857 का स्वातंत्र्य समर” की प्रेरणा सावरकर को कैसे मिली, के बारे में भी ‘मित्रमेला’ में संक्षिप्त रूप से कथात्मक उपन्यास शैली में लिखा गया है।
पुस्तक पहले पृष्ठ से लेकर आखिरी पृष्ठ तक पाठकों को बाँध कर रखने में सफल है। क्रांतिदूतों व उनके गुरुओं के आपस में संवादमय तरीकें से यहाँ वीर सावरकर के क्रांतिकारी जीवन पर प्रकाश डाला गया है। वे कौन-कौन से प्रेरणास्रोत व कारण थे, जिसके कारण वे विनायक दामोदर सावरकर से ‘वीर सावरकर’ बने। इन सब ऐतिहासिक संघर्ष भरें पलों को लेखक ने बेहद खूबसूरत तरीक़े से मित्रमेला भाग में लिखा है। यहाँ हर क्रांतिकारी घटना का स्पष्ट संदर्भ भी दिया गया है और उसे छोटे-छोटे अध्यायों के माध्यम से पाठकों के सामने रखा है।
ये अध्याय स्वतंत्रत रूप में भी पूर्ण हैं तथा पुस्तक को किसी भी अध्याय से पढ़ा जा सकता है। 21 छोटे-छोटे अध्यायों में इस भाग को लिखा गया है। हर अध्याय के बाद पाठक की रुचि क्रांतिकारियों की जीवन गाथा को पढ़ने के लिए और बढ़ती जाती है। ‘मित्रमेला’ सामान्य पाठक का इतिहास विषय में रुचि पैदा करता है। वीर सावरकर को मित्रमेला में पढ़कर उनके जीवन के बारे में और जानने का मन होता है तथा साथ ही स्वतंत्रता संग्राम के ऐतिहासिक संघर्षों से पाठक यहाँ रूबरू होता है।
कैसे महाराष्ट्र के एक छोटे से गाँव से लंदन तक वीर सावरकर क्रांतिदूतों की एक महान सेना खड़ी कर देते हैं। इस सब के पीछे उनके व्यक्तित्व के विभिन्न आयामों को सुंदरता व रोचकता के साथ इस भाग में लेखक ने रचा है। मित्रमेला को पढ़ते हुए पाठक वीर सावरकर के विशाल व्यक्तित्व के निर्माण के बारे में समझ पाएगा। वीर सावरकर की जीवन गाथा वर्तमान युवा पीढ़ी के लिए जानना व समझना बहुत ज़रूरी है तथा यह कार्य ‘मित्रमेला’ को पढ़ने से आसानी से हो सकता है।
‘क्रांतिदूत’ के इस तीसरे भाग में वीर सावरकर के साथ ही श्याम जी वर्मा, चापेकर बंधु, लोकमान्य तिलक, मदनलाल ढींगरा, लाला हरदयाल, वासुदेव, रानाडे, साठे, महादेव, बालकृष्ण आदि महान क्रांतिदूतों के जीवन पर भी प्रकाश डाला गया है। कैसे कई क्रांतिदूतों ने वीर सावरकर की सहायता की व उन्हें भारत की स्वतंत्रता के लक्ष्य पर आगे बढ़ने के लिए कौन कौन से संघर्ष व त्याग करने पड़े, यह सब आप इस भाग में संक्षिप्त रूप में पढ़ सकते हैं।
‘मित्रमेला’ वीर सावरकर के द्वारा बनाया गया संगठन था, जो कि विभिन्न सांस्कृतिक, सामाजिक व देशभक्ति से संबंधित आयोजन करता था। इसी के द्वारा सर्वप्रथम वीर सावरकर ने राष्ट्रवाद की अलख जगाई थी। आगे चलकर इस संगठन से कई महान क्रांतिदूत जुड़ते गए। ‘मित्रमेला’ में यह सब रोचकता से कहा गया है। इस भाग में ‘अभिनय भारत संगठन’ पर भी चर्चा की गई है। इसकी प्रेरणा व इसके ऐतिहासिक महत्व पर भी प्रकाश डाला गया है।
इस भाग में मुख्यतः 1900 से 1920 के स्वतंत्रता संग्राम पर चर्चा की गई है व साथ ही उस समय में अंग्रेजों की नीति व शासन पर तीखी आलोचना के माध्यम से पाठकों के सामने बहुत सी बातें यहाँ रखी गई है। गाँधी व नेहरू की कथनी व करनी पर भी क्रांतिदूतों को उनके शिक्षक इस भाग में बहुत सी बातें स्पष्टता से बताते हैं किन्तु इस भाग में मुख्य नायक वीर सावरकर ही है व उनके चमत्कारी व्यक्तित्व पर बहुत ही पठनीय भाषा व भाव के साथ लिखा गया है।
यहाँ एक अध्याय विशेष तौर पर श्याम जी वर्मा के जीवन पर व उनके क्रांतिकारी कार्यों पर प्रकाश डालता है। यहाँ लेखक ने श्याम जी के जीवन पर विशेष प्रकाश इसलिए भी डाला है कि वीर सावरकर के कृतित्व व व्यक्तित्व निर्माण में उनका बड़ा योगदान रहा था। लंदन में स्थित उस समय के दो महत्वपूर्ण स्थान इंडिया हाऊस व इंडिया आफिस पर भी लेखक ने यहाँ रोचक बातें रखी है। कैसे ये स्थान क्रांतिदूतों के लिए महत्वपूर्ण बने। यह सब पढ़ना सामान्य पाठक के लिए रुचिकर, स्वतंत्रता संग्राम के लिए जिज्ञासा उत्पन्न करने वाला व प्रेरणादायक है।
एक बार फिर इस शृंखला के इस भाग को पढ़कर भी इन महान क्रांतिदूतों की जीवन गाथा जानने की जिज्ञासा बढ़ती जाती है। उस समय विदेश में पढ़ रहे भारतीय युवा कैसे वीर सावरकर के कहने पर अपना बना-बनाया करियर छोड़कर स्वतंत्रता संग्राम के लिए अपना सर्वस्व न्योछावर कर देते हैं। यह सब वर्तमान भारतीय युवा पीढ़ी को जानना जरूरी है।
‘अर्धसत्य’ अध्याय में गाँधी व नेहरू की कथनी व करनी पर तीखी आलोचना की गई है व पाठकों के सामने तथ्यों सहित इनके कृतित्व पर संक्षिप्त प्रकाश डाला गया है। आप नीचे दिए गए संवाद में क्रान्तिदूतों की हैरानी स्पष्ट देख सकते हैं।
उस समय श्याम जी वर्मा व वीर सावरकर का कद स्वतंत्रता संग्राम के इतिहास में गाँधी व नेहरू से बड़ा था। बाद के इतिहासकारों ने कैसे आम जनमानस से इन महान क्रांतिदूतों को अलग कर दिया, यह इस भाग को पढ़कर आसानी से समझा जा सकता है। आखिरी के अध्यायों में वीर सावरकर को ‘1857 का स्वातंत्र्य समर’ पुस्तक लिखने व समझने की प्रेरणा कैसे मिली यह पढ़ना प्रेरणादायक है। इस पुस्तक को लिखने के लिए उन्होंने तथ्यों की सत्यता के तह में जाकर कैसे एक कालजयी पुस्तक लिखी यह जानकार मन आश्चर्य से भर उठता है।
कैसे उन्होंने भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के एक महत्वपूर्ण व बड़े अध्याय को नष्ट होने से बचाया और कितने ही क्रांतिदूतों को स्वतंत्रता के लिए एक बड़ा हथियार इस पुस्तक के माध्यम से दिया। इस पुस्तक को लिखने में लंदन के इंडिया आफिस में पदस्थ मुखर्जी साहब ने सावकार जी का विशेष सहयोग किया था। इंडिया आफिस में संग्रहित दस्तावेजों के आधार पर वीर सावरकर ने भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के इतिहास में एक चमत्कार सा कर दिया था। इतिहास से नया इतिहास रचने की चमत्कारी कला में वीर सावरकर सबके गुरू बनकर विश्व पटल पर छा गए थे।
चौथा भाग आने तक,अब आप #क्रांतिदूत के तीनों भाग एक साथ पढ़ सकते हैं।
— डॉ. मनीष श्रीवास्तव (@Shrimaan) July 5, 2022
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अंग्रेज उनके इस चमत्कारी व्यक्तित्व से अब चिढ़ने व सर पीटने लगे थे। अंत में इतना ही कह सकता हूँ कि क्रांतिदूत की शृंखला इस भाग को पढ़ने पर वर्तमान युवा पीढ़ी जरूर भारतीय स्वतंत्रता समर के इतिहास को विस्तार से पढ़ने के लिए प्रेरित होगी व साथ ही राष्ट्रवाद की ओर प्रेरित होगी। यह भाग इतिहास को जानने के लिए एक नवीन दस्तावेज बन सकता है। इतिहास के नए लेखक व छात्रों के लिए यह शृंखला नया दृष्टिकोण व नवीन आयाम लेकर आई है।
(लेखक भूपेंद्र भारतीय अधिवक्ता हैं और मध्य प्रदेश के देवास से ताल्लुक रखते हैं)