आंध्र प्रदेश हाईकोर्ट ने कहा है कि हिन्दू मंदिरों में केवल वही लोग काम कर सकते हैं जो हिन्दू हैं। हिन्दू मंदिरों में दी जाने वाले नौकरियों में मुस्लिमों और ईसाइयों या अन्य धर्मों के लोगों को नौकरियाँ नहीं दी जा सकती। आंध्र प्रदेश हाईकोर्ट ने यह निर्णय एक व्यक्ति द्वारा दायर याचिका पर दिया।
दरअसल, P सुदर्शन बाबू नाम के एक ईसाई व्यक्ति ने आंध्र प्रदेश हाईकोर्ट के समक्ष यह याचिका दायर की थी कि उसे ईसाई होने के कारण श्रीशैलम देवस्थानम बोर्ड की नौकरी से ना निकाला जाए। हाईकोर्ट ने उसकी यह याचिका रद्द कर दी। दरअसल, ईसाई पी सुदर्शन को वर्ष 2002 में आंध्र प्रदेश के मल्लिकार्जुन ज्योतिर्लिंग का प्रबंधन करने वाले श्रीशैलम देवस्थानम बोर्ड में रिकॉर्ड असिस्टेंट के तौर पर नौकरी दया के आधार पर दी गई थी। जब उसे 2002 में नौकरी मिली तो वह ‘माला’ नाम की अनुसूचित जाति से संबंध रखता था।
जानकारी के अनुसार, नौकरी पाने के कुछ वर्षों के बाद उसने एक ईसाई महिला से विवाह कर लिया। इसके पश्चात उसके खिलाफ लोकायुक्त के पास शिकायत दर्ज करवाई गई कि उसने अपना असली ईसाई मजहब छुपाया है और खुद को हिन्दू बताकर नौकरी हासिल की है। सुदर्शन ने इसके बदले लोकायुक्त को अपने पुराने कागज दिखाए जिसमें उनकी अनुसूचित जाति को लेकर जानकारी दर्ज थी।
हालाँकि, लोकायुक्त के समक्ष होली क्रॉस चर्च के भी कागज लाए गए। लोकायुक्त ने उसके सभी कागजों की जाँच और अन्य सभी बिन्दुओं को देखते हुए स्पष्ट किया कि सुदर्शन ने अपना मजहब छुपाया है। इसी के चलते उसको नौकरी से निकाल दिया गया।
सुदर्शन ने वर्ष 2012 में अपने नौकरी से निकाले जाने के विरुद्ध आंध्र प्रदेश हाईकोर्ट में याचिका दायर की। उसका कहना था कि उसने नौकरी लेते समय अपना धर्म नहीं छुपाया है। हालाँकि, उच्च न्यायालय ने उसकी बात नहीं मानी। कोर्ट ने कहा कि उसका विवाह एक ईसाई महिला से हुआ है और यदि उसने बिना धर्म बदले महिला से विवाह किया होता तो यह विशेष विवाह अधिनियम के अंतर्गत आता। इस विवाह के लिए उसे प्रमाण पत्र भी दिया जाता। यह सुदर्शन के मामले में नहीं हुआ। ऐसे में स्पष्ट है कि महिला-पुरुष दोनों का धर्म एक ही था।
कोर्ट ने यह भी कहा कि होली क्रॉस चर्च के रिकॉर्ड में उसके नाम के आगे रिलीजन वाले कॉलम में ईसाई दर्ज है और उसने इस पर हस्ताक्षर किए थे। ऐसे में यह स्पष्ट होता है कि वह ईसाई है। वह श्रीसेलम मंदिर में काम नहीं कर सकता है इसलिए उसकी याचिका खारिज की जाती है।