हिन्दुओं के धर्मग्रंथों को छापने वाली गीता प्रेस का 99 साल बाद कायाकल्प होने वाला है। अब गोरखपुर में गीताप्रेस में पुस्तकों का प्रकाशन हाईटेक तकनीक से होगा। इसके लिए अब जापान और जर्मनी की मशीनों को प्रयोग में लाया जा रहा है। इन मशीनों से 16 भाषाओं 1800 से भी अधिक पुस्तकों की 50,000 कॉपियों को प्रतिदिन प्रकाशित किया जा रहा है। ANI ने इसकी विस्तार से रिपोर्ट 1 मार्च (मंगलवार) प्रकाशित की है।
Gita Press goes high-tech after 99 years; German, Japanese machines help print over 50,000 copies daily
— ANI Digital (@ani_digital) March 1, 2022
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गीता प्रेस की पुस्तकें अधिकतर धार्मिक स्वभाव के हिन्दुओं के पूजा घरों में पाई जाती हैं। इन पुस्तकों में भगवत गीता, पुराण, चालीसा, रामायण और महाभारत जैसे ग्रंथ प्रमुखहैं। आज़ादी के संघर्ष के दौरान गीता प्रेस की स्थापना साल 1923 में हुई थी। इसको जय दयाल गोयनका ने स्थापित किया था। ANI को इन तमाम तथ्यों और नए बदलाव की जानकारी गीता प्रेस ट्रस्ट में ट्रस्टी देवी दयाल अग्रवाल ने दी है।
देवी दयाल के अनुसार, “अभी हम 15 भाषाओं में लगभग 1800 पुस्तकें रोज छाप रहे है। किताबों की माँग इस उत्पादन से काफी अधिक है। हम लोगों की डिमांड पूरी करने के सभी कदम उठा रहे हैं। हमारा ध्यान लोगों को कम दामों में अच्छी किताब दिलाने पर है। ऐसा करने का हमारा पहले का इतिहास रहा है। हमने कभी फायदे के लिए काम नहीं किया। लोग इस बात से आश्चर्य भी करते हैं कि हम कम दाम में ऐसा कैसे कर पाते हैं।”
देवी दयाल ने आगे कहा, “हम पुस्तकों के दाम काबू में इसलिए रख पाए क्योकि हम कच्चा माल इंडस्ट्री से नहीं खरीदते थे। गीता प्रेस को कोई डोनेशन नहीं मिलता। हम इसे अपने दम पर चला रहे हैं। हम किताबों को सरल भाषा में इसलिए अनुवाद करते हैं जिस से वो लोगों को आसानी से समझ में आ जाए। साथ ही हम प्रिंट की क्वालिटी भी अच्छी रखते हैं जिस से लोगों को पढ़ने में आसानी हो। आज गीता प्रेस की पहुँच हर घर तक है। तब तक हम 71.77 करोड़ कॉपियाँ बेच चुके हैं। इसमें 1 लाख श्रीमद भगवत गीता, 1139 लाख रामचरित मानस, 261 लाख पुराण उपनिषद, महिलाओं और बच्चों के लिए उपयोगी पुस्तकें 261 लाख, 1740 भक्ति चैत्र और भजन माला और अन्य पुस्तकें 1373 लाख शामिल हैं।”
गीता प्रेस वर्तमान में 1830 किताबें प्रकाशित किया है। इनमें 765 किताबें संस्कृत और हिंदी में हैं। साथ ही अन्य पुस्तकें मलयालम, तेलगु, गुजरती, तमिल, उड़िया, मराठी, उर्दू, असमिया, बंगाली, पंजाबी और अंग्रजी में हैं। गीता प्रेस ने 16 वीं सदी में अवधी भाषा में लिखी गई रामचरित मानस को नेपाली अनुवाद के साथ भी प्रकाशित किया है। 29 अप्रैल 1923 में जय दलाय गोयनका द्वारा स्थापित इस संस्थान का उद्देश्य सनातन धर्म का प्रचार करना था।
गीता प्रेस उस समय स्थापित हुआ था जब भारत में धर्म परिवर्तन अपने चरम पर था। इसकी स्थापना के बाद इसके विस्तार में प्रसाद पोद्दार का बड़ा योगदान रहा। स्थापना के पहले 4 वर्षों तक गीता प्रेस ने प्राचीन धर्मग्रंथ ही छापे थे। इसके प्रकाशन का दायरा साल 1927 में तब बढ़ा जब पोद्दार ने कल्याण नाम की एक मैगज़ीन प्रकाशित की। इस कदम ने गीता प्रेस को एक नई पहचान दी। साल 2023 में गीता प्रेस की स्थापना के 100 साल पूरे होने जा रहे हैं। अभी गीताप्रेस में लगभग 400 कर्मचारी का कर रहे हैं। इनके काम करने के तरीके से हर कोई प्रभावित हैं। वो बिना शोर मचाये शांति से अपना काम करते हैं।
गीता प्रेस की अति प्रसिद्ध पुस्तक कल्याण के हिंदी वर्जन को लगभग 245000 लोगों ने सब्स्क्राइब कर रखा है। इसी के इंग्लिश वर्जन कल्याण – कल्पतरु को लगभ्याग 100000 लोगों ने सब्स्क्राइब किया है। गीता प्रेस के कार्यालय को भी धार्मिक रूप से बनाया गया है। यहाँ प्रवेश द्वारा पर एलोरा की गुफाओं के चित्रों के साथ श्रीकृष्ण और अर्जुन की तस्वीर दिखाई देती है। यहाँ दरवाजों पर चारों धाम के चित्र बने हुए हैं। गीता प्रेस का कार्यालय कुल 32 एकड़ में फैला हुआ है। इसके कार्यालय का उद्घाटन 29 अप्रैल 1955 को भारत के पहले राष्ट्रपति डॉ राजेंद्र प्रसाद ने किया था। गीता प्रेस में कुल 4 विभाग हैं। इसमें प्री प्रेस, प्रिंटिंग, बाइंडिंग और डिस्ट्रीब्यूशन शामिल हैं। दरवाजे पर ‘सत्य बोलो और धर्म का पालन करो’ लिखा हुआ है।