Sunday, November 17, 2024
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‘4 लाख वर्षों से अयोध्या आ रहे श्रद्धालु’: जहाँगीर के समय ही अंग्रेज यात्री ने लिख दिया पर वामपंथियों ने छिपाया – ‘यहाँ हुआ था रामचंद्र का जन्म, दुनिया का तमाशा देखने के लिए अवतार’

विलियम हॉकिंग्स ने ही तत्कालीन बादशाह जहाँगीर को पत्र लिख कर भारत में फैक्ट्री स्थापित करने की अनुमति माँगी थी। वो अपने साथ इंग्लैंड के तत्कालीन राजा जेम्स प्रथम का एक पत्र जहाँगीर के लिए लेकर आए थे।

अयोध्या में राम मंदिर का सपना साकार हो रहा है और 22 जनवरी, 2023 को उद्घाटन के साथ ही हिन्दुओं के 500 वर्षों के संघर्ष का परिणाम उनके समक्ष भव्य स्वरूप में उपस्थित होगा। इस संघर्ष के पीछे कई हिन्दुओं का बलिदान है, जिन्होंने इस्लामी आक्रांताओं, अंग्रेजों और फिर सेक्युलर सत्ताधीशों के सामने सीना ठोक कर अपने अधिकार की लड़ाई लड़ी। आज उन बलिदानों को याद करने का समय है, लेकिन फिर से ये याद करने का भी समय है कि कैसे एक मंदिर को मस्जिद में परिवर्तित करने के लिए इस्लामी आक्रांताओं ने पूरा इतिहास ही अपने हिसाब से बदल डाला।

उनके जाने के बाद वामपंथी इतिहासकारों ने इसका बीड़ा उठाया और ये साबित करने की कोशिश की कि अयोध्या में कभी राम मंदिर था ही नहीं। ऐसे वामपंथी इतिहासकारों को सुप्रीम कोर्ट तक की फटकार मिली। आज फिर से समय है इतिहास को देखने का, जो हमें भूलना नहीं है। आइए, चलते हैं 17वीं शताब्दी में जानते हैं कि कैसे अयोध्या सदियों से भगवान श्रीराम की भूमि रही है। वामपंथी इतिहासकार तो रामायण और रामचरितमानस तक को नहीं मानते, लेकिन अंग्रेजों के लिखे पर वो क्या कहेंगे?

अगस्त 1608 में विलियम फिंच नाम का एक यात्री भारत आया था। सूरत में वो कैप्टन हॉकिंस के साथ पहुँचा था। बड़ी बात ये है कि वो जब 1608-11 में अयोध्या पहुँचा तो उसने लिखा है कि कैसे यहाँ के लोग भगवान श्रीराम की पूजा करते हैं और प्राचीन काल से ही ये नगर उनसे जुड़ा हुआ है। बता दें कि सर विलियन हॉकिंस ‘ईस्ट इंडिया कंपनी’ के प्रतिनिधि थे। 24 अगस्त, 1608 को जो अंग्रेजों का पहला जहाज सूरत में उतरा था, उसका नाम ‘हेक्टर’ था और विलियम हॉकिंस ही उसके कैप्टन थे।

विलियम हॉकिंग्स ने ही तत्कालीन बादशाह जहाँगीर को पत्र लिख कर भारत में फैक्ट्री स्थापित करने की अनुमति माँगी थी। वो अपने साथ इंग्लैंड के तत्कालीन राजा जेम्स प्रथम का एक पत्र जहाँगीर के लिए लेकर आए थे। उन्हीं के साथ आए विलियम फिंच ने आगरा और अन्य शहरों में रह कर यहाँ की रीति-रिवाज को समझा और मुगलों के काम करने की प्रक्रिया को जाना। उस समय भारत में पुर्तगाली अक्सर कारोबार करते थे और इंग्लैंग को उनके विरोध का सामना करना पड़ा।

खम्भात के सूबेदार से विलियम फिंच ने अनुमति ले ली कि वो अपना माल सूरत में उतार सकता है। बाद में उसके बीमार पड़ने के कारण ही विलियम हॉकिंस को अकेले मुग़ल दरबार में जाना पड़ा था। अंग्रेजों को कपड़ों का व्यापार करने की अनुमति मिली थी। विलियम हॉकिंस को तुर्की भाषा आती थी और इस कारण मुगलों से बातचीत में उन्हें कोई समस्या नहीं हुई। हालाँकि, तब जहाँगीर के करीबी मुक़र्रब खान (जो बाद में कन्वर्ट होकर रोमन कैथोलिक बन गया था) ने ने पुर्तगालियों के इशारे पर अंग्रेजों के काम में अड़ंगा लगाया।

हालाँकि, जहाँगीर को विलियम हॉकिंग्स काफी पसंद आए थे और उसने उन्हें अपने दरबार में रहने का ऑफर दिया। उनके लिए न सिर्फ मासिक वेतन तय किया गया, बल्कि 400 घोड़े भी उनके कमांड में आए गए। हालाँकि, हॉकिंस को मनपसंद अनुमति नहीं मिली और उन्हें वापस जाना पड़ा। हालाँकि, बाद में अंग्रेजों की नौसेना ने लाल सागर में भारत का कारोबार रोका और फिर मुगलों के साथ उनकी डील हुई। फिर सन् 1615 में सर थॉमस रो जहाँगीर के साथ तोहफे लेकर अजमेर पहुँचे।

ये तो थी अंग्रेजों के सूरत और जहाँगीर के दरबार में पहुँचने की कहानी। अब बात करते हैं कि विलियम फिंच ने अयोध्या के बारे में क्या लिखा था, “अयोध्या यहाँ 50 ईसापूर्व से स्थित है। ये एक प्राचीन नगर है। ये एक पवित्र राजा का स्थल है। हालाँकि, अभी इसके अवशेष ही बचे हैं। यहाँ 400 वर्ष पूर्व बने रामचंद्र के महलों और घरों के खँडहर अभी तक हैं। भारतीय उन्हें भगवान मानते हैं, जिन्होंने दुनिया का तमाशा देखने के लिए शरीर धारण किया था।”

विलियम फिंच आगे लिखता है कि वहाँ कई ब्राह्मण रहते हैं, जिनके पास वहाँ आने वाले श्रद्धालुओं के नाम-पता की सूची दर्ज है। उसने ये जिक्र भी किया है कि पवित्र सरयू नदी में स्नान करने के लिए वहाँ हिन्दू आते हैं। वो लिखता है कि कैसे हिन्दू बताते हैं कि इस पवित्र स्नान की प्रक्रिया 4 लाख वर्षों से चली आ रही है। उसने नदी से 2 कोस की दूरी पर स्थित गुफाओं का जिक्र भी किया है, जो काफी संकरी हैं और माना जाता है कि वहाँ भगवान श्रीराम के शरीर का भस्म भूमि को समर्पित किया गया था।

बाबरी ढाँचा तो आपको याद होगा? इसे कारसेवकों ने 1992 में ध्वस्त कर दिया, लेकिन इस ढाँचे की तस्वीर आपने देखी होगी। उस ज़माने की अधिकतर संरचनाएँ आर्किटेक्चर के मामले में समृद्ध होती थी। लेकिन, बाबरी ढाँचा को देख कर ऐसा लगता था जैसे बाबर के सेनापति मेरे बाक़ी ने आनन-फानन में इसे बनवा दिया होगा, क्योंकि इसका प्रारूप बड़ा ही बेकार नज़र आता था। राम मंदिर को ध्वस्त कर उसके ही मलबों से इसे तैयार कर दिया गया।

बग़दाद में विलियम फिंच का संक्रामक पानी पीने के कारण मौत हो गई थी। विलियम फिंच तो छोड़िए, यहाँ तक कि आइन-ए-अकबरी में भी भगवान विष्णु के 10 अवतारों का जिक्र है और इसमें भी लिखा है कि श्रीराम का जन्म अयोध्या में हुआ था। विलियन फिंच ने श्रद्धालुओं की सूची और उनका विवरण रखने वाले ब्राह्मणों का जिक्र किया है। इन्हें हम पंडा कहते हैं। पंडा बड़े धार्मिक स्थलों पर होते ही होते हैं। आज भी आप देवघर चले जाइए, वहाँ पंडों के पास सारे डिटेल्स होंगे आपके पूर्वजों के अगर वो वहाँ जाते रहे होंगे। ये सिर्फ एक उदाहरण है।

‘अर्ली ट्रेवल्स टू इंडिया 1583-1619’ नामक पुस्तक में विलियन फिंच का लिखा हुआ दर्ज है। राम मंदिर के वकील CS वैद्यनाथन ने भी सुप्रीम कोर्ट में इसका जिक्र किया था। इस पुस्तक को इतिहासकार विलियम फोस्टर ने लिखा था। विलियम फिंच के बारे में बता दें कि अंग्रेजी में कश्मीर के बारे में लिखने वाले पहले यात्रियों में उसका नाम आता है। पंजाब, पूर्वी तुर्किस्तान और पश्चिमी चीन को जोड़ने वाले व्यापारिक रूट के बारे में भी उसने लिखा था।

उसने काले बारूद की तरह दिखने वाले चावलों का भी जिक्र किया है। विलियम फिंच ने लिखा है कि देश के अलग-अलग हिस्सों से यहाँ आने वाले श्रद्धालु अपने साथ ऐसे चावल के कुछ दाने प्रसाद के रूप में लेकर जाते हैं। उनका मानना है कि ये हमेशा से चलता आ रहा है। उसने रामचंद्र के खँडहरों में बड़ी मात्रा में सोना होने का दावा भी किया है। उसने ये भी लिखा है कि व्यापारिक दृष्टिकोण से भी अयोध्या समृद्ध है। साफ़ है, ये कारोबार का भी बड़ा स्थल था।

बकौल विलियम फिंच, अयोध्या में घोड़े के सींग बहुतायत में मिलते थे और उनका इस्तेमाल कर के ढाल बनाई जाती थी। साथ ही तरह-तरह के पीने के प्याले बनाने में भी उनका इस्तेमाल किया जाता था। उसने कुछ भारतीयों के हवाले से लिखा है कि इनमें से कुछ सींग काफी दुर्लभ हैं, यहाँ तक कि आभूषणों की तुलना भी उनसे नहीं हो सकती। इसका अर्थ है कि अयोध्या एक महत्वपूर्ण जगह हुआ करती थी, आध्यात्मिक गतिविधियों के लिए भी और आर्थिक गतिविधियों के लिए भी।

पढ़ें विलियम फिंच ने अयोध्या के बारे में क्या लिखा था

इन सबके बावजूद 500 से भी अधिक वर्षों तक हिन्दुओं को अपने आराध्य देव के जगह पर अपना अधिकार साबित करने के लिए लड़ना पड़ा, बलिदान देना पड़ा और दूसरे पक्ष की क्रूरता का सामना भी करना पड़ा। आज हमें दिवाली पर जगमगाती अयोध्या देखनी है, खुश होना है, लेकिन इसके पीछे का बलिदान और इसका इतिहास नहीं भूलना है। वामपंथी इतिहासकारों को अब जब तथ्यों के साथ जवाब दिया जा रहा है और वो झूठे साबित हो रहे हैं, हमें भी तथ्यों से लैस रहना है।

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अनुपम कुमार सिंह
अनुपम कुमार सिंहhttp://anupamkrsin.wordpress.com
भारत की सनातन परंपरा के पुनर्जागरण के अभियान में 'गिलहरी योगदान' दे रहा एक छोटा सा सिपाही, जिसे भारतीय इतिहास, संस्कृति, राजनीति और सिनेमा की समझ है। पढ़ाई कम्प्यूटर साइंस से हुई, लेकिन यात्रा मीडिया की चल रही है। अपने लेखों के जरिए समसामयिक विषयों के विश्लेषण के साथ-साथ वो चीजें आपके समक्ष लाने का प्रयास करता हूँ, जिन पर मुख्यधारा की मीडिया का एक बड़ा वर्ग पर्दा डालने की कोशिश में लगा रहता है।

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