सिख पंथ में 10 गुरुओं में से गुरु नानक, गुरु तेग बहादुर और गुरु गोविंद सिंह के बारे में तो काफी कुछ लिखा जा चुका है, लेकिन तीसरे गुरु अमर दास के बारे में लोगों को अधिक जानकारी नहीं है। मार्च 26, 1552 को उन्होंने 73 वर्ष की उम्र में सिखों के तीसरे गुरु के रूप में दायित्व संभाला और 95 वर्ष की उम्र में अपने निधन तक इस पद पर रहे। 60 वर्ष की उम्र में सिखों के दूसरे गुरु अंगद से प्रभावित होकर वो सिख संप्रदाय का हिस्सा बने थे।
गुरु अमर दास जब सिखों के गुरु थे, तब दिल्ली में मुग़ल बादशाह अकबर का राज़ था। उसके अब्बा हुमायूँ को दिल्ली की सत्ता से बेदखल होने के बाद दर-दर की ठोकरें खानी पड़ी थीं और उसका जन्म भी इसी दौरान हुआ था, ऐसे में उसे पता था कि अगर हिंदुस्तान में अपने साम्राज्य का विस्तार करना है तो हिन्दुओं को खुश रखना पड़ेगा और यही कारण है कि उसने अपने दरबार में हिन्दुओं को अहम पद दिए और उनके हित में फैसले लेने का दिखावा किया।
हिन्दू राजाओं को हिन्दू शासकों से ही लड़वाने में वो दक्ष था। एक कहानी अकबर की गुरु अमर दास से मुलाकात की भी है। गुरु अमर दास लंगर भी चलाते थे, जिसमें जात-पात से लेकर अमीर-गरीब तक का भेद भी मिट जाता था। उनका कहना था कि ईश्वर की नज़र में सभी मनुष्य एक हैं। यही वो समय था जब अकबर के कानों तक भी ये बात पहुँची और वो सिखों के बारे में और अधिक जानने के लिए उत्सुक हो उठा।
1571 में बादशाह अकबर की गोइंदवाल साहिब में गुरु मार दास से मुलाकात हुई, जो अभी तरनतारन जिले में स्थित है। तब तक लंगर प्रथा सिख समुदाय का एक अभिन्न अंग और पहचान बन चुकी थी। गुरु अमर दास ने एक सीधा नियम बना रखा था – पहले तो सारे भेदभाव बिठा कर बाकी लोगों के साथ भोजन करना है और फिर उनसे सभा में मुलाकात करनी है। उनका कहना था कि राजा हो या सम्राट, सभी ईश्वर के बनाए हुए हैं और उन्हें ईश्वर के सामने झुकना चाहिए।
अकबर ने भी वहाँ आकर इन नियमों का पालन किया क्योंकि वो इस तरह की व्यवस्था देख कर हतप्रभ था। अकबर के समय मुगलों और सिखों के बीच कोई संघर्ष नहीं हुआ। जहाँगीर के सत्ता संभालने और गुरु अर्जुन दास द्वारा अमृतसर में दास ने अमृतसर में स्वर्ण मंदिर का निर्माण शुरू करवाया, तब से तनाव का दौर शुरू हुआ और ये लड़ाई इस्लामी कट्टरवाद बनाम सनातन धर्म की होती चली गई।
अकबर ने उन्हें जमीन देनी चाही, जिस पर कोई कर नहीं लगता। लेकिन, गुरु अमर दास ने इस तोहफे को अस्वीकार कर दिया। बाद में ये भूमि बीबी भानी को दी गई और फिर बीबी भानी के पति रामदास को। गुरु रामदास ही बाद में अपने ससुर गुरु अमर दास के उत्तराधिकारी बने। अमृतसर के बासरके में भल्ला खत्री परिवार में जन्मे गुरु अमर दास के बारे में बहुत कम लोगों को ये पता है कि वो एक वैष्णव संत भी हुआ करते थे।
वैष्णव मत में विश्वास रखने वाले अमर दास को हरिद्वार की यात्रा खासी पसंद थी और वो वहाँ अक्सर तीर्थाटन के लिए जाया करते थे। कम से कम उन्होंने 20 बार हरिद्वार की यात्रा की। इन्हीं यात्राओं में से किसी एक के दौरान उन्हें एक अज्ञात साधु मिला, जिसने उन्हें कोई गुरु बनाने को कहा। उनकी ये इच्छा जल्द ही पूरी हुई जब उनके परिवार में बीबी अमारो की शादी हुई। वो गुरु अंगद देव की बेटी थीं।
उनके माध्यम से ही वो गुरु अंगद से मिले और अगले 12 वर्षों तक एक चित्त से उनकी सेवा की। तड़के सुबह वो सूर्योदय से 3 घंटे पहले उठ जाया करते थे और गुरु के स्नान के लिए नदी से पानी लाते थे। दिन में वो लंगर में सेवा देते थे। भोजन पकाने और परोसने से लेकर साफ़-सफाई तक का जिम्मा उन्होंने उठाया था। फिर वो गुरु के लिए लकड़ियाँ चुन कर लाते थे। सुबह और शाम का समय प्रार्थना और ध्यान में जाता था।
एक तूफानी रात में उन्होंने अंधड़ के बीच अपने गुरु के लिए व्यास नदी से पानी लाया। वो खुद गिर गए लेकिन पानी को कुछ नहीं होने दिया। इस दौरान उनके गिरने से एक महिला की निद्रा भंग हो गई थी, जिसने उन्हें बेघर कह दिया था। जब गुरु अंगद को ये बात पता चली तो उन्होंने अमर दास को ‘बेघरों का घर’ और कमजोरों का समर्थक कहा। गुरु बनने के बाद गोइंदवाल को ही अमर दास ने अपना मुख्यालय बनाया।
9/ Bhai Amar Das Ji was appointed Guru Amar Das Ji at the age of 73, by Guru Angad Dev Ji. Gurudwara Thara Sahib marks the spot – itself connected to the history of 8 Gurus.. pic.twitter.com/tqeDUBUWju
— Ramblings of a Sikh (@RamblingSingh) May 5, 2021
उन्होंने भारत के अलग-अलग हिस्सों में 22 ‘मँजियों’ की नियुक्ति की, जो गुरु नानक का सन्देश जनता तक पहुँचाते थे। कुरुक्षेत्र की यात्रा भी की थी। महिलाओं के उत्थान के लिए गुरु अमर दास हमेशा सक्रिय रहते थे। वो इस्लाम के पर्दा प्रथा के खिलाफ थे। उन्होंने महिलाओं को कई जिम्मेदारियाँ दे रखी थीं। उन्होंने अकबर से माँग रखी थी कि हरिद्वार के तीर्थाटन पर कर न लिया जाए, जिसे मुग़ल बादशाह ने स्वीकार कर लिया।
गोइंदवाल में ही उनकी और अकबर की बैठक का नतीजा निकला कि प्राचीन मद्र देश के अमृत सरोवर और उसके आसपास के इलाके का हिस्से को वापस किया गया। बाद में वहाँ कई निर्माण कार्य शुरू हुए और अब वहाँ सिखों का पवित्र स्थल भी है। जब गुरु अमर दास हजारों लोगों के साथ यमुना नदी पार कर के हरिद्वार पहुँचे थे तब वहाँ के साधुओं और संन्यासियों ने उनका बखूबी स्वागत किया था।
इस दौरान उन्होंने कर माँगने आए मुगलों के कई लोगों को वापस भेजा। अमृतसर के स्वर्ण मंदिर के लिए जगह का चयन उन्होंने ही किया था, जो आज सिखों का सबसे लोकप्रिय स्थल है। ‘हरमंदिर साहिब’ का अर्थ ही था ‘हरि का मंदिर’। हरि अर्थात ईश्वर। भगवन विष्णु को हरि नाम से पुकारा जाता है। तीर्थाटन, मंदिरों, पर्व-त्योहारों और धार्मिक क्रियाओं को वो धर्म का अभिन्न अंग मानते थे और इन्हें खूब बढ़ावा दिया।
उन्होंने ही ‘आदि ग्रन्थ’ की रचना शुरू की थी, जो बाद में पवित्र गुरुग्रंथ साहिब कहलाया। वो सीधी भाषा में लोगों को समझाते थे, जिस कारण वो लोकप्रिय भी हुए और उनका सन्देश सुनने के लिए दूर-दूर से लोग आते थे। वो जहाँ भी जाते, वहाँ भारी भीड़ जुट जाती। एक और रोचक बात जानने लायक ये भी है कि जिन गुरु अंगद को उन्होंने अपना गुरु मान कर जीवन भर सेवा की, वो उनसे 25 साल छोटे थे।