अयोध्या में निर्माणाधीन रामजन्मभूमि पर मूर्ति की प्राण प्रतिष्ठा 22 जनवरी 2024 को प्रस्तावित है। मूर्ति की स्थापना प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा किया जाना तय हुआ है, जिसमें देश और विदेश के कई नामचीन लोग मौजूद होंगे। कई सदियों बाद आए इस अवसर पर हिन्दू समाज उन बलिदानियों को याद कर रहा है, जिन्होंने मुगल से मुलायम काल तक रामजन्मभूमि मुक्ति आंदोलन में अपने प्राण न्योछावर कर दिए। उन्हीं तमाम ज्ञात-अज्ञात बलिदानियों में से एक थे उत्तर प्रदेश के अलीगढ़ निवासी भगवान सिंह जाट। ऑपइंडिया ने भगवान सिंह के परिवार में सम्पर्क करके वर्तमान हालातों की जानकारी ली।
2 नवंबर 1990 को जब तत्कालीन मुख्यमंत्री मुलायम सिंह यादव ने ‘अयोध्या में परिंदा भी पर नहीं मार सकेगा’ का एलान किया था, तब भगवान सिंह रामजन्मभूमि के पास पहुँच गए थे। यहाँ पर वो तत्कालीन सरकार के आदेश पर जवानों द्वारा चलाई गोली का शिकार हो गए। भगवान सिंह मूलतः अलीगढ़ जिले के नगला बलराम गाँव के निवासी थे। फ़िलहाल अब उनका परिवार अलीगढ़ के ही अतुर्रा गाँव में रहता है। पारम्परिक तौर पर परिवार की आजीविका का मूल साधन खेती-किसानी है। भगवान सिंह कुल 3 भाई थे। अन्य 2 भाइयों के नाम विजय पाल सिंह और नेपाल सिंह हैं। 4 साल पहले विजयपाल सिंह भी स्वर्ग सिधार गए हैं। उनके 2 बेटे हैं, जिसमें एक किसान हैं और दूसरा योगी सरकार में निकाली गई पुलिस भर्ती की तैयारी कर रहा है।
धर्म प्रचार के लिए टाल रहे थे शादी
ऑपइंडिया ने दिवंगत भगवान सिंह जाट के भतीजे हरिओम सिंह से बात की। उन्होंने बताया कि वीरगति पाने के दौरान उनके चाचा की उम्र महज 24 वर्ष थी। वो बचपन से ही संघ (RSS) की शाखाओं में जाते थे। शुरुआती पढ़ाई अलीगढ़ में करने के बाद उच्च शिक्षा हासिल करने के लिए भगवान सिंह मथुरा चले गए थे। यहाँ भी उन्होंने हिंदुत्व का प्रचार-प्रसार जारी रखा। भगवान सिंह ने विवाह भी नहीं किया था। परिवार वालों द्वारा रूचि दिखाने पर अपने विवाह की बात को टाल देते थे।
जा रहा हूँ माँ, शायद फिर न लौट पाऊँ
हरिओम सिंह ने हमें आगे बताया कि जब उनके चाचा भगवान सिंह ने सुना कि अयोध्या में कारसेवा के लिए रामभक्तों का जमावड़ा शुरू हो रहा है तो वो खुद को नहीं रोक सके। अयोध्या कूच करने से पहले भगवान सिंह मथुरा से अपने घर अलीगढ़ आए। यहाँ उन्होंने अपनी माँ के चरण छुए और कहा, “माँ मैं जा रहा हूँ। शायद अब न लौट पाऊँ।” हरिओम सिंह कहते हैं कि तब उनकी दादी शीशकौर देवी ये नहीं समझ पाईं कि उनका बेटा अयोध्या जाने की बात कर रहा है। उन्हें लगा कि भगवान सिंह मथुरा या कहीं आसपास जा रहे हैं।
हरिओम सिंह ने आगे बताया कि 28 अक्टूबर 1990 को उनके चाचा घर से निकले थे। तब चारों तरफ पुलिस का पहरा था। अलीगढ़ से अयोध्या की दूरी लगभग 500 किलोमीटर है। तब रेल और बस मार्ग के अलावा ग्रामीण इलाकों की पगडंडियों पर भी मुलायम सिंह के आदेश पर पुलिस ने पहरा बिठा रखा था। अयोध्या जाने या राम का भजन करने वालों को ही हिरासत में लेकर टॉर्चर के बाद जेल भेज दिया जा रहा था। बकौल हरिओम सिंह बावजूद इसके उनके चाचा भगवान सिंह मुलायम सरकार की तमाम नाकेबंदी को धता बता कर अयोध्या पहुँच गए थे।
हरिओम सिंह आगे बताते हैं कि 2 नवंबर 1990 में अयोध्या में कारसेवकों के हुए नरसंहार में उनके चाचा भी मृतकों में एक थे। बताया जा रहा है कि गोली भगवान सिंह के सीने पर लगी थी। उनके प्राण रामजन्मभूमि के ही कहीं आसपास निकले थे। भगवान सिंह के घर वालों को 2 नवंबर के बाद उनके बलिदान होने की जानकारी जत्थे में शामिल अन्य कारसेवकों के जरिए हुई थी।
कई दिन भटके बुजुर्ग माता-पिता लेकिन नहीं मिली लाश
हमसे बात करते हुए हरिओम सिंह भावुक हो गए। थोड़ी देर चुप होकर उन्होंने कहा कि बेटे की मौत की जानकारी मिलते ही उनके बुजुर्ग दादा-दादी अयोध्या निकल पड़े। पाबन्दी की वजह से पहले तो उन्हें अयोध्या पहुँचने में ही दिक्कत आई लेकिन जैसे-तैसे वो पहुँच गए तो बेटे का शव तलाशना भूसे के ढेर में सुई खोजने जैसा था। हरिओम के दादा जवाहर सिंह जाट ने कई दिनों तक अपनी बूढ़ी पत्नी के साथ अपने बेटे के शव की तलाश की लेकिन अंत में नाकाम रहे। अयोध्या की गली-गली और नदी के किनारे तक भटकने के दौरान शासन और प्रशासन से जुड़े लोगों ने भी उनकी कोई मदद नहीं की। आखिरकार दोनों खाली हाथ भारी मन से अलीगढ़ लौटे थे।
जीवित माँ के आज भी बहते हैं आँसू
हरिओम सिंह को आशंका है कि उनके चाचा की लाश तब अयोध्या में तैनात पुलिसकर्मियों ने सरयू नदी में फेंक दी थी। भगवान सिंह के बलिदान होने के बाद उनके पिता जवाहर सिंह काफी दुखी रहने लगे। इसी दुःख में थोड़े समय बाद आख़िरकार जवाहर सिंह ने प्राण त्याग दिए। भगवान सिंह की 92 वर्षीया माँ शीशकौर देवी आज भी जीवित हैं। हरिओम सिंह बताते हैं कि बलिदानी बेटे को अंतिम बार न देख पाने के चलते आज भी उनकी दादी के आँसू निकलते हैं। हालाँकि अयोध्या में भगवान राम का मंदिर बनने पर हरिओम सिंह का पूरा परिवार खुश है। यह परिवार इस मौके को भगवान सिंह का बलिदान सार्थक होना बता रहा है।
हमें चाचा के बलिदान पर गर्व, जरूरत पड़ी तो हम भी तैयार
भगवान सिंह के बलिदान की याद दिलाने के लिए अलीगढ़ में आज भी उनका एक स्मृति चिन्ह मौजूद है। यह स्मृति चिन्ह एक छोटी सी मूर्ति के रूप में उनके पैतृक गाँव नगला बलराम में बनी हुई है। मूर्ति भगवान सिंह की ही जमीन में उनके परिवार वालों ने बनवाई है। हरिओम सिंह ने उम्मीद जताई कि उनके चाचा की एक स्मृति भगवान राम के नवनिर्मित मंदिर में भी होगी। बकौल हरिओम सिंह यह स्मृति अनगिनत लोगों को धर्म के लिए लड़ने की प्रेरणा देगी। हरिओम सिंह ने यह भी कहा कि उन्हें अपने चाचा के बलिदान पर गर्व है और जरूरत पड़ी तो राम के नाम पर वो खुद भी वीरगति पाने को तैयार हैं।
हरिओम सिंह 3 भाई हैं। उनके पिता नेपाल सिंह खेती-बाड़ी करते हैं। नेपाल सिंह का बड़ा बेटा उत्तर प्रदेश पुलिस में है और फिलहाल गाजियाबाद में तैनात है। वहीं हरिओम सिंह ने कई डिग्रियाँ ले रखीं हैं। वो अपने छोटे व तीसरे नंबर के भाई के साथ शिक्षक भर्ती की तैयारी में जुटे हैं। हरिओम सिंह यह भी चाहते हैं कि वर्तमान सरकार उनके साथ रामजन्मभूमि आंदोलन में बलिदान हुए अन्य बलिदानियों के परिजनों पर ध्यान दे। साथ ही हरिओम की इच्छा है कि बलिदानियों के परिवारों को रामजन्मभूमि दर्शन में सहूलियत दी जाए।