मथुरा के श्रीकृष्ण जन्मस्थान और शाही ईदगाह विवाद के मामले में पूजा स्थल अधिनियम 1991 (Places of Worship Act 1991) रुकावट नहीं होगी। यह अधिनियम इस केस में लागू नहीं होगा। यह बात जिला जज राजीव भारती ने अपने निर्णय में कहा है। इसकी जानकारी वादी के अधिवक्ता गोपाल खंडेलवाल ने दी।
इसके साथ ही कोर्ट ने श्री कृष्ण जन्मभूमि ट्रस्ट और अन्य निजी पक्षों की ओर से दायर पुनरीक्षण याचिका को अनुमति दी और सितंबर 2020 में उनके मुकदमें को खारिज करने के एक सिविल कोर्ट के आदेश को पलट दिया।
बता दें कि भगवान श्रीकृष्ण विराजमान को वादी बनाकर 13.37 एकड़ जमीन पर दावा पेश करने वाली सुप्रीम कोर्ट की अधिवक्ता रंजना अग्निहोत्री के केस को जिला जज राजीव भारती की अदालत ने गुरुवार (19 मई 2022) को सुनवाई योग्य मानते हुए दर्ज कर लिया। करीब दो वर्ष के लंबी अदालती प्रक्रिया के बाद उनकी याचिका को अदालत ने दर्ज करने संबंधी निर्णय दिया। अगली सुनवाई 26 मई को होगी। अदालत के निर्णय पर अधिवक्ता रंजना ने कहा कि यह भगवान श्रीकृष्ण विराजमान की जीत है।
समझौते को बताया गलत, रद्द करने की माँग
रंजना अग्निहोत्री ने 25 सितंबर 2020 को श्रीकृष्ण जन्मस्थान की 13.37 एकड़ जमीन पर दावा पेश किया था, जिसमें उन्होंने वर्ष 1973 में श्रीकृष्ण जन्मस्थान ट्रस्ट और शाही ईदगाह के बीच हुए समझौते को गलत बताकर इसे रद्द करने की माँग की है। उनकी याचिका में बताया गया है कि 20 जुलाई 1973 में श्रीकृष्ण जन्मस्थान ट्रस्ट और शाही मस्जिद इंतजामिया कमेटी के मध्य बीच समझौता हुआ था, जिसके तहत परिसर की जमीन को ईदगाह इंतजामिया कमेटी को दे दिया गया। बाद में समझौते की डिक्री (न्यायिक निर्णय) 7 नवंबर 1974 को हुई।
जिला जज ने अपने निर्णय में यह कहा
श्रीकृष्ण विराजमान और उनकी भक्त रंजना अग्निहोत्री ने इसी डिक्री को रद्द करने की माँग की है। जिला जज ने रिवीजन स्वीकार करने के निर्णय में कहा है कि चूँकि याचिकाकर्ता द्वारा समझौता और डिक्री को चैलेंज किया गया है, इसीलिए उपासना स्थल अधिनियम इस केस में लागू नहीं होगा। वादी के अधिवक्ता गोपाल खंडेलवाल ने बताया कि केस में समझौता और डिक्री को आधार बनाया गया है, इसलिए अदालत ने इस मामले में उपासना स्थल अधिनियम 1991 का लागू होना नहीं माना है।