सूर्यकान्त त्रिपाठी ‘निराला’ 20वीं सदी में हिन्दू छायावाद के बहुत बड़े कवि हुए हैं। उनकी एक कविता ‘राम की शक्ति पूजा’ कालजयी रचनाओं में से एक मानी गई। इसमें रावण के संहार से पहले श्रीराम द्वारा देवी दुर्गा की आराधना किए जाने की कथा बताई गई है। ये बंगाली पुस्तक ‘कृत्तिवास रामायण’ से प्रेरित है, जिसे 15वीं सदी में कृत्तिवास ओझा ने लिखा था। मान्यता है कि राम को भी रावण के वध के लिए शक्ति का आशीर्वाद लेना पड़ा था। ‘निराला’ की ये पंक्तियाँ देखिए:
“साधु, साधु, साधक धीर, धर्म-धन धन्य राम !”
कह, लिया भगवती ने राघव का हस्त थाम।
“होगी जय, होगी जय, हे पुरूषोत्तम नवीन।”
कह महाशक्ति राम के वदन में हुई लीन।
इन पंक्तियों से आप समझ सकते हैं कि कैसे भगवान श्रीराम की प्रशंसा करते हुए माँ दुर्गा ने उनका हाथ पकड़ लिया, अर्थात् युद्ध में उनका साथ देने का वचन दिया। इन पंक्तियों का अर्थ है कि महाशक्ति, अर्थात् माँ भगवती श्रीराम के शरीर में उनकी ऊर्जा बन कर लीन हो गई। पूरे देश में, खासकर पश्चिम बंगाल में दुर्गा पूजा धूम-धाम से मनाई जाती है। ‘निराला’ बचपन से वहीं रहे थे, ऐसे में भारत के स्वतंत्रता संग्राम के बीच जनमानस में ऊर्जा का संचार करने के लिए उन्होंने इस कविता का सहारा लिया।
हमारी लड़ाई शक्ति से है: राहुल गाँधी
अब आते हैं मुद्दे पर। असल में कॉन्ग्रेस पार्टी के पूर्व अध्यक्ष राहुल गाँधी ने रविवार (17 मार्च, 2024) को मुंबई में अपनी ‘भारत जोड़ो न्याय यात्रा’ का समापन किया। इस दौरान उन्होंने कुछ ऐसा कह दिया, जो हर एक हिन्दू के लिए आहत करने वाला है। राहुल गाँधी ने कहा, “हिन्दू धर्म में शक्ति शब्द होता है। हम शक्ति से लड़ रहे हैं, एक शक्ति से लड़ रहे हैं।” यहाँ एक बात याद करने लायक है। सितंबर 2022 में जब ‘भारत जोड़ो यात्रा’ शुरू हुई थी, तब पादरी जॉर्ज पोनैय्या तमिलनाडु के कन्याकुमारी में राहुल गाँधी से मिले थे।
उस दौरान वो लोग जीसस क्राइस्ट के ‘वास्तविक ईश्वर’ होने पर चर्चा कर रहे थे। इस दौरान पादरी कहता है कि जैसे हिन्दू धर्म में शक्ति वगैरह हैं, बहुत सारे ईश्वर हैं, जबकि ईसाइयत में सिर्फ एक गॉड है। अब राहुल गाँधी का ताज़ा बयान सामने आया है। राहुल गाँधी ने आगे ये भी कहा कि प्रश्न उठता है कि ये शक्ति क्या है, राजा की आत्मा EVM में है, ED-CBI-IT में है। जिस देश में नवरात्री धूम-धाम से मनाई जाती है, वहाँ राहुल गाँधी इस तरह का अनर्गल बयान दे रहे हैं।
हालाँकि, तेलंगाना के जगित्याल में एक रैली के दौरान प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने इस पर करारा जवाब देते हुए कहा कि 4 जून को (लोकसभा चुनाव मतगणना वाले दिन) ये फैसला हो जाएगा कि शक्ति का विनाश करने वाले जीतते हैं या शक्ति की पूजा करने वाले। उन्होंने स्पष्ट कहा कि उनके लिए माताएँ-बहनें शक्ति स्वरूपा हैं और वो अपने जीते-जी इन्हें खत्म करने का मंसूबा पूरा नहीं होने देंगे। उन्होंने कहा कि हम शक्ति की आराधना करते हैं, हम पर शक्ति का आशीर्वाद है।
भारत में शक्ति पूजा का इतिहास
हिन्दू धर्म में ‘शाक्त’ एक संप्रदाय ही नहीं, बल्कि दर्शन है। सनातन में शैव विष्णु की भी पूजा करते हैं और वैष्णव शिव की भी। बस संप्रदाय या पंथ के हिसाब से उनके मुख्य इष्टदेव/देवी एक होते हैं, बाकी सबकी पूजा-आराधना भी चलती रहती है। ‘शाक्त’ दर्शन में माना जाता है कि एक बिंदु से इस जगत की उत्पत्ति हुई है और ये फिर उसी में समा जाएगा, उसी बिंदु को शक्ति कहा गया। ईश्वर का ही नारी तत्व शक्ति है। शिव और शक्ति के मिलन से ब्राह्मण की उत्पत्ति होती है, संचालन होता है।
अगर आप जनजातीय समाज को देखेंगे तो पाएँगे कि वहाँ भी देवी की पूजा होती है, जिसका अर्थ है कि भारत में शक्ति-पूजा की परंपरा अत्यंत प्राचीन है। पश्चिम बंगाल में अधिकतर देवी मंदिर ‘अलौकिक निर्देश’ के बाद बने हैं। जैसे, किसी को सपना आया कि फलाँ जगह देवी की मूर्ति है, और उसने खोज कर वहाँ एक छोटा सा मंदिर बनवाया। ‘शाक्त’ संप्रदाय का ही एक हिस्सा तंत्र साधना है। पश्चिम बंगाल में देवी माँ पत्थर के रूप में ही कई जगह स्थापित हैं, अलग-अलग आकार और रूप में।
अभी हमने ‘राम की शक्ति पूजा’ की बात की। महाभारत काल में भी इससे जुड़ी एक कथा है। भगवान श्रीकृष्ण के माता-पिता यशोदा व वसुदेव की एक कन्या भी हुई थी, मथुरा के राजा कंस ने जिसकी हत्या कर दी थी। उनकी पूजा भगवान श्रीकृष्ण की प्राणरक्षिका देवी के रूप में होती रही है। इससे मथुरा से लेकर द्वारका तक उनकी पूजा होती है। शाक्त संप्रदाय में शक्ति से ही मोक्ष की अवधारणा है, ऐसे में शक्तियों के लिए अनुष्ठान किए जाते हैं, इसकी अलग-अलग विधियाँ हैं।
भारत में जिन भी देवियों की पूजा सैकड़ों स्वरूपों में की जाती है, उन्हें आदिशक्ति या परमशक्ति का रूप ही माना जाता है। स्वयं जगद्गुरु शंकराचार्य ने ‘महिषासुर मर्दिनी स्त्रोत्र’ की रचना की है, जिसे आज भी सुना और गाया जाता है। मार्कण्डेय पुराण में ऋषि मार्कण्डेय ने देवी की महिमा का बखान किया है, जिस अंश को दुर्गा सप्तशती के रूप में जाना जाता है। नवरात्र में घर-घर में इसका पाठ होता है। देश में 108 शक्तिपीठ हैं, जिनके बारे में मान्यता है कि देवी सती के शरीर के अंग यहाँ-यहाँ गिरे हैं।
इनमें से 18 शक्तिपीठों को ‘अष्टदश महा’ कहा गया है, जो सबसे महत्वपूर्ण हैं। कश्मीर में शारदा पीठ से लेकर असम में कामाख्या मंदिर और तमिलनाडु में कन्याकुमारी तक सभी शक्तिपीठ ही हैं। गुजरात में चंद्रभागा से लेकर ओडिशा के जगन्नाथपुरी में विमला तक, शक्तिपीठों में माँ के अलग-अलग रूप हैं। शक्ति के बिना ब्रह्मा, विष्णु और महेश भी अपना कार्य नहीं कर सकते। सरस्वती, लक्ष्मी और पार्वती क्रमशः उनकी पत्नियाँ, यानी उनकी शक्ति या ऊर्जा के रूप में ही पदस्थापित हैं।
शक्ति पूजा की प्राचीनता का अंदाज़ा आप इसी से लगा सकते हैं कि सिंधु घाटी सभ्यता के अवशेषों में भी इसके प्रमाण मिले हैं। देवी की पूजा योनि के रूप में भी की जाती है, क्योंकि जिस बिंदु से ये सारा ब्राह्मण निकला है उसकी संकल्पना एक योनि के रूप में भी की गई है। सनातन धर्म में इसे पवित्र माना गया है। सृजन का स्रोत माना गया है। वैदिक युग में अदिति, पृथ्वी और सरस्वती का जिक्र है। उषा को सूर्य की शक्ति माना गया है। ऋग्वेद में भी देवी-सूक्त है।
जानबूझकर हिन्दू धर्म को निशाना बनाते हैं राहुल गाँधी?
राहुल गाँधी के सोशल मीडिया हैंडलों से जब भी किसी हिन्दू पर्व-त्योहार की शुभकामना दी जाती है तो किसी भी देवी-देवता की तस्वीर नहीं लगाई जाती है। जैसे, रामनवमी पर तीर-धनुष और जन्माष्टमी पर बाँसुरी की तस्वीर डाल कर इतिश्री कर ली जाती है। यही राहुल गाँधी चुनावों के वक्त मंदिरों में भ्रमण करते हैं, जबकि गाहे-बगाहे हिन्दू धर्म को लेकर उनकी मंशा जाहिर होती रही है। UPA काल में तो केंद्र सरकार ने भगवान राम को ही कोर्ट में काल्पनिक करार दिया था।
राहुल गाँधी का ताज़ा बयान न सिर्फ हिन्दू विरोधी, बल्कि नारी विरोधी भी है। हर हिन्दू जीवन में एक बार वैष्णो देवी जाना चाहता है, दुर्गम क्षेत्र में जाकर माँ के दर्शन करता है – उसका राहुल गाँधी ने अपमान किया है। शक्ति के बिना तो शिव की परिकल्पना ही नहीं की जा सकती है। नारी तत्व के बिना सृजन हो ही नहीं सकता। हिन्दू धर्म में हर मान्यता के पीछे विज्ञान है, जिसे राहुल गाँधी नहीं समझ रहे या समझ कर भी नासमझ बन रहे। कुछ भी हो, लोकसभा चुनाव 2024 से पहले उनका ये बयान उन्हें भारी पड़ेगा। यही चैत्र नवरात्र भी आने ही वाला है।