मुगल काल से वर्तमान तक कई युद्धों और कानूनी लड़ाइयों के बाद आखिरकार 22 जनवरी, 2024 को भगवान राम की प्राण प्रतिष्ठा उनकी जन्मभूमि पर बने मंदिर में की जाएगी। इस अवसर पर देश भर का माहौल राममय हो चुका है। ऐसे में दुनिया भर के हिन्दू उन रामभक्तों को याद कर रहे हैं जिन्होंने बाबर से ले कर मुलायम तक के शासन काल में अपने प्राणों का बलिदान कर दिया। उन तमाम ज्ञात-अज्ञात वीरों में एक थे मूल रूप से उत्तर प्रदेश के सुल्तानपुर जिले के निवासी राम बहादुर वर्मा। राम बहुदर वर्मा को 30 अक्टूबर, 1990 की कारसेवा के दौरान गोली लगी थी। ऑपइंडिया ने राम बहादुर वर्मा के घर जा कर वर्तमान हालातों की जानकारी ली।
बलिदानी राम बहादुर वर्मा का घर सुल्तानपुर जिले के थाना क्षेत्र जयसिंहपुर में पड़ता है। उनके गाँव का नाम सरतेजपुर है। सरतेजपुर की अयोध्या रामजन्मभूमि से दूरी लगभग 60 किलोमीटर है। जब हम राम बहादुर के घर पहुँचे तो गाँव के बाहर ही उनके बड़े बेटे काली सहाय वर्मा मिल गए। काली सहाय वर्मा ने बताया कि 48 वर्ष की उम्र में बलिदान होने के समय उनके पिता अपने पीछे बीमार पत्नी और 6 संतानें छोड़ गए थे। इन 6 संतानों में 2 बेटियाँ और 4 बेटे हैं। तब सभी अविवाहित थे। फ़िलहाल सभी का शादी-ब्याह हो चुका है।
राम बहादुर वर्मा का परिवार मूल रूप से किसान है और खेती-बारी उनका मुख्य पेशा है। इसके अलावा उन्होंने धान कूटने की मशीन भी लगा रखी है। फिलहाल उनके बड़े बेटे काली सहाय ग्राम प्रधान हैं। काली सहाय पोलियो की वजह से बचपन से ही एक पैर से दिव्यांग हैं। वर्तमान में उनका मकान टूटा-फूटा हुआ है जिसके उधड़े प्लास्टर साफ देखे जा सकते हैं।
माँ ने अदा किया पिता का फर्ज
जब राम बहादुर वर्मा वीरगति को प्राप्त हुए तब उनके बड़े बेटे काली सहाय की उम्र 20 साल के आसपास थी। काली सहाय के मुताबिक, खबर सुन कर घर पर मुसीबतों का पहाड़ टूट पड़ा था। हालाँकि, राम बहादुर की पत्नी चंद्रावती ने अपने बच्चों का भविष्य देखते हुए खुद को सँभाला। काली सहाय ने भी बड़े भाई का कर्तव्य निभाया और गन्ने की पेराई जैसे काम कर के अपने छोटे भाई-बहनों को न सिर्फ पढ़ाया लिखाया बल्कि उनकी शादी-ब्याह भी किया। काली सहाय वर्मा ने बताया कि वो समय उनके परिवार के लिए सबसे कठिन था।
बलिदानी कारसेवक राम बहादुर की पत्नी पहले से ही बीमार रहती थीं। बाद में उन्हें कैंसर हो गया। घर वालों ने उनके इलाज में काफी पैसे लगाए। लम्बे इलाज के बाद आखिरकार चंद्रावती ने भी साल 2016 में दुनिया को अलविदा कह दिया। देहांत के समय चंद्रावती की उम्र लगभग 73 वर्ष थी। फ़िलहाल राम बहादुर का परिवार अभी भी अपने-आप को इन त्रासदियों से उबारने के लिए संघर्ष कर रहा है।
सिर में मारी गई थी गोली
काली सहाय वर्मा ने हमें बताया कि उनके पिता भगवान राम और बजरंग बली के परम भक्त थे। हर मंगलवार राम बहादुर पास के हनुमान मंदिर में दर्शन करने जाते थे। हर पूर्णिमा को वो अयोध्या साइकिल से जाते थे। जब सन 1990 में कारसेवा शुरू हुई तब देश के कोने-कोने से आ रहे कारसेवकों को राम बहादुर ने शरण देने के साथ उनके खाने-पीने का भी इंतजाम करवाया। आखिरकार 25 अक्टूबर, 1990 को वो अपने आसपास के कुछ साथियों के साथ जत्था बना कर अयोध्या की तरफ कूच कर गए। अयोध्या जाते समय राम बहादुर ने अपनी पत्नी से कहा था, “मैं शायद न लौट पाऊँ। बच्चों का ध्यान रखना।” नम आँखों से काली सहाय ने आगे कहा, “मेरे पिता के लिए पत्नी और बच्चों से कहीं अधिक प्रिय प्रभु श्रीराम थे।”
काली सहाय ने हमें आगे बताया कि उनके पिता को अयोध्या जाने के वो तमाम रास्ते मालूम थे जो मुख्य मार्गों पर तैनात पुलिस वाले नहीं जानते थे। खेतों में छिपते-छिपाते आख़िरकार राम बहादुर साथियों सहित 30 अक्टूबर, 1990 को अयोध्या पहुँच ही गए। काली सहाय का कहना है कि उनके पिता जत्थे में सबसे आगे चल रहे थे। दावा है कि कोठारी बंधुओं के पीछे राम बहादुर वर्मा भी गुंबद पर चढ़ने लगे। इसी दौरान मुलायम सिंह के आदेश पर गोली चल गई। गोली लगने से राम बहादुर बुरी तरफ से घायल हो कर जमीन में गिर पड़े।
2 महीने मौत से लड़ी जंग फिर हुए बलिदान
बलिदानी राम बहादुर के बेटे ने हमें आगे बताया कि उनके पिता के पूरे शरीर में गोलियों के छर्रे धँसे हुए थे। ये छर्रे सीधे लगने के बजाय तिरछे एंगल से दागे गए थे। काली सहाय को आशंका है कि उनके पिता पर हेलीकॉप्टर से गोलियाँ बरसाई गईं थी। इन छर्रों में से एक राम बहादुर के सिर में लगा और वो अचेत हो कर भीड़ में गिर गए। साथी कारसेवकों ने बेहोश राम बहादुर को भीड़ से निकाला और अपने प्राणों को संकट में डाल कार अयोध्या के श्रीराम अस्पताल में भर्ती करवाया।
इस बीच 4 दिनों तक राम बहादुर की कोई खोज खबर न मिलने पर उनकी पत्नी और बेटों ने उनको अयोध्या में खोजना शुरू किया। कई जगहों की ख़ाक छानने के बाद आखिरकार राम बहादुर गंभीर हालत में श्रीराम अस्पताल में भर्ती मिले। यहाँ वो लगभग 12 दिनों तक भर्ती रहे। हालत गंभीर होते देख कर राम बहादुर को लखनऊ मेडिकल कॉलेज में रेफर कर दिया गया। जैसे-तैसे राम बहादुर के परिजन उनको ले कर लखनऊ पहुँचे। यहाँ उनका इलाज शुरू हुआ लेकिन आखिरकार लगभग 2 माह बाद 3 जनवरी, 1991 को राम बहादुर स्वर्ग सिधार गए।
बेहोशी की हालत में भी लेते थे राम का नाम
काली सहाय 1990 में अपने पिता की देखरेख के लिए लखनऊ मेडिकल कॉलेज में मौजूद थे। उन्होंने बताया कि सिर में लगे छर्रे से मस्तिष्क में सम्भवतः मवाद बन गई थी। इसी के चलते अक्सर राम बहादुर रह-रह कर बेहोश हो जाया करते थे। काली सहाय का दावा है कि अस्पताल में उनके पिता मूर्छित अवस्था में भी राम-राम कहा करते थे। आखिरकार 3 जनवरी, 1991 को उनके देहांत के बाद शव को पैतृक गाँव सरतेजपुर लाया गया।
शव पर लोगों ने बरसाए थे फूल
काली सहाय ने साल 1990 को याद करते हुए कहा कि उनके पिता के अयोध्या कूच से पहले जितनी फ़ोर्स इलाके में तैनात थी उसकी कई गुना ज्यादा फ़ोर्स अंतिम संस्कार के समय जुट गई थी। इस दौरान लोगों के आने-जाने पर कई तरह की प्रशासनिक पाबंदियाँ लगा दी गईं थीं लेकिन बावजूद इसके अंतिम संस्कार में हजारों लोग शामिल हुए। 4 जनवरी, 1991 को हिन्दू संगठन के सदस्यों ने राम बहादुर के शव की पूरे क्षेत्र में झाँकी निकाली थी जिस पर लोगों ने फूल बरसाए। थे। आखिरकार अगले दिन 5 जनवरी को उनका अंतिम संस्कार गाँव के मुहाने पर एक प्राचीन मंदिर के आगे हुआ।
पिता जी ने स्वीकार किया था मुलायम का चैलेन्ज
काली सहाय वर्मा अपना सबसे बड़ा दुश्मन मुलायम सिंह यादव को बताते हैं। उन्होंने कहा कि मुलायम सिंह ने उनको अनाथ कर दिया। राम बहादुर वर्मा का परिवार राम मंदिर बनने से भी बेहद खुश है। वह इसे अपने पिता का बलिदान सार्थक होना बताता है। बकौल काली सहाय 1990 में मुलायम सिंह यादव ने चैलेन्ज दिया था कि परिंदा भी पर अयोध्या में नहीं मार सकता लेकिन उनके बलिदानी पिता ने न सिर्फ इस चैलेन्ज को स्वीकार किया बल्कि प्राणों को गँवा कर भी जीत हासिल की।
6 दिसंबर, 1992 को विवादित ढाँचा ध्वंस होने की घटना काली सहाय वर्मा 1990 में वीरगति पाए कारसेवकों की प्रेरणा बताते हैं। राम बहादुर के परिजन 22 जनवरी, 2024 को हो रहे प्राण प्रतिष्ठा कार्यक्रम में सम्मिलित भी होना चाहते हैं।
राम बहादुर की समाधि आज भी देती है प्रेरणा
जिस स्थान पर 5 जनवरी, 1991 को राम बहादुर का अंतिम संस्कार हुआ था आज वहाँ एक समाधि स्थल है। यह समाधि खुद राम बहादुर वर्मा के परिजनों ने बनवाई है। हर साल 3 जनवरी को यहाँ हिन्दू संगठनों का जमावड़ा होता है और हनुमान चालीसा के साथ रामचरितमानस का पाठ किया जाता है। इसी के अलावा अन्य पर्व त्योहारों पर राम बहादुर के परिजन मिल कर यहाँ श्रद्धा भाव से पूजा-पाठ करते हैं।
हालाँकि इस स्मारक के आसपास जमीन न होने की वजह से लोगों के जुटने में समस्या खड़ी हो जाया करती है। राम बहादुर के घर वालों ने प्रशासन और शासन से इस समस्या का स्थाई समाधान निकालने की गुहार लगाई है। साथ ही वो यह भी चाहते हैं कि अयोध्या राम मंदिर में उनके पिता और बाकी अन्य बलिदानियों का स्मारक बना कर उनके त्याग के बारे में लोगों को बताया जाए।