Tuesday, November 5, 2024
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राम मंदिर के पहले बलिदानी, 16 साल के राम चन्दर यादव: कारसेवकों को बचाने गए, पुलिस ने सिर में मारी गोली, घर पर नहीं होने दिया अंतिम संस्कार

राम चन्दर के पिताजी राम नारायण को पुलिस ने बेटे का शव ले जाने की अनुमति नहीं दी। उनके अन्य भाई राम मंदिर के लिए बलिदान हुए अपने सगे और नाबालिग भाई के अंतिम दर्शन तक नहीं कर पाए। हिन्दू विधि-विधान से अंतिम संस्कार की दुहाई पर भी पुलिस-प्रशासन ने ध्यान नहीं दिया।

धर्मनगरी अयोध्या में सोमवार (22 जनवरी 2024) को भगवान राम की जन्मभूमि पर बन रहे मंदिर में मूर्ति प्राण प्रतिष्ठा की युद्धस्तर पर तैयारी की जा रही है। इस मौके पर देश उन तमाम बलिदानी रामभक्तों को श्रद्धा सुमन अर्पित कर रहा है, जिन्होंने पिछले लगभग 500 वर्षों में खुद को जन्मभूमि के नाम पर न्योछावर कर दिया। इस बीच अयोध्या में ग्राउंड रिपोर्ट पर उतरी ऑपइंडिया की टीम को जानकारी मिली कि मुलायम सिंह सरकार में सन 1990 में पुलिस के हाथों पहला नरसंहार 30 अक्टूबर से 8 दिन पहले हुआ था। तब 22 अक्टूबर 1990 को कारसेवकों की सूचना पर दबिश देने गई पुलिस ने अयोध्या से सटे बस्ती जिले के एक गाँव में गोलियों की बौछार कर दी थी। इस नरसंहार में 3 रामभक्त ग्रामीणों के प्राण निकल गए थे, जबकि कई अन्य घायल हो गए थे।

22 अक्टूबर 1990 हो हुए इस नरसंहार में पहले बलिदानी थे राम चन्दर यादव। तब दुबौलिया थाना प्रभारी को गाँव सांडपुर में कारसेवकों की मौजूदगी की सूचना मिली। पुलिस को उनके मुखबिर ने बताया था कि गाँव में जमा कारसेवक अयोध्या की तरफ कूच करने वाले हैं। पुलिस ने गाँव की घेराबंदी की। दुनिया भर में हुए तब राममय माहौल में गाँव सांडपुर और आसपास के लोग रामभक्तों के खिलाफ पुलिस की कार्रवाई का एक जगह जमा होकर विरोध करने लगे। विरोध के दौरान पुलिस ने ऊपर से आदेश लिए और ग्रामीणों पर गोलियाँ बरसा दीं थीं। हमने बलिदानी राम चन्दर यादव के घर जाकर आज के हालातों की जानकारी ली।

नाबालिग राम चन्दर को मारी गई थी गोली

राम चन्दर यादव मूलतः बस्ती जिले के गाँव बरसाँव टेढ़वा के रहने वाले थे। यह थानाक्षेत्र दुबौलिया में आता है। सरयू नदी यहाँ से लगभग 1 किलोमीटर दूर है, जिसका दूसरा सिरा अयोध्या नगर की सीमा को छूता है। जब हम राम चन्दर के घर पहुँचे, तब वहाँ उनके भाई रामनाथ यादव मौजूद थे। रामनाथ यादव थोड़ी ही देर पहले खेतों में काम करके लौटे थे। उन्होंने बताया कि राम चन्दर यादव 5 भाइयों में तीसरे नंबर पर थे। 22 अक्टूबर को अपने बलिदान के समय राम चन्दर की उम्र 16 साल के आसपास थी। उनकी शादी नहीं हुई थी। बचे भाइयों ने जैसे-तैसे दुःख से उबरते हुए खुद को अलग-अलग छोटे-मोटे कामों में लगा कर परिवार को पाला।

छप्पर और बिना प्लास्टर का घर

राम चन्दर यादव का बचा परिवार बेहद गरीबी की हालत में गुजारा कर रहा है। उनका घर 2 हिस्सों में बँटा है। पहला हिस्सा छप्पर है और दूसरे हिस्से में कुछ हिस्सा पक्का मकान है, जिसमें न फर्श है और न ही प्लास्टर। खेती-किसानी करने के लिए घर वालों ने कर्ज लेकर ट्रैक्टर-ट्रॉली लिया है। अब लगभग 60 साल के हो चुके रामनाथ यादव ने बताया कि बेटे के गम में पहले पिता राम नारायण यादव ने प्राण त्याग दिए थे और कुछ दिनों बाद माता भी गुजर गईं। बकौल रामनाथ उनके भाई राम चंदर ने घर के खर्चों में हाथ बँटाना शुरू ही किया था लेकिन उसी दौरान वो मुलायम सरकार में पुलिस की गोलियों का शिकार हो गए।

राम चन्दर यादव का जर्जर घर

सिर में मारी गोली

राम चन्दर यादव भगवान राम और महादेव शिव के पक्के भक्त थे। 22 अक्टूबर 1990 की घटना पूरी तरह से याद होने की बात कहते हुए रामनाथ यादव भावुक हो गए। उन्होंने कहा कि तब राम के नाम पर पुलिस वालों की ज्यादती के खिलाफ गाँव के तमाम लोग एक खेत के पास जमा हुए थे। इसी दौरान इन सभी को पुलिस वालों ने घेर लिया। पुलिस ने गाँव वालों पर अंधाधुंध गोलियाँ बरसा दीं। इस से राम चन्दर यादव खेतों में ही लहूलुहान होकर गिर पड़े। उनका इलाज भी नहीं करवाया गया। सिर में गोली मारे जाने के कारण रामचन्दर अधिक समय तक जिन्दा नहीं रह पाए और कुछ ही देर में उनके प्राण पखेरू उड़ गए।

इसी शिवलिंग की पूजा करते थे राम चन्दर यादव

बाकी भाइयों को पकड़ने के लिए हुई छापेमारी

रामनाथ यादव ने हमें आगे बताया कि गोलियाँ चलने के दौरान अफरातफरी में यह भी पता नहीं चल पाया कि कौन किधर गया। पुलिस के जाने के बाद लोगों ने अपने परिजनों को खोजना शुरू किया। राम चन्दर घर नहीं लौटे थे। परिजनों को राम चन्दर के गोलीबारी में मारे जाने की जानकारी मिली। जैसे-तैसे घर वाले यह जान पाए कि राम चन्दर का शव बस्ती जिला अस्पताल में रखा हुआ है। घर वाले लाश लेने के लिए निकलने ही वाले थे कि इसी दौरान गाँव में पुलिस टीम ने फिर से दबिश मार दी।

दबिश के दौरान पुलिस ने दिवंगत राम चन्दर के बाकी भाइयों को भी पकड़ने की कोशिश की। पुलिस के डर से बलिदानी के बाकी भाई भी घर छोड़ कर भाग गए। ऐसे में राम चन्दर के बूढ़े पिता और माता ही घर में बचे। रामनाथ के मुताबिक पुलिस का तब ऐसा खौफ था कि उनके यादव बहुल गाँव के बाकी युवा सदस्य भी घर छोड़ कर कहीं छिप गए थे।

गाँव नहीं आने दी लाश

रामनाथ ने बताया कि 22 अक्टूबर 1990 का दिन उनके परिवार के लिए अब तक का सबसे मुश्किल समय था। उन्होंने बताया कि पुलिस की छापेमारी से डर कर बाकी भाइयों और गाँव के शुभचिंतकों के फरार होने के बाद उनके बूढ़े माता-पिता को जैसे-तैसे लगभग 50 किलोमीटर दूर बस्ती जाना पड़ा। तब पुलिस के कड़े पहरे की वजह से गाड़ियाँ भी नहीं चल रही थीं। राम नारायण यादव अपनी पत्नी के साथ अपने बेटे के शव तक कैसे पहुँचे, ये उनके पुत्र रामनाथ को भी नहीं पता।

राम चन्दर यादव की भाभी

जब राम नारायण यादव अपनी पत्नी के साथ बस्ती अस्पताल पहुँचे तो उन्हें बताया गया कि उनके बेटे की लाश पोस्टमॉर्टम हाउस में पड़ी है। यहाँ पहुँचने के बाद राम नारायण को भारी पुलिस फ़ोर्स तैनात दिखी। वो अपने बेटे की लाश को उठाने लगी थी तो पुलिस ने उनको रोक दिया। राम नारायण को साफ आदेश मिला कि वो अपने बेटे का शव किसी भी हाल में गाँव नहीं ले जा सकते। मृतक के पिता ने हिन्दू विधि-विधान से अंतिम संस्कार की बहुत दुहाई दी लेकिन तत्कालीन अधिकारी टस से मस नहीं हुए।

आखिरकार राम चन्दर यादव का दाह संस्कार बस्ती जिला अस्पताल से थोड़ी दूर शहर में ही स्थित नदी के किनारे श्मशान घाट पर हुआ। इस दौरान बूढ़े माता-पिता के अलावा भारी पुलिस फ़ोर्स तैनात रही। राम चन्दर के परिजन रात में अपने गाँव खाली हाथ लौटे थे। बाकी बेटों के पुलिस के डर से फरार होने की वजह से राम चन्दर के अन्य मृत्यु उपरान्त संस्कारों में भी काफी देर लगी।

नहीं रख पाए एक भी तस्वीर

राम चन्दर का परिवार आज भी पूरी तरह से धार्मिक है। उनके भाई रामनाथ भगवान भोलेनाथ के भक्त हैं। परिवार के अन्य सदस्यों की भी सनातन में सच्ची आस्था है। रामनाथ यादव ने बताया कि अयोध्या में बन रहे भगवान राम के मंदिर से वो और उनका परिवार बेहद खुश है। बकौल रामनाथ वो अपने भाई की एक भी तस्वीर सहेज कर नहीं रख पाए। इसकी वजह के तौर पर रामनाथ ने सन 1990 में कैमरे आदि का प्रचलन बहुत कम होने, अपनी गरीबी के चलते फोटो आदि न खिंचवाने और अंतिम समय में पुलिस की गोलीबारी से पूरा परिवार फरार होना बताया।

राम चन्दर के भाई की ट्राली पर दुर्गा माँ की जयकारे की पेंटिंग

रामनाथ की यह इच्छा है कि अयोध्या में राम मंदिर निर्माण के दौरान उनके भाई राम चन्दर को भी याद किया जाए। इस परिवार की सरकार से इच्छा है कि अयोध्या में राम चन्दर यादव का एक स्मारक बनाया जाए। हम इसी श्रृंखला की अपनी अगली ग्राउंड रिपोर्ट्स में 22 अक्टूबर 1990 को हुए नरसंहार में बलिदान हुए अन्य रामभक्तों और उनके वर्तमान हालातों से पाठकों का परिचय करवाएँगे।

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राहुल पाण्डेय
राहुल पाण्डेयhttp://www.opindia.com
धर्म और राष्ट्र की रक्षा को जीवन की प्राथमिकता मानते हुए पत्रकारिता के पथ पर अग्रसर एक प्रशिक्षु। सैनिक व किसान परिवार से संबंधित।

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