सद्गुरु जग्गी वासुदेव मंदिरों को सरकारी नियंत्रण से मुक्त कराने के लिए लगातार प्रयास कर रहे हैं और उनका मानना है कि हमारे प्राचीन धार्मिक धरोहरों को बचाना है तो हमें उन्हें सरकार के कब्जे से मुक्त कराना ही होगा। उन्होंने इसके लिए मिस्ड कॉल कैम्पेन भी शुरू किया है। हालाँकि, उनका अभियान फ़िलहाल तमिलनाडु के मंदिरों के लिए है, लेकिन साफ़ है कि इसका असर व्यापक होगा और पूरे देश पर प्रभाव पड़ेगा।
सद्गुरु आखिर क्यों चाहते हैं कि मंदिरों को सरकार के नियंत्रण से मुक्त किया जाना चाहिए? दरअसल, हम एक ऐसे समय में रह रहे हैं जब आम जनमानस और विशेषज्ञों का कहना है कि सरकार को एयरलाइंस, एयरपोर्ट्स, इंडस्ट्री, माइनिंग और ट्रेड नहीं करना चाहिए। ये उसका कार्य नहीं है। एयर इंडिया और BSNL सालों से घाटे में है, ऐसे में ये साफ़ हो जाता है कि सरकार का कार्य शासन करना है, व्यापार नहीं।
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी जब ‘Disinvestment’ की बात करते हैं तो वो कई बार कह चुके हैं कि सरकार कारोबार करने के लिए नहीं है। सद्गुरु भी इसकी ही याद दिलाते हुए कहते हैं कि जब इन चीजों का प्रबंधन सरकार को नहीं करना चाहिए तो फिर इन पवित्र मंदिरों का प्रबंधन सरकार के पास क्यों है? उनका सीधा सवाल है कि सरकार के पास ऐसी क्या योग्तयाएँ हैं जो उन्हें इसका पात्र बनाती हैं?
तमिलनाडु में चुनाव होने हैं। इसीलिए, हिन्दुओं के लिए ये मामला और महत्वपूर्ण हो जाता है। फ़िलहाल वहाँ के मुख्यमंत्री एडापड्डी पलानिस्वामी हैं और ओ पनीरसेल्वम उप-मुख्यमंत्री, दोनों मिल कर इस सरकार को चलाते हैं। AIADMK भाजपा की गठबंधन साथी भी है। उधर स्टालिन के नेतृत्व वाली DMK सत्ता के लिए प्रबल दावेदार मानी जा रही है, जिसका गठबंधन कॉन्ग्रेस के साथ है। तमिलनाडु में यही दोनों द्रविड़ पार्टियाँ राज करती रही हैं।
ये वही द्रविड़ पार्टियाँ हैं, जिन्होंने ब्राह्मणों को गाली दे-दे कर अपना आधार बनाया है। पेरियार से लेकर करुणानिधि तक, हिन्दू देवी-देवताओं पर आपत्तिजनक टिप्पणियाँ करने वाले नेताओं की लंबी फेरहिस्त है। यहाँ सवाल ये उठता है कि अगर ईश्वर में इन नेताओं की आस्था ही नहीं है तो फिर इन्हीं नेताओं की सरकारें दशकों से मंदिरों का प्रबंधन क्यों करती आ रही हैं? क्या ये सच्चे श्रद्धालुओं को स्वीकार्य होना चाहिए?
राजनीतिक और सामाजिक रूप से सद्गुरु के प्रभाव को देखते हुए स्पष्ट था कि उनके आने से इस मुद्दे पर चर्चा भी होगी और उनके विरोधी विवाद भी खड़ा करेंगे। सद्गुरु ने किसी पार्टी विशेष के समर्थन या विरोध न करते हुए सभी दलों के अलावा सुपरस्टार रजनीकांत को भी इस मामले को उठाने को कहा है। सद्गुरु ये माँग उठाने वाले अकेले नहीं हैं। काफी पहले से इसे लेकर कई बार प्रदर्शन हो चुके हैं।
11,999 temples dying without a single pooja taking place. 34,000 temples struggling with less than Rs 10,000 a year. 37,000 temples have just one person for pooja, maintenance,security etc! Leave temples to devotees. Time to #FreeTNTemples -Sg @mkstalin @CMOTamilNadu @rajinikanth pic.twitter.com/cO8XxOmRpm
— Sadhguru (@SadhguruJV) February 24, 2021
इसके पीछे दो तर्क दिए जाते हैं। पहला, मस्जिदों, चर्चों और गुरुद्वारों का प्रबंधन सरकार नहीं करती हैं। उनका नियंत्रण और प्रबंधन क्रमशः मुस्लिमों, ईसाईयों और सिखों के हाथ में रहता है। जिसकी श्रद्धा, वही उसका प्रबंधन करे। जो दान दे रहे हैं, जो आस्था रखते हैं, उनके हाथ में ही नियंत्रण हो। दूसरा, जब भारत को चिल्ला-चिल्ला कर सेक्युलर कहा जाता है और एक सेक्युलर राष्ट्र की सरकार मंदिरों को क्यों अपने कब्जे में रखना चाहती है?
फ़िलहाल ‘Hindu Religious and Charitable Endowments (HR&CE) Act’ के तहत मंदिरों का प्रबंधन सरकार के हाथों में है और तमिलनाडु में भी ऐसा ही एक एक्ट है। केरल का देवस्वोम बोर्ड वहाँ के सभी मंदिरों का नियंत्रण अपने पास रखता है। सभी राज्यों में कमोबेश यही व्यवस्था है। इन बोर्ड्स में सदस्यों और कर्मचारियों की नियुक्तियाँ भी सरकार के माध्यम से ही की जाती है। मंदिर के फंड्स को मंदिर के लिए खर्च करने की व्यवस्था है, लेकिन क्या ऐसा होता है?
आइए, जानते हैं कि जग्गी वासुदेव इस पर क्या कहते हैं। उन्होंने तमिलनाडु का आँकड़ा देते हुए बताया कि वहाँ करीब 12,000 मंदिर अवसान की ओर हैं, वो खात्मे की तरफ बढ़ रहे हैं। क्यों? क्योंकि वहाँ पूजा नहीं हो रही है। 34,000 मंदिर ऐसे हैं जिन्हें 10,000 रुपए वार्षिक के हिसाब से अपने कामकाज चलाने पड़ते हैं। यानी, महीने में मात्र 833 रुपए! प्रतिदिन के हिसाब से तो यह 28 रुपए भी नहीं पहुँच पाता।
#LepakshiTemple of the Vijayanagar Empire; a Magnificent & Powerful space that drew thousands. Painful to see it dead & preserved instead of alive & throbbing. Reject govt. neglect. Let’s inject Life back into our Temples. -Sg #FreeTNTemples @CMOTamilNadu @mkstalin @rajinikanth pic.twitter.com/CXsoyVwwIA
— Sadhguru (@SadhguruJV) March 6, 2021
ध्यान दीजिए, ये केवल तमिलनाडु के आँकड़े हैं। 37,000 मंदिर वहाँ ऐसे हैं, जहाँ सिर्फ एक ही व्यक्ति है जिसके हाथ में पूजा की पूरी जिम्मेदारी है। उनका प्रबंधन और सुरक्षा से लेकर सभी चीजें वो एक अकेला व्यक्ति निभा रहा है। सद्गुरु इसे ‘ईस्ट इंडिया कंपनी’ के लालच से जोड़ते हैं, जिसने इन मंदिरों पर कब्ज़ा करने की रणनीति अपनाई। उन्हें मंदिरों के महँगे धातुओं और धन से मतलब था। यहाँ न कोई श्रद्धा थी, न आस्था। सद्गुरु कहते हैं:
“एक आक्रांता कंपनी की ये नीति आज तक चली आ रही है, जिसे देख कर दुःख होता है। एक मंदिर सिर्फ पूजा की जगह ही नहीं होती, बल्कि ये समुदाय की आत्मा है। तमिलनाडु में अधिकतर शहरों को मंदिरों को केंद्र मान कर बनाया गया और फिर उन मंदिरों के आसपास शहर बसे। पहले मंदिर बसे, फिर शहर। आज भी वो मंदिर अवसान की तरफ हैं। अगर इन मंदिरों को ध्वस्त किया गया होता तो श्रद्धालु उन्हें फिर से बना लेते, लेकिन वो मंदिरों का गला घोंट रहे हैं। विजयनगर के लीपाक्षी मंदिर को ही देख लीजिए। एक भव्य और शक्तिशाली स्थल, जहाँ हजारों श्रद्धालु आया करते हैं। आज ये ख़त्म हो रहा है। इसमें नई जान फूँकने के लिए सरकार को मंदिरों का नियंत्रण छोड़ना होगा।”
मंदिरों पर अधिकार ज़माने के लिए मद्रास रेगुलेशन-111, 1817 लाया गया, लेकिन ईस्ट इंडिया कम्पनी ने 1840 में यह रेगुलेशन वापस ले लिया था। इसके बाद, 1863 में रिलिजियस एंडोवमेंट एक्ट लाया गया, जिसके अनुसार मंदिर ब्रिटिश ट्रस्टी को सौंप दिए गए। तमिलनाडु सरकार ने वर्ष 1951 में एक कानून पारित किया– ‘हिन्दू रिलिजियस एंड एंडोवमेंट एक्ट’। 1959 में तत्कालीन कॉन्ग्रेस राज्य सरकार ने हिन्दू रिलिजियस एंड चेरिटेबल एक्ट पास किया।
सद्गुरु ने कोयम्बटूर में महाशिवरात्रि के दिन गुरुवार (मार्च 11, 2021) को इसके लिए मिस्ड कॉल अभियान शुरू किया। ‘ईशा फाउंडेशन’ के बैनर तले 8300083000 फोन नंबर जारी किया गया, जिस पर कॉल कर के आप मिस्ड इस अभियान को समर्थन दे सकते हैं। उन्होंने तमिलनाडु के दोनों प्रमुख राजनीतिक दलों को पत्र लिख कर इसे अपने-अपने घोषणापत्रों में शामिल करने का निवेदन किया। उनका स्पष्ट कथन है – मंदिरों का प्रबंधन श्रद्धालुओं के हाथ में हो।
ईशा योग सेंटर में हर वर्ष महाशिवरात्रि के मौके पर लाखों लोग आदियोगी की प्रतिमा के सामने जुटते हैं और ध्यान, योग, मेडिटेशन से परिपूर्ण कार्यक्रम में भाग लेते हैं। रात भर कार्यक्रम चलता है। इस बार भी ये कार्यक्रम हुआ, लेकिन कोरोना संक्रमण के कारण सरकारी व मेडिकल दिशानिर्देशों का पालन करते हुए अधिकतर लोगों को इससे ऑनलाइन जुड़ने को कहा गया था। इसी दौरान कावेरी नदी को बचाने के अलावा सद्गुरु ने मंदिरों को मुक्त कराने की बात की।
सद्गुरु का कहना है कि अगर सरकार को मंदिरों का नियंत्रण करना ही है तो वो स्वीकार कर लें कि वो लोकतांत्रिक नहीं हैं, बल्कि ईश्वरतंत्र शासन हैं, ईश्वर के नाम पर सत्ता चलाते हैं। उनका सवाल जायज है। फिर ये सेक्युलरिज्म का नाटक क्यों? जब किसी भी अन्य मजहब के स्थलों को सरकार प्रबंधित नहीं कर रही है तो मंदिरों का क्यों? न मंदिरों की सुरक्षा हो रही है और न ही उनकी परंपराओं का पालन।
फरवरी 2018 में मद्रास हाईकोर्ट ने स्पष्ट रूप से माना था कि ये बोर्ड मंदिरों और उसकी संपत्ति की सुरक्षा में विफल रहे हैं और आदेश दिया था कि कम से कम वो 50,000 एकड़ की मंदिरों की उन जमीनों को वापस पाने के लिए प्रयास करें, जिन पर अवैध रूप से कब्ज़ा कर लिया गया है। तब 5.25 लाख एकड़ की मंदिरों की भूमि में से मात्र 4.78 लाख एकड़ बची थी। मंदिरों की आय इन्हीं सम्पत्तियों से ही तो आती हैं।
एक और भयवाह आँकड़ा है तमिलनाडु से। वहाँ के मंदिरों में स्थित देवता भी सुरक्षित नहीं हैं। 1992 से 2007 के बीच तमिलनाडु की मंदिरों से 1200 प्राचीन प्रतिमाओं को चोर और तस्कर उड़ा कर ले गए। इनमें से 350 प्रतिमाओं का अब तक कोई थाह-पता नहीं है। इनमें से मात्र 18 को ही पुलिस वापस पा सकी और 50 के लोकेशन का पता लगा। 36,595 मंदिरों में से मात्र 11,500 में ही प्रतिमाओं को सुरक्षित रखने के लिए कमरे हैं।
UNESCO की एक रिपोर्ट भी अगस्त 2017 में सामने आई थी, जिसमें बताया गया था कि तमिलनाडु के कई प्राचीन मंदिर अब अपने अस्तित्व की लड़ाई लड़ रहे हैं। मंदिर के परिसरों में अवैध निर्माण हो गए हैं। संस्था की टीम ने पाया था कि हजारों वर्ष पुराने मंदिरों की प्रतिमाएँ बिना किसी सुरक्षा के पड़ी हुई हैं। तंजावुर में राजेंद्र चोल के राज्याभिषेक के समय का एक मंदिर ध्वस्त कर दिया गया है। यूनेस्को ने HR&CE विभाग से कहा कि भले पूजा-पाठ वो कराए, लेकिन मंदिरों के पुनर्निर्माण का कार्य ASI जैसी एजेंसियों को दे।