प्रयागराज में कुम्भ चल रहा है। आस्था और उत्साह का सैलाब चरम पर है। कुम्भ मेले की व्यापकता का ही प्रभाव है कि हिन्दुओं के साथ-साथ अन्य आस्था, मत, सम्प्रदाय और धर्म के लोग हर तरह से प्रयागराज में चल रहे कुम्भ मेले का आनंद ले रहे हैं।
सनातन हिन्दू धर्म के इस त्यौहार की सबसे बड़ी खूबी है कि इसके विस्तार में सिर्फ हिन्दू ही नहीं बल्कि बड़े स्तर पर यह लोगों के आकर्षण का केंद्र बना हुआ हुआ है। इसका सबसे बेहतरीन उदाहरण प्रयागराज से आने वाली ये तस्वीरें हैं जिसमें सद्गुरु यीशु आपको अपने से जोड़ने की प्रार्थना कर रहे हैं।
हिन्दू धर्म की सहिष्णुता का ये एक बहुत बड़ा उदाहरण है। त्यौहार हिन्दुओं का, डुबकी हिन्दुओं की, ताम-झाम हिन्दुओं का और हाथ धो रहे हैं ईश्वर के पुत्र पवित्र यीशु! धर्म परवर्तन और प्रचार के मकसद से डाले गए ईसाई धर्म के कैंप प्रयागराज तक भी पहुँच चुके हैं। और इसके लिए विकसित देशों से उपजी धर्म परिवर्तन की सभ्यताएँ हर तरह के हथकंडे अपना रही है। कुम्भ मेले में ईसाई मिशनरियों के पंडाल का प्रमुख उद्देश्य यही है।
प्रयागराज में चल रहे कुम्भ में जो पर्चे बाँटे जा रहे हैं उनमें बहुत ही आसानी से यीशु (ईसा मसीह) को ‘सद्गुरु यीशु’ बनाकर जनता के सामने रखा जा रहा है। हिन्दू धर्म के पवित्र उपनिषदों के श्लोकों में ईसा मसीह को ठूँसकर परोसा जा रहा है। धर्म परिवर्तन का यह वाकया धर्म परिवर्तन के लिए अपनाए जा रहे सभी हथकंडों में सबसे ज्यादा ‘क्रिएटिव’ और हास्यास्पद तो है ही, साथ ही यह ईसाइयत के विस्तार की पराकाष्ठा को भी दर्शाता है।
भारत देश में कश्मीर से कन्याकुमारी और JNU से सरकारी विद्यालय तक अपनी पैठ बना रहे ये ‘धर्म परिवर्तक घातक टुकड़ियाँ’ बढ़िया कारोबार कर रही हैं।
इन पर्चों में ईसाई धर्म के प्रचार के लिए हिन्दू धर्म-ग्रंथों और ब्राह्मण साहित्यों के साथ ‘मिलावट का कारोबार’ चल रहा है। इनमें दावा किया गया है कि यीशु ईश्वर के इकलौते पुत्र थे और वो सनातन सद्गुरु हैं, अगर किसी को सत्य जानना है तो उसे सद्गुरु यीशु के पास जाना चाहिए।
असतो मा सद्गमय
ब्राह्मण साहित्यों के श्लोकों की भोंडी नक़ल करते हुए श्लोंको के बीच लिखा गया है, “असतो मा सद्गमय अर्थात यीशु ही हमें असत्य से पूर्ण सत्य पर ले चलते हैं, क्योंकि वे स्वयं सत्य हैं, वो अहमेव सत्यः का दवा करते हैं जिसका मतलब होता है सत्य मैं ही हूँ।”
इसके साथ ही प्रयागराज में बाँटे जा रहे इन किताबों में लिखा गया है, “यीशु ग्रन्थ हमें सिखाता है कि अनंत जीवन पाने के लिए हमें केवल सद्गुरु यीशु पर अपनी आस्था रखनी चाहिए।” इन पर्चों में बड़ी ही सावधानी से लिखा गया है कि सद्गुरु यीशु ही ज्योति हैं।
मृत्योर्मा अमृतं गमय
एक और पर्चे में लिखा गया है, “जो मेरा सन्देश सुनता और भेजने वाले पर भरोसा करता है, उसे दंड नहीं मिलता और अंतिम न्याय के दिन मैं उसे फिर जीवित कर दूँगा।”
क्या है असल सन्देश
हमारे पूर्वग्रह हमें इस बात पर यकीन करने से रोकते हैं लेकिन हिन्दू धर्म विश्व की सबसे प्राचीन सभ्यता रही है। सदियों बाद भी अगर यह हिन्दू धर्म बिना किसी धर्म प्रचार, धर्म परिवर्तन और हिंसा के, वैश्विक और अडिग है तो इसकी वजह इसके मूल में निहित इसकी सहिष्णुता है।
हिन्दू धर्म में मौजूद आध्यात्म, शान्ति और शालीनता आसानी से हर किसी के आकर्षण का केंद्र बन जाती है। यही कारण है कि निरंतर वैश्विक स्तर पर लोग हिन्दू धर्म से जुड़ रहे हैं। ईसाई धर्म प्रचार में जुटी हुई ये ‘घातक टुकड़ियाँ’ भी इस मर्म को समझती हैं। बढ़ते हुए भौतिकवाद के बीच हर इंसान जिस शांति की तालाश करता है, उसे हिन्दू धर्म में वह आध्यात्म आसानी से मिल जाता है। शायद यही वजह है कि ‘हिन्दू गरीबों को गुड़ और चना’ की विफल नीति के बाद अब ईसाई मिशनरी भी आध्यात्म और सत्संग के जरिए लोगों को रिझा कर बहुसंख्यक बनने की ओर अग्रसर हैं।