Sunday, November 17, 2024
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27 साल से कर रही थीं अपने राम को छत मिलने का इन्तजार, भूमिपूजन के बाद अब अन्न ग्रहण करेंगी 81 वर्षीय उर्मिला

जब 1992 में बाबरी ढाँचे को कारसेवकों द्वारा ध्वस्त किया गया था, तभी उन्होंने भीष्म प्रतिज्ञा कर ली थी कि जब तक वहाँ भगवान श्रीराम के भव्य मंदिर के निर्माण की शुरुआत नहीं हो जाती, वो अन्न नहीं खाएँगी।

भगवान राम पूरे देश की आस्था के केंद्र हैं और उनके मंदिर को लेकर आम जनमानस की भावनाएँ किसी से छिपी नहीं है। अब जब बुधवार (अगस्त 5, 2020) राम मंदिर के भूमिपूजन के साथ ही इसकी नींव डाल दी जाएगी और इसके निर्माण की शुरुआत हो जाएगी, मध्य प्रदेश स्थित जबलपुर की एक ऐसी महिला हैं, जो उस दिन अन्न ग्रहण करेंगी। 81 साल की उर्मिला चतुर्वेदी ने 27 साल पहले शपथ ली थी कि वो तब तक अन्न ग्रहण नहीं करेंगी, जब तक अयोध्या में राम मंदिर के निर्माण की शुरुआत नहीं हो जाती।

अब वो घड़ी आ गई है। राम मंदिर के लिए सदियों से संघर्ष चल रहा था और इस यज्ञ में आहुति देने वालों में जहाँ कइयों के नाम लोगों को मालूम हैं, वहीं उर्मिला चतुर्वेदी जैसे भक्त भी हैं, जो अपनी अलग ही लड़ाई लड़ रहे थे और उन्हें अपनी आस्था पर पूरा भरोसा था। नवंबर 2019 में आए सुप्रीम कोर्ट के फैसले के बाद उन्हें राहत मिली और अब प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा राम मंदिर भूमिपूजन के बाद उनके स्वप्न पूरे होंगे।

उर्मिला चतुर्वेदी का कहना है कि उनका शरीर भले ही कमजोर हो गया हो लेकिन उनका संकल्प अभी भी चट्टान की तरह मजबूत है। शायद तभी उम्र के इस पड़ाव तक वो अपने राम को छत मिलने का इन्तजार करती रहीं। जब 1992 में बाबरी ढाँचे को कारसेवकों द्वारा ध्वस्त किया गया था, तभी उन्होंने भीष्म प्रतिज्ञा कर ली थी कि जब तक वहाँ भगवान श्रीराम के भव्य मंदिर के निर्माण की शुरुआत नहीं हो जाती, वो अन्न नहीं खाएँगी।

उर्मिला चतुर्वेदी इतनी उत्साहित हैं कि वो अपने परिजनों को अयोध्या चल कर इस ऐतिहासिक पल का भागी बनने के लिए राजी करने पर तुली हैं। लेकिन कोरोना संक्रमण आपदा और लॉकडाउन का हवाला देकर परिजन किसी तरह उन्हें मना रहे हैं और बाद में अयोध्या ले जा कर रामलला के दर्शन कराने का आश्वासन दे रहे हैं। दरअसल, राम मंदिर को लेकर हुए हिन्दू-मुस्लिम संघर्ष से उर्मिला चतुर्वेदी काफी दुःखी रहती थीं।

उर्मिला चतुर्वेदी का कहना है कि भले ही वो शारीरिक रूप भूमिपूजन में नहीं जा पा रही हैं लेकिन मन से तो वो वहाँ पर मौजद रहेंगी ही। वो चाहती हैं कि अयोध्या में उन्हें भी कोई जगह मिल जाए, जहाँ रह कर वो अपने राम की शरण में जाकर उनकी आराधना करती रहें। वो अपना बाकी जीवन राम की शरण में बिताना चाहती हैं और अयोध्या मंदिर से अच्छी जगह उनके लिए दुनिया में कहीं भी नहीं है।

उर्मिला चतुर्वेदी की इस तपस्या में उनके परिजन भी उनके साथ थे, जिन्होंने उनका पूरा सहयोग किया। उनके परिजन भी चाहते हैं कि अब जब राम जन्मभूमि में मंदिर का स्वप्न साकार हो रहा है तो वो जल्दी ही अन्न ग्रहण करना शुरू कर दें। उर्मिला कहती हैं कि इन 27 सालों में वो समाज और लोगों से भी दूर चली गई थीं, कई लोग उन पर दबाव बना रहे थे कि वो अपना उपवास ख़त्म कर दें लेकिन उन्होंने हार नहीं मानी।

कई बार मंचों पर भी सम्मानित किया जा चुका है उर्मिला चतुर्वेदी को। हालाँकि, उनके रिश्तेदारों और समाज के लोगों में कई लोग ऐसे भी थे, जिन्होंने उनकी रामभक्ति को देख कर उनके उपवास का समर्थन किया। आजकल वो पूरा दिन राम मंदिर से जुडी ख़बरें ही देखती रहती हैं। वो दिन भर पूजा-पाठ में व्यस्त रहती हैं और टीवी पर राम मंदिर से जुड़ी ख़बरें देखती हैं। उनके परिजनों की योजना है कि उन्हें अयोध्या ले जाकर सरयू किनारे संकल्प तुड़वाया जाए।

इसी तरह बिहार के किशनगंज में ऐसे ही एक राम भक्त हैं, जिन्होंने 18 साल पहले यह प्रण लिया था कि जब तक अयोध्या में राम मंदिर नहीं बन जाता तब तक वो नंगे पाँव रहेंगे। दास किशनगंज में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) के ज़िला कार्यकारी होने के साथ ही एक किराने की दुकान भी चलाते हैं। देव दास अब तक 1800 से अधिक लोगों के दाह-संस्कार में शामिल हो कर ख़ुद काम करते हैं।

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ऑपइंडिया स्टाफ़
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कार्यालय संवाददाता, ऑपइंडिया

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