हिंदी फिल्म इंडस्ट्री के चुनिंदा शुरुआती सुपरस्टार अभिनेताओं में से एक दिलीप कुमार अब हमारे बीच नहीं हैं। बॉलीवुड जगत में उनका 58 साल का करियर किसी सुनहरी याद जैसा है। आज जब हम बॉलीवुड पर ‘खान(ओं)’ की तीकड़ी को राज करता हुआ देखते है, तो ये बात जानना दिलचस्प है कि दिलीप कुमार इस तीकड़ी से बहुत पहले इंडस्ट्री के वह ‘खान’ बन गए थे जिन्होंने न केवल देश की जनता के दिलों पर राज किया बल्कि पूर्व प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू और इंदिरा गाँधी को भी अपना फैन बना लिया।
दरसअल, दिलीप कुमार का असली नाम ‘यूसुफ खान’ था जिनका जन्म पाकिस्तान के पेशावर में 11 दिसंबर, 1922 में हुआ था। उनके पिता चूँकि फिल्म और शो आदि के ख़िलाफ़ थे तो उन्होंने अपने पिता की ‘पिटाई के डर’ से अपना नाम ‘दिलीप कुमार’ रखा और इसके बाद फ़िल्मी जगत में उनका करियर आसमान छूता गया। वह समय के साथ आगे बढ़ते गए और तत्कालीन प्रधानमंत्री नेहरू के हीरो बनते गए।
सन् 1961 की बात है दिलीप कुमार को इंडस्ट्री में कदम रखे दो दशक होने वाले थे और उनकी फिल्म गंगा जमुना रिलीज के लिए तैयार थी। लेकिन इस बीच सेंसर बोर्ड ने उस पर रोक लगा दी और कम से कम फिल्म में 250 कट माँगे। इसके बाद एक्टर ने अपनी फैन इंदिरा गाँधी से मदद की गुहार लगाई और तात्कालीन पीएम नेहरू के साथ 15 मिनट की बात की और उसके बाद फिल्म रिलीज के लिए पास कर दी गई।
In that India, the Censor board under Nehru blocked Dilip Kumar’s Ganga Jumna, demanding 250 cuts. Dilip pleaded with his fan Indira who got him 15 mins with Nehru. Nehru passed the film for release. Possible quid pro quo was Dilip campaigning for Menon in ’62 election. WDTT https://t.co/BllFKGnmnG
— Anand Ranganathan (@ARanganathan72) July 7, 2021
इसी प्रकार दिलीप कुमार की बायोग्राफी ‘स्टार लीजेंड ऑफ इंडियन सिनेमा: द डेफिनिटिव बायोग्राफी’ में लेखक बन्नी रुबेन ने उन्हें लेकर कई खुलासे किए हैं। किताब में बताया गया है कि कैसे 1950 में हिंदी फिल्मों में अश्लील दृश्यों को लेकर धर्मयुद्ध छेड़वाली कॉन्ग्रेस सांसद लीलावती मुंशी ने राज्यसभा में दिलीप कुमार के बालों को मुद्दा बना दिया था और कहा था कि इसका प्रभाव भारतीय युवाओं पर पड़ता है।
लीलावती की आवाज का ही प्रभाव था कि सरकार सिनेमैटिक एक्ट 1959 में बदलाव करके फिल्मों से किसिंग सीन हटाने पड़े। लेकिन दिलीप कुमार के हेयरस्टाइल का कोई कुछ नहीं बिगाड़ पाया और जिस सदन में उन्हें ‘युवाओं पर गलत छाप’ छोड़ने वाला कहा गया था वह उसी सदन में कुछ साल बाद हिस्सा हो गए। साल 2000 में कॉन्ग्रेस ने उन्हें महाराष्ट्र से नॉमिनेट किया था जहाँ नेहरू काल में कभी लीलावती मुंशी सदस्य हुआ करती थी।
इसके बाद एक किताब और आई, जिसमें अर्थशास्त्री व ब्रिटिश सांसद लॉर्ड मेघनाड देसाई ने दिलीप कुमार को नेहरू का हीरो कहा। किताब का नाम था, “नेहरू हीरो: दिलीप कुमार इन द लाइफ ऑफ इंडिया।” इंडिया टुडे की एक रिपोर्ट के अनुसार नेहरू को दिलीप कुमार, राज कपूर, देव आनंद-तीनों अभिनेता बेहद पसंद थे। संयोग से ये तीनों आज के समय के पाकिस्तान में जन्मे थे और बाद में इन्होंने मुंबई में घर बनाया। सन् 1950 में INC की कॉन्फ्रेंस को संबोधित करने के लिए निमंत्रित किया गया। 1957 में नेहरू के तीनों पसंदीदा एक्टर्स ने उनकी इच्छा के अनुसार वीके कृष्ण मेनन के लिए नॉर्थ मुंबई सीट पर कैंपेन किया। लेकिन 1962 में भारत-चीन युद्ध के बाद तीनों ने मेनन से दूरियाँ बना ली। नतीजन 1967 में वह चुनाव हार गए।
दिलीप कुमार ने शुरूआती दिनों में राजनीति से दूरी बनाए रखी लेकिन समाज के प्रति हितकारी कार्य करने के लिए हमेशा अग्रसर रहे। हाँ, मौका आने पर उन्होंने अपने करीबी राजनेाओं के लिए कैंपेन किया। 1994 में वह पीएम विश्वनाथ प्रताप सिंह के साथ रहे, फिर 1996 में उन्होंने राजस्थान अलवर में कॉन्ग्रेस प्रत्याशी के लिए कैंपेन किया और फिर 1999 में मनमोहन सिंह की कैंपेनिंग में नजर आए।
1996 के समय की रिपोर्ट् कहती हैं कि दिलीप को राजनीति में लाने के भरसक प्रयास हो रहे थे, जिसके कारण साल 2000 में वह राज्यसभा पहुँच गए। सत्ता में भाजपा थी। दिलीप भले ही सदन की कार्यवाही में नियमित तौर से भाग नहीं लेते थे लेकिन उन्होंने संसदीय कार्यवाही और विकास कार्यों दोनों में योगदान दिया। दिलीप कुमार स्वास्थ्य और परिवार कल्याण पर संसद की स्थायी समिति में थे, इसी समिति ने 2006 में भारतीय चिकित्सा परिषद अधिनियम में संशोधन के लिए रिपोर्ट तैयार की थी।
90 के दशक में दिलीप कुमार को शिवसेना ने निशाने पर लिया था जब उन्हें पाकिस्तान ने सर्वश्रेष्ठ नागरिक सम्मान ‘निशान ए इम्तियाज’ से नवाजा। शिवसेना का कहना था कि वह ये सम्मान न लें। लेकिन दिलीप की दोस्ती तत्तकालीन पीएम अटल बिहारी वाजपेयी से थी, जिनके परामर्श के बाद उन्होंने वह सम्मान स्वीकारा। इसके 1991 में उन्हें पद्म भूषण मिला और साल 2015 में नरेंद्र मोदी सरकार ने उन्हें पद्म विभूषण से सम्मानित किया।