अपनी अदाकारी से हर किसी के दिल पर राज करने वाले बॉलीवुड अभिनेता इरफान खान का बुधवार (अप्रैल 29, 2020) को निधन हो गया। मुंबई के कोकिलाबेन अस्पताल में इरफान खान ने 53 साल की उम्र में अंतिम साँस ली। इरफान काफी लंबे वक्त से बीमार थे और बीते दिनों ही उन्हें अस्पताल में भर्ती करवाया गया था। दिग्गज कलाकार के जाने से बॉलीवुड में शोक का माहौल है।
एक समय ऐसा भी था जब इरफान जैसे सुशिक्षित और समझदार व्यक्ति ने अपने मजहब को लेकर आतंकवाद, रोजा और रमजान के संबंध में अपनी राय रखी और इसकी वजह से वो कट्टरपंथियों के निशाने पर आ गए। एक डिबेट के दौरान उन्होंने इस पर खुलकर बोला।
25 जुलाई 2016 को टाइम्स नॉउ चैनल के एक डिबेट में आतंकवाद के संबंध में पूछे गए सवाल पर उन्होंने इस्लामी संगठनों द्वारा किए जा रहे आतंकवादी हमलों की भर्त्सना करते हुए कहा, “बहुत बड़ी संख्या में मजहब वाले आतंकवाद की ऐसी हरकतों का विरोध करते हैं। मैंने जैसा इस्लाम समझा है उसका अर्थ शांति और भाईचारा है, आतंकवाद नहीं। जो लोग यह करते हैं, वो इस्लाम को समझ ही नहीं पाए हैं।” इसे आप वीडियो में 1: 24 से 4:44 के बीच सुन सकते हैं।
इसके बाद जब उनसे बकरीद पर पशुओं की बलि को लेकर सवाल किया गया तो उन्होंने बकरीद पर बकरों व अन्य पशुओं की क्रूर बलि के स्थान पर आत्मचिंतन को बल दिया गया। उन्होंने कहा कि कर्मकांड अल्लाह तक पहुँचता है या वास्तविक हृदय की भावना? इसके अलावा रोजे रखने के संदर्भ में अपने बचपन की घटना का उल्लेख करते हुए उन्होंने कहा था कि जब वे सात साल के थे तो उनके पिता ने उनका रोजा छुड़वा दिया था और उनकी माँ से कहा था कि अभी ये रोजा रखने के लिए तैयार नहीं है। इससे रोजा मत रखवाओ। इरफान के पिता ने उनसे कहा कि ख्यालों का रोजा भी होता है। मन पवित्र रखो। इरफान कहते हैं कि उस समय वो उनकी बात नहीं समझ पाए और रोजा रखने की जिद पर अड़ गए थे। मगर आज वो समझ रह हैं कि उन्होंने ऐसा क्यों कहा था। इसे आप 5:04 से 6: 30 के बीच सुन सकते हैं।
इरफान के बयान का कट्टरपंथी और रूढ़िवादी मुल्लाओं ने काफी विरोध किया। इसमें जमीयत उलेमा-ए-हिंद के मैलाना अब्दुल वाहिल खातरी ने कहा, “तुम अपने को अभिनय तक सीमित रखो और इस्लाम के बारे में अपनी राय बताने का साहस मत करो। वो इस तरह का बयान अपनी आने वाली फिल्म के प्रमोशन के लिए दे रहा है।” इसके जवाब में इरफान ने कहा था, “मैं धर्मगुरुओं से नहीं डरता। खुदा का शुक्र है कि मैं ऐसे देश में नहीं रहता, जहाँ धार्मिक ठेकेदारों का राज चलता हो। जो लोग मेरे बयान से खफा है उन्हें या तो आत्म विश्लेषण की जरूरत है या फिर वो बहुत जल्द ही किसी फैसले पर पहुँचना चाहते हैं।”
वीडियो में 7: 20 से 7: 45 के बीच इस पर बात करते हुए इरफान ने कहा कि बकरीद के समय में जामा मस्जिद में था तो शहर के मुफ्ती ने उनसे कहा था कि बकरीद के पीछे के असली मकसद को समझो। फर्ज और शबाब को सीध-सीधा दुकानदारी मत बनाओ। ये नमाज़ में कहा गया है।
फिर आगे वो कहते हैं कि वो ये निर्णय करने वाले नहीं हैं कि इस्लाम को किस तरह से चलाया जाना चाहिए, लेकिन जितना उन्होंने इस्लाम को समझा है, वो अपना व्यक्तिगत अनुभव साझा कर रहे हैं। इरफान का कहना था कि वह केवल अपनी व्यक्तिगत राय बता रहे हैं, जिसका उनको हक है। इसे आप 8: 10 से 8: 20 के बीच सुन सकते हैं।
तीन तलाक की प्रक्रिया पर उठाया सवाल
इसके बाद जब उनसे पूछा जाता है कि क्या वो इस बात से सहमत हैं कि तीन तलाक बैन होना चाहिए? तो उन्होंने कहा कि इस बारे में बाद में बात करेंगे, वरना ये कौम और भी मेरे पीछे पड़ जाएँगे। 9:50 पर आप सुन सकते हैं कि उन्होंने सीधा-सीधा तीन तलाक का विरोध तो नहीं किया, लेकिन ये सवाल जरूर उठाया कि जब शादी के वक्त काजी साहब लिखित दस्तावेज तैयार करवाते हैं तो फिर जुदा होने के वक्त क्यों नहीं?
वीडियो में 10:00 मिनट पर वो बकरीद पर कुर्बानी देने की बात पर प्रतिक्रिया देते हुए कहते हैं कि कुर्बानी के असली मकसद को समझना चाहिए। कुर्बानी करते वक्त दिल दुखता है। अगर आपके अंदर वो भावना ही नहीं आती है, तो फिर इसका क्या फायदा?
इस डिबेट के दौरान भी उन्हें निशाना पर लिया गया और तस्लीम रहमानी ने कहा कि वो अपनी मशविरा अपने घर पर क्यों नहीं रखते? इसका जवाब देते हुए इरफान कहते हैं कि उनसे उनकी राय पूछी गई तो देने में क्या हर्ज है। ये आप 39:00 मिनट पर सुन सकते हैं। 47:00 मिनट पर तस्लीम रहमानी बेतुकी बात करते हुए कहते हैं कि कल को अगर इरफान को शराब पीना होगा तो क्या वो इस्लाम को दोष देंगे? इरफान ने इसका जवाब देते हुए कहा कि इसके लिए वो इस्लाम को बीच में नहीं लाएँगे।
गौरतलब है कि इरफान खान ने बकरीद पर बकरों व अन्य पशुओं को क्रूर बलि के स्थान पर आत्मचिंतन को बल दिया था। उन्होंने कहा था कि बकरे की कुर्बानी से पुण्य नहीं मिलता है। अपना अजीज छोड़ना ही कुर्बानी है। इसके साथ ही उन्होंने रोजा पर बयान देते हुए कहा था कि रोजा का मतलब भूखे रहना नहीं है। यह आत्मचिंतन के लिए है। यह भूखे मरने के लिए नहीं है। ये एक मेडिटेशन है। कुर्बानी की प्रथा जब शुरू हुई थी तब ये खाने का प्राथमिक स्रोत हुआ करता था। इसकी प्रथा इसलिए प्रचलित हुई ताकि लोगों में देने की भवना पैदा हो।