आंध्र प्रदेश के बापतला जिले के चिराला में स्थित एक गाँव है स्टुअर्टपुरम, जो आजकल खासी शोहरत बटोर रहा है। एक जमाने में इसे चोरों का गाँव भी कहा जाता है, लेकिन अब ये गाँव इससे निकलने में पूरी जोर-आजमाइश कर रहा है। गाँव के चर्चा में आने का कारण है ‘टाइगर नागेश्वर राव’ नाम की एक फिल्म, जिसमें रवि तेजा मुख्य भूमिका में होंगे। अभिषेक अग्रवाल इस फिल्म का निर्माण कर रहे हैं। ये तेलुगु अभिनेता रवि तेजा की पहली पैन-इंडिया फिल्म होगी।
अभिषेक अग्रवाल का नाम अगर आपने नहीं सुना होगा, तो आपको पता होगा चाहिए कि उन्होंने ही ‘द कश्मीर फाइल्स’ और ‘कार्तिकेय 2’ का निर्माण किया था। जहाँ एक फिल्म में कश्मीरी पंडितों पर हुए अत्याचार को दुनिया के सामने लाया गया, वहीं दूसरी फिल्म में भगवान श्रीकृष्ण से जुड़े रहस्यों और उनकी महिमा पर बात की गई। अब अभिषेक अग्रवाल अपनी एक और बड़ी फिल्म को लेकर व्यस्त हैं। ‘Tiger Nageswara Rao’ एक ऐतिहासिक ड्रामा फिल्म होगी।
आंध्र प्रदेश का स्टुअर्टपुरम और चोर ‘टाइगर नागेश्वर राव’: दिलचस्प है कहानी
फिल्म के लिए स्टुअर्टपुरम गाँव का पूरा का पूरा सेट तैयार किया गया। खबरों में सामने आया था कि सिर्फ इस सेट को तैयार करने में 7 करोड़ रुपए लगे थे। फिल्म के पोस्टर्स भी सामने आए हैं, जिनसे लोगों की उत्सुकता और बढ़ी है। 70 और 80 के दशक को दिखाने वाली कई फ़िल्में आजकल रिलीज हुई हैं और इसके लिए अलग से पूरा सेट तैयार करना पड़ता है, बड़ी तैयारी चाहिए होती है। रवि तेजा के बॉडी लैंग्वेज, एक्शन दृश्य और गेटअप से लेकर सब कुछ इस बार अलग होने वाला है।
आगे बढ़ने से पहले आइए जानते हैं उस व्यक्ति के बारे में, जिस पर ये फिल्म बन रही है। असल में ‘नागेश्वर राव’ नाम के सचमुच एक चोर हुआ करता था, जिसे लोगों ने ‘टाइगर’ नाम दे दिया था। उसके इलाके में उसकी छाव ‘रॉबिनहुड’ की थी। वहाँ के लोग कहते थे कि वो उन अमीरों को लूटता था जो गरीबों का शिक्षण करते थे, इसके बाद उस धन को गरीबों में बाँट देता था। नागेश्वर राव का गाँव स्टुअर्टपुरम को आज भी उसी के नाम से पहचाना जाता है। किसी चोर-डकैत से किसी को भी प्रेरणा नहीं लेनी चाहिए, लेकिन बड़े पर्दे पर ऐसी कहानियों को लोग मनोरंजन के लिए देखना पसंद करते हैं।
आंध्र प्रदेश के स्टुअर्टपुरम गाँव में आज भी सभी लोग टाइगर नागेश्वर राव को याद करते हैं। उसके किस्से-कहानियाँ बच्चों को सुनाते हैं। कुछ लोग कहते हैं कि वो गरीबों के अधिकार के लिए लड़ता था। 80 के दशक में उसे जानने वाले लोग कहते हैं कि वो एक काफी दयालु व्यक्ति था, जो हमेशा गाँव के ज़रूरतमंदों की मदद करता था। वो अपनी चीजें भी किसी ज़रूरतमंद को देने से हिचकता नहीं था। लोगों का कहना है कि अपनी दयालुता और उदारता के कारण वो गाँव में लोकप्रिय हो गया था।
असल में स्टुअर्टपुरम गाँव की भी अपनी एक कहानी है। अंग्रेजों के ज़माने में कई इलाकों के चोर-डाकुओं को एक साथ बसाने के लिए तत्कालीन मद्रास प्रेसीडेंसी के सदस्य हेरोल्ड स्टुअर्ट के नाम पर इस गाँव को स्थापित किया गया था। ऐसे में ब्रिटिश सरकार को उन और एक साथ नजर रखने में आसानी होती थी। इसी गाँव में 70 के दशक में और उसके बाद 15 वर्षों तक नागेश्वर राव का दबदबा रहा। आंध्र प्रदेश , तेलंगाना, तमिलनाडु और कर्नाटक – आज जो ये 4 राज्य हैं, इन चारों के इलाकों में वो चोरी करता था।
उसके गाँव के लोग कहते हैं कि वो अपने अच्छे कर्मों की वजह से लोकप्रिय बन गया था। हालाँकि, पुलिस द्वारा गिरफ्तार किए जाने के बाद उसे कई वर्ष जेल में गुजारने पड़े थे। उस पर चोरी और डकैती के कई आरोप थे। बताया जाता है कि जेल में भी वो बाक़ी कैदियों को बढ़ई और सिलाई के काम सिखा कर उनकी मदद करता था। उसके गाँव में कई लोग उसे आज भी हीरो मानते हैं। ग्रामीण कहते हैं कि वो गाँव का एक लीजेंड है, जिसके किस्से-कहानियों के चर्चे होते रहते हैं।
हालाँकि, पुलिस-प्रशासन और वहाँ के सामाजिक कार्यकर्ता इन बातों से इत्तिफाक नहीं रखते और उनका कहना है कि चोरी-डकैती की घटनाओं को अंजाम देने वालों को सज़ा मिलनी ही चाहिए, क्योंकि जिनका पैसा उन्होंने चुराया होता है, वो भी परेशानी में जीते हैं। सज़ा इसीलिए भी आवश्यक है, ताकि कोई और इस धंधे में न आए। टाइगर नागेश्वर राव के खिलाफ कार्रवाई करने वाले एक पूर्व पुलिस अधिकारी कहते हैं कि लोगों को चोर-डाकुओं की जगह पुलिस का साथ देना चाहिए, हालाँकि, वो ये भी कहते हैं कि पुलिस में भी सब दूध के धुले नहीं होते।
पूर्व पुलिस अधिकारी बताते हैं नागेश्वर राव चोरी में इतना दक्ष था कि लोगों के घर के दरवाजे-खड़कियाँ तोड़ कर भीतर घुसता था और रुपए-गहने चुरा लेता था। हालाँकि, 1987 में एक पुलिस मुठभेड़ में आखिरकार नागेश्वर राव की मौत हो गई। इसके बाद पूरे इलाके में पुलिस के खिलाफ लोग आक्रोशित थे। 1974 में नांदयाल जिले के बनगानपल्ली में आधी रात को पुलिस थाने के सामने स्थित बैंक में लूट की घटना पूरे देश में सुर्खियाँ बनी थीं।
नागेश्वर के भाई प्रभाकर ने BBC को एक इंटरव्यू में बताया था कि बैंक लूट को अंजाम देने वाले गिरोह में 10 सदस्य थे, जिसमें ये दोनों भाई भी शामिल थे। उस ज़माने में 35 लाख रुपया एक बड़ा रकम था। 14 किलो सोना और 50,000 रुपए नकद लेकर सारे डकैत श्मशान घाट गए, जहाँ इसका बँटवारा होना था। लेकिन, पुलिस ने गाँव को घेर रखा था। नागेश्वर राव तब बच निकला था, लेकिन प्रभाकर को आत्मसमर्पण करना पड़ा था।
नागेश्वर राव को ‘चेन्नई जेल ब्रेक’ के लिए भी जाना जाता है। 1976 में उसे और प्रभाकर को गिरफ्तार किया गया था। तभी उसने अपने भाई से कह दिया था कि वो अब जेल में नहीं रह सकता। बकौल प्रभाकर, जब वो अधिकारियों पर हमला कर के चेन्नई जेल से भाग खड़ा हुआ था, तब इन्हीं पुलिस वालों ने उनसे कहा था, “तुम्हारा भाई वास्तव में टाइगर है।” आज स्टुअर्टपुरम में हालात बदल रहे हैं और बच्चे बाहर जाकर पढ़ रहे हैं, लोग अच्छा काम कर रहे हैं।
इस फिल्म को ‘अभिषेक अग्रवाल आर्ट्स’ नामक कंपनी प्रोड्यूस कर रही है। अभिषेक अग्रवाल कहते हैं कि वो उस तरह के सिनेमा को आगे बढ़ाने में यकीन रखते हैं, जिसकी जड़ें भारत और भारतीय संस्कृति में हों। वो कहते हैं फिल्मों का निर्माण करना उनका पैशन है, इसीलिए वो प्रोड्यूसर बने। उनका कहना है कि भारतीय इतिहास, संस्कृति और विरासत को प्रमोट करने में उन्हें यकीन है। ‘द कश्मीर फाइल्स’ इसका ही एक उदाहरण है।
उन्होंने बताया कि कैसे जब अधिकतर प्रोड्यूसर इसमें पैसा लगाने को तैयार नहीं हो रहे थे, उन्होंने इसका जिम्मा उठाया। इसी तरह, उन्होंने ‘कार्तिकेय 2’ का निर्माण किया, जो तकनीकी रूप से भी काफी अच्छी फिल्म थी।
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जहाँ तक रवि तेजा का सवाल है, उनका नाम तेलुगु राज्यों में किसी पहचान का मोहताज नहीं है। फिल्म में मुख्य अभिनेता होने के साथ-साथ वो कॉमेडी के तड़के के लिए जाने जाते हैं। साउथ के अधिकतर बड़े स्टार्टस की तरह वो भी एक्शन हीरो हैं, लेकिन उनका स्टाइल और उनकी कॉमेडी टाइमिंग उन्हें बाकियों से अलग खड़ा करती है। उन्हें साउथ में ‘मास महाराजा’ के नाम से भी जाना जाता है। 55 वर्षीय रवि तेजा पहली बार पैन-इंडिया फिल्म का हिस्सा बने हैं।
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उन्होंने 1990 में ‘कर्तव्यम्’ नाम की फिल्म में एक छोटे से किरदार के साथ अपने फ़िल्मी करियर की शुरुआत की थी। लीड रोल तक पहुँचने में उन्हें लगभग एक दशक लग गया। 1999 में ‘नी कोसम’ नामक रोमांटिक ड्रामा से उनकी बतौर मुख्य अभिनेता शुरुआत हुई। उन्होंने 2 साल बाद ही ‘इटलु श्रावणी सुब्रमण्यम’ से खुद को स्थापित किया। ये भी जानने वाली बात है कि उनका बचपन उत्तर भारत में ही बिता है। उनकी स्कूलिंग जयपुर, दिल्ली, मुंबई और भोपाल से हुई।
यही कारण है कि वो तेलुगु के साथ-साथ हिंदी भाषा भी अच्छी तरह बोलते-समझते हैं। SS राजामौली के निर्देशन में बनी उनकी फिल्म ‘विक्रमकुडू (2006)’ की कई भाषाओं में रीमेक बनी। अक्षय कुमार अभिनीत ‘राउडी राठौड़ (2012)’ भी इसी की रीमेक है। उनकी फिल्म ‘किक’ (2009) के भी कई भाषाओं में रीमेक बने। हिंदी में सलमान खान ने इसमें अभिनय किया। बीच में उनकी कुछ फ़िल्में नहीं चली, लेकिन हाल ही में उनकी फिल्म ‘धमाका’ ने बॉक्स ऑफिस पर 100 करोड़ रुपए का आँकड़ा पार किया है और ‘रावणासुर’ को अच्छी समीक्षा मिली है।