Sunday, November 17, 2024
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10 साल में एक भी हिट नहीं, खुद और बच्चों के धंधे का सवाल… कंगना के खिलाफ नसीरुद्दीन कर रहे मूवी माफिया का समर्थन

खुद भी फिल्में करनी हैं, अपने बच्चों के करियर का भी सोचना है। ऐसे में मूवी माफिया या नेपोटिज्म पर सवाल कैसे? हाँ, सवाल उससे जरूर, जिसका कोई गॉडफादर नहीं है। इसीलिए कंगना निशाने पर! मादक पदार्थों का सेवन करने वाले सठिया चुके नसीरुद्दीन अब फ्रस्ट्रेशन में...

बॉलीवुड अभिनेता नसीरुद्दीन शाह ने कंगना रनौत को कोसा है। उन्हें लेकर जब कई दिनों तक कोई विवाद न हो तो उन्हें ये चुभने लगता है और वो मीडिया के सामने आके कुछ भी उलूल-जलूल बक कर गायब हो जाते हैं, जिस पर विवाद होना तय होता है। इस बार भी जब पूरा देश सुशांत सिंह राजपूत मामले में न्याय की माँग कर रहा था, तब वो चुप रहे। लेकिन, जब प्रकट हुए तो उनका निशाना वो लोग थे, जो सुशांत के लिए अभियान चला रहे हैं, जैसे- कंगना रनौत।

नसीरुद्दीन शाह ने कंगना रनौत को भला-बुरा कहा। भले ही नसीरुद्दीन से किसी ने ये उम्मीद नहीं लगाई हो कि वो सुशांत सिंह राजपूत के पीड़ित परिवार के पक्ष में बोलें लेकिन उन्होंने दो क़दम और आगे बढ़ कर कंगना रनौत को लपेट किया क्योंकि वो बॉलीवुड के मूवी माफिया के खिलाफ अभियान चला रही हैं। नेपोटिज्म के विरुद्ध लड़ाई में कंगना रनौत एक सशक्त चेहरा बन कर उभरी हैं, जो नसीरुद्दीन को खल रहा है।

हम उनके इतिहास-भूगोल की बात करेंगे लेकिन ताज़ा विवाद के बारे में पहले जानते हैं और ये समझते हैं कि उन्होंने कहा क्या था। उन्होंने सुशांत मामले में न्याय के लिए चल रहे अभियान को ही कुत्सित करार दिया। साथ ही ये भी कहा कि वो इस प्रकरण पर नज़र ही नहीं रख रहे हैं। यहाँ सवाल उठता है कि जब वो घटनाक्रम का अनुसरण ही नहीं कर रहे थे तो फिर उन्हें कैसे पता कि जो भी हो रहा, वो घिनौना है?

इसका मतलब ये कि उन्होंने बिना कुछ जाने-समझे ही कुछ भी बक दिया। सुशांत के बारे में इतना जरूर कहा उन्होंने कि उनका करियर अच्छा था और एक युवा की मौत के बाद उन्हें भी दुःख हुआ। लेकिन, वो साथ ही ये कहना भी नहीं भूले कि काफी सारे लोग इस मामले में ”नॉनसेन्स’ बक रहे हैं और उन्हें उन सबसे कोई मतलब नहीं। साथ ही कहा कि जिनके मन मे इस कमर्शियल इंडस्ट्री को लेकर फ्रस्ट्रेशन था, वो लोग मीडिया के सामने निकाल रहे।

फ्रस्ट्रेशन कौन निकाल रहा, ये छिपा नहीं है। जब आप ये याद करने बैठेंगे कि नसीरुद्दीन शाह की पिछली अच्छी फिल्म कौन सी थी तो आपको शायद कुछ याद ही न आए। ये छोड़िए, अगर आप बॉक्स ऑफिस पर भी इनकी पिछली हिट फिल्म के बारे में पता करेंगे तो आपको सालों पीछे जाना पड़ेगा। ‘बॉक्स ऑफिस इंडिया’ के अनुसार, इस आदमी की पिछली हिट फिल्म 2011 में आई मल्टीस्टारर ‘द डर्टी पिक्चर’ थी, जिसमें इनका सहायक रोल था।

इसका अर्थ है कि इस आदमी ने पिछले 10 सालों में बतौर सहायक अभिनेता भी एक अदद हिट फिल्म नहीं दी है। इनकी पिछली 20 फिल्में हिट नहीं हो पाई हैं। ऐसे में फ्रस्ट्रेशन कौन निकाल रहा है, ये समझा जा सकता है। जिसके पास काम की कमी नहीं हो, फिर भी वो एक दशक में एक अदद हिट न दे पाए या अच्छी फिल्म न कर पाए – वो आदमी किसी और को फ्रस्ट्रेटेड बता रहा है, ये विचित्र स्थिति है।

वो कहते हैं कि इंडस्ट्री के बारे में लोग जो खुलासे कर रहे हैं, वो घृणास्पद कृत्य है। नसीरुद्दीन शाह कहते हैं कि अगर आपके पास शिकायतें हैं तो आप इसे अपने तक रखिए, मीडिया को क्यों बता रहे हो? यही बात वो खुद क्यों नहीं समझते? उनके पास अगर कंगना के लिए कुछ है तो वो क्यों मीडिया के सामने एक माहिला के लिए जहर उगल रहे? वो भी ये शिकायतें अपने पास रखें, अपनी ही सिद्धांतों पर चलते हुए!

और वामपंथी तो फ्री स्पीच और लोकतंत्र की बड़ी-बड़ी बातें करते हैं न? सोशल मीडिया पर हर मुद्दे को लेकर ‘स्पीक अप’ बोल-बोल कर कौन सबका दिमाग खराब करता है? यही लिबरल लोग अब बोल रहे हैं कि चुप रहो? क्यों? क्योंकि सवाल अपने माई-बाप का है। सवाल इंडस्ट्री में दशकों से जमे गैंग का है, जिसे बचाना इनकी जिम्मेदारी है। ऐसे समय में ये आलोचकों को कहते हैं कि चुप रहो। और हाँ, चुप कराने के तरीके भी ये अपनाते हैं। महेश भट्ट पर लगे आरोपों को देख लीजिए।

कंगना रनौत को उन्होंने ‘स्टारलेट’ कह कर संबोधित किया, यानी उनकी नजर में वो स्टार तक नहीं हैं जबकि ये लोग सैफ अली खान से लेकर सलमान खान तक को सुपरस्टार कह कर गर्व से पुकारते हैं, क्योंकि नेपोटिज्म इनकी रग-रग में दौड़ता है। कंगना रनौत मुंबई से काफी दूर एक पहाड़ी राज्य से आई हैं। उनके माता-पिता किसी बड़े फिल्मी खानदान से नहीं आते, इसीलिए नसीरुद्दीन उन्हें कुछ भी कह सकते हैं। चुप रहने की हिदायत भी दे सकते है।

या फिर कहीं एक और कारण ये भी तो नहीं है कि कंगना रनौत हिन्दू हैं? नसीरुद्दीन शाह और जावेद अख्तर जैसों को हमने देखा है कि कैसे वो समय-समय पर हिंदुओं के प्रति अपनी दुर्भावना का प्रदर्शन करते रहते हैं। खुद नसीर को कभी डर लग जाता है और कभी उनके मन में अपने बच्चों के लिए भी यह डर बैठ जाता है। वो बच्चे जो कब के वयस्क हो चुके हैं। सभी फिल्म इंडस्ट्री में सक्रिय हैं।

उनका बड़ा बेटा इमाद पिछले डेढ़ दशक से इंडस्ट्री में सक्रिय है और उसने लगभग 9 फिल्मों में काम किया है। उनका छोटा बेटा विवान एक दशक में 6 फिल्मों में काम कर चुका है। उनकी बेटी तो 27 सालों से यहाँ सक्रिय है और 19 फिल्मों में काम कर चुकी हैं। ऐसे में बच्चों के करियर का सवाल जो ठहरा। जब अपने गैंग के खिलाफ कुछ बोलेंगे तो अपने बच्चों का करियर कैसे बनाएँगे, जिनकी एक्टिंग की मीडिया चर्चा तक नहीं करता।

खुद भी फिल्में करनी हैं, अपने बच्चों के करियर का भी सोचना है – ऐसे में जेएनयू जाने वाली दीपिका पादुकोण, सोशल मीडिया पर लड़ाई-झगड़े में व्यस्त रहने वाली तापसी पन्नु या फिर नेपोटिज्म का महिमामंडन करने वाली सोनम कपूर पर वो थोड़े न निशाना साधेंगे क्योंकि ये सब तो गैंग का ही हिस्सा हैं। इसीलिए कंगना रनौत निशाना बनती हैं क्योंकि उनका कोई गॉडफादर नहीं है और उनके लिए कोई आवाज भी नहीं उठाएगा इंडस्ट्री से।

नसीरुद्दीन शाह आज से नहीं बल्कि काफी पहले से दूसरों को लेकर इस तरह के बयान देते रहे हैं। ऐसे ही उन्होंने राजेश खन्ना के मरने के बाद उन्हें एक साधारण अभिनेता बता दिया था। जिस व्यक्ति को जनता ने इतना प्यार दिया कि उसे हिन्दी फिल्म इंडस्ट्री का पहला सुपरस्टार कहा गया, उसे साधारण बता कर वो क्या साबित करना चाहते थे? असल में वो इन्फिरीऑरिटी कॉम्पलेस से ग्रसित हैं। हालाँकि, बाद में उन्हें माफी माँगनी पड़ी थी।

नसीरुद्दीन ने बाद में फिर कहा था कि उस दौर में राज कपूर और दिलीप कुमार की तिकड़ी ढलान पर थी, फिल्‍म इंडस्‍ट्री को एक नए आइकॉन की जरूरत थी और राजेश खन्‍ना ने वो कमी पूरी की। बकौल शाह, हकीकत यह है कि इंडस्‍ट्री ने राजेश खन्ना को पैदा किया, उनका इस्‍तेमाल किया और उन्‍हें फेंक दिया, जब वे पैसे बनाने की मशीन नहीं रहे। एक दिवंगत अभिनेता के बारे में इतना संवेदनहीन बयान?

इसी तरह उन्होंने विराट कोहली को लेकर अजीबोगरीब बयान दिया था। उन्होंने भारतीय करी टीम के कप्तान को दुनिया का सबसे बदतमीज खिलाड़ी कह दिया था। नसीर ने कहा था कि कोहली भले प्रतिभावान हों लेकिन वो दुनिया के सबसे एरोगेंट और गलत व्यवहार करने वाले खिलाड़ी भी हैं। उनका यह स्वभाव उनकी प्रतिभा पर भारी पड़ता है। इसके बाद उन्होंने ये भी लिख दिया था कि उनका देश छोड़ कर जाने का कोई इरादा नहीं है।

आखिर वो जिन लोगों को गाली देते हैं, वो किस मामले में उनसे कम हैं? विराट कोहली उनसे ज्यादा लोकप्रिय हैं और हर मामले में टॉप पर हैं। राजेश खन्ना ने जो लोकप्रियता पाई, उसके लिए अमिताभ बच्चन जैसे तक ने उन्हें अपना आदर्श माना, नसीर तो दूर की बात हैं। नेशनल व फ़िल्मफेयर अवॉर्ड कंगना को भी मिल चुका है, फिर उन्हें ‘हाफ एडुकेटेड’ कहने वाले नसीर क्यों सेल्फ-मेड लोगों को इतनी हीन भावना से देखते हैं?

इसी तरह उन्होंने अनुपम खेर को जोकर कह दिया था, जिन्हें कई लोग उनसे कई गुना बेहतर अभिनेता मानते हैं। अनुपम खेर फ़िलहाल भारत से बाहर विदेशी फिल्मों में काम करने में व्यस्त हैं और पूरे 90 के दशक में उन्होंने लगभग सभी बड़े सितारों के साथ काम किया। वो आज भी इस उम्र में अपनी फिटनेस से युवाओं को भी चुनौती देते हैं। हर प्रकार के किरदारों में स्वीकार किए जाते हैं। क्या नसीरुद्दीन ने इसी का गुस्सा निकाला कि वो राष्ट्र के लिए बोलते हैं?

अनुपम खेर अक्सर वामपंथियों की धज्जियाँ उड़ाते रहते हैं। क्या किसी की विचारधारा अलग है तो वो अपने ज्यादा प्रतिभावान होने के बावजूद जोकर हो गया क्योंकि आप उसकी बातों को पसंद नहीं करते हैं। उसी समय अनुपम खेर ने कह दिया था कि नसीर फ़्रस्ट्रेटेड हैं और मादक पदार्थों के सेवन का शिकार हैं। दोनों एक-दूसरे को NSD के जमाने से जानते हैं। अब नसीर को किन मादक पदार्थों की लत है, वही बता पाएँगे क्योंकि अनुपम खेर ने आगे न बोल कर अपना बड़प्पन दिखाया।

राजेश खन्ना, अनुपम खेर, कंगना रनौत और विराट कोहली – नसीर ने इन सब पर टिप्पणी की जबकि इन सबकी मान-प्रतिष्ठा और प्रतिभा आसमान चूमती है। ये सभी काफी सफल रहे हैं। क्या नसीर अब गाँव के वो बेरोजगार हो गए हैं, जिसका काम हर आने-जाने वाले पर टिप्पणी करना है? वो भी तब, जब ये लोग उनकी बातों को गंभीरता से ही नहीं लेते। नसीरुद्दीन शाह का एक और दोमुँहा बयान देखिए।

वो सुशांत मामले में कहते हैं कि क़ानून अपना काम कर रहा है और इन सबसे हमें कोई मतलब नहीं होना चाहिए। वो क़ानूनी प्रक्रिया में विश्वास रखने की बातें करते हैं। लेकिन, जब इसी क़ानूनी प्रक्रिया से सीएए क़ानून बनाया जाता है तो वो जहाँ-जहाँ उपद्रवी बैठ कर इसका विरोध करते हैं, वहाँ-वहाँ जाकर वो सब करते हैं। क्या सीएए क़ानूनी प्रक्रिया से पास नहीं हुआ? सुशांत मामले में पुलिस पर विश्वास की सलाह देने वाले को संसद पर विश्वास नहीं है?

दिल्ली के शाहीन बाग़ की तरह बेंगलुरु के बिलाल बाग को भी प्रचारित किया गया। ये वही क्षेत्र है, जिस क्षेत्र में अगस्त 11, 2020 की रात दंगे भड़क गए थे और कॉन्ग्रेस के दलित विधायक के घर को क्षतिग्रस्त कर दिया गया था। वहाँ हुए सीएए विरोधी प्रदर्शन में नसीरुद्दीन शाह भी पहुँचे थे। नसीरुद्दीन शाह ने उन प्रदर्शनकारी महिलाओं को बहादुर बताते हुए कहा था कि उन्हें सड़क पर उतरने के लिए किसी की अनुमति लेने की जरूरत नहीं है।

असल में समस्या ये है कि नसीरुद्दीन शाह खुद को सबसे बेहतर समझते हैं और दूसरों को हीन भावना से देखते हुए ऐसा मानते हैं कि ये सब कुछ उन्हें भी मिलना चाहिए था। वो शायद ये भूल गए कि उनके ही साथ NSD में पढ़े ओम पुरी ने न सिर्फ उनसे ज्यादा काम किया बल्कि देश-विदेश में सम्मान भी पाया। इसी तरह कई अभिनेताओं ने थिएटर को आगे ले जाने के लिए काम किया। नसीरुद्दीन ये सब पचा नहीं पाते हैं कि सब उनसे बेहतर काम कर रहे।

नसीरुद्दीन शाह का कहना है कि सुशांत के न्याय के लिए चल रहा अभियान नॉनसेंस है, बुलशिट है और मूवी माफिया नाम की कोई चीज है ही नहीं। उनका कहना है कि अगर अभिनेता के रूप में उनका करियर अच्छा रहा है तो वो अपने बच्चों को क्यों नहीं इसी प्रोफेशन में भेज सकते। लेकिन, कोई उनसे पूछे कि उन्हें दूसरों के बच्चों पर गलत टिप्पणी करने का अधिकार किसने दिया? वो भी ऐसे लोगों पर, जिन्होंने इतनी मेहनत से खुद को स्थापित किया है।

खुद नसीरुद्दीन शाह जितनी बेकार और घटिया फिल्मों में काम कर चुके हैं, उसकी कोई गिनती नहीं है लेकिन वो दूसरों को कोसते हैं। आईएमडीबी पर आपको उनकी कई फ़िल्में घटिया रेटिंग वाली मिल जाएगी। लेकिन वो यहाँ आकर कहते हैं कि मूवी माफिया दिमागी उपज है और कोई भी उसी को फिल्म देगा, जिसे वो प्राथमिकता देता हो, पसंद करता हो। लेकिन, क्या इससे किसी का करियर चला जाए या कोई बर्बाद हो जाए, तो भी ठीक है? ये ऐसे सवाल हैं, जिनके जवाब उन्हें देने चाहिए।

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अनुपम कुमार सिंह
अनुपम कुमार सिंहhttp://anupamkrsin.wordpress.com
भारत की सनातन परंपरा के पुनर्जागरण के अभियान में 'गिलहरी योगदान' दे रहा एक छोटा सा सिपाही, जिसे भारतीय इतिहास, संस्कृति, राजनीति और सिनेमा की समझ है। पढ़ाई कम्प्यूटर साइंस से हुई, लेकिन यात्रा मीडिया की चल रही है। अपने लेखों के जरिए समसामयिक विषयों के विश्लेषण के साथ-साथ वो चीजें आपके समक्ष लाने का प्रयास करता हूँ, जिन पर मुख्यधारा की मीडिया का एक बड़ा वर्ग पर्दा डालने की कोशिश में लगा रहता है।

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